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1.  तीनो लोको के स्वामी सर्वशक्तिमान भगवान विष्णु  को नमन करते हुए मै एक राज्य के लिए  नीति  शास्त्र  के सिद्धांतों  को कहता हूँ.  मै यह सूत्र अनेक शास्त्रों का आधार ले कर कह रहा हूँ।


2. जो व्यक्ति शास्त्रों के सूत्रों का अभ्यास करके ज्ञान ग्रहण करेगा उसे अत्यंत वैभवशाली कर्तव्य के सिद्धांत ज्ञात होगे। उसे इस बात का पता चलेगा कि किन बातों का अनुशरण करना चाहिए और किनका नहीं। उसे अच्छाई और बुराई का भी ज्ञात होगा और अंततः उसे सर्वोत्तम का भी ज्ञान होगा।


3. इसलिए लोगो का भला करने के लिए मै उन बातों को कहूंगा जिनसे लोग सभी चीजों को सही परिपेक्ष्य मे देखेगे।


4. एक पंडित भी घोर कष्ट में आ जाता है यदि वह किसी मुर्ख को उपदेश देता है, यदि वह एक दुष्ट पत्नी का पालन-पोषण करता है या किसी दुखी व्यक्ति के साथ अतयंत घनिष्ठ सम्बन्ध बना लेता है.


5. दुष्ट पत्नी, झूठा मित्र, बदमाश नौकर और सर्प के साथ निवास साक्षात् मृत्यु के समान है।


6 . व्यक्ति को आने वाली मुसीबतो से निबटने के लिए धन संचय करना चाहिए। उसे धन-सम्पदा त्यागकर भी पत्नी की सुरक्षा करनी चाहिए। लेकिन यदि आत्मा की सुरक्षा की बात आती है तो उसे धन और पत्नी दोनो को तुक्ष्य समझना चाहिए।


7.भविष्य में आने वाली मुसीबतो के लिए धन एकत्रित करें। ऐसा ना सोचें की धनवान व्यक्ति को मुसीबत कैसी? जब धन साथ छोड़ता है तो संगठित धन भी तेजी से घटने लगता है।


8.  उस देश मे निवास न करें जहाँ आपकी कोई ईज्जत नहीं हो, जहा आप रोजगार नहीं कमा सकते, जहा आपका कोई मित्र नहीं और जहा आप कोई ज्ञान आर्जित नहीं कर सकते।


9 . ऐसे जगह एक दिन भी निवास न करें जहाँ निम्नलिखित पांच ना हो:
एक धनवान व्यक्ति ,
एक ब्राह्मण जो वैदिक शास्त्रों में निपुण हो,
एक राजा,
एक नदी ,
और एक चिकित्सक।


10 . बुद्धिमान व्यक्ति को ऐसे देश में कभी नहीं जाना चाहिए जहाँ :
रोजगार कमाने का कोई माध्यम ना हो,
जहा लोगों को किसी बात का भय न हो,
जहा लोगो को किसी बात की लज्जा न हो,
जहा लोग बुद्धिमान न हो,
और जहाँ लोगो की वृत्ति दान धरम करने की ना हो।


11. नौकर की परीक्षा तब करें जब वह कर्त्तव्य का पालन न कर रहा हो,
रिश्तेदार की परीक्षा तब करें जब आप मुसीबत मे घिरें हों,
मित्र की परीक्षा विपरीत परिस्थितियों मे करें,
और जब आपका वक्त अच्छा न चल रहा हो तब पत्नी की परीक्षा करे।


12 . अच्छा मित्र वही है जो हमे निम्नलिखित परिस्थितियों में नहीं त्यागे:
आवश्यकता पड़ने पर,
किसी दुर्घटना पड़ने पर,
जब अकाल पड़ा हो,
जब युद्ध चल रहा हो,
जब हमे राजा के दरबार मे जाना पड़े,
और जब हमे समशान घाट जाना पड़े।


13 . जो व्यक्ति कसी नाशवंत चीज के लिए कभी नाश नहीं होने वाली चीज को छोड़ देता है, तो उसके हाथ से अविनाशी वस्तु तो चली ही जाती है और इसमे कोई संदेह नहीं की नाशवान को भी वह खो देता है।


14 . एक बुद्धिमान व्यक्ति को किसी इज्जतदार घर की अविवाहित कन्या से किस वयंग होने के बावजूद भी विवाह करना चाहिए। उसे किसी हीन घर की अत्यंत सुन्दर स्त्री से भी विवाह नहीं करनी चाहिए। शादी-विवाह हमेशा बराबरी के घरो मे ही उिचत होता है।


15 . इन ५ पर कभी विश्वास ना करें :
1. नदियां,
2. जिन व्यक्तियों के पास अश्त्र-शस्त्र हों,
3. नाख़ून और सींग वाले पशु,
4. औरतें (यहाँ संकेत भोली सूरत की तरफ है, बहने बुरा न माने )
5. राज घरानो के लोगो पर।


16 . अगर हो सके तो विष मे से भी अमृत निकाल लें,
यदि सोना गन्दगी में भी पड़ा हो तो उसे उठाये, धोएं और अपनाये,
निचले कुल मे जन्म लेने वाले से भी सर्वोत्तम ज्ञान ग्रहण करें,
उसी तरह यदि कोई बदनाम घर की कन्या भी महान गुणो से संपनन है और आपको कोई सीख देती है तो गहण करे.


17 . महिलाओं में पुरुषों कि अपेक्षा:
भूख दो गुना,
लज्जा चार गुना,
साहस छः गुना,
और काम आठ गुना होती है।


अनमोल विचार (शिव खेड़ा) | सुविचार | Health tips For Women | Best Quotes Motivational


1. झूठ बोलना, कठोरता, छल करना, बेवकूफी करना, लालच, अपवित्रता  और निर्दयता ये औरतो के कुछ नैसर्गिक दुर्गुण है।


2.भोजन के योग्य पदार्थ और भोजन करने की क्षमता, सुन्दर स्त्री और उसे भोगने के लिए काम शक्ति, पर्याप्त धनराशी तथा दान देने की भावना - ऐसे संयोगों का होना सामान्य
तप का फल नहीं है।


3. उस व्यक्ति ने धरती पर ही स्वर्ग को पा लिया :

1. जिसका पुत्र आज्ञांकारी है,
3. जिसकी पत्नी उसकी इच्छा के अनुरूप व्यव्हार करती है,
3. जिसे अपने धन पर संतोष है


4. पुत्र वही है जो पिता का कहना मानता हो, पिता वही है जो पुत्रों का पालन-पोषण करे, मित्र वही है जिस पर आप विश्वास कर सकते हों और पत्नी वही है जिससे सुख प्राप्त हो।


5. ऐसे लोगों से बचे जो आपके मुह पर तो मीठी बातें करते हैं, लेकिन आपके पीठ पीछे आपको बर्बाद करने की योजना बनाते है, ऐसा करने वाले तो उस विष के घड़े के समान
है जिसकी उपरी सतह दूध से भरी है।


6. एक बुरे मित्र पर तो कभी विश्वास ना करे। एक अच्छे मित्र पर भी विश्वास ना करें। क्यूंकि यदि ऐसे लोग आपसे रुष्ट होते है तो आप के सभी राज से पर्दा खोल देंगे।


7. मन में सोंचे हुए कार्य को किसी के सामने प्रकट न करें बल्कि मनन पूर्वक उसकी सुरक्षा करते हुए उसे कार्य में परिणत कर दें।


8. मुर्खता दुखदायी है, जवानी भी दुखदायी है,लेकिन इन सबसे कहीं ज्यादा दुखदायी किसी दुसरे के घर जाकर उसका अहसान लेना है।


9. हर पर्वत पर माणिक्य नहीं होते,  हर हाथी के सर पर मणी नहीं होता, सज्जन पुरुष भी हर जगह नहीं होते और हर वन मे चन्दन के वृक्ष भी नहीं होते हैं।


10. बुद्धिमान पिता को अपने पुत्रों को शुभ गुणों की सीख देनी चाहिए क्योंकि नीतिज्ञ और ज्ञानी व्यक्तियों की ही कुल में पूजा होती है।


11. जो माता व् पिता अपने बच्चों को शिक्षा नहीं देते है वो तो बच्चों के शत्रु के सामान हैं। क्योंकि वे विद्याहीन बालक विद्वानों की सभा में वैसे ही तिरस्कृत किये जाते हैं जैसे हंसो
की सभा मे बगुले।


12. लाड-प्यार से बच्चों मे गलत आदते ढलती है, उन्हें कड़ी शिक्षा देने से वे अच्छी आदते सीखते है, इसलिए बच्चों को जरुरत पड़ने पर दण्डित करें, ज्यादा लाड ना करें।


13. ऐसा एक भी दिन नहीं जाना चाहिए जब आपने एक श्लोक, आधा श्लोक, चौथाई श्लोक, या श्लोक का केवल एक अक्षर नहीं सीखा, या आपने दान, अभ्यास या कोई पवित्र
कार्य नहीं किया।


14. पत्नी का वियोग होना, आपने ही लोगो से बे-इजजत होना, बचा हुआ ऋण, दुष्ट राजा की सेवा करना, गरीबी एवं दरिद्रों की सभा - ये छह बातें शरीर को बिना अग्नि के ही
जला देती हैं।


15..  नदी के किनारे वाले वृक्ष, दुसरे व्यक्ति के घर मे जाने अथवा रहने वाली स्त्री एवं बिना मंत्रियों का राजा - ये सब निश्चय ही शीघ्र नस्ट हो जाते हैं।


16. एक ब्राह्मण का बल तेज और विद्या है, एक राजा का बल उसकी सेना मे है, एक वैशय का बल उसकी दौलत मे है तथा एक शुद्र का बल उसकी सेवा परायणता मे है।


17. वेश्या को निर्धन व्यक्ति को त्याग देना चाहिए, प्रजा को पराजित राजा को त्याग देना चाहिए, पक्षियों को फलरहित वृक्ष त्याग देना चाहिए एवं अतिथियों को भोजन करने के
पश्चात् मेजबान के घर से निकल देना चाहिए।


18. ब्राह्मण दक्षिणा मिलने के पश्चात् आपने यजमानो को छोड़ देते है, विद्वान विद्या प्राप्ति के बाद गुरु को छोड़ जाते हैं और पशु जले हुए वन को त्याग देते हैं।


19. जो व्यक्ति दुराचारी, कुदृष्टि वाले, एवं बुरे स्थान पर रहने वाले मनुष्य के साथ मित्रता करता है, वह शीघ्र नष्ट हो जाता है।


20. प्रेम और मित्रता बराबर वालों में अच्छी लगती है, राजा के यहाँ नौकरी करने वाले को ही सम्मान मिलता है, व्यवसायों में वाणिज्य सबसे अच्छा है, अवं उत्तम गुणों वाली स्त्री
अपने घर में सुरक्षित रहती है।


अनमोल विचार (शिव खेड़ा) | सुविचार | Health tips For Women | Best Quotes Motivational


1. इस दुनिया  मे ऐसा किसका घर है जिस पर कोई कलंक नहीं, वह कौन है जो रोग और दुख से मुक्त है.सदा सुख किसको रहता है?


2. मनुष्य के कुल की ख्याति उसके आचरण से होती है, मनुष्य के बोल चल से उसके देश की ख्याति बढ़ती है, मान सम्मान उसके प्रेम को बढ़ता है, एवं उसके शारीर का गठन
उसे भोजन से बढ़ता है.


3. लड़की का बयाह अच्छे खानदान मे करना चाहिए. पुत्र  को अचछी शिक्षा देनी चाहिए,  शत्रु को आपत्ति और कष्टों में डालना चाहिए, एवं मित्रों को धर्म कर्म में लगाना चाहिए.


4. एक दुर्जन और एक सर्प मे यह अंतर है की साप तभी डंख मरेगा जब उसकी जान को खतरा हो लेकिन दुर्जन पग पग पर हानि पहुचने की कोशिश करेगा .


5. राजा लोग अपने आस पास अच्छे कुल के लोगो को इसलिए रखते है क्योंकि ऐसे लोग ना आरम्भ मे, ना बीच मे और  ना ही  अंत मे साथ छोड़कर जाते है.


6. जब प्रलय का समय आता है तो समुद्र भी अपनी मयारदा छोड़कर किनारों को छोड़ अथवा तोड़ जाते है, लेकिन सज्जन पुरुष प्रलय के सामान भयंकर आपत्ति अवं विपत्ति में
भी आपनी मर्यादा नहीं बदलते.


7. मूर्खो के साथ मित्रता नहीं रखनी चाहिए उन्हें त्याग देना ही उचित है, क्योंकि प्रत्यक्ष रूप से वे दो पैरों वाले पशु के सामान हैं,जो अपने धारदार वचनो से वैसे ही हदय को
छलनी करता है जैसे अदृश्य काँटा शारीर में घुसकर छलनी करता है .


8. रूप और यौवन से सम्पन्न तथा कुलीन परिवार में जन्मा लेने पर भी विद्या हीन पुरुष पलाश के फूल के समान है जो सुन्दर तो है लेकिन खुशबु रहित है.


9. कोयल की सुन्दरता उसके गायन मे है. एक स्त्री की सुन्दरता उसके अपने पिरवार के प्रति समर्पण मे है. एक बदसूरत आदमी की सुन्दरता उसके ज्ञान मे है तथा एक तपस्वी
की सुन्दरता उसकी क्षमाशीलता मे है.


10. कुल की रक्षा के लिए एक सदस्य का बिलदान दें,गाव की रक्षा के लिए एक कुल का बिलदान दें, देश की रक्षा के लिए एक गाव का बिलदान दें, आतमा की रक्षा के लिए
देश का बिलदान दें.


11.जो उद्यमशील हैं, वे गरीब नहीं हो सकते,
जो हरदम भगवान को याद करते है उनहे पाप नहीं छू सकता.
जो मौन रहते है वो झगड़ों मे नहीं पड़ते.
जो जागृत रहते है वो िनभरय होते है.



13. शक्तिशाली लोगों के लिए कौनसा कार्य कठिन है ? व्यापारिओं के लिए कौनसा जगह दूर है, विद्वानों के लिए कोई देश विदेश नहीं है, मधुभाषियों का कोई शत्रु नहीं.


14. जिस तरह सारा वन केवल एक ही पुष्प अवं सुगंध भरे  वृक्ष से महक जाता है उसी तरह एक ही गुणवान पुत्र  पुरे कुल का नाम बढाता है.


15. जिस प्रकार केवल एक सुखा हुआ जलता वृक्ष सम्पूर्ण वन को जला देता है उसी प्रकार एक ही कुपुत्र सरे कुल के मान, मर्यादा और प्रतिष्ठा को नष्ट कर देता है.


16. विद्वान एवं सदाचारी एक ही पुत्र के कारन सम्पूर्ण परिवार वैसे ही खुशहाल रहता है जैसे चन्द्रमा के निकालने पर रात्रि जगमगा उठती है.


17. ऐसे अनेक पुत्र किस काम के जो दुःख और निराशा पैदा करे. इससे तो वह एक ही पुत्र अच्छा है जो समपूणर घर को सहारा और शांित पदान करे.


18. पांच साल तक पुत्र को लाड एवं प्यार से पालन करना चाहिए, दस साल तक उसे छड़ी की मार से डराए. लेकिन जब वह 16 साल का हो जाए तो उससे मित्र के समान
वयवहार करे.


19. वह व्यक्ति सुरक्षित रह सकता है जो नीचे दी हुई परिस्थितियां उत्पन्न होने पर भाग जाए.
1. भयावह आपदा.
2. विदेशी आक्रमण
3. भयंकर अकाल
4. दुष व्यक्ति का संग.


20. जो व्यक्ति निम्नलिखित बाते अर्जित नहीं करता वह बार बार जनम लेकर मरता है.
1. धमर
2. अर्थ
3. काम
4. मोक्ष


21. धन की देवी लक्ष्मी स्वयं वहां चली आती है जहाँ ...
1. मूखो का सम्मान नहीं होता.
2. अनाज का अचछे से भणडारण िकया जाता है.
3. पित, पत्नी मे आपस मे लड़ाई बखेड़ा नहीं होता है.


निम्नलिखित बातें माता के गर्भ में ही निश्चित हो जाती है....
1. व्यक्ति कितने साल जियेगा 2. वह किस प्रकार का काम करेगा 3. उसके पास कितनी संपत्ति होगी 4. उसकी मृत्यु कब होगी .


पुत्र , मित्र, सगे सम्बन्धी साधुओं को देखकर दूर भागते है, लेकिन जो लोग साधुओं का अनुशरण करते है उनमे भक्ति जागृत होती है और उनके उस पुण्य से उनका सारा कुल
धन्य हो जाता है .


जैसे मछली दृष्टी से, कछुआ ध्यान देकर और पंछी स्पर्श करके अपने बच्चो को पालते है, वैसे ही संतजन पुरुषों की संगती मनुष्य का पालन पोषण करती है.


जब आपका शरीर स्वस्थ है और आपके नियंत्रण में है उसी समय आत्मसाक्षात्कार का उपाय कर लेना चाहिए क्योंकि मृत्यु हो जाने के बाद कोई कुछ नहीं कर सकता है.


विद्या अर्जन करना यह एक कामधेनु के समान है जो हर मौसम में अमृत प्रदान करती है. वह विदेश में माता के समान रक्षक अवं हितकारी होती है. इसीलिए विद्या को एक गुप्त
धन कहा जाता है.


सैकड़ों गुणरहित पुत्रों से अच्छा एक गुणी पुत्र है क्योंकि एक चन्द्रमा ही रात्रि के अन्धकार को भगाता है, असंख्य तारे यह काम नहीं करते.


एक ऐसा बालक जो जन्मते वक़्त मृत था, एक मुर्ख दीर्घायु बालक से बेहतर है. पहला बालक तो एक क्षण के लिए दुःख देता है, दूसरा बालक उसके माँ बाप को जिंदगी भर दुःख
की अग्नि में जलाता है.


निम्नलिखित बाते व्यक्ति को बिना आग के ही जलाती है...
1. एक छोटे गाव में बसना जहा रहने की सुविधाए उपलब्ध नहीं.
2. एक ऐसे व्यक्ति के यहाँ नौकरी करना जो नीच कुल में पैदा हुआ है.
3. अस्वास्थय्वर्धक भोजन का सेवन करना.
4. जिसकी पत्नी हरदम गुस्से में होती है.
5. जिसको मुर्ख पुत्र है.
6. जिसकी पुत्री विधवा हो गयी है.


वह गाय किस काम की जो ना तो दूध देती है ना तो बच्चे को जन्म देती है. उसी प्रकार उस बच्चे का जन्म किस काम का जो ना ही विद्वान हुआ ना ही भगवान् का भक्त हुआ.


जब व्यक्ति जीवन के दुःख से झुलसता है उसे निम्नलिखित ही सहारा देते है...
1. पुत्र और पुत्री 2. पत्नी 3. भगवान् के भक्त.


यह बाते एक बार ही होनी चाहिए..
1. राजा का बोलना.
2. बिद्वान व्यक्ति का बोलना.
3. लड़की का ब्याहना.


जब आप तप करते है तो अकेले करे.
अभ्यास करते है तो दुसरे के साथ करे.
गायन करते है तो तीन लोग करे.
कृषि चार लोग करे.
युद्ध अनेक लोग मिलकर करे.


वही अच्छी पत्नी है जो शुचिपूर्ण है, पारंगत है, शुद्ध है, पति को प्रसन्न करने वाली है और सत्यवादी है.


जिस व्यक्ति के पुत्र नहीं है उसका घर उजाड़ है. जिसे कोई सम्बन्धी नहीं है उसकी सभी दिशाए उजाड़ है. मुर्ख व्यक्ति का ह्रदय उजाड़ है. निर्धन व्यक्ति का सब कुछ उजाड़
है.


जिस अध्यात्मिक सीख का आचरण नहीं किया जाता वह जहर है. जिसका पेट ख़राब है उसके लिए भोजन जहर है. निर्धन व्यक्ति के लिए लोगो का किसी सामाजिक या
व्यक्तिगत कार्यक्रम में एकत्र होना जहर है.


जिस व्यक्ति के पास धर्म और दया नहीं है उसे दूर करो. जिस गुरु के पास अध्यात्मिक ज्ञान नहीं है उसे दूर करो. जिस पत्नी के चेहरे पर हरदम घृणा है उसे दूर करो. जिन
रिश्तेदारों के पास प्रेम नहीं उन्हें दूर करो.


सतत भ्रमण करना व्यक्ति को बूढ़ा बना देता है. यदि घोड़े को हरदम बांध कर रखते है तो वह बूढा हो जाता है. यदि स्त्री उसके पति के साथ प्रणय नहीं करती हो तो बुढी हो
जाती है. धुप में रखने से कपडे पुराने हो जाते है.


इन बातो को बार बार गौर करे...
सही समय
सही मित्र
सही ठिकाना
पैसे कमाने के सही साधन
पैसे खर्चा करने के सही तरीके
आपके उर्जा स्रोत.


द्विज अग्नि में भगवान् देखते है.
भक्तो के ह्रदय में परमात्मा का वास होता है.
जो अल्प मति के लोग है वो मूर्ति में भगवान् देखते है.
लेकिन जो व्यापक दृष्टी रखने वाले लोग है, वो यह जानते है की भगवान सर्व व्यापी है.


ब्राह्मणों को अग्नि की पूजा करनी चाहिए . दुसरे लोगों को ब्राह्मण की पूजा करनी चाहिए . पत्नी को पति की पूजा करनी चाहिए तथा दोपहर के भोजन के लिए जो अतिथि आये
उसकी सभी को पूजा करनी चाहिए .


सोने की परख उसे घिस कर, काट कर, गरम कर के और पीट कर की जाती है. उसी तरह व्यक्ति का परीक्षण वह कितना त्याग करता है, उसका आचरण कैसा है, उसमे गुण
कौनसे है और उसका व्यवहार कैसा है इससे होता है.


यदि आप पर मुसीबत आती नहीं है तो उससे सावधान रहे. लेकिन यदि मुसीबत आ जाती है तो किसी भी तरह उससे छुटकारा पाए.


अनेक व्यक्ति जो एक ही गर्भ से पैदा हुए है या एक ही नक्षत्र में पैदा हुए है वे एकसे नहीं रहते. उसी प्रकार जैसे बेर के झाड के सभी बेर एक से नहीं रहते.


वह व्यक्ति जिसके हाथ स्वच्छ है कार्यालय में काम नहीं करना चाहता. जिस ने अपनी कामना को ख़तम कर दिया है, वह शारीरिक शृंगार नहीं करता, जो आधा पढ़ा हुआ व्यक्ति
है वो मीठे बोल बोल नहीं सकता. जो सीधी बात करता है वह धोका नहीं दे सकता.


मूढ़ लोग बुद्धिमानो से इर्ष्या करते है. गलत मार्ग पर चलने वाली औरत पवित्र स्त्री से इर्ष्या करती है. बदसूरत औरत खुबसूरत औरत से इर्ष्या करती है.


खाली बैठने से अभ्यास का नाश होता है. दुसरो को देखभाल करने के लिए देने से पैसा नष्ट होता है. गलत ढंग से बुवाई करने वाला किसान अपने बीजो का नाश करता है. यदि
सेनापति नहीं है तो सेना का नाश होता है.


अर्जित विद्या अभ्यास से सुरक्षित रहती है.
घर की इज्जत अच्छे व्यवहार से सुरक्षित रहती है.
अच्छे गुणों से इज्जतदार आदमी को मान मिलता है.
किसीभी व्यक्ति का गुस्सा उसकी आँखों में दिखता है.


धर्मं की रक्षा पैसे से होती है.
ज्ञान की रक्षा जमकर आजमाने से होती है.
राजा से रक्षा उसकी बात मानने से होती है.
घर की रक्षा एक दक्ष गृहिणी से होती है.


जो वैदिक ज्ञान की निंदा करते है, शास्र्त सम्मत जीवनशैली की मजाक उड़ाते है, शांतीपूर्ण स्वभाव के लोगो की मजाक उड़ाते है, बिना किसी आवश्यकता के दुःख को प्राप्त
होते है.


दान गरीबी को ख़त्म करता है. अच्छा आचरण दुःख को मिटाता है. विवेक अज्ञान को नष्ट करता है. जानकारी भय को समाप्त करती है.


वासना के समान दुष्कर कोई रोग नहीं. मोह के समान कोई शत्रु नहीं. क्रोध के समान अग्नि नहीं. स्वरुप ज्ञान के समान कोई बोध नहीं.


व्यक्ति अकेले ही पैदा होता है. अकेले ही मरता है. अपने कर्मो के शुभ अशुभ परिणाम अकेले ही भोगता है. अकेले ही नरक में जाता है या सदगति प्राप्त करता है.


जिसने अपने स्वरुप को जान लिया उसके लिए स्वर्ग तो तिनके के समान है. एक पराक्रमी योद्धा अपने जीवन को तुच्छ मानता है. जिसने अपनी कामना को जीत लिया उसके
लिए स्त्री भोग का विषय नहीं. उसके लिए सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड तुच्छ है जिसके मन में कोई आसक्ति नहीं.


जब आप सफ़र पर जाते हो तो विद्यार्जन ही आपका मित्र है. घर में पत्नी मित्र है. बीमार होने पर दवा मित्र है. अर्जित पुण्य मृत्यु के बाद एकमात्र मित्र है.


समुद्र में होने वाली वर्षा व्यर्थ है. जिसका पेट भरा हुआ है उसके लिए अन्न व्यर्थ है. पैसे वाले आदमी के लिए भेट वस्तु का कोई अर्थ नहीं. दिन के समय जलता दिया व्यर्थ है.


वर्षा के जल के समान कोई जल नहीं. खुदकी शक्ति के समान कोई शक्ति नहीं. नेत्र ज्योति के समान कोई प्रकाश नहीं. अन्न से बढ़कर कोई संपत्ति नहीं.


निर्धन को धन की कामना. पशु को वाणी की कामना. लोगो को स्वर्ग की कामना. देव लोगो को मुक्ति की कामना.


सत्य की शक्ति ही इस दुनिया को धारण करती है. सत्य की शक्ति से ही सूर्य प्रकाशमान है, हवाए चलती है, सही में सब कुछ सत्य पर आश्रित है.


लक्ष्मी जो संपत्ति की देवता है, वह चंचला है. हमारी श्वास भी चंचला है. हम कितना समय जियेंगे इसका कोई ठिकाना नहीं. हम कहा रहेंगे यह भी पक्का नहीं. कोई बात यहाँ पर
पक्की है तो यह है की हमारा अर्जित पुण्य कितना है.


आदमियों में नाई सबसे धूर्त है. कौवा पक्षीयों में धूर्त है. लोमड़ी प्राणीयो में धूर्त है. औरतो में लम्पट औरत सबसे धूर्त है.


ये सब आपके पिता है...1. जिसने आपको जन्म दिया. 2. जिसने आपका यज्ञोपवित संस्कार किया. 3. जिसने आपको पढाया. 4. जिसने आपको भोजन दिया. 5. जिसने आपको
भयपूर्ण परिस्थितियों में बचाया.


इन सब को  आपनी माता समझें .1. राजा की पत्नी 2. गुरु की पत्नी 3. मित्र की पत्नी 4. पत्नी की माँ 5. आपकी माँ.


श्रवण करने से धर्मं का ज्ञान होता है, द्वेष दूर होता है, ज्ञान की प्राप्ति होती है और माया की आसक्ति से मुक्ति होती है.


पक्षीयों में कौवा नीच है. पशुओ में कुत्ता नीच है. जो तपस्वी पाप करता है वो घिनौना है. लेकिन जो दूसरो की निंदा करता है वह सबसे बड़ा चांडाल है.


राख से घिसने पर पीतल चमकता है . ताम्बा इमली से साफ़ होता है. औरते प्रदर से शुद्ध होती है. नदी बहती रहे तो साफ़ रहती है.


राजा, ब्राह्मण और तपस्वी योगी जब दुसरे देश जाते है, तो आदर पाते है. लेकिन औरत यदि भटक जाती है तो बर्बाद हो जाती है.


धनवान व्यक्ति के कई मित्र होते है. उसके कई सम्बन्धी भी होते है. धनवान को ही आदमी कहा जाता है और पैसेवालों को ही पंडित कह कर नवाजा जाता है


सर्व शक्तिमान के इच्छा से ही बुद्धि काम करती है, वही कर्मो को नियंत्रीत करता है. उसी की इच्छा से आस पास में मदद करने वाले आ जाते है.काल सभी जीवो को निपुणता प्रदान करता है. वही सभी जीवो का संहार भी करता है. वह जागता रहता है जब सब सो जाते है. काल को कोई जीत नहीं सकता.


जो जन्म से अंध है वो देख नहीं सकते. उसी तरह जो वासना के अधीन है वो भी देख नहीं सकते. अहंकारी व्यक्ति को कभी ऐसा नहीं लगता की वह कुछ बुरा कर रहा है. और
जो पैसे के पीछे पड़े है उनको उनके कर्मो में कोई पाप दिखाई नहीं देता.


जीवात्मा अपने कर्म के मार्ग से जाता है. और जो भी भले बुरे परिणाम कर्मो के आते है उन्हें भोगता है. अपने ही कर्मो से वह संसार में बंधता है और अपने ही कर्मो से बन्धनों से
छूटता है.


राजा को उसके नागरिको के पाप लगते है. राजा के यहाँ काम करने वाले पुजारी को राजा के पाप लगते है. पति को पत्नी के पाप लगते है. गुरु को उसके शिष्यों के पाप लगते
है.


अपने ही घर में व्यक्ति के ये शत्रु हो सकते है...
उसका बाप यदि वह हरदम कर्ज में डूबा रहता है.
उसकी माँ यदि वह दुसरे पुरुष से संग करती है.
सुन्दर पत्नी
वह लड़का जिसने शिक्षा प्राप्त नहीं की.


एक लालची आदमी को भेट वास्तु दे कर संतुष्ट करे. एक कठोर आदमी को हाथ जोड़कर संतुष्ट करे. एक मुर्ख को सम्मान देकर संतुष्ट करे. एक विद्वान् आदमी को सच बोलकर
संतुष्ट करे.


एक बेकार राज्य का राजा होने से यह बेहतर है की व्यक्ति किसी राज्य का राजा ना हो.
एक पापी का मित्र होने से बेहतर है की बिना मित्र का हो.
एक मुर्ख का गुरु होने से बेहतर है की बिना शिष्य वाला हो.
एक बुरीं पत्नी होने से बेहतर है की बिना पत्नी वाला हो.


एक बेकार राज्य में लोग सुखी कैसे हो? एक पापी से किसी शान्ति की प्राप्ति कैसे हो? एक बुरी पत्नी के साथ घर में कौनसा सुख प्राप्त हो सकता है. एक नालायक शिष्य को
शिक्षा देकर कैसे कीर्ति प्राप्त हो?


शेर से एक बात सीखे. बगुले से एक. मुर्गे से चार. कौवे से पाच. कुत्ते से छह. और गधे से तीन.


शेर से यह बढ़िया बात सीखे की आप जो भी करना चाहते हो एकदिली से और जबरदस्त प्रयास से करे.


बुद्धिमान व्यक्ति अपने इन्द्रियों को बगुले की तरह वश में करते हुए अपने लक्ष्य को जगह, समय और योग्यता का पूरा ध्यान रखते हुए पूर्ण करे.


मुर्गे से हे चार बाते सीखे...
1. सही समय पर उठे. 2. नीडर बने और लढ़े. 3. संपत्ति का रिश्तेदारों से उचित बटवारा करे. 4. अपने कष्ट से अपना रोजगार प्राप्त करे.


कौवे से ये पाच बाते सीखे... 1. अपनी पत्नी के साथ एकांत में प्रणय करे. 2. नीडरता 3. उपयोगी वस्तुओ का संचय करे. 4. सभी ओर दृष्टी घुमाये. 5. दुसरो पर आसानी से विश्वास
ना करे.


कुत्ते से ये बाते सीखे 1. बहुत भूख हो पर खाने को कुछ ना मिले या कम मिले तो भी संतोष करे. 2. गाढ़ी नींद में हो तो भी क्षण में उठ जाए. 3. अपने स्वामी के प्रति बेहिचक
इमानदारी रखे 4. नीडरता.


गधे से ये तीन बाते सीखे. 1. अपना बोझा ढोना ना छोड़े. 2. सर्दी गर्मी की चिंता ना करे. 3. सदा संतुष्ट रहे.


जो व्यक्ति इन बीस गुणों पर अमल करेगा वह जो भी करेगा सफल होगा.


एक बुद्धिमान व्यक्ति को निम्नलिखित बातें किसी को नहीं बतानी चाहिए ..
1. की उसकी दौलत खो चुकी है.
2. उसे क्रोध आ गया है.
3. उसकी पत्नी ने जो गलत व्यवहार किया.
4. लोगो ने उसे जो गालिया दी.
5. वह किस प्रकार बेइज्जत हुआ है.


जो व्यक्ति आर्थिक व्यवहार करने में, ज्ञान अर्जन करने में, खाने में और काम-धंदा करने में शर्माता नहीं है वो सुखी हो जाता है.


जो सुख और शांति का अनुभव स्वरुप ज्ञान को प्राप्त करने से होता है, वैसा अनुभव जो लोभी लोग धन के लोभ में यहाँ वहा भटकते रहते है उन्हें नहीं होता.


व्यक्ति नीचे दी हुए 3 चीजो से संतुष्ट रहे...
1. खुदकी पत्नी 2. वह भोजन जो विधाता ने प्रदान किया. 3. उतना धन जितना इमानदारी से मिल गया.


लेकिन व्यक्ति को नीचे दी हुई 3 चीजो से संतुष्ट नहीं होना चाहिए...
1. अभ्यास 2. भगवान् का नाम स्मरण. 3. परोपकार


इन दोनों के मध्य से कभी ना जाए..
1. दो ब्राह्मण.
2. ब्राह्मण और उसके यज्ञ में जलने वाली अग्नि.
3. पति पत्नी.
4. स्वामी और उसका चाकर.
5. हल और बैल.


अपना पैर कभी भी इनसे न छूने दे...1. अग्नि 2. अध्यात्मिक गुरु 3. ब्राह्मण 4. गाय 5. एक कुमारिका 6. एक उम्र में बड़ा आदमी. 5. एक बच्चा.


हाथी से हजार गज की दुरी रखे.
घोड़े से सौ की.
सिंग वाले जानवर से दस की.
लेकिन दुष्ट जहा हो उस जगह से ही निकल जाए.


हाथी को अंकुश से नियंत्रित करे.
घोड़े को थप थपा के.
सिंग वाले जानवर को डंडा दिखा के.
एक बदमाश को तलवार से.


ब्राह्मण अच्छे भोजन से तृप्त होते है. मोर मेघ गर्जना से. साधू दुसरो की सम्पन्नता देखकर और दुष्ट दुसरो की विपदा देखकर.


एक शक्तिशाली आदमी से उसकी बात मानकर समझौता करे. एक दुष्ट का प्रतिकार करे. और जिनकी शक्ति आपकी शक्ति के बराबर है उनसे समझौता विनम्रता से या
कठोरता से करे.


एक राजा की शक्ति उसकी शक्तिशाली भुजाओ में है. एक ब्राह्मण की शक्ति उसके स्वरुप ज्ञान में है. एक स्त्री की शक्ति उसकी सुन्दरता, तारुण्य और मीठे वचनों में है.


अपने व्यवहार में बहुत सीधे ना रहे. आप यदि वन जाकर देखते है तो पायेंगे की जो पेड़ सीधे उगे उन्हें काट लिया गया और जो पेड़ आड़े तिरछे है वो खड़े है.


हंस वहा रहते है जहा पानी होता है. पानी सूखने पर वे उस जगह को छोड़ देते है. आप किसी आदमी को ऐसा व्यवहार ना करने दे की वह आपके पास आता जाता रहे.


संचित धन खर्च करने से बढ़ता है. उसी प्रकार जैसे ताजा जल जो अभी आया है बचता है, यदि पुराने स्थिर जल को निकल बहार किया जाये.


वह व्यक्ति जिसके पास धन है उसके पास मित्र और सम्बन्धी भी बहोत रहते है. वही इस दुनिया में टिक पाता है और उसीको इज्जत मिलती है.


स्वर्ग में निवास करने वाले देवता लोगो में और धरती पर निवास करने वाले लोगो में कुछ साम्य पाया जाता है.
उनके समान गुण है 1. परोपकार 2. मीठे वचन 3. भगवान् की आराधना. 4. ब्राह्मणों के जरूरतों की पूर्ति.


नरक में निवास करने वाले और धरती पर निवास करने वालो में साम्यता - 1. अत्याधिक क्रोध 2. कठोर वचन 3. अपने ही संबंधियों से शत्रुता 4. नीच लोगो से मैत्री 5. हीन हरकते
करने वालो की चाकरी.


यदि आप शेर की गुफा में जाते हो तो आप को हाथी के माथे का मणि मिल सकता है. लेकिन यदि आप लोमड़ी जहा रहती है वहा जाते हो तो बछड़े की पूछ या गधे की हड्डी के
अलावा कुछ नहीं मिलेगा.


एक अनपढ़ आदमी की जिंदगी किसी कुत्ते की पूछ की तरह बेकार है. उससे ना उसकी इज्जत ही ढकती है और ना ही कीड़े मक्खियों को भागने के काम आती है.


यदि आप दिव्यता चाहते है तो आपके वाचा, मन और इन्द्रियों में शुद्धता होनी चाहिए. उसी प्रकार आपके ह्रदय में करुणा होनी चाहिए.


जिस  प्रकार एक फूल में खुशबु है. तील में तेल है. लकड़ी में अग्नि है. दूध में घी है. गन्ने में गुड है. उसी प्रकार यदि आप ठीक से देखते हो तो हर व्यक्ति में परमात्मा है.


नीच वर्ग के लोग दौलत चाहते है, मध्यम वर्ग के दौलत और इज्जत, लेकिन उच्च वर्ग के लोग सम्मान चाहते है क्यों की सम्मान ही उच्च लोगो की असली दौलत है.


दीपक अँधेरे का भक्षण करता है इसीलिए काला धुआ बनाता है. इसी प्रकार हम जिस प्रकार का अन्न खाते है. माने सात्विक, राजसिक, तामसिक उसी प्रकार के विचार उत्पन्न
करते है.


हे विद्वान् पुरुष ! अपनी संपत्ति केवल पात्र को ही दे और दूसरो को कभी ना दे. जो जल बादल को समुद्र देता है वह बड़ा मीठा होता है. बादल वर्षा करके वह जल पृथ्वी के सभी
चल अचल जीवो को देता है और फिर उसे समुद्र को लौटा देता है.


विद्वान् लोग जो तत्त्व को जानने वाले है उन्होंने कहा है की मास खाने वाले चांडालो से हजार गुना नीच है. इसलिए ऐसे आदमी से नीच कोई नहीं.


शरीर पर मालिश करने के बाद, स्मशान में चिता का धुआ शरीर पर आने के बाद, सम्भोग करने के बाद, दाढ़ी बनाने के बाद जब तक आदमी नहा ना ले वह चांडाल रहता है.


जल अपच की दवा है. जल चैतन्य निर्माण करता है, यदि उसे भोजन पच जाने के बाद पीते है. पानी को भोजन के बाद तुरंत पीना विष पिने के समान है.


यदि ज्ञान को उपयोग में ना लाया जाए तो वह खो जाता है. आदमी यदि अज्ञानी है तो खो जाता है. सेनापति के बिना सेना खो जाती है. पति के बिना पत्नी खो जाती है.


वह आदमी अभागा है जो अपने बुढ़ापे में पत्नी की मृत्यु देखता है. वह भी अभागा है जो अपनी सम्पदा संबंधियों को सौप देता है. वह भी अभागा है जो खाने के लिए दुसरो पर
निर्भर है.


वह आदमी अभागा है जो अपने बुढ़ापे में पत्नी की मृत्यु देखता है. वह भी अभागा है जो अपनी सम्पदा संबंधियों को सौप देता है. वह भी अभागा है जो खाने के लिए दुसरो पर
निर्भर है.


एक संयमित मन के समान कोई तप नहीं. संतोष के समान कोई सुख नहीं. लोभ के समान कोई रोग नहीं. दया के समान कोई गुण नहीं.


क्रोध साक्षात् यम है. तृष्णा नरक की और ले जाने वाली वैतरणी है. ज्ञान कामधेनु है. संतोष ही तो नंदनवन है.


नीति की उत्तमता ही व्यक्ति के सौंदर्य का गहना है. उत्तम आचरण से व्यक्ति उत्तरोत्तर ऊँचे लोक में जाता है. सफलता ही विद्या का आभूषण है. उचित विनियोग ही संपत्ति का गहना है.


निति भ्रष्ट होने से सुन्दरता का नाश होता है. हीन आचरण से अच्छे कुल का नाश होता है. पूर्णता न आने से विद्या का नाश होता है. उचित विनियोग के बिना धन का नाश होता है.


जो जल धरती में समां गया वो शुद्ध है. परिवार को समर्पित पत्नी शुद्ध है. लोगो का कल्याण करने वाला राजा शुद्ध है. वह ब्राह्मण शुद्ध है जो संतुष्ट है.


असंतुष्ट ब्राह्मण, संतुष्ट राजा, लज्जा रखने वाली वेश्या, कठोर आचरण करने वाली गृहिणी ये सभी लोग विनाश को प्राप्त होते है.


क्या करना उचे कुल का यदि बुद्धिमत्ता ना हो. एक नीच कुल में उत्पन्न होने वाले विद्वान् व्यक्ति का सम्मान देवता भी करते है.


विद्वान् व्यक्ति लोगो से सम्मान पाता है. विद्वान् उसकी विद्वत्ता के लिए हर जगह सम्मान पाता है. यह बिलकुल सच है की विद्या हर जगह सम्मानित है.


जो लोग दिखने में सुन्दर है, जवान है, ऊँचे कुल में पैदा हुए है, वो बेकार है यदि उनके पास विद्या नहीं है. वो तो पलाश के फूल के समान है जो दिखते तो अच्छे है पर महकते नहीं.


यह धरती उन लोगो के भार से दबी जा रही है, जो मास खाते है, दारू पीते है, बेवकूफ है, वे सब तो आदमी होते हुए पशु ही है.


उस यज्ञ के समान कोई शत्रु नहीं जिसके उपरांत लोगो को बड़े पैमाने पर भोजन ना कराया जाए. ऐसा यज्ञ राज्यों को ख़तम कर देता है. यदि पुरोहित यज्ञ में ठीक से उच्चारण ना करे तो यज्ञ उसे ख़तम कर देता है. और यदि यजमान लोगो को दान एवं भेटवस्तू ना दे तो वह भी यज्ञ द्वारा ख़तम हो जाता है.


तात, यदि तुम जन्म मरण के चक्र से मुक्त होना चाहते हो तो जिन विषयो के पीछे तुम इन्द्रियों की संतुष्टि के लिए भागते फिरते हो उन्हें ऐसे त्याग दो जैसे तुम विष को त्याग देते हो. इन सब को छोड़कर हे तात तितिक्षा, ईमानदारी का आचरण, दया, शुचिता और सत्य इसका अमृत पियो.


वो कमीने लोग जो दूसरो की गुप्त खामियों को उजागर करते हुए फिरते है, उसी तरह नष्ट हो जाते है जिस तरह कोई साप चीटियों के टीलों में जा कर मर जाता है.


शायद किसीने ब्रह्माजी, जो इस सृष्टि के निर्माता है, को यह सलाह नहीं दी की वह ...
सुवर्ण को सुगंध प्रदान करे.
गन्ने के झाड को फल प्रदान करे.
चन्दन के वृक्ष को फूल प्रदान करे.
विद्वान् को धन प्रदान करे.
राजा को लम्बी आयु प्रदान करे.


अमृत सबसे बढ़िया औषधि है.
इन्द्रिय सुख में अच्छा भोजन सर्वश्रेष्ठ सुख है.
नेत्र सभी इन्द्रियों में श्रेष्ठ है.
मस्तक शरीर के सभी भागो मे श्रेष्ठ है.


कोई संदेशवाहक आकाश में जा नहीं सकता और आकाश से कोई खबर आ नहीं सकती. वहा रहने वाले लोगो की आवाज सुनाई नहीं देती. और उनके साथ कोई संपर्क नहीं हो सकता. इसीलिए वह ब्राह्मण जो सूर्य और चन्द्र ग्रहण की भविष्य वाणी करता है, उसे विद्वान मानना चाहिए.


इन सातो को जगा दे यदि ये सो जाए...
1. विद्यार्थी 2. सेवक 3. पथिक 4. भूखा आदमी 5. डरा हुआ आदमी 6. खजाने का रक्षक 7. खजांची


इन सातो को नींद से नहीं जगाना चाहिए...
1. साप 2. राजा 3. बाघ 4. डंख करने वाला कीड़ा 5. छोटा बच्चा 6. दुसरो का कुत्ता 7. मुर्ख


जिन्होंने वेदों का अध्ययन पैसा कमाने के लिए किया और जो नीच काम करने वाले लोगो का दिया हुआ अन्न खाते है उनके पास कौनसी शक्ति हो सकती है. वो ऐसे भुजंगो के समान है जो दंश नहीं कर सकते.


जिसके डाटने से सामने वाले के मन में डर नहीं पैदा होता और प्रसन्न होने के बाद जो सामने वाले को कुछ देता नहीं है. वो ना किसी की रक्षा कर सकता है ना किसी को नियंत्रित कर सकता है. ऐसा आदमी भला क्या कर सकता है.


यदि नाग अपना फना खड़ा करे तो भले ही वह जहरीला ना हो तो भी उसका यह करना सामने वाले के मन में डर पैदा करने को पर्याप्त है. यहाँ यह बात कोई माइना नहीं रखती की वह जहरीला है की नहीं.


सुबह उठकर दिन भर जो दाव आप लगाने वाले है उसके बारे में सोचे. दोपहर को अपनी माँ को याद करे. रात को चोरो को ना भूले.


आपको इन्द्र के समान वैभव प्राप्त होगा यदि आप..
अपने भगवान् के गले की माला अपने हाथो से बनाये.
अपने भगवान् के लिए चन्दन अपने हाथो से घिसे.
अपने हाथो से पवित्र ग्रंथो को लिखे.


गरीबी पर धैर्य से मात करे. पुराने वस्त्रो को स्वच्छ रखे. बासी अन्न को गरम करे. अपनी कुरूपता पर अपने अच्छे व्यवहार से मात करे.


जिसके पास धन नहीं है वो गरीब नहीं है, वह तो असल में रहीस है, यदि उसके पास विद्या है. लेकिन जिसके पास विद्या नहीं है वह तो सब प्रकार से निर्धन है.


हम अपना हर कदम फूक फूक कर रखे. हम छाना हुआ जल पिए. हम वही बात बोले जो शास्त्र सम्मत है. हम वही काम करे जिसके बारे हम सावधानीपुर्वक सोच चुके है.


जिसे अपने इन्द्रियों की तुष्टि चाहिए, वह विद्या अर्जन करने के सभी विचार भूल जाए. और जिसे ज्ञान चाहिए वह अपने इन्द्रियों की तुष्टि भूल जाये. जो इन्द्रिय विषयों में लगा है उसे ज्ञान कैसा, और जिसे ज्ञान है वह व्यर्थ की इन्द्रिय तुष्टि में लगा रहे यह संभव नहीं.


वह क्या है जो कवी कल्पना में नहीं आ सकता. वह कौनसी बात है जिसे करने में औरत सक्षम नहीं है. ऐसी कौनसी बकवास है जो दारू पिया हुआ आदमी नहीं करता. ऐसा क्या है जो कौवा नहीं खाता.


नियति एक भिखारी को राजा और राजा को भिखारी बनाती है. वह एक अमीर आदमी को गरीब और गरीब को अमीर.


भिखारी यह कंजूस आदमी का दुश्मन है. एक अच्छा सलाहकार एक मुर्ख आदमी का शत्रु है.
वह पत्नी जो पर पुरुष में रूचि रखती है, उसके लिए उसका पति ही उसका शत्रु है.
जो चोर रात को काम करने निकलता है, चन्द्रमा ही उसका शत्रु है.


जिनके पास यह कुछ नहीं है...
विद्या.
तप.
ज्ञान.
अच्छा स्वभाव.
गुण.
दया भाव.
...वो धरती पर मनुष्य के रूप में घुमने वाले पशु है. धरती पर उनका भार है.


जिनके भेजे खाली है, वो कोई उपदेश नहीं समझते. यदि बास को मलय पर्वत पर उगाया जाये तो भी उसमे चन्दन के गुण नहीं आते.


जिसे अपनी कोई अकल नहीं उसकी शास्त्र क्या भलाई करेंगे. एक अँधा आदमी आयने का क्या करेगा.


एक बुरा आदमी सुधर नहीं सकता. आप पृष्ठ भाग को चाहे जितना साफ़ करे वो श्रेष्ठ भागो की बराबरी नहीं कर सकता.


अपने निकट संबंधियों का अपमान करने से जान जाती है.
दुसरो का अपमान करने से दौलत जाती है.
राजा का अपमान करने से सब कुछ जाता है.
एक ब्राह्मण का अपमान करने से कुल का नाश हो जाता है.


यह बेहतर है की आप जंगल में एक झाड के नीचे रहे, जहा बाघ और हाथी रहते है, उस जगह रहकर आप फल खाए और जलपान करे, आप घास पर सोये और पुराने पेड़ो की खाले पहने. लेकिन आप अपने सगे संबंधियों में ना रहे यदि आप निर्धन हो गए है.


ब्राह्मण एक वृक्ष के समान है. उसकी प्रार्थना ही उसका मूल है. वह जो वेदों का गान करता है वही उसकी शाखाए है. वह जो पुण्य कर्म करता है वही उसके पत्ते है. इसीलिए उसने अपने मूल को बचाना चाहिए. यदि मूल नष्ट हो जाता है तो शाखाये भी ना रहेगी और पत्ते भी.


लक्ष्मी मेरी माता है. विष्णु मेरे पिता है. वैष्णव जन मेरे सगे सम्बन्धी है. तीनो लोक मेरा देश है.


रात्रि के समय कितने ही प्रकार के पंछी वृक्ष पर विश्राम करते है. भोर होते ही सब पंछी दसो दिशाओ में उड़ जाते है. हम क्यों भला दुःख करे यदि हमारे अपने हमें छोड़कर चले गए.


जिसके पास में विद्या है वह शक्तिशाली है. निर्बुद्ध पुरुष के पास क्या शक्ति हो सकती है? एक छोटा खरगोश भी चतुराई से मदमस्त हाथी को तालाब में गिरा देता है.


हे विश्वम्भर तू सबका पालन करता है. मै मेरे गुजारे की क्यों चिंता करू जब मेरा मन तेरी महिमा गाने में लगा हुआ है. आपके अनुग्रह के बिना एक माता की छाती से दूध नहीं बह सकता और शिशु का पालन नहीं हो सकता. मै हरदम यही सोचता हुआ, हे यदु वंशियो के प्रभु, हे लक्ष्मी पति, मेरा पूरा समय आपकी ही चरण सेवा में खर्च करता हू.


उदारता, वचनों में मधुरता, साहस, आचरण में विवेक ये बाते कोई पा नहीं सकता ये मूल में होनी चाहिए.


जो अपने समाज को छोड़कर दुसरे समाज को जा मिलता है, वह उसी राजा की तरह नष्ट हो जाता है जो अधर्म के मार्ग पर चलता है.


हाथी का शरीर कितना विशाल है लेकिन एक छोटे से अंकुश से नियंत्रित हो जाता है.
एक दिया घने अन्धकार का नाश करता है, क्या अँधेरे से दिया बड़ा है.
एक कड़कती हुई बिजली एक पहाड़ को तोड़ देती है, क्या बिजली पहाड़ जितनी विशाल है.
जी नहीं. बिलकुल नहीं. वही बड़ा है जिसकी शक्ति छा जाती है. इससे कोई फरक नहीं पड़ता की आकार कितना है.


जो घर गृहस्थी के काम में लगा रहता है वह कभी ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता. मॉस खाने वाले के ह्रदय में दया नहीं हो सकती. लोभी व्यक्ति कभी सत्य भाषण नहीं कर सकता. और एक शिकारी में कभी शुद्धता नहीं हो सकती.


एक दुष्ट व्यक्ति में कभी पवित्रता उदीत नहीं हो सकती उसे चाहे जैसे समझा लो. नीम का वृक्ष कभी मीठा नहीं हो सकता आप चाहे उसकी शिखा से मूल तक घी और शक्कर छिड़क दे.


आप चाहे सौ बार पवित्र जल में स्नान करे, आप अपने मन का मैल नहीं धो सकते. उसी प्रकार जिस प्रकार मदिरा का पात्र पवित्र नहीं हो सकता चाहे आप उसे गरम करके सारी मदिरा की भाप बना दे.


इसमें कोई आश्चर्य नहीं की व्यक्ति उन बातो के प्रति अनुदगार कहता है जिसका उसे कोई ज्ञान नहीं. उसी प्रकार जैसे एक जंगली शिकारी की पत्नी हाथी के सर का मणि फेककर गूंजे की माला धारण करती है.


जो व्यक्ति एक साल तक भोजन करते समय भगवान् का ध्यान करेगा और मुह से कुछ नहीं बोलेगा उसे एक हजार करोड़ वर्ष तक स्वर्ग लोक की प्राप्ति होगी.


एक विद्यार्थी पूर्ण रूप से निम्न लिखित बातो का त्याग करे.
1. काम 2. क्रोध 3. लोभ 4. स्वादिष्ट भोजन की अपेक्षा. 5. शरीर का शृंगार 6. अत्याधिक जिज्ञासा 7. अधिक निद्रा 8. शरीर निर्वाह के लिए अत्याधिक प्रयास.


वही सही में ब्राह्मण है जो केवल एक बार के भोजन से संतुष्ट रहे, जिस पर 16 संस्कार किये गए हो, जो अपनी पत्नी के साथ महीने में केवल एक दिन समागम करे. माहवारी समाप्त होने के दुसरे दिन.


वह ब्राह्मण जो दुकानदारी में लगा है, असल में वैश्य ही है.


निम्न स्तर के लोगो से जिस व्यवसाय में संपर्क आता है, वह व्यवसाय ब्राह्मण को शुद्र बना देता है.


वह ब्राह्मण जो दुसरो के काम में अड़ंगे डालता है, जो दम्भी है, स्वार्थी है, धोखेबाज है, दुसरो से घृणा करता है और बोलते समय मुह में मिठास और ह्रदय में क्रूरता रखता है, वह एक बिल्ली के समान है.


एक ब्राह्मण जो तालाब को, कुए को, टाके को, बगीचे को और मंदिर को नष्ट करता है, वह म्लेच्छ है.


वह ब्राह्मण जो भगवान् के मूर्ति की सम्पदा चुराता है और वह अध्यात्मिक गुरु जो दुसरे की पत्नी के साथ समागम करता है और जो अपना गुजारा करने के लिए कुछ भी और सब कुछ खाता है वह चांडाल है.


एक गुणवान व्यक्ति को वह सब कुछ दान में देना चाहिए जो उसकी आवश्यकता से अधिक है. केवल दान के कारण ही कर्ण, बाली और राजा विक्रमादित्य आज तक चल रहे है. देखिये उन मधु मख्खियों को जो अपने पैर दुखे से धारती पर पटक रही है. वो अपने आप से कहती है " आखिर में सब चला ही गया. हमने हमारे शहद को जो बचा कर रखा था, ना ही दान दिया और ना ही खुद खाया. अभी एक पल में ही कोई हमसे सब छीन कर चला गया."


वह गृहस्थ भगवान् की कृपा को पा चुका है जिसके घर में आनंददायी वातावरण है. जिसके बच्चे गुणी है. जिसकी पत्नी मधुर वाणी बोलती है. जिसके पास अपनी जरूरते पूरा करने के लिए पर्याप्त धन है. जो अपनी पत्नी से सुखपूर्ण सम्बन्ध रखता है. जिसके नौकर उसका कहा मानते है. जिसके घर में मेहमान का स्वागत किया जाता है. जिसके घर में मंगल दायी भगवान की पूजा रोज की जाती है. जहा स्वाद भरा भोजन और पान किया जाता है. जिसे भगवान् के भक्तो की संगती में आनंद आता है.


जो एक संकट का सामना करने वाले ब्राह्मण को भक्ति भाव से अल्प दान देता है उसे बदले में विपुल लाभ होता है.


वे लोग जो इस दुनिया में सुखी है. जो अपने संबंधियों के प्रति उदार है. अनजाने लोगो के प्रति सह्रदय है. अच्छे लोगो के प्रति प्रेम भाव रखते है. नीच लोगो से धूर्तता पूर्ण व्यवहार करते है. विद्वानों से कुछ नहीं छुपाते. दुश्मनों के सामने साहस दिखाते है. बड़ो के प्रति विनम्र और पत्नी के प्रति सख्त है.


अरे लोमड़ी !!! उस व्यक्ति के शरीर को तुरंत छोड़ दे. जिसके हाथो ने कोई दान नहीं दिया. जिसके कानो ने कोई विद्या ग्रहण नहीं की. जिसके आँखों ने भगवान् का सच्चा भक्त नहीं देखा. जिसके पाँव कभी तीर्थ क्षेत्रो में नहीं गए. जिसने अधर्म के मार्ग से कमाए हुए धन से अपना पेट भरा. और जिसने बिना मतलब ही अपना सर ऊँचा उठा रखा है. अरे लोमड़ी !! उसे मत खा. नहीं तो तू दूषित हो जाएगी.


धिक्कार है उन्हें जिन्हें भगवान् श्री कृष्ण जो माँ यशोदा के लाडले है उन के चरण कमलो में कोई भक्ति नहीं. मृदंग की ध्वनि धिक् तम धिक् तम करके ऐसे लोगो का धिक्कार करती है.


बसंत ऋतू क्या करेगी यदि बास पर पत्ते नहीं आते. सूर्य का क्या दोष यदि उल्लू दिन में देख नहीं सकता. बादलो का क्या दोष यदि बारिश की बूंदे चातक पक्षी की चोच में नहीं गिरती. उसे कोई कैसे बदल सकता है जो किसी के मूल में है.


एक दुष्ट के मन में सद्गुणों का उदय हो सकता है यदि वह एक भक्त से सत्संग करता है. लेकिन दुष्ट का संग करने से भक्त दूषित नहीं होता. जमीन पर जो फूल गिरता है उससे धरती सुगन्धित होती है लेकिन पुष्प को धरती की गंध नहीं लगती.


उसका सही में कल्याण हो जाता है जिसे भक्त के दर्शन होते है. भक्त में तुरंत शुद्ध करने की क्षमता है. पवित्र क्षेत्र में तो लम्बे समय के संपर्क से शुद्धि होती है.


एक अजनबी ने एक ब्राह्मण से पूछा. "बताइए, इस शहर में महान क्या है?". ब्राह्मण ने जवाब दिया की खजूर के पेड़ का समूह महान है.
अजनबी ने सवाल किया की यहाँ दानी कौन है? जवाब मिला के वह धोबी जो सुबह कपडे ले जाता है और शाम को लौटाता है.
प्रश्न हुआ यहाँ सबसे काबिल कौन है. जवाब मिला यहाँ हर कोई दुसरे का द्रव्य और दारा हरण करने में काबिल है.
प्रश्न हुआ की आप ऐसी जगह रह कैसे लेते हो? जवाब मिला की जैसे एक कीड़ा एक दुर्गन्ध युक्त जगह पर रहता है.


वह घर जहा ब्राह्मणों के चरण कमल को धोया नहीं जाता, जहा वैदिक मंत्रो का जोर से उच्चारण नहीं होता. और जहा भगवान् को और पितरो को भोग नहीं लगाया जाता वह घर एक स्मशान है.


सत्य मेरी माता है. अध्यात्मिक ज्ञान मेरा पिता है. धर्माचरण मेरा बंधू है. दया मेरा मित्र है. भीतर की शांति मेरी पत्नी है. क्षमा मेरा पुत्र है. मेरे परिवार में ये छह लोग है.


हमारे शारीर नश्वर है. धन में तो कोई स्थायी भाव नहीं है. म्रत्यु हरदम हमारे निकट है. इसीलिए हमें तुरंत पुण्य कर्म करने चाहिए.


ब्राह्मणों को स्वादिष्ट भोजन में आनंद आता है. गायो को ताज़ी कोमल घास खाने में. पत्नी को पति के सान्निध्य में. क्षत्रियो को युद्ध में आनंद आता है.


जो दुसरे के पत्नी को अपनी माता मानता है, दुसरे को धन को मिटटी का ढेला, दुसरे के सुख दुःख को अपने सुख दुःख. उसी को सही दृष्टी प्राप्त है और वही विद्वान है.


भगवान राम में ये सब गुण है. 1. सद्गुणों में प्रीती. 2. मीठे वचन 3. दान देने की तीव्र इच्छा शक्ति. 4. मित्रो के साथ कपट रहित व्यवहार. 5. गुरु की उपस्थिति में विनम्रता 6. मन की गहरी शान्ति. 6. शुद्ध आचरण 7. गुणों की परख 8. शास्त्र के ज्ञान की अनुभूति 8. रूप की सुन्दरता 9. भगवत भक्ति.


कल्प तरु तो एक लकड़ी ही है. सुवर्ण का सुमेर पर्वत तो निश्छल है. चिंता मणि तो एक पत्थर है. सूर्य में ताप है. चन्द्रमा तो घटता बढ़ता रहता है. अमर्याद समुद्र तो खारा है. काम देव का तो शरीर ही जल गया. महाराज बलि तो राक्षस कुल में पैदा हुए. कामधेनु तो पशु ही है. भगवान् राम के समान कौन है.


विद्या सफ़र में हमारा मित्र है. पत्नी घर पर मित्र है. औषधि रुग्ण व्यक्ति की मित्र है. मरते वक्त तो पुण्य कर्म ही मित्र है.


राज परिवारों से शिष्टाचार सीखे. पंडितो से बोलने की कला सीखे. जुआरियो से झूट बोलना सीखे. एक औरत से छल सीखे.


बिना सोचे समझे खर्च करने वाला, नटखट बच्चा जिसे अपना घर नहीं, झगड़े पर आमदा आदमी, अपनी पत्नी को दुर्लक्षित करने वाला, जो अपने आचरण पर ध्यान नहीं देता है. ये सब लोग जल्दी ही बर्बाद हो जायेंगे.


एक विद्वान व्यक्ति ने अपने भोजन की चिंता नहीं करनी चाहिए. उसे सिर्फ अपने धर्म को निभाने की चिंता होनी चाहिए. हर व्यक्ति का भोजन पर जन्म से ही अधिकार है.


जिसे दौलत, अनाज और विद्या अर्जित करने में और भोजन करने में शर्म नहीं आती वह सुखी रहता है.


बूंद बूंद से सागर बनता है. इसी तरह बूंद बूंद से ज्ञान, गुण और संपत्ति प्राप्त होते है.


जो व्यक्ति अपने बुढ़ापे में भी मुर्ख है वह सचमुच ही मुर्ख है. उसी प्रकार जिस प्रकार इन्द्र वरुण का फल कितना भी पके मीठा नहीं होता.


यदि आदमी एक पल के लिए भी जिए तो भी उस पल को वह शुभ कर्म करने में खर्च करे. एक कल्प तक जी कर कोई लाभ नहीं. दोनों लोक इस लोक और पर-लोक में
तकलीफ होती है.


हम उसके लिए ना पछताए जो बीत गया. हम भविष्य की चिंता भी ना करे. विवेक बुद्धि रखने वाले लोग केवल वर्तमान में जीते है.


यह देवताओ का, संत जनों का और पालको का स्वभाव है की वे जल्दी प्रसन्न हो जाते है. निकट के और दूर के रिश्तेदार तब प्रसन्न होते है जब उनका आदर सम्मान किया जाए.
उनके नहाने का, खाने पिने का प्रबंध किया जाए. पंडित जन जब उन्हें अध्यात्मिक सन्देश का मौका दिया जाता है तो प्रसन्न होते है.


जब बच्चा माँ के गर्भ में होता है तो यह पाच बाते तय हो जाती है...
1. कितनी लम्बी उम्र होगी. 2. वह क्या करेगा 3. और 4. कितना धन और ज्ञान अर्जित करेगा. 5. मौत कब होगी.


देखिये क्या आश्चर्य है? बड़े लोग अनोखी बाते करते है. वे पैसे को तो तिनके की तरह मामूली समझते है लेकिन जब वे उसे प्राप्त करते है तो उसके भार से और विनम्र होकर झुक
जाते है.


जो व्यक्ति अपने घर के लोगो से बहोत आसक्ति रखता है वह भय और दुःख को पाता है. आसक्ति ही दुःख का मूल है. जिसे सुखी होना है उसे आसक्ति छोडनी पड़ेगी.


जो भविष्य के लिए तैयार है और जो किसी भी परिस्थिति को चतुराई से निपटता है. ये दोनों व्यक्ति सुखी है. लेकिन जो आदमी सिर्फ नसीब के सहारे चलता है वह बर्बाद होता है.


यदि राजा पुण्यात्मा है तो प्रजा भी वैसी ही होती है. यदि राजा पापी है तो प्रजा भी पापी. यदि वह सामान्य है तो प्रजा सामान्य. प्रजा के सामने राजा का उद्हारण होता है. और वो
उसका अनुसरण करती है.


मेरी नजरो में वह आदमी मृत है जो जीते जी धर्म का पालन नहीं करता. लेकिन जो धर्म पालन में अपने प्राण दे देता है वह मरने के बाद भी बेशक लम्बा जीता है.


जिस व्यक्ति ने न ही कोई ज्ञान संपादन किया, ना ही पैसा कमाया, मुक्ति के लिए जो आवश्यक है उसकी पूर्ति भी नहीं किया. वह एक निहायत बेकार जिंदगी जीता है जैसे के
बकरी की गर्दन से झूलने वाले स्तन.


जो नीच लोग होते है वो दुसरे की कीर्ति को देखकर जलते है. वो दुसरे के बारे में अपशब्द कहते है क्यों की उनकी कुछ करने की औकात नहीं है.


यदि विषय बहुत प्रिय है तो वो बंधन में डालते है. विषय सुख की अनासक्ति से मुक्ति की और गति होती है. इसीलिए मुक्ति या बंधन का मूल मन ही है.


जो आत्म स्वरुप का बोध होने से खुद को शारीर नहीं मानता, वह हरदम समाधी में ही रहता है भले ही उसका शरीर कही भी चला जाए.


किस को सब सुख प्राप्त हुए जिसकी कामना की. सब कुछ भगवान् के हाथ में है. इसलिए हमें संतोष में जीना होगा.


जिस प्रकार एक गाय का बछड़ा, हजारो गायो में अपनी माँ के पीछे चलता है उसी तरह कर्म आदमी के पीछे चलते है.


जिस के काम करने में कोई व्यवस्था नहीं, उसे कोई सुख नहीं मिल सकता. लोगो के बीच या वन में. लोगो के मिलने से उसका ह्रदय जलता है और वन में तो कोई सुविधा होती ही
नहीं


यदि आदमी उपकरण का सहारा ले तो गर्भजल से पानी निकाल सकता है. उसी तरह यदि विद्यार्थी अपने गुरु की सेवा करे तो गुरु के पास जो ज्ञान निधि है उसे प्राप्त करता है.


हमें अपने कर्म का फल मिलता है. हमारी बुद्धि पर इसके पहले हमने जो कर्म किये है उसका निशान है. इसीलिए जो बुद्धिमान लोग है वो सोच विचार कर कर्म करते है.


जिस व्यक्ति ने आपको अध्यात्मिक महत्ता का एक अक्षर भी पढाया उसकी पूजा करनी चाहिए. जो ऐसे गुरु का सम्मान नहीं करता वह सौ बार कुत्ते का जन्म लेता है. और आखिर
चंडाल बनता है. चांडाल वह है जो कुत्ता खाता है.


जब युग का अंत हो जायेगा तो मेरु पर्वत डिग जाएगा. जब कल्प का अंत होगा तो सातों समुद्र का पानी विचलित हो जायगा. लेकिन साधू कभी भी अपने अध्यात्मिक मार्ग से नहीं
डिगेगा.


इस धरती पर अन्न, जल और मीठे वचन ये असली रत्न है. मूर्खो को लगता है पत्थर के टुकड़े रत्न है.


गरीबी, दुःख और एक बंदी का जीवन यह सब व्यक्ति के किए हुए पापो का ही फल है.


आप दौलत, मित्र, पत्नी और राज्य गवाकर वापस पा सकते है लेकिन यदि आप अपनी काया गवा देते है तो वापस नहीं मिलेगी.


यदि हम बड़ी संख्या में एकत्र हो जाए तो दुश्मन को हरा सकते है. उसी प्रकार जैसे घास के तिनके एक दुसरे के साथ रहने के कारण भारी बारिश में भी क्षय नहीं होते.


पानी पर तेल, एक कमीने आदमी को बताया हुआ राज, एक लायक व्यक्ति को दिया हुआ दान और एक बुद्धिमान व्यक्ति को पढाया हुआ शास्त्रों का ज्ञान अपने स्वभाव के
कारण तेजी से फैलते है.


वह व्यक्ति क्यों मुक्ति को नहीं पायेगा जो निम्न लिखित परिस्थितियों में जो उसके मन की अवस्था होती है उसे कायम रखता है...
जब वह धर्म के अनुदेश को सुनता है.
जब वह स्मशान घाट में होता है.
जब वह बीमार होता है.


वह व्यक्ति क्यों पूर्णता नहीं हासिल करेगा जो पश्चाताप में जो मन की अवस्था होती है, उसी अवस्था को काम करते वक़्त बनाए रखेंगा.


हमें अभिमान नहीं होना चाहिए जब हम ये बाते करते है..
1. परोपकार 2. आत्म संयम 3. पराक्रम 4. शास्त्र का ज्ञान हासिल करना. 5. विनम्रता 6. नीतिमत्ता
यह करते वक़्त अभिमान करने की इसलिए जरुरत नहीं क्यों की दुनिया बहुत कम दिखाई देने वाले दुर्लभ रत्नों से भरी पड़ी है.


वह जो हमारे मन में रहता हमारे निकट है. हो सकता है की वास्तव में वह हमसे बहुत दूर हो. लेकिन वह व्यक्ति जो हमारे निकट है लेकिन हमारे मन में नहीं है वह हमसे बहोत
दूर है.


यदि हम किसीसे कुछ पाना चाहते है तो उससे ऐसे शब्द बोले जिससे वह प्रसन्न हो जाए. उसी प्रकार जैसे एक शिकारी मधुर गीत गाता है जब वह हिरन पर बाण चलाना चाहता
है.


जो व्यक्ति राजा से, अग्नि से, धर्म गुरु से और स्त्री से बहुत परिचय बढ़ाता है वह विनाश को प्राप्त होता है. जो व्यक्ति इनसे पूर्ण रूप से अलिप्त रहता है, उसे अपना भला करने का
कोई अवसर नहीं मिलता. इसलिए इनसे सुरक्षित अंतर रखकर सम्बन्ध रखना चाहिए.


हम इनके साथ बहुत सावधानी से पेश आये..
1. अग्नि 2. पानी 3. औरत 4. मुर्ख 5. साप 6. राज परिवार के सदस्य.
जब जब हम इनके संपर्क में आते है.
क्योकि ये हमें एक झटके में मौत तक पंहुचा सकते है.


वही व्यक्ति जीवित है जो गुणवान है और पुण्यवान है. लेकिन जिसके पास धर्म और गुण नहीं उसे क्या शुभ कामना दी जा सकती है.


यदि आप दुनिया को एक काम करके जितना चाहते हो तो इन पंधरा को अपने काबू में रखो. इन्हें इधर उधर ना भागने दे.
पांच इन्द्रियों के विषय 1. जो दिखाई देता है 2. जो सुनाई देता है 3. जिसकी गंध आती है 4. जिसका स्वाद आता है. 5. जिसका स्पर्श होता है.
पांच इन्द्रिय 1. आँख 2. कान 3. नाक 4. जिव्हा 5. त्वचा
पांच कर्मेन्द्रिय 1. हाथ 2. पाँव 3. मुह 4. जननेंद्रिय 5. गुदा


वही पंडित है जो वही बात बोलता है जो प्रसंग के अनुरूप हो. जो अपनी शक्ति के अनुरूप दुसरो की प्रेम से सेवा करता है. जिसे अपने क्रोध की मर्यादा का पता है.


एक ही वस्तु देखने वालो की योग्यता के अनुरूप बिलग बिलग दिखती है. तप करने वाले में वस्तु को देखकर कोई कामना नहीं जागती. लम्पट आदमी को हर वास्तु में स्त्री दिखती
है. कुत्ते को हर वस्तु में मांस दिखता है.


जो व्यक्ति बुद्धिमान है वह निम्न लिखित बाते किसी को ना बताये...
वह औषधि उसने कैसे बनायीं जो अच्छा काम कर रही है.
वह परोपकार जो उसने किया.
उसके घर के झगडे.
उसकी उसके पत्नी के साथ होने वाली व्यक्तिगत बाते.
उसने जो ठीक से न पका हुआ खाना खाया.
जो गालिया उसने सुनी.


कोकिल तब तक मौन रहते है. जबतक वो मीठा गाने की क़ाबलियत हासिल नहीं कर लेते और सबको आनंद नहीं पंहुचा सकते.


हम निम्न लिखित बाते प्राप्त करे और उसे कायम रखे.
हमें पुण्य कर्म के जो आशीर्वाद मिले.
धन, अनाज, वो शब्द जो हमने हमारे अध्यात्मिक गुरु से सुने.
कम पायी जाने वाली दवाइया.
हम ऐसा नहीं करते है तो जीना मुश्किल हो जाएगा.


कुसंग का त्याग करे और संत जानो से मेलजोल बढाए. दिन और रात गुणों का संपादन करे. उसपर हमेशा चिंतन करे जो शाश्वत है और जो अनित्य है उसे भूल जाए.


वह व्यक्ति जिसका ह्रदय हर प्राणी मात्र के प्रति करुणा से पिघलता है. उसे जरुरत क्या है किसी ज्ञान की, मुक्ति की, सर के ऊपर जटाजूट रखने की और अपने शारीर पर राख
मलने की.


इस दुनिया में वह खजाना नहीं है जो आपको आपके सदगुरु ने ज्ञान का एक अक्षर दिया उसके कर्जे से मुक्त कर सके.


काटो से और दुष्ट लोगो से बचने के दो उपाय है. पैर में जुते पहनो और उन्हें इतना शर्मसार करो की वो अपना सर उठा ना सके और आपसे दूर रहे.


जो अस्वच्छ कपडे पहनता है. जिसके दात साफ़ नहीं. जो बहोत खाता है. जो कठोर शब्द बोलता है. जो सूर्योदय के बाद उठता है. उसका कितना भी बड़ा व्यक्तित्व क्यों न हो,
वह लक्ष्मी की कृपा से वंचित रह जायेगा.


जब व्यक्ति दौलत खोता है तो उसके मित्र, पत्नी, नौकर, सम्बन्धी उसे छोड़कर चले जाते है. और जब वह दौलत वापस हासिल करता है तो ये सब लौट आते है. इसीलिए दौलत ही
सबसे अच्छा रिश्तेदार है.


पाप से कमाया हुआ पैसा दस साल रह सकता है. ग्यारवे साल में वह लुप्त हो जाता है, उसकी मुद्दल के साथ.


एक महान आदमी जब कोई गलत काम करता है तो उसे कोई कुछ नहीं कहता. एक नीच आदमी जब कोई अच्छा काम भी करता है तो उसका धिक्कार होता है. देखिये अमृत
पीना तो अच्छा है लेकिन राहू की मौत अमृत पिने से ही हुई. विष पीना नुकसानदायी है लेकिन भगवान् शंकर ने जब विष प्राशन किया तो विष उनके गले का अलंकार हो गया.


एक सच्चा भोजन वह है जो ब्राह्मण को देने के बाद शेष है. प्रेम वह सत्य है जो दुसरो को दिया जाता है. खुद से जो प्रेम होता है वह नहीं. वही बुद्धिमत्ता है जो पाप करने से रोकती
है. वही दान है जो बिना दिखावे के किया जाता है.


यदि आदमी को परख नहीं है तो वह अनमोल रत्नों को तो पैर की धुल में पडा हुआ रखता है और घास को सर पर धारण करता है. ऐसा करने से रत्नों का मूल्य कम नहीं होता और
घास के तिनको की महत्ता नहीं बढती. जब विवेक बुद्धि वाला आदमी आता है तो हर चीज को उसकी जगह दिखाता है.


शास्त्रों का ज्ञान अगाध है. वो कलाए अनंत जो हमें सीखनी छाहिये. हमारे पास समय थोडा है. जो सिखने के मौके है उसमे अनेक विघ्न आते है. इसीलिए वही सीखे जो अत्यंत
महत्वपूर्ण है. उसी प्रकार जैसे हंस पानी छोड़कर उसमे मिला हुआ दूध पी लेता है.


वह आदमी चंडाल है जो एक दूर से अचानक आये हुए थके मांदे अतिथि को आदर सत्कार दिए बिना रात्रि का भोजन खुद खाता है.


एक व्यक्ति को चारो वेद और सभी धर्मं शास्त्रों का ज्ञान है. लेकिन उसे यदि अपने आत्मा की अनुभूति नहीं हुई तो वह उसी चमचे के समान है जिसने अनेक पकवानों को हिलाया
लेकिन किसी का स्वाद नहीं चखा.


वह लोग धन्य है, ऊँचे उठे हुए है जिन्होंने संसार समुद्र को पार करते हुए एक सच्चे ब्राह्मण की शरण ली. उनकी शरणागति ने नौका का काम किया. वे ऐसे मुसाफिरों की तरह
नहीं है जो ऐसे सामान्य जहाज पर सवार है जिसके डूबने का खतरा है.


चन्द्रमा जो अमृत से लबालब है और जो औषधियों की देवता माना जाता है, जो अमृत के समान अमर और दैदीप्यमान है. उसका क्या हश्र होता है जब वह सूर्य के घर जाता है
अर्थात दिन में दिखाई देता है. तो क्या एक सामान्य आदमी दुसरे के घर जाकर लघुता को नहीं प्राप्त होगा.


यह मधु मक्खी जो कमल की नाजुक पंखडियो में बैठकर उसके मीठे मधु का पान करती थी, वह अब एक सामान्य कुटज के फूल पर अपना ताव मारती है. क्यों की वह ऐसे देश
में आ गयी है जहा कमल है ही नहीं, उसे कुटज के पराग ही अच्छे लगते है.


हे भगवान् विष्णु, मेरे स्वामी, मै ब्राह्मणों के घर में इस लिए नहीं रहती क्यों की.....
अगस्त्य ऋषि ने गुस्से में समुद्र को ( जो मेरे पिता है) पी लिया.
भृगु मुनि ने आपकी छाती पर लात मारी.
ब्राह्मणों को पढने में बहोत आनंद आता है और वे मेरी जो स्पर्धक है उस सरस्वती की हरदम कृपा चाहते है.
और वे रोज कमल के फूल को जो मेरा निवास है जलाशय से निकलते है और भगवान् शिव की पूजा करते है.


दुनिया में बाँधने के ऐसे अनेक तरीके है जिससे व्यक्ति को प्रभाव में लाया जा सकता है और नियंत्रित किया जा सकता है. सबसे मजबूत बंधन प्रेम का है. इसका उदाहरण वह मधु
मक्खी है जो लकड़ी को छेड़ सकती है लेकिन फूल की पंखुडियो को छेदना पसंद नहीं करती चाहे उसकी जान चली जाए.


चन्दन कट जाने पर भी अपनी महक नहीं छोड़ते. हाथी बुढा होने पर भी अपनी लीला नहीं छोड़ता. गन्ना निचोड़े जाने पर भी अपनी मिठास नहीं छोड़ता. उसी प्रकार ऊँचे कुल में
पैदा हुआ व्यक्ति अपने उन्नत गुणों को नहीं छोड़ता भले ही उसे कितनी भी गरीबी में क्यों ना बसर करना पड़े.



स्त्री (यहाँ लम्पट स्त्री या पुरुष अभिप्रेत है) का ह्रदय पूर्ण नहीं है वह बटा हुआ है. जब वह एक आदमी से बात करती है तो दुसरे की ओर वासना से देखती है और मन में तीसरे
को चाहती है.


मुर्ख को लगता है की वह हसीन लड़की उसे प्यार करती है. वह उसका गुलाम बन जाता है और उसके इशारो पर नाचता है.


ऐसा यहाँ कौन है जिसमे दौलत पाने के बाद मस्ती नहीं आई. क्या कोई बेलगाम आदमी अपने संकटों पर रोक लगा पाया. इस दुनिया में किस आदमी को औरत ने कब्जे में नहीं
किया. किस के ऊपर राजा की हरदम मेहेरबानी रही. किसके ऊपर समय के प्रकोप नहीं हुए. किस भिखारी को यहाँ शोहरत मिली. किस आदमी ने दुष्ट के दुर्गुण पाकर सुख
को प्राप्त किया.


व्यक्ति को महत्ता उसके गुण प्रदान करते है वह जिन पदों पर काम करता है सिर्फ उससे कुछ नहीं होता. क्या आप एक कौवे को गरुड़ कहेंगे यदि वह एक ऊँची ईमारत के छत
पर जाकर बैठता है.


जो व्यक्ति गुणों से रहित है लेकिन जिसकी लोग सराहना करते है वह दुनिया में काबिल माना जा सकता है. लेकिन जो आदमी खुद की ही डींगे हाकता है वो अपने आप को दुसरे
की नजरो में गिराता है भले ही वह स्वर्ग का राजा इंद्र हो.


यदि एक विवेक संपन्न व्यक्ति अच्छे गुणों का परिचय देता है तो उसके गुणों की आभा को रत्न जैसी मान्यता मिलती है. एक ऐसा रत्न जो प्रज्वलित है और सोने के अलंकर में मढने
पर और चमकता है.


वह व्यक्ति जो सर्व गुण संपन्न है अपने आप को सिद्ध नहीं कर सकता है जबतक उसे समुचित संरक्षण नहीं मिल जाता. उसी प्रकार जैसे एक मणि तब तक नहीं निखरता जब तक
उसे आभूषण में सजाया ना जाए.


मुझे वह दौलत नहीं चाहिए जिसके लिए कठोर यातना सहनी पड़े, या सदाचार का त्याग करना पड़े या अपने शत्रु की चापलूसी करनी पड़े.


जो अपनी दौलत, पकवान और औरते भोगकर संतुष्ट नहीं हुए ऐसे बहोत लोग पहले मर चुके है. अभी भी मर रहे है और भविष्य में भी मरेंगे.


सभी परोपकार और तप तात्कालिक लाभ देते है. लेकिन सुपात्र को जो दान दिया जाता है और सभी जीवो को जो संरक्षण प्रदान किया जाता है उसका पुण्य कभी नष्ट नहीं होता.


घास का तिनका हल्का है. कपास उससे भी हल्का है. भिखारी तो अनंत गुना हल्का है. फिर हवा का झोका उसे उड़ाके क्यों नहीं ले जाता. क्योकि वह डरता है कही वह भीख न
मांग ले.


बेइज्जत होकर जीने से अच्छा है की मर जाए. मरने में एक क्षण का दुःख होता है पर बेइज्जत होकर जीने में हर रोज दुःख उठाना पड़ता है.


सभी जीव मीठे वचनों से आनंदित होते है. इसीलिए हम सबसे मीठे वचन कहे. मीठे वचन की कोई कमी नहीं है.


इस दुनिया के वृक्ष को दो मीठे फल लगे है. मधुर वचन और सत्संग.


पहले के जन्मो की अच्छी आदते जैसे दान, विद्यार्जन और तप इस जनम में भी चलती रहती है. क्योकि सभी जनम एक श्रुंखला से जुड़े है.


जिसका ज्ञान किताबो में सिमट गया है और जिसने अपनी दौलत दुसरो के सुपुर्द कर दी है वह जरुरत आने पर ज्ञान या दौलत कुछ भी इस्तमाल नहीं कर सकता.


वह विद्वान जिसने असंख्य किताबो का अध्ययन बिना सदगुरु के आशीर्वाद से कर लिया वह विद्वानों की सभा में एक सच्चे विद्वान के रूप में नहीं चमकता है. उसी प्रकार जिस
प्रकार एक नाजायज औलाद को दुनिया में कोई प्रतिष्ठा हासिल नहीं होती.


हमें दुसरो से जो मदद प्राप्त हुई है उसे हमें लौटना चाहिए. उसी प्रकार यदि किसीने हमसे यदि दुष्टता की है तो हमें भी उससे दुष्टता करनी चाहिए. ऐसा करने में कोई पाप नहीं
है.


वह चीज जो दूर दिखाई देती है, जो असंभव दिखाई देती है, जो हमारी पहुच से बहार दिखाई देती है, वह भी आसानी से हासिल हो सकती है यदि हम तप करते है. क्यों की तप से
ऊपर कुछ नहीं.


लोभ से बड़ा दुर्गुण क्या हो सकता है. पर निंदा से बड़ा पाप क्या है. जो सत्य में प्रस्थापित है उसे तप करने की क्या जरूरत है. जिसका ह्रदय शुद्ध है उसे तीर्थ यात्रा की क्या
जरूरत है. यदि स्वभाव अच्छा है तो और किस गुण की जरूरत है. यदि कीर्ति है तो अलंकार की क्या जरुरत है. यदि व्यवहार ज्ञान है तो दौलत की क्या जरुरत है. और यदि
अपमान हुआ है तो मृत्यु से भयंकर नहीं है क्या.


समुद्र ही सभी रत्नों का भण्डार है. वह शंख का पिता है. देवी लक्ष्मी शंख की बहन है. लेकिन दर दर पर भीख मांगने वाले हाथ में शंख ले कर घूमते है. इससे यह बात सिद्ध होती है
की उसी को मिलेगा जिसने पहले दिया है.


जब आदमी में शक्ति नहीं रह जाती वह साधू हो जाता है. जिसके पास दौलत नहीं होती वह ब्रह्मचारी बन जाता है. रुग्ण भगवान् का भक्त हो जाता है. जब औरत बूढी होती है तो
पति के प्रति समर्पित हो जाती है.


साप के दंश में विष होता है. कीड़े के मुह में विष होता है. बिच्छू के डंख में विष होता है. लेकिन दुष्ट व्यक्ति तो पूर्ण रूप से विष से भरा होता है.



स्त्री दान दे कर, उपवास रख कर और पवित्र जल का पान करके पावन नहीं हो सकती. वह पति के चरणों को धोने से और ऐसे जल का पान करने से शुद्ध होती है.


एक हाथ की शोभा गहनों से नहीं दान देने से है. चन्दन का लेप लगाने से नहीं जल से नहाने से निर्मलता आती है. एक व्यक्ति भोजन खिलाने से नहीं सम्मान देने से संतुष्ट होता है.
मुक्ति खुद को सजाने से नहीं होती, अध्यात्मिक ज्ञान को जगाने से होती है.


टुंडी फल खाने से आदमी की समझ खो जाती है. वच मूल खिलाने से लौट आती है. औरत के कारण आदमी की शक्ति खो जाती है, दूध से वापस आती है.


जिसमे सभी जीवो के प्रति परोपकार की भावना है वह सभी संकटों पर मात करता है और उसे हर कदम पर सभी प्रकार की सम्पन्नता प्राप्त होती है.


वह इंद्र के राज्य में जाकर क्या सुख भोगेगा....
जिसकी पत्नी प्रेमभाव रखने वाली और सदाचारी है.
जिसके पास में संपत्ति है.
जिसका पुत्र सदाचारी और अच्छे गुण वाला है.
जिसको अपने पुत्र द्वारा पौत्र हुए है.


मनुष्यों में और निम्न स्तर के प्राणियों में खाना, सोना, घबराना और गमन करना समान है. मनुष्य अन्य प्राणियों से श्रेष्ठ है तो विवेक ज्ञान की बदौलत. इसलिए जिन मनुष्यों में ज्ञान
नहीं है वे पशु है.


यदि मद मस्त हाथी अपने माथे से टपकने वाले रस को पीने वाले भौरों को कान हिलाकर उड़ा देता है, तो भौरों का कुछ नहीं जाता, वे कमल से भरे हुए तालाब की ओर ख़ुशी से
चले जाते है. हाथी के माथे का शृंगार कम हो जाता है.


ये आठो कभी दुसरो का दुःख नहीं समझ सकते ...
1. राजा 2. वेश्या 3. यमराज 4. अग्नि 5. चोर 6. छोटा बच्चा 7. भिखारी और 8. कर वसूल करने वाला.


हे महिला, तुम निचे झुककर क्या देख रही हो? क्या तुम्हारा कुछ जमीन पर गिर गया है?
हे मुर्ख, मेरे तारुण्य का मोती न जाने कहा फिसल गया.


हे केतकी पुष्प! तुममे तो कीड़े रहते है. तुमसे ऐसा कोई फल भी नहीं बनता जो खाया जाय. तुम्हारे पत्ते काटो से ढके है. तुम टेढ़े होकर बढ़ते हो. कीचड़ में खिलते हो. कोई तुम्हे
आसानी से पा नहीं सकता. लेकिन तुम्हारी अतुलनीय खुशबु के कारण दुसरे पुष्पों की तरह सभी को प्रिय हो. इसीलिए एक ही अच्छाई अनेक बुराइयों पर भारी पड़ती है.


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