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Category: Short Stories in Hindi
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एक बाल्टी दूध हिंदी स्टोरी 

 

एक बार एक राजा के राज्य में महामारी फैल गयी। चारो ओर लोग मरने लगे। राजा ने इसे रोकने के लिये बहुत सारे उपाय करवाये मगर कुछ असर न हुआ और लोग मरते रहे। दुखी राजा ईश्वर से प्रार्थना करने लगा। तभी अचानक आकाशवाणी हुई। आसमान से आवाज़ आयी कि हे राजा तुम्हारी राजधानी के बीचो बीच जो पुराना सूखा कुंआ है अगर अमावस्या की रात को राज्य के प्रत्येक घर से एक – एक बाल्टी दूध उस कुएं में डाला जाये तो अगली ही सुबह ये महामारी समाप्त हो जायेगी और लोगों का मरना बन्द हो जायेगा। राजा ने तुरन्त ही पूरे राज्य में यह घोषणा करवा दी कि महामारी से बचने के लिए अमावस्या की रात को हर घर से कुएं में एक-एक बाल्टी दूध डाला जाना अनिवार्य है ।

अमावस्या की रात जब लोगों को कुएं में दूध डालना था उसी रात राज्य में रहने वाली एक चालाक एवं कंजूस बुढ़िया ने सोंचा कि सारे लोग तो कुंए में दूध डालेंगे अगर मै अकेली एक बाल्टी पानी डाल दूं तो किसी को क्या पता चलेगा। इसी विचार से उस कंजूस बुढ़िया ने रात में चुपचाप एक बाल्टी पानी कुंए में डाल दिया। अगले दिन जब सुबह हुई तो लोग वैसे ही मर रहे थे। कुछ भी नहीं बदला था क्योंकि महामारी समाप्त नहीं हुयी थी। राजा ने जब कुंए के पास जाकर इसका कारण जानना चाहा तो उसने देखा कि सारा कुंआ पानी से भरा हुआ है। दूध की एक बूंद भी वहां नहीं थी। राजा समझ गया कि इसी कारण से महामारी दूर नहीं हुई और लोग अभी भी मर रहे हैं।

दरअसल ऐसा इसलिये हुआ क्योंकि जो विचार उस बुढ़िया के मन में आया था वही विचार पूरे राज्य के लोगों के मन में आ गया और किसी ने भी कुंए में दूध नहीं डाला।

मित्रों , जैसा इस कहानी में हुआ वैसा ही हमारे जीवन में भी होता है। जब भी कोई ऐसा काम आता है जिसे बहुत सारे लोगों को मिल कर करना होता है तो अक्सर हम अपनी जिम्मेदारियों से यह सोच कर पीछे हट जाते हैं कि कोई न कोई तो कर ही देगा और हमारी इसी सोच की वजह से स्थितियां वैसी की वैसी बनी रहती हैं। अगर हम दूसरों की परवाह किये बिना अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभाने लग जायें तो पूरे देश मेंबर ऐसा बदलाव ला सकते हैं जिसकी आज हमें ज़रूरत है।


पछतावा

 

एक मेहनती और ईमानदार नौजवान बहुत पैसे कमाना चाहता था क्योंकि वह गरीब था और बदहाली में जी रहा था। उसका सपना था कि वह मेहनत करके खूब पैसे कमाये और एक दिन अपने पैसे से एक कार खरीदे। जब भी वह कोई कार देखता तो उसे अपनी कार खरीदने का मन करता। 

कुछ साल बाद उसकी अच्छी नौकरी लग गयी। उसकी शादी भी हो गयी और कुछ ही वर्षों में वह एक बेटे का पिता भी बन गया। सब कुछ ठीक चल रहा था मगर फिर भी उसे एक दुख सताता था कि उसके पास उसकी अपनी कार नहीं थी। धीरे – धीरे उसने पैसे जोड़ कर एक कार खरीद ली। कार खरीदने का उसका सपना पूरा हो चुका था और इससे वह बहुत खुश था। वह कार की बहुत अच्छी तरह देखभाल करता था और उससे शान से घूमता था।

एक दिन रविवार को वह कार को रगड़ – रगड़ कर धो रहा था। यहां तक कि गाड़ी के टायरों को भी चमका रहा था। उसका 5 वर्षीय बेटा भी उसके साथ था। बेटा भी पिता के आगे पीछे घूम – घूम कर कार को साफ होते देख रहा था। कार धोते धोते अचानक उस आदमी ने देखा कि उसका बेटा कार के बोनट पर किसी चीज़ से खुरच – खुरच कर कुछ लिख रहा है।

यह देखते ही उसे बहुत गुस्सा आया। वह अपने बेटे को पीटने लगा। उसने उसे इतनी जो़र से पीटा कि बेटे के हाथ की एक उंगली ही टूट गयी।

दरअसल वह आदमी अपनी कार को बहुत चाहता था और वह बेटे की इस शरारत को बर्दाश्त नहीं कर सका । बाद में जब उसका गुस्सा कुछ कम हुआ तो उसने सोंचा कि जा कर देखूं कि कार में कितनी खरोंच लगी है। कार के पास जा कर देखने पर उसके होश उड़ गये। उसे खुद पर बहुत गुस्सा आ रहा था। वह फूट – फूट कर रोने लगा। कार पर उसके बेटे ने खुरच कर लिखा था-

"Papa, I love you."

यह कहानी हमें यह सिखाती है कि किसी के बारे में कोई गलत राय रखने से पहले या गलत फैसला लेने से पहले हमें ये ज़रूर सोंचना चाहिये कि उस व्यक्ति ने वह काम किस नियत से किया है।


मेरी ख्वाइश

 

वह प्राइमरी स्कूल की टीचर थी | सुबह उसने बच्चो का टेस्ट लिया था और उनकी कॉपिया जाचने के लिए घर ले आई थी | बच्चो की कॉपिया देखते देखते उसके आंसू बहने लगे | उसका पति वही लेटे TV देख रहा था | उसने रोने का कारण पूछा ।

टीचर बोली , “सुबह मैंने बच्चो को ‘मेरी सबसे बड़ी ख्वाइश’ विषय पर कुछ पंक्तिया लिखने को कहा था ; एक बच्चे ने इच्छा जाहिर करी है की भगवन उसे टेलीविजन बना दे |

यह सुनकर पतिदेव हंसने लगे |

टीचर बोली , “आगे तो सुनो बच्चे ने लिखा है यदि मै TV बन जाऊंगा, तो घर में मेरी एक खास जगह होगी और सारा परिवार मेरे इर्द-गिर्द रहेगा | जब मै बोलूँगा, तो सारे लोग मुझे ध्यान से सुनेंगे | मुझे रोका टोका नहीं जायेंगा और नहीं उल्टे सवाल होंगे | जब मै TV बनूंगा, तो पापा ऑफिस से आने के बाद थके होने के बावजूद मेरे साथ बैठेंगे | मम्मी को जब तनाव होगा, तो वे मुझे डाटेंगी नहीं, बल्कि मेरे साथ रहना चाहेंगी | मेरे बड़े भाई-बहनों के बीच मेरे पास रहने के लिए झगडा होगा | यहाँ तक की जब TV बंद रहेंगा, तब भी उसकी अच्छी तरह देखभाल होंगी | और हा, TV के रूप में मै सबको ख़ुशी भी दे सकूँगा | “

यह सब सुनने के बाद पति भी थोड़ा गंभीर होते हुए बोला , ‘हे भगवान ! बेचारा बच्चा …. उसके माँ-बाप तो उस पर जरा भी ध्यान नहीं देते !’

टीचर पत्नी ने आंसूं भरी आँखों से उसकी तरफ देखा और बोली, “जानते हो, यह बच्चा कौन है? ………………………हमारा अपना बच्चा…….. हमारा छोटू |”

सोचिये, यह छोटू कही आपका बच्चा तो नहीं ।

मित्रों , आज की भाग-दौड़ भरी ज़िन्दगी में हमें वैसे ही एक दूसरे के लिए कम वक़्त मिलता है , और अगर हम वो भी सिर्फ टीवी देखने , मोबाइल पर गेम खेलने और फेसबुक से चिपके रहने में गँवा देंगे तो हम कभी अपने रिश्तों की अहमियत और उससे मिलने वाले प्यार को नहीं समझ पायेंगे।

चलिए प्रयास करें की हमारी वजह से किसी छोटू को टीवी बनने के बारे में ना सोचना पड़े!


काबिलियत की पहचान

 

किसी  जंगल  में  एक  बहुत  बड़ा  तालाब  था . तालाब  के   पास  एक बागीचा  था , जिसमे  अनेक  प्रकार  के पेड़  पौधे  लगे थे . दूर- दूर  से  लोग  वहाँ  आते  और बागीचे  की  तारीफ  करते .

गुलाब के पेड़ पे लगा पत्ता हर रोज लोगों को आते-जाते और फूलों की तारीफ करते देखता, उसे लगता की हो सकता है एक दिन कोई  उसकी भी तारीफ करे. पर जब काफी दिन बीत जाने के बाद भी किसी ने उसकी तारीफ नहीं की तो वो काफी हीन महसूस करने लगा . उसके अन्दर तरह-तरह के विचार आने लगे—” सभी लोग गुलाब और अन्य फूलों की तारीफ करते नहीं थकते  पर मुझे कोई देखता तक नहीं , शायद  मेरा जीवन किसी काम का नहीं …कहाँ ये खूबसूरत फूल और कहाँ मैं… ” और ऐसे विचार सोच कर वो पत्ता काफी उदास रहने लगा.

दिन यूँही बीत रहे थे कि एक दिन जंगल में बड़ी जोर-जोर से हवा चलने लगी और देखते-देखते उसने आंधी का रूप ले लिया.  बागीचे के पेड़-पौधे तहस-नहस होने लगे , देखते-देखते सभी फूल ज़मीन पर गिर कर निढाल हो गए , पत्ता भी अपनी शाखा से अलग हो गया और उड़ते-उड़ते तालाब में जा गिरा.

पत्ते ने देखा कि  उससे कुछ ही दूर पर कहीं से एक चींटी हवा के झोंको की वजह से तालाब में आ गिरी थी और अपनी जान बचाने के लिए संघर्ष कर रही थी.

चींटी  प्रयास करते-करते  काफी  थक  चुकी  थी और  उसे अपनी मृत्यु तय लग रही थी कि  तभी पत्ते ने उसे आवाज़ दी, ” घबराओ नहीं,  आओ , मैं  तुम्हारी  मदद  कर  देता  हूँ .”, और ऐसा कहते हुए अपनी उपर बैठा लिया. आंधी रुकते-रुकते पत्ता तालाब के एक छोर पर पहुँच गया; चींटी किनारे पर पहुँच कर बहुत खुश हो गयी और  बोली, ”  आपने आज मेरी जान बचा कर बहुत बड़ा उपकार किया है , सचमुच आप महान हैं, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद ! “

यह सुनकर पत्ता भावुक हो गया और बोला,” धन्यवाद तो मुझे  करना चाहिए, क्योंकि तुम्हारी वजह से आज पहली बार मेरा सामना मेरी काबिलियत से हुआ , जिससे मैं आज तक अनजान था.  आज पहली बार मैंने अपने  जीवन  के  मकसद और  अपनी  ताकत  को पहचान  पाया हूँ … .’

मित्रों , ईश्वर  ने हम सभी को अनोखी शक्तियां दी हैं ; कई बार हम खुद अपनी काबिलियत से अनजान होते हैं और समय आने पर हमें इसका पता चलता है, हमें इस बात को समझना चाहिए कि   किसी  एक  काम  में  असफल  होने  का  मतलब  हमेशा   के  लिए  अयोग्य  होना  नही  है . खुद  की  काबिलियत  को  पहचान कर  आप  वह  काम   कर  सकते  हैं , जो  आज  तक  किसी  ने  नही  किया  है !


ली-ली का बदला

 

बहुत  समय  पहले की  बात  है , चाइना के  किसी  गाँव  में  ली-ली   नाम  की  एक  लड़की  रहती  थी . शादी  के  बाद वो अपने   ससुराल पहुंची , उसके  परिवार  में  सिर्फ  वो  , उसका  पति   और   उसकी  सास  थीं   .

कुछ  दिनों  तक  सब  ठीक   चला  पर  महीना  बीतते -बीतते  ली-ली  और  उसकी  सास  में  खटपट   होने  लगी  .

दिन  बीतते  गए  … महीने  बीतते  गए , पर  सास -बहु  के  समबन्ध  सुधरने  की  बजाये  और  भी  बिगड़  गए . और  एक  दिन  जब  नौबत मार-पीट तक पहुचंह गयी  तो  ली-ली गुस्से में  अपने  मायके  चली  गयी.  उसने  निश्चय  किया  कि  वो  किसी  भी  तरह  अपनी  सास  से  बदला लेकर रहेगी , और इसी विचार के साथ  वो  गाँव  के  एक  वैद्य  के  पास  पहुंची .

“ वैद्य  जी , मैं  अपनी  सास  से  बहुत  परेशान  हूँ , मेरा  किया  कुछ  भी  उसे  अच्छा  नहीं   लगता , हर  काम  में  कमीं   निकालना  और ताने  मारना  उसका  स्वभाव  है  …मुझे  किसी  भी  तरह  उससे  छुटकारा  दिला  दीजिये बस ….” , ली-ली  ने  क्रोध में  अपनी  बात  कही .

वैद्य  बोले , “बेटी , चूँकि तुम्हारे  पिताजी   मेरे  अच्छे  मित्र  हैं , इसलिए  मैं  तुम्हारी  मदद  ज़रूर  करूँगा , पर  तुम्हे  एक  बात  का  ध्यान  रखना  होगा , मैं  जैसा  कहूँ  ठीक  वैसा  ही  करना, वर्ना मुसीबत में फंस जाओगी “

” मैं  बिलकुल  वैसा  ही  करुँगी।  “, ली -ली  बोली .

वैद्य  अन्दर  गए  और  कुछ  देर  बाद  जड़ी -बूटियों  का एक डिब्बा   लेकर  वापस  आये , और  ली -ली  को  थमाते  हुए  बोले – “ली -ली  , तुम  अपनी  सास  को  मारने  के  लिए  किसी  तेज  ज़हर  का  प्रयोग  नहीं  कर  सकती  , क्योंकि  उससे  तुम  पकड़ी  जाओगी …य़े  डिब्बा  लो , इसके  अन्दर  कुछ  दुर्लभ  जड़ी -बूटियाँ  हैं  जो  धीरे -धीरे  इंसान  के  अन्दर  ज़हर  पैदा  कर  देती  हैं  और   7-8 महीने  में  उसकी  मौत  हो  जाती  है …अब  हर  रोज  तुम  अपनी  सास  के  लिए  कुछ  पकवान  बनाना  और  चुपके  से  इन्हें  उस  खाने  में  मिला  देना , और  ध्यान रहे इस  बीच  तुम्हे  अपनी  सास  से  अच्छी  तरह  से  पेश  आना  होगा  , उनकी  बात  माननी  होगी , ताकि  मौत  के  बाद   किसी  का  शक  तुम पर  ना  जाये  …ज़ाओ  अब  अपने  ससुराल  वापस  जाओ  और  अपनी  सास  के  साथ  अच्छे  से अच्छा व्यवहार  करो …”

ली -ली  ख़ुशी -ख़ुशी  जड़ी -बूटियाँ  लेकर  ससुराल  वापस  लौट  गयी . अब  उसका  व्यवहार  बिलकुल  बदल  चुका   था , अब  वो  अपने  सास  की  बात  मानने  लगी  थी , और  आये  दिन  उनके  लिए  स्वादिष्ट  व्यंजन  भी  बनाने  लगी  थी . और जब कभी उसे गुस्सा आता तो वैद्य जी की बात ध्यान में रखकर कर वो अपने गुस्से पर काबू कर लेती।  6 महीने  बीतते -बीतते  घर  का  माहौल  बिलकुल  बदल  चुका  था . जो  सास  पहले  बहु  की  बुराई   करते  नहीं  थकती  थी  वही  अब  घर -घर  घूम   कर  ली -ली  की  तारीफ़  करते  नहीं  थकती  थीं . ली -ली  भी अभिनय करते – करते  अब  सचमुच  बदल  चुकी  थी  , उसे  अपनी  सास  में  अपनी  माँ   नज़र  आने  लगी  थीं .

ली-ली को अब अपनी सास की मौत का भय सताने लगा और एक दिन वो किसी बहाने  से मायके  के  लिए  निकली  और  सीधे   वैद्य  जी  के  पास  पहुंची .

” वैद्य  जी , कृपया  मेरी  मदद  करिए , मैं  अब  अपनी  सास  को  नहीं  मारना चाहती  , वो  तो एकदम  बदल  गयी  हैं , और  मुझे  बहुत  प्यार  करने  लगी  हैं , मैं  भी  उन्हें उतना ही मानने  लगी  हूँ …कुछ   भी  कर  के  उस  ज़हर  का  असर  ख़त्म  कर  दीजिये ….” , ली -ली  रोते  हुए  बोली .

वैद्य  बोले , ” बेटी , चिंता  करने  की  कोई  ज़रुरत  नहीं  है , दरअसल  मैंने  तुम्हे  कभी  ज़हर  दिया  ही  नहीं  था , उस डिब्बे में  तो  बस स्वास्थ्य – वर्धक  जड़ी -बूटियाँ  थीं . ज़हर  तो  तुम्हारे  दिमाग  और  नज़रिए  में  था  , लेकिन  मैं खुश हूँ कि तुमने  अपनी  सास की जो सेवा की और उन्हें  जो  प्रेम  दिया  उससे  वो  भी  ख़त्म  हो  गया …, जाओ  अब  खुशहाली   से  अपने  सास  और  पति  के  साथ  जीवन  व्यतीत  करो .


ज़िन्दगी चलती जाती है !

 

जब जूलियो 10 साल का था तो उसका बस एक ही सपना था , अपने फेवरेट क्लब रियल मेड्रिड की ओर से फुटबाल खेलना ! वह दिन भर खेलता, प्रैक्टिस करता और धीरे-धीरे वह एक बहुत अच्छा गोलकीपर बन गया. 20 का होते-होते उसके बचपन का सपना हकीकत बनने के करीब पहुँच गया; उसे रियल मेड्रिड की तरफ से फुटबाल खेलने के लिए साइन कर लिया गया. खेल के धुरंधर जूलियो से बहुत प्रभावित थे और ये मान कर चल रहे थे कि बहुत जल्द वह स्पेन का नंबर 1 गोलकीपर बन जायेगा.

1963 की एक शाम , जूलियो और उसके दोस्त कार से कहीं घूमने निकले. पर दुर्भाग्यवश उस कार का एक भयानक एक्सीडेंट हो गया , और रियल मेड्रिड और स्पेन का नंबर 1 गोलकीपर बनने वाला जूलियो हॉस्पिटल में पड़ा हुआ था , उसके कमर के नीचे का हिस्सा पैरलाइज हो चुका था. डॉक्टर्स इस बात को लेकर भी आस्वस्थ नहीं थे कि जूलियो फिर कभी चल पायेगा, फ़ुटबाल खेलना तो दूर की बात थी.

वापस ठीक होना बहुत लम्बा और दर्दनाक अनुभव था. जूलियो बिलकुल निराश हो चुका था , वह बार-बार उस घटना को याद करता और क्रोध और मायूसी से भर जाता. अपना दर्द कम करने के लिए वह रात में गाने और कविताएँ लिखने लगा. धीरे-धीरे उसने गिटार पर भी अपना हाथ आजमाना शुरू किया और उसे बजाते हुए अपने लिखे गाने भी गाने लगा.

18 महीने तक बिस्तर पर रहने के बाद , जूलियो अपनी ज़िन्दगी को फिर से सामान्य बनाने लगा. एक्सीडेंट के पांच साल बाद उसने एक सिंगिंग कम्पटीशन में भाग लिया और ” लाइफ गोज ओन द सेम ” गाना गा कर फर्स्ट प्राइज जीता.

वह फिर कभी फ़ुटबाल नहीं खेल पाया पर अपने हाथों में गिटार और होंठों पे गाने लिए जूलियो इग्लेसियस संगीत की दुनिया में Top Ten सिंगर्स में शुमार हुआ ,और अब तक उनके 30 करोड़ से अधिक एल्बम बिक चुके हैं.


धक्का

 

एक बार की बात है , किसी शहर में एक बहुत अमीर आदमी रहता था. उसे एक अजीब शौक था , वो अपने घर के अन्दर बने एक बड़े से स्विमिंग पूल में बड़े-बड़े रेप्टाइल्स पाले हुए था  ; जिसमे एक से बढ़कर एक सांप, मगरमच्छ ,घड़ियाल ,आदि शामिल थे  .

एक बार वो अपने घर पर एक पार्टी देता है .बहुत से लोग उस पार्टी में आते हैं.

खाने-पीने के बाद वो सभी मेहमानों को स्विमिंग पूल के पास ले जाता है और कहता है –

” दोस्तों, आप इस पूल को देख रहे हैं, इसमें एक से एक खतरनाक जीव हैं , अगर आपमें से कोई इसे तैर कर पार कर ले तो मैं उसे १ करोड़ रुपये या अपनी बेटी का हाथ दूंगा…”

सभी लोग पूल की तरफ देखते हैं पर किसी की भी हिम्मत नहीं होती है कि उसे पार करे….लेकिन तभी छपाक से आवाज होती है और एक लड़का उसमे कूद जाता है ,और मगरमच्छों , साँपों, इत्यादि से बचता हुआ पूल पार कर जाता है.

सभी लोग उसकी इस बहादुरी को देख हैरत में पड़ जाते हैं. अमीर आदमी को भी यकीन नहीं होता है कि कोई ऐसा कर सकता है ; इतने सालों में किसी ने पूल पार करना तो दूर उसका पानी छूने तक की हिम्मत नहीं की !

वो उस लड़के को बुलाता है , ” लड़के , आज तुमने बहुत ही हिम्मत का काम किया है , तुम सच- मुच बहादुर हो बताओ तुम कौन सा इनाम चाहते हो।

” अरे , इनाम-विनाम तो मैं लेता रहूँगा , पहले ये बताओ कि मुझे धक्का किसने दिया था….!” , लड़का बोला.

मित्रों ये एक छोटा सा जोक था। पर इसमें एक बहुत बड़ा सन्देश छुपा हुआ है – उस लड़के में तैर कर स्विमिंग पूल पार करने की काबीलियत तो थी पर वो अपने आप नहीं कूदा , जब किसी ने धक्का दिया तो वो कूद गया और पार भी कर गया . अगर कोई उसे धक्का नहीं देता तो वो कभी न कूदने की सोचता और न पूल पार कर पाता , पर अब उसकी ज़िन्दगी हमेशा के लिए बदल चुकी थी …ऐसे ही हमारे अन्दर कई टैलेंट छुपे होते हैं जब तक हमारे अन्दर कॉन्फिडेंस और रिस्क उठाने की हिम्मत नहीं होती तब तक हम लाइफ के ऐसे कई चैलेंजेज में कूदे बगैर ही हार मान लेते हैं , हमें चाहिए कि हम अपनी काबीलियत पर विश्वास करें और ज़िन्दगी में मिले अवसरों का लाभ उठाएं।वो उस लड़के को बुलाता है , ” लड़के , आज तुमने बहुत ही हिम्मत का काम किया है , तुम सच- मुच बहादुर हो बताओ तुम कौन सा इनाम चाहते हो।

” अरे , इनाम-विनाम तो मैं लेता रहूँगा , पहले ये बताओ कि मुझे धक्का किसने दिया था….!” , लड़का बोला.

मित्रों ये एक छोटा सा जोक था। पर इसमें एक बहुत बड़ा सन्देश छुपा हुआ है – उस लड़के में तैर कर स्विमिंग पूल पार करने की काबीलियत तो थी पर वो अपने आप नहीं कूदा , जब किसी ने धक्का दिया तो वो कूद गया और पार भी कर गया . अगर कोई उसे धक्का नहीं देता तो वो कभी न कूदने की सोचता और न पूल पार कर पाता , पर अब उसकी ज़िन्दगी हमेशा के लिए बदल चुकी थी …ऐसे ही हमारे अन्दर कई टैलेंट छुपे होते हैं जब तक हमारे अन्दर कॉन्फिडेंस और रिस्क उठाने की हिम्मत नहीं होती तब तक हम लाइफ के ऐसे कई चैलेंजेज में कूदे बगैर ही हार मान लेते हैं , हमें चाहिए कि हम अपनी काबीलियत पर विश्वास करें और ज़िन्दगी में मिले अवसरों का लाभ उठाएं।


बीज

 

मिटटी के नीचे दबा एक बीज अपने खोल में आराम से सो रहा था . उसके बाकी साथी भी अपने अपने खोल में सिमटे पड़े हुए थे . तभी अचानक एक दिन बरसात हुई, जिस्से. मिटटी के ऊपर कुछ पानी इकठ्ठा हो गया और सारे बीज भीग कर सड़ने लगे . वह भी बीज भी तर -बतर हो गया और सड़ने लगा .

बीज ने सोचा , ”इस तरह तो मैं एक बीज के रूप में ही मर जाऊंगा . मेरी हालत भी मेरे दोस्तों की तरह ही हो जाएगी , जो अब ख़त्म हो चुके हैं . मुझे कुछ ऐसा करना चाहिए कि मैं अमर हो जाऊं .” बीज ने हिम्मत दिखाई और पूरी ताकत लगाकर अपना खोल तोड़ कर खुद एक पौधे के रूप में परिवर्तित कर लिया . अब बरसात और मिटटी उसके दोस्त बन चुके थे और नुक्सान पहुँचाने की जगह बड़े होने में उसकी मदद करने लगे . धीरे – धीरे वह बड़ा होने लगा . एक दिन वह स्थिति आई जब वह इतना बड़ा हो गया कि अब और नही बढ़ सकता था। उसने मन ही मन सोचा , इस तरह यहाँ खड़े-खड़े मैं एक दिन मर जाऊँगा , पर मुझे तो अमर होना है. और ये सोच कर उसने खुद को एक कली के रूप में परिवर्तित कर लिया।

कली बसंत में खिलने लगी , उसकी खुशबू दूर-दूर तक फ़ैल गयी जिससे आकर्षित हो कर भँवरे वहां मडराने लगे , इस प्रकार इस पौधे के बीज दूर-दूर तक फ़ैल गए और वह एक बीज जिसने परिस्थितियों के सामने हार ना मान कर खुद को खुद को परिवर्तित करने का फैसला किया था , दुबारा लाखों बीजों के रूप में जीवित हो गया .

परिवर्तन को एक घटना की तरह नही , बल्कि एक प्रक्रिया की तरह देखना चाहिए . यह नयी खोज की तरह होता है . यह हमारे वातावरण को ही नही , बल्कि हमे भी बदलता है . हम विकास की नयी संभावनाओं को देखने लगते हैं और परिवर्तन में सक्षम होते हैं . यह हमे मिटाने की जगह मजबूत बनाता है और हम प्रगतिशील हो जाते हैं .


खिड़की

 

एक बार की बात है , एक नौविवाहित जोड़ा किसी किराए के घर में रहने पहुंचा . अगली सुबह , जब वे नाश्ता कर रहे थे , तभी पत्नी ने खिड़की से देखा कि सामने वाली छत पर कुछ कपड़े फैले हैं , – “ लगता है इन लोगों को कपड़े साफ़ करना भी नहीं आता …ज़रा देखो तो कितने मैले लग रहे हैं ? “

पति ने उसकी बात सुनी पर अधिक ध्यान नहीं दिया .

एक -दो दिन बाद फिर उसी जगह कुछ कपड़े फैले थे . पत्नी ने उन्हें देखते ही अपनी बात दोहरा दी ….” कब सीखेंगे ये लोग की कपड़े कैसे साफ़ करते हैं …!!”

पति सुनता रहा पर इस बार भी उसने कुछ नहीं कहा .

पर अब तो ये आये दिन की बात हो गयी , जब भी पत्नी कपडे फैले देखती भला -बुरा कहना शुरू हो जाती .

लगभग एक महीने बाद वे यूँहीं बैठ कर नाश्ता कर रहे थे . पत्नी ने हमेशा की तरह नजरें उठायीं और सामने वाली छत
की तरफ देखा , ” अरे वाह , लगता है इन्हें अकल आ ही गयी …आज तो कपडे बिलकुल साफ़ दिख रहे हैं , ज़रूर किसी ने टोका होगा !”

पति बोल , ” नहीं उन्हें किसी ने नहीं टोका .”

” तुम्हे कैसे पता ?” , पत्नी ने आश्चर्य से पूछा .

” आज मैं सुबह जल्दी उठ गया था और मैंने इस खिड़की पर लगे कांच को बाहर से साफ़ कर दिया , इसलिए तुम्हे कपडे साफ़ नज़र आ रहे हैं . “, पति ने बात पूरी की .

ज़िन्दगी में भी यही बात लागू  होती है : बहुत बार हम दूसरों को कैसे देखते हैं ये इस पर निर्भर करता है की हम खुद अन्दर से कितने साफ़ हैं . किसी के बारे में भला-बुरा कहने से पहले अपनी मनोस्थिति देख लेनी चाहिए और खुद से पूछना चाहिए की क्या हम सामने वाले में कुछ बेहतर देखने के लिए तैयार हैं या अभी भी हमारी खिड़की गन्दी है !


बुद्ध और अनुयायी

भगवान् बुद्ध क एक अनुयायी ने कहा , ” प्रभु ! मुझे आपसे एक निवेदन करना है .”

बुद्ध: बताओ क्या कहना है ?

अनुयायी: मेरे वस्त्र पुराने हो चुके हैं . अब ये पहनने लायक नहीं रहे . कृपया मुझे नए वस्त्र देने का कष्ट करें !

बुद्ध ने अनुयायी के वस्त्र देखे , वे सचमुच बिलकुल जीर्ण हो चुके थे और जगह जगह से घिस चुके थे …इसलिए उन्होंने एक अन्य अनुयायी को नए वस्त्र देने का आदेश दे दिए.

कुछ दिनों बाद बुद्ध अनुयायी के घर पहुंचे .

बुद्ध : क्या तुम अपने नए वस्त्रों में आराम से हो ? तुम्हे और कुछ तो नहीं चाहिए ?

अनुयायी: धन्यवाद प्रभु . मैं इन वस्त्रों में बिलकुल आराम से हूँ और मुझे और कुछ नहीं चाहिए .

बुद्ध: अब जबकि तुम्हारे पास नए वस्त्र हैं तो तुमने पुराने वस्त्रों का क्या किया ?

अनुयायी: मैं अब उसे ओढने के लिए प्रयोग कर रहा हूँ ?

बुद्ध: तो तुमने अपनी पुरानी ओढ़नी का क्या किया ?

अनुयायी: जी मैंने उसे खिड़की पर परदे की जगह लगा दिया है .

बुद्ध: तो क्या तुमने पुराने परदे फ़ेंक दिए ?

अनुयायी: जी नहीं , मैंने उसके चार टुकड़े किये और उनका प्रयोग रसोई में गरम पतीलों को आग से उतारने के लिए कर रहा हूँ.

बुद्ध: तो फिर रसॊइ के पुराने कपड़ों का क्या किया ?

अनुयायी: अब मैं उन्हें पोछा लगाने के लिए प्रयोग करूँगा .

बुद्ध: तो तुम्हारा पुराना पोछा क्या हुआ ?

अनुयायी: प्रभु वो अब इतना तार -तार हो चुका था कि उसका कुछ नहीं किया जा सकता था , इसलिए मैंने उसका एक -एक धागा अलग कर दिए की बातियाँ तैयार कर लीं ….उन्ही में से एक कल रात आपके कक्ष में प्रकाशित था .

बुद्ध अनुयायी से संतुष्ट हो गए . वो प्रसन्न थे कि उनका शिष्य वस्तुओं को बर्वाद नहीं करता और उसमे समझ है कि उनका उपयोग किस तरह से किया जा सकता है।

मित्रों , आज जब प्राकृतिक संसाधन दिन – प्रतिदिन कम होते जा रहे हैं ऐसे में हमें भी कोशिश करनी चाहिए कि चीजों को बर्वाद ना करें और अपने छोटे छोटे प्रयत्नों से इस धरा को सुरक्षित बना कर रखें .