ऋषि पंचमी व्रत की कथा कहानी
ऋषि पंचमी के दिन सप्तऋषि की पूजा की जाती है। महेश्वरी समाज में राखी मनाई जाती है। पूजा और व्रत किये जाते है। तथा ऋषि पंचमी
की कथा कहानी सुनी जाती है। इससे सम्पूर्ण फल प्राप्त होता है।
ऋषि पंचमी व्रत की कथा कहानी ( 1 )
किसी गावँ में एक सदाचारी ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ रहता था। उनके परिवार में एक पुत्र और एक पुत्री थे। ब्राह्मण ने अपनी कन्या पुत्री
की शादी अच्छे घर में कर दी। परंतु थोड़े समय बाद ही उस कन्या के पति की अकाल मृत्यु हो गयी। विधवा होने के बाद वह अपने पिता के
घर लौट आई। ब्राह्मण दंपत्ति विधवा पुत्री सहित कुटिया बना कर गंगा तट पर रहने लगे ।
एक दिन विधवा पुत्री के शरीर पर बहुत सारे कीड़े पैदा हो गए। उसने अपनी माँ को कीड़ों के बारे माँ बताया। माता पिता बहुत दुखी हुए और
इसका कारण और उपाय जानने के लिए एक ऋषि के पास गए। ऋषि ने अपनी विद्या से उस कन्या के पिछले जन्म का पूरा विवरण देखा ।
ऋषि ने बताया कि यह कन्या पिछले जन्म में एक ब्राह्मणी थी। रजस्वला होने पर भी इसने घर के रसोई के सामान छुए थे और घर के सभी काम
किये थे।। शास्त्रों के अनुसार रजस्वला स्त्री को किसी प्रकार का काम नहीं करना चाहिए। लेकिन कन्या ने सारे काम किये। इस जन्म में भी
इसने ऋषि पंचमी का व्रत नहीं किया इसीलिए इसे दंड भुगतना पड़ रहा है। उसी पाप के कारण इसके शरीर पर कीड़े पड़ गए है
उपाय पूछने पर ऋषि ने कहा कि यदि कन्या ऋषि पंचमी का व्रत और पूजा भक्ति भाव से करे तथा क्षमा प्रार्थना करे तो इस पाप से मुक्ति संभव
है। इससे अगले जन्म में भी इसे अटल सौभाग्य प्राप्त होगा।
कन्या ने विधि विधान से ऋषि पंचमी का व्रत और पूजन किया। जिससे उसका दुःख दूर हो गया। अगले जन्म में उसे अटल सौभाग्य और धन
धान्य आदि सभी सुख प्राप्त हुए।
ऋषि पंचमी व्रत की कथा कहानी ( 2 )
एक गांव में गरीब माँ और बेटे रहते थे। भाद्रपद महीने में जब ऋषि पंचमी आई तो बेटा अपनी माँ से बोला ” माँ , मैं अपनी बहन के घर राखी
बंधवाने जाना चाहता हूँ। माँ ने कहा इस गरीबी में बहन के घर क्या लेकर जायेगा । बेटा बोला लकड़ी बेचने से जो भी पैसे मिलेंगे , वही लेकर
चला जाऊँगा । और वह अपनी बहन के घर पहुँच गया।
उस समय बहन सूत कात रही थी सूत का धागा बार बार टूट रहा था। बहन उसे जोड़ने में व्यस्त थी। देख ही नहीं पाई कि भाई आया है। भाई
ने सोचा अमीर बहन के मन में गरीब भाई के प्रति प्रेम नही है और वह वापस जाने लगा इतने में बहन का सूत का तार जुड़ गया उसने जैसे ही
नज़र उठाई तो देखा भाई जा रहा है। वह दौड़ कर गयी और भाई से बोली “भैया में तुम्हारा ही इंतजार कर रही थी सूत बार बार टूट रहा था
इसलिए बोल नहीं पाई।
भाई को बड़े प्यार से बैठाकर राखी बाँधी। भाई ने अपनी बहन को सुन्दर भेंट दी । बहन ख़ुशी से पागल हो रही थी। उसने पड़ोसन से सलाह
की और पूछा मेरा प्यारा भाई आया है , उसके लिए क्या खाना बनाऊ। पड़ोसन ने कहा घी में चावल बना लेना और तेल का छौक लगा देना।
बहन भोली थी पड़ोसन ने जैसा कहा वैसा ही किया । दो घंटे हो गए भाई कहा भूख लगी हे बहन ने भाई को पड़ोसन वाली बात बताई और
कहा चावल अभी बने नहीं हैं । भाई ने समझाया बहन , चावल घी में नहीं बनते। दूध और चावल की खीर बना लो । बहन ने खीर बनाई और
सब ने भोजन किया।
सुबह अँधेरे भाई को जाना था। बहन ने सुबह जल्दी उठ कर गेँहू पीसे और लडडू बनाकर भाई के साथ डाल दिए। थोड़ी देर बाद बच्चे उठे
और बोले हमे भी लडडू चाहिए । बच्चो को देने के लिए लड्डू तोडा तो उसमे से साँप के छोटे छोटे टुकड़े निकले। उसे भाई की फ़िक्र होने
लगी। वो तुरंत दौड़ी। बहुत दूर जाने के बाद भाई दिखा तो भाई को आवाज लगाई।
भाई सोचने लगा ये मेरे पीछे दौड़ कर क्यों आई है। उसने ऐसे इतनी दूर दौड़ कर आने का कारण पूछा। बहन बोली में तेरी जान बचाने आई हूँ
तुझे जो लडडू दिए थे उसमें भूल से साँप के टुकड़े आ गए है । तुझे यही कहने आई थी। भाई बोला बहन मैं एक पेड़ पर पोटली टांक कर नीचे
आराम कर रहा था , तब कोई चोर मेरे लडडू चुरा कर ले गए ।
संयोग से लडडू चोर पास ही में थे। वे लडडू खाने वाले ही लेकिन उनकी बात सुन कर रुक गए। बहन के पास आकर बोले तुमने हमारी जान
बचाई है। आज से तुम हमारी धर्म बहन हो। लडडू वहीँ खड्डा खोदकर गाढ़ दिए। बहन भाई को घर ले आई और तीसरे दिन सीख देकर भेजा।
इसलिए भाई को राखी के दिन रात को नहीं रोकना चाहिए और जाते समय खाने का कुछ सामान साथ नहीं बांधना चाहिए।
खोटी की खरी। अधूरी की पूरी।
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