Sandybook - Short Stories in HindiNews, articles and Daily Current affairshttps://www.sandybook.in/latestsms/short-stories-in-hindi2024-03-29T15:49:08+05:30sandybook.insandybook.in@gmail.comJoomla! - Open Source Content Managementसर्वश्रेष्ठ हिंदी कहानियां - best hindi stories2018-07-10T11:59:32+05:302018-07-10T11:59:32+05:30https://www.sandybook.in/latestsms/hindi-stories/short-stories-in-hindi/930-%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A0-%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A5%80-%E0%A4%95%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%82-best-hindi-storiesMadhu Morsandybook.in@gmail.com<p>
<span style="color:#0000CD;"><span style="font-size:20px;">बोले हुए शब्द वापस नहीं आते</span></span>
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एक बार एक किसान ने अपने पडोसी को भला बुरा कह दिया, पर जब बाद में उसे अपनी गलती का एहसास हुआ तो वह एक संत के पास गया.उसने संत से अपने शब्द वापस लेने का उपाय पूछा.
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संत ने किसान से कहा , ” तुम खूब सारे पंख इकठ्ठा कर लो , और उन्हें शहर के बीचो-बीच जाकर रख दो .” किसान ने ऐसा ही किया और फिर संत के पास पहुंच गया.
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तब संत ने कहा , ” अब जाओ और उन पंखों को इकठ्ठा कर के वापस ले आओ”
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किसान वापस गया पर तब तक सारे पंख हवा से इधर-उधर उड़ चुके थे. और किसान खाली हाथ संत के पास पहुंचा. तब संत ने उससे कहा कि ठीक ऐसा ही तुम्हारे द्वारा कहे गए शब्दों के साथ होता है,तुम आसानी से इन्हें अपने मुख से निकाल तो सकते हो पर चाह कर भी वापस नहीं ले सकते.
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इस कहानी से क्या सीख मिलती है:
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<li>
कुछ कड़वा बोलने से पहले ये याद रखें कि भला-बुरा कहने के बाद कुछ भी कर के अपने शब्द वापस नहीं लिए जा सकते. हाँ, आप उस व्यक्ति से जाकर क्षमा ज़रूर मांग सकते हैं, और मांगनी भी चाहिए, पर human nature कुछ ऐसा होता है की कुछ भी कर लीजिये इंसान कहीं ना कहीं hurt हो ही जाता है.
</li>
<li>
जब आप किसी को बुरा कहते हैं तो वह उसे कष्ट पहुंचाने के लिए होता है पर बाद में वो आप ही को अधिक कष्ट देता है. खुद को कष्ट देने से क्या लाभ, इससे अच्छा तो है की चुप रहा जाए.
</li>
</ul>
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<hr alt="सफलता का रहस्य - Secret of Success" class="system-pagebreak" title="सफलता का रहस्य - Secret of Success" />
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<span style="color:#0000CD;"><span style="font-size:20px;"><strong>सफलता का रहस्य - Secret of Success</strong></span></span>
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एक बार एक नौजवान लड़के ने सुकरात से पूछा कि सफलता का रहस्य क्या है?
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सुकरात ने उस लड़के से कहा कि तुम कल मुझे नदी के किनारे मिलो. वो मिले. फिर सुकरात ने नौजवान से उनके साथ नदी की तरफ बढ़ने को कहा.और जब आगे बढ़ते-बढ़ते पानी गले तक पहुँच गया, तभी अचानक सुकरात ने उस लड़के का सर पकड़ के पानी में डुबो दिया.
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लड़का बाहर निकलने के लिए संघर्ष करने लगा , लेकिन सुकरात ताकतवर थे और उसे तब तक डुबोये रखे जब तक की वो नीला नहीं पड़ने लगा. फिर सुकरात ने उसका सर पानी से बाहर निकाल दिया और बाहर निकलते ही जो चीज उस लड़के ने सबसे पहले की वो थी हाँफते-हाँफते तेजी से सांस लेना.
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सुकरात ने पूछा ,” जब तुम वहाँ थे तो तुम सबसे ज्यादा क्या चाहते थे?”
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लड़के ने उत्तर दिया,”सांस लेना”
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सुकरात ने कहा,” यही सफलता का रहस्य है. जब तुम सफलता को उतनी ही बुरी तरह से चाहोगे जितना की तुम सांस लेना चाहते थे तो वो तुम्हे मिल जाएगी” इसके आलावा और कोई रहस्य नहीं है.
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दोस्तों, जब आप सिर्फ और सिर्फ एक चीज चाहते हैं तो more often than not…वो चीज आपको मिल जाती है. जैसे छोटे बच्चों को देख लीजिये वे न past में जीते हैं न future में, वे हमेशा present में जीते हैं…और जब उन्हें खेलने के लिए कोई खिलौना चाहिए होता है या खाने के लिए कोई टॉफ़ी चाहिए होती है…तो उनका पूरा ध्यान, उनकी पूरी शक्ति बस उसी एक चीज को पाने में लग जाती है and as a result वे उस चीज को पा लेते हैं.
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इसलिए सफलता पाने के लिए FOCUS बहुत ज़रूरी है, सफलता को पाने की जो चाहता है उसमे intensity होना बहुत ज़रूरी है..और जब आप वो फोकस और वो इंटेंसिटी पा लेते हैं तो सफलता आपको मिल ही जाती है.
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<hr alt="ज़िन्दगी के पत्थर, कंकड़ और रेत" class="system-pagebreak" title="ज़िन्दगी के पत्थर, कंकड़ और रेत" />
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<span style="color:#0000CD;"><span style="font-size:20px;"><strong>ज़िन्दगी के पत्थर, कंकड़ और रेत</strong></span></span>
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Philosophy के एक professor ने कुछ चीजों के साथ class में प्रवेश किया. जब class शुरू हुई तो उन्होंने एक बड़ा सा खाली शीशे का जार लिया और उसमे पत्थर के बड़े-बड़े टुकड़े भरने लगे. फिर उन्होंने students से पूछा कि क्या जार भर गया है ? और सभी ने कहा “हाँ”.
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तब प्रोफ़ेसर ने छोटे-छोटे कंकडों से भरा एक box लिया और उन्हें जार में भरने लगे. जार को थोडा हिलाने पर ये कंकड़ पत्थरों के बीच settle हो गए. एक बार फिर उन्होंने छात्रों से पूछा कि क्या जार भर गया है? और सभी ने हाँ में उत्तर दिया.
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तभी professor ने एक sand box निकाला और उसमे भरी रेत को जार में डालने लगे. रेत ने बची-खुची जगह भी भर दी. और एक बार फिर उन्होंने पूछा कि क्या जार भर गया है? और सभी ने एक साथ उत्तर दिया , ” हाँ”
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फिर professor ने समझाना शुरू किया, ” मैं चाहता हूँ कि आप इस बात को समझें कि ये जार आपकी life को represent करता है. बड़े-बड़े पत्थर आपके जीवन की ज़रूरी चीजें हैं- आपकी family,आपका partner,आपकी health, आपके बच्चे – ऐसी चीजें कि अगर आपकी बाकी सारी चीजें खो भी जाएँ और सिर्फ ये रहे तो भी आपकी ज़िन्दगी पूर्ण रहेगी.
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ये कंकड़ कुछ अन्य चीजें हैं जो matter करती हैं- जैसे कि आपकी job, आपका घर, इत्यादि.
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और ये रेत बाकी सभी छोटी-मोटी चीजों को दर्शाती है.
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अगर आप जार को पहले रेत से भर देंगे तो कंकडों और पत्थरों के लिए कोई जगह नहीं बचेगी. यही आपकी life के साथ होता है. अगर आप अपनी सारा समय और उर्जा छोटी-छोटी चीजों में लगा देंगे तो आपके पास कभी उन चीजों के लिए time नहीं होगा जो आपके लिए important हैं. उन चीजों पर ध्यान दीजिये जो आपकी happiness के लिए ज़रूरी हैं.बच्चों के साथ खेलिए, अपने partner के साथ dance कीजिये. काम पर जाने के लिए, घर साफ़ करने के लिए,party देने के लिए, हमेशा वक़्त होगा. पर पहले पत्थरों पर ध्यान दीजिये – ऐसी चीजें जो सचमुच matter करती हैं . अपनी priorities set कीजिये. बाकी चीजें बस रेत हैं.”
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<hr alt="गुरु-दक्षिणा - guru Shishya story" class="system-pagebreak" title="गुरु-दक्षिणा - guru Shishya story" />
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<span style="color:#0000CD;"><span style="font-size:20px;"><strong>गुरु-दक्षिणा - guru Shishya story</strong></span></span>
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एक बार एक शिष्य ने विनम्रतापूर्वक अपने गुरु जी से पूछा- ‘गुरु जी,कुछ लोग कहते हैं कि जीवन एक संघर्ष है, कुछ अन्य कहते हैं कि जीवन एक खेल है और कुछ जीवन को एक उत्सव की संज्ञा देते हैं | इनमें कौन सही है?’
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गुरु जी ने तत्काल बड़े ही धैर्यपूर्वक उत्तर दिया-
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<blockquote>
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पुत्र,जिन्हें गुरु नहीं मिला उनके लिए जीवन एक संघर्ष है; जिन्हें गुरु मिल गया उनका जीवन एक खेल है और जो लोग गुरु द्वारा बताये गए मार्ग पर चलने लगते हैं, मात्र वे ही जीवन को एक उत्सव का नाम देने का साहस जुटा पाते हैं
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</blockquote>
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यह उत्तर सुनने के बाद भी शिष्य पूरी तरह से संतुष्ट न था| गुरु जी को इसका आभास हो गया |वे कहने लगे-‘लो, तुम्हें इसी सन्दर्भ में एक कहानी सुनाता हूँ|ध्यान से सुनोगे तो स्वयं ही अपने प्रश्न का उत्तर पा सकोगे |’
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<hr alt="ग्लास को नीचे रख दीजिये" class="system-pagebreak" title="ग्लास को नीचे रख दीजिये" />
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<span style="color:#0000CD;"><span style="font-size:20px;"><strong>ग्लास को नीचे रख दीजिये</strong></span></span>
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एक प्रोफ़ेसर ने अपने हाथ में पानी से भरा एक glass पकड़ते हुए class शुरू की . उन्होंने उसे ऊपर उठा कर सभी students को दिखाया और पूछा , ” आपके हिसाब से glass का वज़न कितना होगा?”
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’50gm….100gm…125gm’…छात्रों ने उत्तर दिया.
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” जब तक मैं इसका वज़न ना कर लूँ मुझे इसका सही वज़न नहीं बता सकता”. प्रोफ़ेसर ने कहा. ” पर मेरा सवाल है:
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यदि मैं इस ग्लास को थोड़ी देर तक इसी तरह उठा कर पकडे रहूँ तो क्या होगा ?”
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‘कुछ नहीं’ …छात्रों ने कहा.
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‘अच्छा , अगर मैं इसे मैं इसी तरह एक घंटे तक उठाये रहूँ तो क्या होगा ?” , प्रोफ़ेसर ने पूछा.
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आपका हाथ दर्द होने लगेगा’, एक छात्र ने कहा.
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” तुम सही हो, अच्छा अगर मैं इसे इसी तरह पूरे दिन उठाये रहूँ तो का होगा?”
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” आपका हाथ सुन्न हो सकता है, आपके muscle में भारी तनाव आ सकता है , लकवा मार सकता है और पक्का आपको hospital जाना पड़ सकता है”….किसी छात्र ने कहा, और बाकी सभी हंस पड़े…
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“बहुत अच्छा , पर क्या इस दौरान glass का वज़न बदला?” प्रोफ़ेसर ने पूछा.
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उत्तर आया ..”नहीं”
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” तब भला हाथ में दर्द और मांशपेशियों में तनाव क्यों आया?”
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Students अचरज में पड़ गए.
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फिर प्रोफ़ेसर ने पूछा ” अब दर्द से निजात पाने के लिए मैं क्या करूँ?”
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” ग्लास को नीचे रख दीजिये! एक छात्र ने कहा.
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” बिलकुल सही!” प्रोफ़ेसर ने कहा.
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Life की problems भी कुछ इसी तरह होती हैं. इन्हें कुछ देर तक अपने दिमाग में रखिये और लगेगा की सब कुछ ठीक है.उनके बारे में ज्यदा देर सोचिये और आपको पीड़ा होने लगेगी.और इन्हें और भी देर तक अपने दिमाग में रखिये और ये आपको paralyze करने लगेंगी. और आप कुछ नहीं कर पायेंगे.
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अपने जीवन में आने वाली चुनातियों और समस्याओं के बारे में सोचना ज़रूरी है, पर उससे भी ज्यादा ज़रूरी है दिन के अंत में सोने जाने से पहले उन्हें नीचे रखना.इस तरह से, आप stressed नहीं रहेंगे, आप हर रोज़ मजबूती और ताजगी के साथ उठेंगे और सामने आने वाली किसी भी चुनौती का सामना कर सकेंगे.
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<hr alt="छत्रपति शिवाजी के जीवन के तीन प्रेरणादायक प्रसंग" class="system-pagebreak" title="छत्रपति शिवाजी के जीवन के तीन प्रेरणादायक प्रसंग" />
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<span style="color:#0000CD;"><span style="font-size:20px;">छत्रपति शिवाजी के जीवन के तीन प्रेरणादायक प्रसंग</span></span>
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19th Feb को शिवाजी जयंती है इस शुभ अवसर पर मैं आपके साथ उनके जीवन के तीन प्रेरणादायक प्रसंग साझा कर रहा हूँ. आइये हम भारत वर्ष के इस वीर सपूत को नमन करें और उनके जीवन से शिक्षा ले भारत माता की सेवा में अग्रसर हों.
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शिवाजी के समक्ष एक बार उनके सैनिक किसी गाँव के मुखिया को पकड़ कर ले लाये . मुखिया बड़ी-घनी मूछों वाला बड़ा ही रसूखदार व्यक्ति था, पर आज उसपर एक विधवा की इज्जत लूटने का आरोप साबित हो चुका था. उस समय शिवाजी मात्र १४ वर्ष के थे, पर वह बड़े ही बहादुर, निडर और न्याय प्रिय थे और विशेषकर महिलाओं के प्रति उनके मन में असीम सम्मान था.
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उन्होंने तत्काल अपना निर्णय सुना दिया , ” इसके दोनों हाथ , और पैर काट दो , ऐसे जघन्य अपराध के लिए इससे कम कोई सजा नहीं हो सकती .”
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शिवाजी जीवन पर्यन्त साहसिक कार्य करते रहे और गरीब, बेसहारा लोगों को हमेशा प्रेम और सम्मान देते रहे.
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शिवाजी के साहस का एक और किस्सा प्रसिद्द है . तब पुणे के करीब नचनी गाँव में एक भयानक चीते का आतंक छाया हुआ था . वह अचानक ही कहीं से हमला करता था और जंगल में ओझल हो जाता. डरे हुए गाँव वाले अपनी समस्या लेकर शिवाजी के पास पहुंचे .
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” हमें उस भयानक चीते से बचाइए . वह ना जाने कितने बच्चों को मार चुका है , ज्यादातर वह तब हमला करता है जब हम सब सो रहे होते हैं.”
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शिवाजी ने धैर्यपूर्वक ग्रामीणों को सुना , ” आप लोग चिंता मत करिए , मैं यहाँ आपकी मदद करने के लिए ही हूँ .”
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शिवाजी अपने सिपाहियों यसजी और कुछ सैनिकों के साथ जंगल में चीते को मारने के लिए निकल पड़े . बहुत ढूँढने के बाद जैसे ही वह सामने आया , सैनिक डर कर पीछे हट गए , पर शिवाजी और यसजी बिना डरे उसपर टूट पड़े और पलक झपकते ही उस मार गिराया. गाँव वाले खुश हो गए और “जय शिवाजी ” के नारे लगाने लगे.
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शिवाजी के पिता का नाम शाहजी था . वह अक्सर युद्ध लड़ने के लिए घर से दूर रहते थे. इसलिए उन्हें शिवाजी के निडर और पराक्रमी होने का अधिक ज्ञान नहीं था. किसी अवसर पर वह शिवाजी को बीजापुर के सुलतान के दरबार में ले गए . शाहजी ने तीन बार झुककर सुलतान को सलाम किया, और शिवाजी से भी ऐसा ही करने को कहा . लेकिन , शिवाजी अपना सर ऊपर उठाये सीधे खड़े रहे . विदेशी शासक के सामने वह किसी भी कीमत पर सर झुकाने को तैयार नहीं हुए. और शेर की तरह शान से चलते हुए दरबार से वापस चले गए.
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<hr alt="छत्रपति शिवाजी महाराज के प्रेरक कथन - Shivaji Maharaj Quotes in Hindi" class="system-pagebreak" title="छत्रपति शिवाजी महाराज के प्रेरक कथन - Shivaji Maharaj Quotes in Hindi" />
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<span style="color:#0000CD;"><span style="font-size:20px;"><strong>छत्रपति शिवाजी महाराज के प्रेरक कथन - Shivaji Maharaj Quotes in Hindi</strong></span></span>
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<strong>स्वतंत्रता एक वरदान है, जिसे पाने का अधिकारी हर कोई है।</strong>
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</blockquote>
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<strong>यदि एक पेड़, जोकि इतनी उच्च जीवित सत्ता नहीं है, इतना सहिष्णु और दयालु हो सकता है कि किसी के द्वारा मारे जाने पर भी उसे मीठे आम दे; तो एक राजा होकर, क्या मुझे एक पेड़ से अधिक सहिष्णु और दयालु नहीं होना चाहिए?</strong>
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</blockquote>
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<strong>नारी के सभी अधिकारों में, सबसे महान अधिकार माँ बनने का है.</strong>
</p>
</blockquote>
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<strong>Quote 4: कभी अपना सर मत झुकाओ, हमेशा उसे ऊँचा रखो.</strong>
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</blockquote>
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<strong>भले हर किसी के हाथ में तलवार हो, यह इच्छाशक्ति है जो एक सत्ता स्थापित करती है.</strong>
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</blockquote>
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<strong>वास्तव में, इस्लाम और हिन्दू धर्म अलग-अलग मामले हैं. वे उस सच्चे दिव्य चित्रकार द्वारा रंगों को मिलाने और खाका तैयार करने के लिए प्रयोग किये जाते हैं. यदि यह एक मस्जिद है, तो उसकी याद में ईबादत के लिए आवाज़ दी जाती है. यही यह एक मंदिर है तो सिर्फ उसी के लिए घंटियाँ बजाई जाती हैं.</strong>
</p>
</blockquote>
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<strong>एक छोटा कदम छोटे लक्ष्य पर, बाद मे विशाल लक्ष्य भी हासिल करा देता है।</strong>
</p>
</blockquote>
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<strong>जरुरी नही कि विपत्ति का सामना, दुश्मन के सम्मुख से ही करने मे वीरता हो। वीरता तो<br />
विजय मे है।</strong>
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</blockquote>
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<strong>जब हौसले बुलन्द हो, तो पहाङ भी एक मिट्टी का ढेर लगता है।</strong>
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</blockquote>
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<strong>शत्रु को कमजोर न समझो, तो अत्यधिक बलिष्ठ समझ कर डरो भी मत।</strong>
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</blockquote>
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<strong>जब लक्ष्य जीत की हो, तो हासिल करने के लिए कितना भी परिश्रम, कोई भी मूल्य क्यों न हो उसे चुकाना ही पड़ता है।</strong>
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</blockquote>
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<strong>सर्वप्रथम राष्ट्र, फिर गुरु, फिर माता-पिता, फिर परमेश्वर।अतः पहले खुद को नही राष्ट्र को देखना चाहिए।</strong>
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</blockquote>
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<strong>अगर मनुष्य के पास आत्मबल है, तो वो समस्त संसार पर अपने हौसले से विजय पताका लहरा सकता है।</strong>
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</blockquote>
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<strong>जो मनुष्य समय के कुच्रक मे भी पूरी शिद्दत से, अपने कार्यो मे लगा रहता है। उसके लिए समय खुद बदल जाता है।</strong>
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</blockquote>
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<strong>शत्रु चाहे कितना ही बलवान क्यो न हो, उसे अपने इरादों और उत्साह मात्र से भी परास्त किया जा सकता है।</strong>
</p>
</blockquote>
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<strong>एक सफल मनुष्य अपने कर्तव्य की पराकाष्ठा के लिए, समुचित मानव जाति की चुनौती स्वीकार कर लेता है।</strong>
</p>
</blockquote>
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<strong>आत्मबल, सामर्थ्य देता है, और सामर्थ्य, विद्या प्रदान करती है। विद्या, स्थिरता प्रदान करती है, और स्थिरता, विजय की तरफ ले जाती है।</strong>
</p>
</blockquote>
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<strong>एक पुरुषार्थी भी, एक तेजस्वी विद्वान के सामने झुकता है। क्योंकि पुरुर्षाथ भी विद्या से ही आती है।</strong>
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</blockquote>
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<strong>जो धर्म, सत्य, क्षेष्ठता और परमेश्वर के सामने झुकता है। उसका आदर समस्त संसार करता है।</strong>
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</blockquote>
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<strong>जीवन में सिर्फ अच्छे दिन की आशा नही रखनी चाहिए, क्योंकि दिन और रात की तरह अच्छे दिनों को भी बदलना पड़ता है।</strong>
</p>
</blockquote>
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<strong>बदला लेने की भावना मनुष्य को जलाती रहती है, संयम ही प्रतिशोध को काबू करने का एक मात्र उपाय है।</strong>
</p>
</blockquote>
<blockquote>
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<strong>अपने आत्मबल को जगाने वाला, खुद को पहचानने वाला, और मानव जाति के कल्याण की सोच रखने वाला, पूरे विश्व पर राज्य कर सकता है।</strong>
</p>
</blockquote>
<blockquote>
<p>
<strong>कोई भी कार्य करने से पहले उसका परिणाम सोच लेना हितकर होता है; क्योंकि हमारी आने वाली पीढ़ी उसी का अनुसरण करती है।</strong>
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</blockquote>
<blockquote>
<p>
<strong>जो धर्म, सत्य, क्षेष्ठता और परमेश्वर के सामने झुकता है। उसका आदर समस्त संसार करता है।</strong>
</p>
</blockquote>
<blockquote>
<p>
<strong>अंगूर को जब तक न पेरो वो मीठी मदिरा नही बनती, वैसे ही मनुष्य जब तक कष्ट मे पिसता नही, तब तक उसके अन्दर की सर्वोत्तम प्रतिभा बाहर नही आती।</strong>
</p>
</blockquote>
<p>
</p>
<hr alt="शिवाजी से सम्बंधित रोचक तथ्य" class="system-pagebreak" title="शिवाजी से सम्बंधित रोचक तथ्य" />
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<span style="color:#0000CD;"><span style="font-size:20px;"><strong>शिवाजी से सम्बंधित रोचक तथ्य</strong></span></span>
</p>
<ol>
<li>
<span style="font-size:14px;"><strong>शिवाजी का पूरा नाम शिवाजी राजे भोसले था और आगे चल कर वह छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम से प्रसिद्द हुए.</strong></span>
</li>
<li>
<span style="font-size:14px;"><strong>कई लोग मानते हैं कि शिवाजी का नाम भगवान् शिव के नाम से लिया गया है लेकिन दरअसल यह नाम एक अन्य क्षेत्रीय देवता शिवई के नाम से लिया गया है.</strong></span>
</li>
<li>
<span style="font-size:14px;"><strong>शिवाजी हिन्दू धर्म के महान रक्षक थे, पर कई लोग इसका अर्थ यह लगा लेते हैं कि वह अन्य धर्मों के शत्रु थे. पर तथ्य यह है कि शिवाजी एक पूर्णतः धर्म-निरपेक्ष शासक थे. उनकी सेना में कुछ प्रमुख पदों पर मुसलमान भी कार्यरत थे.</strong></span>
</li>
<li>
<span style="font-size:14px;"><strong>शिवाजी अन्य धर्मों के लोगों को हिन्दू धर्म अपनाने में सहायक रहते थे, पर वह इस काम के लिए किसी तरह का दबाव नहीं बनाते थे.</strong></span>
</li>
<li>
<span style="font-size:14px;"><strong>शिवाजी ने अपनी बेटी का विवाह भी एक ऐसे व्यक्ति से किया था जो मूलतः हिन्दू नहीं था पर बाद में उसने हिन्दू धर्म अपना लिया था.</strong></span>
</li>
<li>
<span style="font-size:14px;"><strong>शिवाजी की लड़ाइयों को धर्म-युद्ध से जोड़कर देखा जाता है, जबकि वह अपने राज्य की रक्षा करने के लिए युद्ध करते थे.</strong></span>
</li>
<li>
<span style="font-size:14px;"><strong>शिवाजी एक व्यवहारिक योद्धा थे और बड़ी-बड़ी सेनाओं को हारने के लिए वे गोरिल्ला युद्ध का प्रयोग करते थे.</strong></span>
</li>
<li>
<span style="font-size:14px;"><strong>शिवाजी सैनिकों के जान की कीमत अच्छी तरह समझते थे इसलिए वह कमजोर पड़ने पर मैदान छोड़ने और फिर से इकठ्ठा हो कर युद्ध करने के पक्ष में रहते थे.</strong></span>
</li>
<li>
<span style="font-size:14px;"><strong>शिवाजी ने अपनी सीमाओं की रक्षा करने के लिए नौसेना भी गठित कर रखी थी. इससे उनकी दूरदर्शिता और युद्ध-कौशल का अंदाजा लगाया जा सकता है.</strong></span>
</li>
<li>
<span style="font-size:14px;"><strong>एक बार शिवाजी ने अपने से कहीं लम्बे-चौड़े और बलशाली सेनापति अफज़ल खान को आमने-सामने के मुकाबले में हरा दिया था. शिवाजी को शक था कि अफज़ल खान उन पर हमला करेगा इसलिए उन्होंने कपड़ों के नीचे अपना कवच पहन रखा था और सचमुच अफज़ल खान ने उनपर धावा बोल दिया, पर शिवाजी ने उसे वहीँ ढेर कर दिया.</strong></span>
</li>
<li>
<span style="font-size:14px;"><strong>शिवाजी को “पहाड़ी चूहा” या “माउंटेन रैट” कह कर भी पुकारा जाता था क्योंकि वह अपने क्षेत्र को बहुत अच्छी तरह से जानते थे और कहीं से कहीं निकल कर अचानक ही हमला कर देते थे या गायब हो जाते थे.</strong></span>
</li>
<li>
<span style="font-size:14px;"><strong>शिवाजी को “एस्केप आर्टिस्ट” यानी गायब होने वाला कलाकार भी कहा जाता है. उन्होंने दो मौकों पर, एक बार औरंगजेब की आगरा किले की कैद से तो एक बार सिद्दी जौहर की पनाहला किले की कैद से आश्चर्यजनक रूप से फरार हो गए थे.</strong></span>
</li>
<li>
<span style="font-size:14px;"><strong>शिवाजी औरतों पर किसी भी तरह के अत्याचार के सख्त खिलाफ थे, फिर चाहे वो दुशमन की ओर की औरतें ही क्यों ना हों.</strong></span>
</li>
<li>
<span style="font-size:14px;"><strong>औरतों के सम्मान से खिलवाड़ करने वाला चाहे जो भी हो, उसे वह कठोर सजा दिया करते थे.</strong></span>
</li>
<li>
<span style="font-size:14px;"><strong>शिवाजी बड़े दयालु थे. युद्ध में जो लोग आत्म-समर्पण कर देते थे वे उन्हें अपनी सेना में शामिल कर लेते थे.</strong></span>
</li>
<li>
<span style="font-size:14px;"><strong>शिवाजी के ह्रदय में आम लोगों के लिए प्रेम और सम्मान था. वे कभी भी घरों या धार्मिक स्थलों पर लूट-पाट नहीं होने देते थे. यहाँ तक कि</strong></span>
</li>
<li>
<span style="font-size:14px;"><strong>खाने-पीने की सामग्री कम होने पर वे सैनिकों से सामान खरीद कर ही लाने को कहते थे.</strong></span>
</li>
<li>
<span style="font-size:14px;"><strong>शिवाजी युद्ध में जीते गए खजाने का बहीखाता बनवाते थे और हर एक चीज का उचित हिसाब रखते थे.</strong></span>
</li>
<li>
<span style="font-size:14px;"><strong>जब शिवाजी महज 15 साल के थे तभी उन्होंने बीजापुर के सेनापति को लालच देकर तोरणा का किला अपने कब्जे में ले लिया था.</strong></span>
</li>
<li>
<span style="font-size:14px;"><strong>शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक सन 1674 में रायगढ़ में हुआ. यहीं पर उन्हें छत्रपति की उपाधि मिली.</strong></span>
</li>
<li>
<span style="font-size:14px;"><strong>संत रामदास शिवाजी के आध्यात्मिक गुरु भी थे साथ ही वे संत तुकाराम से भी अत्यधिक प्रभावित थे.</strong></span>
</li>
</ol>
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<hr alt="चिल्लाओ मत - Chillao mat" class="system-pagebreak" title="चिल्लाओ मत - Chillao mat" />
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<span style="color:#0000CD;"><span style="font-size:20px;"><strong>चिल्लाओ मत - Chillao mat</strong></span></span>
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एक हिन्दू सन्यासी अपने शिष्यों के साथ गंगा नदी के तट पर नहाने पहुंचा. वहां एक ही परिवार के कुछ लोग अचानक आपस में बात करते-करते एक दूसरे पर क्रोधित हो उठे और जोर-जोर से चिल्लाने लगे .
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एक हिन्दू सन्यासी अपने शिष्यों के साथ गंगा नदी के तट पर नहाने पहुंचा. वहां एक ही परिवार के कुछ लोग अचानक आपस में बात करते-करते एक दूसरे पर क्रोधित हो उठे और जोर-जोर से चिल्लाने लगे .
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संयासी यह देख तुरंत पलटा और अपने शिष्यों से पुछा ;
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” क्रोध में लोग एक दूसरे पर चिल्लाते क्यों हैं ?’
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शिष्य कुछ देर सोचते रहे ,एक ने उत्तर दिया, ” क्योंकि हम क्रोध में शांति खो देते हैं इसलिए !”
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” पर जब दूसरा व्यक्ति हमारे सामने ही खड़ा है तो भला उस पर चिल्लाने की क्या ज़रुरत है , जो कहना है वो आप धीमी आवाज़ में भी तो कह सकते हैं “, सन्यासी ने पुनः प्रश्न किया .
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कुछ और शिष्यों ने भी उत्तर देने का प्रयास किया पर बाकी लोग संतुष्ट नहीं हुए .
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अंततः सन्यासी ने समझाया …
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“जब दो लोग आपस में नाराज होते हैं तो उनके दिल एक दूसरे से बहुत दूर हो जाते हैं . और इस अवस्था में वे एक दूसरे को बिना चिल्लाये नहीं सुन सकते ….वे जितना अधिक क्रोधित होंगे उनके बीच की दूरी उतनी ही अधिक हो जाएगी और उन्हें उतनी ही तेजी से चिल्लाना पड़ेगा.
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क्या होता है जब दो लोग प्रेम में होते हैं ? तब वे चिल्लाते नहीं बल्कि धीरे-धीरे बात करते हैं , क्योंकि उनके दिल करीब होते हैं , उनके बीच की दूरी नाम मात्र की रह जाती है.”
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सन्यासी ने बोलना जारी रखा ,” और जब वे एक दूसरे को हद से भी अधिक चाहने लगते हैं तो क्या होता है ? तब वे बोलते भी नहीं , वे सिर्फ एक दूसरे की तरफ देखते हैं और सामने वाले की बात समझ जाते हैं.”
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“प्रिय शिष्यों ; जब तुम किसी से बात करो तो ये ध्यान रखो की तुम्हारे ह्रदय आपस में दूर न होने पाएं , तुम ऐसे शब्द मत बोलो जिससे तुम्हारे बीच की दूरी बढे नहीं तो एक समय ऐसा आएगा कि ये दूरी इतनी अधिक बढ़ जाएगी कि तुम्हे लौटने का रास्ता भी नहीं मिलेगा. इसलिए चर्चा करो, बात करो लेकिन चिल्लाओ मत.”
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<hr alt="कद्दू की तीर्थयात्रा - kaddu ki tirth yatra" class="system-pagebreak" title="कद्दू की तीर्थयात्रा - kaddu ki tirth yatra" />
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<span style="color:#0000CD;"><span style="font-size:20px;"><strong>कद्दू की तीर्थयात्रा - kaddu ki tirth yatra</strong></span></span>
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हमारे यहाँ तीर्थ यात्रा का बहुत ही महत्त्व है। पहले के समय यात्रा में जाना बहुत कठिन था। पैदल या तो
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बैल गाड़ी में यात्रा की जाती थी। थोड़े थोड़े अंतर पे रुकना होता था। विविध प्रकार के लोगो से मिलना होता था, समाज का दर्शन होता था। विविध बोली और विविध रीति-रीवाज से परिचय होता था। कंई कठिनाईओ से गुजरना पड़ता, कंई अनुभव भी प्राप्त होते थे।
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एकबार तीर्थ यात्रा पे जानेवाले लोगो का संघ संत तुकाराम जी के पास जाकर उनके साथ चलनेकी प्रार्थना की। तुकारामजी ने अपनी असमर्थता बताई। उन्होंने तीर्थयात्रियो को एक कड़वा कद्दू देते हुए कहा : “मै तो आप लोगो के साथ आ नहीं सकता लेकिन आप इस कद्दू को साथ ले जाईए और जहाँ – जहाँ भी स्नान करे, इसे भी पवित्र जल में स्नान करा लाये।”
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लोगो ने उनके गूढार्थ पे गौर किये बिना ही वह कद्दू ले लिया और जहाँ – जहाँ गए, स्नान किया वहाँ – वहाँ स्नान करवाया; मंदिर में जाकर दर्शन किया तो उसे भी दर्शन करवाया। ऐसे यात्रा पूरी होते सब वापस आए और उन लोगो ने वह कद्दू संतजी को दिया। तुकारामजी ने सभी यात्रिओ को प्रीतिभोज पर आमंत्रित किया। तीर्थयात्रियो को विविध पकवान परोसे गए। तीर्थ में घूमकर आये हुए कद्दूकी सब्जी विशेष रूपसे बनवायी गयी थी। सभी यात्रिओ ने खाना शुरू किया और सबने कहा कि “यह सब्जी कड़वी है।” तुकारामजी ने आश्चर्य बताते कहा कि “यह तो उसी कद्दू से बनी है, जो तीर्थ स्नान कर आया है। बेशक यह तीर्थाटन के पूर्व कड़वा था, मगर तीर्थ दर्शन तथा स्नान के बाद भी इसी में कड़वाहट है !”
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यह सुन सभी यात्रिओ को बोध हो गया कि ‘हमने तीर्थाटन किया है लेकिन अपने मन को एवं स्वभाव को सुधारा नहीं तो तीर्थयात्रा का अधिक मूल्य नहीं है। हम भी एक कड़वे कद्दू जैसे कड़वे रहकर वापस आये है।’
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<hr alt="मकड़ी, चींटी और जाला" class="system-pagebreak" title="मकड़ी, चींटी और जाला" />
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<span style="color:#0000CD;"><span style="font-size:20px;"><strong>मकड़ी, चींटी और जाला</strong></span></span>
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एक मकड़ी थी. उसने आराम से रहने के लिए एक शानदार जाला बनाने का विचार किया और सोचा की इस जाले मे खूब कीड़ें, मक्खियाँ फसेंगी और मै उसे आहार बनाउंगी और मजे से रहूंगी . उसने कमरे के एक कोने को पसंद किया और वहाँ जाला बुनना शुरू किया. कुछ देर बाद आधा जाला बुन कर तैयार हो गया. यह देखकर वह मकड़ी काफी खुश हुई कि तभी अचानक उसकी नजर एक बिल्ली पर पड़ी जो उसे देखकर हँस रही थी.
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मकड़ी को गुस्सा आ गया और वह बिल्ली से बोली , ” हँस क्यो रही हो?”
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“हँसू नही तो क्या करू.” , बिल्ली ने जवाब दिया , ” यहाँ मक्खियाँ नही है ये जगह तो बिलकुल साफ सुथरी है, यहाँ कौन आयेगा तेरे जाले मे.”
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ये बात मकड़ी के गले उतर गई. उसने अच्छी सलाह के लिये बिल्ली को धन्यवाद दिया और जाला अधूरा छोड़कर दूसरी जगह तलाश करने लगी. उसने ईधर ऊधर देखा. उसे एक खिड़की नजर आयी और फिर उसमे जाला बुनना शुरू किया कुछ देर तक वह जाला बुनती रही , तभी एक चिड़िया आयी और मकड़ी का मजाक उड़ाते हुए बोली , ” अरे मकड़ी , तू भी कितनी बेवकूफ है.”
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“क्यो ?”, मकड़ी ने पूछा.
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चिड़िया उसे समझाने लगी , ” अरे यहां तो खिड़की से तेज हवा आती है. यहा तो तू अपने जाले के साथ ही उड़ जायेगी.”
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मकड़ी को चिड़िया की बात ठीक लगीँ और वह वहाँ भी जाला अधूरा बना छोड़कर सोचने लगी अब कहाँ जाला बनायाँ जाये. समय काफी बीत चूका था और अब उसे भूख भी लगने लगी थी .अब उसे एक आलमारी का खुला दरवाजा दिखा और उसने उसी मे अपना जाला बुनना शुरू किया. कुछ जाला बुना ही था तभी उसे एक काक्रोच नजर आया जो जाले को अचरज भरे नजरो से देख रहा था.
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मकड़ी ने पूछा – ‘इस तरह क्यो देख रहे हो?’
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काक्रोच बोला-,” अरे यहाँ कहाँ जाला बुनने चली आयी ये तो बेकार की आलमारी है. अभी ये यहाँ पड़ी है कुछ दिनों बाद इसे बेच दिया जायेगा और तुम्हारी सारी मेहनत बेकार चली जायेगी. यह सुन कर मकड़ी ने वहां से हट जाना ही बेहतर समझा .
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बार-बार प्रयास करने से वह काफी थक चुकी थी और उसके अंदर जाला बुनने की ताकत ही नही बची थी. भूख की वजह से वह परेशान थी. उसे पछतावा हो रहा था कि अगर पहले ही जाला बुन लेती तो अच्छा रहता. पर अब वह कुछ नहीं कर सकती थी उसी हालत मे पड़ी रही.
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जब मकड़ी को लगा कि अब कुछ नहीं हो सकता है तो उसने पास से गुजर रही चींटी से मदद करने का आग्रह किया .
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चींटी बोली, ” मैं बहुत देर से तुम्हे देख रही थी , तुम बार- बार अपना काम शुरू करती और दूसरों के कहने पर उसे अधूरा छोड़ देती . और जो लोग ऐसा करते हैं , उनकी यही हालत होती है.” और ऐसा कहते हुए वह अपने रास्ते चली गई और मकड़ी पछताती हुई निढाल पड़ी रही.
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दोस्तों , हमारी ज़िन्दगी मे भी कई बार कुछ ऐसा ही होता है. हम कोई काम start करते है. शुरू -शुरू मे तो हम उस काम के लिये बड़े उत्साहित रहते है पर लोगो के comments की वजह से उत्साह कम होने लगता है और हम अपना काम बीच मे ही छोड़ देते है और जब बाद मे पता चलता है कि हम अपने सफलता के कितने नजदीक थे तो बाद मे पछतावे के अलावा कुछ नही बचता.
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<hr alt="स्वामी जी का उपदेश - swami ji ka updesh" class="system-pagebreak" title="स्वामी जी का उपदेश - swami ji ka updesh" />
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<span style="color:#0000CD;"><span style="font-size:20px;"><strong>स्वामी जी का उपदेश - swami ji ka updesh</strong></span></span>
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एक बार समर्थ स्वामी रामदासजी भिक्षा माँगते हुए एक घर के सामने खड़े हुए और उन्होंने आवाज लगायी– “जय जय रघुवीर समर्थ !” घर से महिला बाहर आयी। उसने उनकी झोलीमे भिक्षा डाली और कहा, “महात्माजी, कोई उपदेश दीजिए !”स्वामीजी बोले, “आज नहीं, कल दूँगा।”
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दूसरे दिन स्वामीजी ने पुन: उस घर के सामने आवाज दी – “जय जय रघुवीर समर्थ !”उस घर की स्त्रीने उस दिन खीर बनायीं थी, जिसमे बादाम-पिस्ते भी डाले थे।वह खीर का कटोरा लेकर बाहर आयी। स्वामीजीने अपना कमंडल आगे कर दिया। वह स्त्री जब खीर डालने लगी, तो उसने देखा कि कमंडल में गोबर और कूड़ा भरा पड़ा है। उसके हाथ ठिठक गए। वह बोली, “महाराज ! यह कमंडल तो गन्दा है।”
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स्वामीजी बोले, “हाँ, गन्दा तो है, किन्तु खीर इसमें डाल दो।” स्त्री बोली, “नहीं महाराज, तब तो खीर ख़राब हो जायेगी। दीजिये यह कमंडल, में इसे शुद्ध कर लाती हूँ।”
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स्वामीजी बोले, मतलब जब यह कमंडल साफ़ हो जायेगा, तभी खीर डालोगी न ?”
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स्त्री ने कहा : “जी महाराज !”
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स्वामीजी बोले, “मेरा भी यही उपदेश है। मन में जब तक चिन्ताओ का कूड़ा-कचरा और बुरे संस्करो का गोबर भरा है, तब तक उपदेशामृत का कोई लाभ न होगा। यदि उपदेशामृत पान करना है, तो प्रथम अपने मन को शुद्ध करना चाहिए, कुसंस्कारो का त्याग करना चाहिए, तभी सच्चे सुख और आनन्द की प्राप्ति होगी।”
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<hr alt="मैं सबसे तेज दौड़ना चाहती हूँ - mai sabse tej dodna chahti hu" class="system-pagebreak" title="मैं सबसे तेज दौड़ना चाहती हूँ - mai sabse tej dodna chahti hu" />
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<span style="color:#0000CD;"><span style="font-size:20px;"><strong>मैं सबसे तेज दौड़ना चाहती हूँ - mai sabse tej dodna chahti hu</strong></span></span>
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विल्मा रुडोल्फ का जन्म टेनिसी के एक गरीब परिवार में हुआ था. चार साल की उम्र में उन्हें लाल बुखार के साथ डबल निमोनिया हो गया , जिस वजह से वह पोलियो से ग्रसित हो गयीं. उन्हें पैरों में ब्रेस पहनने पड़ते थे और डॉक्टरों के अनुसार अब वो कभी भी चल नहीं सकती थीं.लेकिन उनकी माँ हमेशा उनको प्रोत्साहित करती रहतीं और कहती कि भगवान् की दी हुई योग्यता ,दृढ़ता और विश्वास से वो कुछ भी कर सकती हैं.
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विल्मा बोलीं , ” मैं इस दुनिया कि सबसे तेज दौड़ने वाली महिला बनना चाहती हूँ .”
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डॉक्टरों की सलाह के विरूद्ध 9 साल की उम्र में उन्होंने ने अपने ब्रेस उतार फेंकें और अपना पहला कदम आगे बढाया जिसे डोक्टरों ने ही नामुमकिन बताया था . 13 साल की उम्र में उन्होंने पहली बार रेस में हिस्सा लिया और बहुत बड़े अन्तर से आखिरी स्थान पर आयीं. और उसके बाद वे अपनी दूसरी, तीसरी, और चौथी रेस में दौड़ीं और आखिरी आती रहीं , पर उन्होंने हार नहीं मानी वो दौड़ती रहीं और फिर एक दिन ऐसा आया कि वो रेस में फर्स्ट आ गयीं. 15 साल की उम्र में उन्होंने टेनिसी स्टेट यूनिवर्सिटी में दाखिल ले लिया , जहाँ उनकी मुलाकात एक कोच से हुई जिनका नाम एड टेम्पल था .
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उन्होंने ने कोच से कहा , ” मैं इस दुनिया की सबसे तेज धाविका बनना चाहती हूँ.”
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टेम्पल ने कहा ,” तुम्हारे अन्दर जिस तरह का जज़्बा हैं तुम्हे कोई रोक नहीं सकता , और उसके आलावा मैं भी तुम्हारी मदद करुगा.”
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देखते-देखते वो दिन आ गया जब विल्मा ओलंपिक्स में पहुँच गयीं जहाँ अच्छे से अच्छे एथलीटों के साथ उनका मुकाबला होना था , जिसमे कभी न हारने वाली युटा हीन भी शामिल थीं. पहले 100 मीटर रेस हुई , विल्मा ने युटा को हराकर गोल्ड मैडल जीता, फिर 200 मीटर का मुकाबला हुआ, इसमें भी विल्माने युटा को पीछे छोड़ दिया और अपना दूसरा गोल्ड मैडल जीत गयीं . तीसरा इवेंट 400 मीटर रिले रेस थी , जिसमे अक्सर सबसे तेज दौड़ने वाला व्यक्ति अंत में दौड़ता है . विल्मा और युटा भी अपनी-अपनी टीम्स में आखिरी में दौड़ रही थीं. रेस शुरू हुई , पहली तीन एथलीट्स ने आसानी से बेटन बदल लीं , पर जब विल्मा की बारी आई तो थोड़ी गड़बड़ हो गयी और बेटन गिरते-गिरते बची , इस बीच युटा आगे निकल गयी , विल्मा ने बिना देरी किये अपनी स्पीड बढ़ाई और मशीन की तरह दौड़ते हुए आगे निकल गयीं और युटा को हराते हुए अपना तीसरा गोल्ड मैडल जीत गयीं. यह इतिहास बन गया : कभी पोलियो से ग्रस्त रही महिला आज दुनिया की सबसे तेज धाविका बन चुकी थी.
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<hr alt="गुब्बारे वाला - gubarre wala" class="system-pagebreak" title="गुब्बारे वाला - gubarre wala" />
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<span style="color:#0000CD;"><span style="font-size:20px;"><strong>गुब्बारे वाला - gubarre wala</strong></span></span>
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एक आदमी गुब्बारे बेच कर जीवन-यापन करता था. वह गाँव के आस-पास लगने वाली हाटों में
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जाता और गुब्बारे बेचता . बच्चों को लुभाने के लिए वह तरह-तरह के गुब्बारे रखता …लाल, पीले ,हरे, नीले…. और जब कभी उसे लगता की बिक्री कम हो रही है वह झट से एक गुब्बारा हवा में छोड़ देता, जिसे उड़ता देखकर बच्चे खुश हो जाते और गुब्बारे खरीदने के लिए पहुँच जाते.
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इसी तरह तरह एक दिन वह हाट में गुब्बारे बेच रहा था और बिक्री बढाने के लिए बीच-बीच में गुब्बारे उड़ा रहा था. पास ही खड़ा एक छोटा बच्चा ये सब बड़ी जिज्ञासा के साथ देख रहा था . इस बार जैसे ही गुब्बारे वाले ने एक सफ़ेद गुब्बारा उड़ाया वह तुरंत उसके पास पहुंचा और मासूमियत से बोला, ” अगर आप ये काल वाला गुब्बारा छोड़ेंगे…तो क्या वो भी ऊपर जाएगा ?”
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गुब्बारा वाले ने थोड़े अचरज के साथ उसे देखा और बोला, ” हाँ बिलकुल जाएगा. बेटे ! गुब्बारे का ऊपर जाना इस बात पर नहीं निर्भर करता है कि वो किस रंग का है बल्कि इसपर निर्भर करता है कि उसके अन्दर क्या है .”
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Friends , ठीक इसी तरह हम इंसानों के लिए भी ये बात लागु होती है. कोई अपनी life में क्या achieve करेगा, ये उसके बाहरी रंग-रूप पर नहीं depend करता है , ये इस बात पर depend करता है कि उसके अन्दर क्या है. अंतत: हमारा attitude हमारा altitude decide करता है .
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<span style="color:#0000CD;"><span style="font-size:20px;">बोले हुए शब्द वापस नहीं आते</span></span>
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एक बार एक किसान ने अपने पडोसी को भला बुरा कह दिया, पर जब बाद में उसे अपनी गलती का एहसास हुआ तो वह एक संत के पास गया.उसने संत से अपने शब्द वापस लेने का उपाय पूछा.
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संत ने किसान से कहा , ” तुम खूब सारे पंख इकठ्ठा कर लो , और उन्हें शहर के बीचो-बीच जाकर रख दो .” किसान ने ऐसा ही किया और फिर संत के पास पहुंच गया.
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तब संत ने कहा , ” अब जाओ और उन पंखों को इकठ्ठा कर के वापस ले आओ”
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किसान वापस गया पर तब तक सारे पंख हवा से इधर-उधर उड़ चुके थे. और किसान खाली हाथ संत के पास पहुंचा. तब संत ने उससे कहा कि ठीक ऐसा ही तुम्हारे द्वारा कहे गए शब्दों के साथ होता है,तुम आसानी से इन्हें अपने मुख से निकाल तो सकते हो पर चाह कर भी वापस नहीं ले सकते.
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इस कहानी से क्या सीख मिलती है:
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कुछ कड़वा बोलने से पहले ये याद रखें कि भला-बुरा कहने के बाद कुछ भी कर के अपने शब्द वापस नहीं लिए जा सकते. हाँ, आप उस व्यक्ति से जाकर क्षमा ज़रूर मांग सकते हैं, और मांगनी भी चाहिए, पर human nature कुछ ऐसा होता है की कुछ भी कर लीजिये इंसान कहीं ना कहीं hurt हो ही जाता है.
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<li>
जब आप किसी को बुरा कहते हैं तो वह उसे कष्ट पहुंचाने के लिए होता है पर बाद में वो आप ही को अधिक कष्ट देता है. खुद को कष्ट देने से क्या लाभ, इससे अच्छा तो है की चुप रहा जाए.
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<hr alt="सफलता का रहस्य - Secret of Success" class="system-pagebreak" title="सफलता का रहस्य - Secret of Success" />
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<span style="color:#0000CD;"><span style="font-size:20px;"><strong>सफलता का रहस्य - Secret of Success</strong></span></span>
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एक बार एक नौजवान लड़के ने सुकरात से पूछा कि सफलता का रहस्य क्या है?
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सुकरात ने उस लड़के से कहा कि तुम कल मुझे नदी के किनारे मिलो. वो मिले. फिर सुकरात ने नौजवान से उनके साथ नदी की तरफ बढ़ने को कहा.और जब आगे बढ़ते-बढ़ते पानी गले तक पहुँच गया, तभी अचानक सुकरात ने उस लड़के का सर पकड़ के पानी में डुबो दिया.
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लड़का बाहर निकलने के लिए संघर्ष करने लगा , लेकिन सुकरात ताकतवर थे और उसे तब तक डुबोये रखे जब तक की वो नीला नहीं पड़ने लगा. फिर सुकरात ने उसका सर पानी से बाहर निकाल दिया और बाहर निकलते ही जो चीज उस लड़के ने सबसे पहले की वो थी हाँफते-हाँफते तेजी से सांस लेना.
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सुकरात ने पूछा ,” जब तुम वहाँ थे तो तुम सबसे ज्यादा क्या चाहते थे?”
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लड़के ने उत्तर दिया,”सांस लेना”
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सुकरात ने कहा,” यही सफलता का रहस्य है. जब तुम सफलता को उतनी ही बुरी तरह से चाहोगे जितना की तुम सांस लेना चाहते थे तो वो तुम्हे मिल जाएगी” इसके आलावा और कोई रहस्य नहीं है.
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दोस्तों, जब आप सिर्फ और सिर्फ एक चीज चाहते हैं तो more often than not…वो चीज आपको मिल जाती है. जैसे छोटे बच्चों को देख लीजिये वे न past में जीते हैं न future में, वे हमेशा present में जीते हैं…और जब उन्हें खेलने के लिए कोई खिलौना चाहिए होता है या खाने के लिए कोई टॉफ़ी चाहिए होती है…तो उनका पूरा ध्यान, उनकी पूरी शक्ति बस उसी एक चीज को पाने में लग जाती है and as a result वे उस चीज को पा लेते हैं.
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इसलिए सफलता पाने के लिए FOCUS बहुत ज़रूरी है, सफलता को पाने की जो चाहता है उसमे intensity होना बहुत ज़रूरी है..और जब आप वो फोकस और वो इंटेंसिटी पा लेते हैं तो सफलता आपको मिल ही जाती है.
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<hr alt="ज़िन्दगी के पत्थर, कंकड़ और रेत" class="system-pagebreak" title="ज़िन्दगी के पत्थर, कंकड़ और रेत" />
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<span style="color:#0000CD;"><span style="font-size:20px;"><strong>ज़िन्दगी के पत्थर, कंकड़ और रेत</strong></span></span>
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Philosophy के एक professor ने कुछ चीजों के साथ class में प्रवेश किया. जब class शुरू हुई तो उन्होंने एक बड़ा सा खाली शीशे का जार लिया और उसमे पत्थर के बड़े-बड़े टुकड़े भरने लगे. फिर उन्होंने students से पूछा कि क्या जार भर गया है ? और सभी ने कहा “हाँ”.
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तब प्रोफ़ेसर ने छोटे-छोटे कंकडों से भरा एक box लिया और उन्हें जार में भरने लगे. जार को थोडा हिलाने पर ये कंकड़ पत्थरों के बीच settle हो गए. एक बार फिर उन्होंने छात्रों से पूछा कि क्या जार भर गया है? और सभी ने हाँ में उत्तर दिया.
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तभी professor ने एक sand box निकाला और उसमे भरी रेत को जार में डालने लगे. रेत ने बची-खुची जगह भी भर दी. और एक बार फिर उन्होंने पूछा कि क्या जार भर गया है? और सभी ने एक साथ उत्तर दिया , ” हाँ”
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फिर professor ने समझाना शुरू किया, ” मैं चाहता हूँ कि आप इस बात को समझें कि ये जार आपकी life को represent करता है. बड़े-बड़े पत्थर आपके जीवन की ज़रूरी चीजें हैं- आपकी family,आपका partner,आपकी health, आपके बच्चे – ऐसी चीजें कि अगर आपकी बाकी सारी चीजें खो भी जाएँ और सिर्फ ये रहे तो भी आपकी ज़िन्दगी पूर्ण रहेगी.
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ये कंकड़ कुछ अन्य चीजें हैं जो matter करती हैं- जैसे कि आपकी job, आपका घर, इत्यादि.
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और ये रेत बाकी सभी छोटी-मोटी चीजों को दर्शाती है.
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अगर आप जार को पहले रेत से भर देंगे तो कंकडों और पत्थरों के लिए कोई जगह नहीं बचेगी. यही आपकी life के साथ होता है. अगर आप अपनी सारा समय और उर्जा छोटी-छोटी चीजों में लगा देंगे तो आपके पास कभी उन चीजों के लिए time नहीं होगा जो आपके लिए important हैं. उन चीजों पर ध्यान दीजिये जो आपकी happiness के लिए ज़रूरी हैं.बच्चों के साथ खेलिए, अपने partner के साथ dance कीजिये. काम पर जाने के लिए, घर साफ़ करने के लिए,party देने के लिए, हमेशा वक़्त होगा. पर पहले पत्थरों पर ध्यान दीजिये – ऐसी चीजें जो सचमुच matter करती हैं . अपनी priorities set कीजिये. बाकी चीजें बस रेत हैं.”
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<hr alt="गुरु-दक्षिणा - guru Shishya story" class="system-pagebreak" title="गुरु-दक्षिणा - guru Shishya story" />
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<span style="color:#0000CD;"><span style="font-size:20px;"><strong>गुरु-दक्षिणा - guru Shishya story</strong></span></span>
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एक बार एक शिष्य ने विनम्रतापूर्वक अपने गुरु जी से पूछा- ‘गुरु जी,कुछ लोग कहते हैं कि जीवन एक संघर्ष है, कुछ अन्य कहते हैं कि जीवन एक खेल है और कुछ जीवन को एक उत्सव की संज्ञा देते हैं | इनमें कौन सही है?’
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गुरु जी ने तत्काल बड़े ही धैर्यपूर्वक उत्तर दिया-
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<blockquote>
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पुत्र,जिन्हें गुरु नहीं मिला उनके लिए जीवन एक संघर्ष है; जिन्हें गुरु मिल गया उनका जीवन एक खेल है और जो लोग गुरु द्वारा बताये गए मार्ग पर चलने लगते हैं, मात्र वे ही जीवन को एक उत्सव का नाम देने का साहस जुटा पाते हैं
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</blockquote>
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यह उत्तर सुनने के बाद भी शिष्य पूरी तरह से संतुष्ट न था| गुरु जी को इसका आभास हो गया |वे कहने लगे-‘लो, तुम्हें इसी सन्दर्भ में एक कहानी सुनाता हूँ|ध्यान से सुनोगे तो स्वयं ही अपने प्रश्न का उत्तर पा सकोगे |’
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<hr alt="ग्लास को नीचे रख दीजिये" class="system-pagebreak" title="ग्लास को नीचे रख दीजिये" />
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<span style="color:#0000CD;"><span style="font-size:20px;"><strong>ग्लास को नीचे रख दीजिये</strong></span></span>
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एक प्रोफ़ेसर ने अपने हाथ में पानी से भरा एक glass पकड़ते हुए class शुरू की . उन्होंने उसे ऊपर उठा कर सभी students को दिखाया और पूछा , ” आपके हिसाब से glass का वज़न कितना होगा?”
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’50gm….100gm…125gm’…छात्रों ने उत्तर दिया.
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” जब तक मैं इसका वज़न ना कर लूँ मुझे इसका सही वज़न नहीं बता सकता”. प्रोफ़ेसर ने कहा. ” पर मेरा सवाल है:
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यदि मैं इस ग्लास को थोड़ी देर तक इसी तरह उठा कर पकडे रहूँ तो क्या होगा ?”
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‘कुछ नहीं’ …छात्रों ने कहा.
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‘अच्छा , अगर मैं इसे मैं इसी तरह एक घंटे तक उठाये रहूँ तो क्या होगा ?” , प्रोफ़ेसर ने पूछा.
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आपका हाथ दर्द होने लगेगा’, एक छात्र ने कहा.
</p>
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” तुम सही हो, अच्छा अगर मैं इसे इसी तरह पूरे दिन उठाये रहूँ तो का होगा?”
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” आपका हाथ सुन्न हो सकता है, आपके muscle में भारी तनाव आ सकता है , लकवा मार सकता है और पक्का आपको hospital जाना पड़ सकता है”….किसी छात्र ने कहा, और बाकी सभी हंस पड़े…
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“बहुत अच्छा , पर क्या इस दौरान glass का वज़न बदला?” प्रोफ़ेसर ने पूछा.
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उत्तर आया ..”नहीं”
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” तब भला हाथ में दर्द और मांशपेशियों में तनाव क्यों आया?”
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Students अचरज में पड़ गए.
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फिर प्रोफ़ेसर ने पूछा ” अब दर्द से निजात पाने के लिए मैं क्या करूँ?”
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” ग्लास को नीचे रख दीजिये! एक छात्र ने कहा.
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” बिलकुल सही!” प्रोफ़ेसर ने कहा.
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Life की problems भी कुछ इसी तरह होती हैं. इन्हें कुछ देर तक अपने दिमाग में रखिये और लगेगा की सब कुछ ठीक है.उनके बारे में ज्यदा देर सोचिये और आपको पीड़ा होने लगेगी.और इन्हें और भी देर तक अपने दिमाग में रखिये और ये आपको paralyze करने लगेंगी. और आप कुछ नहीं कर पायेंगे.
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अपने जीवन में आने वाली चुनातियों और समस्याओं के बारे में सोचना ज़रूरी है, पर उससे भी ज्यादा ज़रूरी है दिन के अंत में सोने जाने से पहले उन्हें नीचे रखना.इस तरह से, आप stressed नहीं रहेंगे, आप हर रोज़ मजबूती और ताजगी के साथ उठेंगे और सामने आने वाली किसी भी चुनौती का सामना कर सकेंगे.
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<hr alt="छत्रपति शिवाजी के जीवन के तीन प्रेरणादायक प्रसंग" class="system-pagebreak" title="छत्रपति शिवाजी के जीवन के तीन प्रेरणादायक प्रसंग" />
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<span style="color:#0000CD;"><span style="font-size:20px;">छत्रपति शिवाजी के जीवन के तीन प्रेरणादायक प्रसंग</span></span>
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19th Feb को शिवाजी जयंती है इस शुभ अवसर पर मैं आपके साथ उनके जीवन के तीन प्रेरणादायक प्रसंग साझा कर रहा हूँ. आइये हम भारत वर्ष के इस वीर सपूत को नमन करें और उनके जीवन से शिक्षा ले भारत माता की सेवा में अग्रसर हों.
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शिवाजी के समक्ष एक बार उनके सैनिक किसी गाँव के मुखिया को पकड़ कर ले लाये . मुखिया बड़ी-घनी मूछों वाला बड़ा ही रसूखदार व्यक्ति था, पर आज उसपर एक विधवा की इज्जत लूटने का आरोप साबित हो चुका था. उस समय शिवाजी मात्र १४ वर्ष के थे, पर वह बड़े ही बहादुर, निडर और न्याय प्रिय थे और विशेषकर महिलाओं के प्रति उनके मन में असीम सम्मान था.
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उन्होंने तत्काल अपना निर्णय सुना दिया , ” इसके दोनों हाथ , और पैर काट दो , ऐसे जघन्य अपराध के लिए इससे कम कोई सजा नहीं हो सकती .”
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शिवाजी जीवन पर्यन्त साहसिक कार्य करते रहे और गरीब, बेसहारा लोगों को हमेशा प्रेम और सम्मान देते रहे.
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शिवाजी के साहस का एक और किस्सा प्रसिद्द है . तब पुणे के करीब नचनी गाँव में एक भयानक चीते का आतंक छाया हुआ था . वह अचानक ही कहीं से हमला करता था और जंगल में ओझल हो जाता. डरे हुए गाँव वाले अपनी समस्या लेकर शिवाजी के पास पहुंचे .
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” हमें उस भयानक चीते से बचाइए . वह ना जाने कितने बच्चों को मार चुका है , ज्यादातर वह तब हमला करता है जब हम सब सो रहे होते हैं.”
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शिवाजी ने धैर्यपूर्वक ग्रामीणों को सुना , ” आप लोग चिंता मत करिए , मैं यहाँ आपकी मदद करने के लिए ही हूँ .”
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शिवाजी अपने सिपाहियों यसजी और कुछ सैनिकों के साथ जंगल में चीते को मारने के लिए निकल पड़े . बहुत ढूँढने के बाद जैसे ही वह सामने आया , सैनिक डर कर पीछे हट गए , पर शिवाजी और यसजी बिना डरे उसपर टूट पड़े और पलक झपकते ही उस मार गिराया. गाँव वाले खुश हो गए और “जय शिवाजी ” के नारे लगाने लगे.
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शिवाजी के पिता का नाम शाहजी था . वह अक्सर युद्ध लड़ने के लिए घर से दूर रहते थे. इसलिए उन्हें शिवाजी के निडर और पराक्रमी होने का अधिक ज्ञान नहीं था. किसी अवसर पर वह शिवाजी को बीजापुर के सुलतान के दरबार में ले गए . शाहजी ने तीन बार झुककर सुलतान को सलाम किया, और शिवाजी से भी ऐसा ही करने को कहा . लेकिन , शिवाजी अपना सर ऊपर उठाये सीधे खड़े रहे . विदेशी शासक के सामने वह किसी भी कीमत पर सर झुकाने को तैयार नहीं हुए. और शेर की तरह शान से चलते हुए दरबार से वापस चले गए.
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<hr alt="छत्रपति शिवाजी महाराज के प्रेरक कथन - Shivaji Maharaj Quotes in Hindi" class="system-pagebreak" title="छत्रपति शिवाजी महाराज के प्रेरक कथन - Shivaji Maharaj Quotes in Hindi" />
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<span style="color:#0000CD;"><span style="font-size:20px;"><strong>छत्रपति शिवाजी महाराज के प्रेरक कथन - Shivaji Maharaj Quotes in Hindi</strong></span></span>
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<strong>स्वतंत्रता एक वरदान है, जिसे पाने का अधिकारी हर कोई है।</strong>
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<strong>यदि एक पेड़, जोकि इतनी उच्च जीवित सत्ता नहीं है, इतना सहिष्णु और दयालु हो सकता है कि किसी के द्वारा मारे जाने पर भी उसे मीठे आम दे; तो एक राजा होकर, क्या मुझे एक पेड़ से अधिक सहिष्णु और दयालु नहीं होना चाहिए?</strong>
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</blockquote>
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<strong>नारी के सभी अधिकारों में, सबसे महान अधिकार माँ बनने का है.</strong>
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<strong>Quote 4: कभी अपना सर मत झुकाओ, हमेशा उसे ऊँचा रखो.</strong>
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<strong>भले हर किसी के हाथ में तलवार हो, यह इच्छाशक्ति है जो एक सत्ता स्थापित करती है.</strong>
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<strong>वास्तव में, इस्लाम और हिन्दू धर्म अलग-अलग मामले हैं. वे उस सच्चे दिव्य चित्रकार द्वारा रंगों को मिलाने और खाका तैयार करने के लिए प्रयोग किये जाते हैं. यदि यह एक मस्जिद है, तो उसकी याद में ईबादत के लिए आवाज़ दी जाती है. यही यह एक मंदिर है तो सिर्फ उसी के लिए घंटियाँ बजाई जाती हैं.</strong>
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<strong>एक छोटा कदम छोटे लक्ष्य पर, बाद मे विशाल लक्ष्य भी हासिल करा देता है।</strong>
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<strong>जरुरी नही कि विपत्ति का सामना, दुश्मन के सम्मुख से ही करने मे वीरता हो। वीरता तो<br />
विजय मे है।</strong>
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<strong>जब हौसले बुलन्द हो, तो पहाङ भी एक मिट्टी का ढेर लगता है।</strong>
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</blockquote>
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<strong>शत्रु को कमजोर न समझो, तो अत्यधिक बलिष्ठ समझ कर डरो भी मत।</strong>
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</blockquote>
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<strong>जब लक्ष्य जीत की हो, तो हासिल करने के लिए कितना भी परिश्रम, कोई भी मूल्य क्यों न हो उसे चुकाना ही पड़ता है।</strong>
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<strong>सर्वप्रथम राष्ट्र, फिर गुरु, फिर माता-पिता, फिर परमेश्वर।अतः पहले खुद को नही राष्ट्र को देखना चाहिए।</strong>
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<strong>अगर मनुष्य के पास आत्मबल है, तो वो समस्त संसार पर अपने हौसले से विजय पताका लहरा सकता है।</strong>
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</blockquote>
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<strong>जो मनुष्य समय के कुच्रक मे भी पूरी शिद्दत से, अपने कार्यो मे लगा रहता है। उसके लिए समय खुद बदल जाता है।</strong>
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</blockquote>
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<strong>शत्रु चाहे कितना ही बलवान क्यो न हो, उसे अपने इरादों और उत्साह मात्र से भी परास्त किया जा सकता है।</strong>
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</blockquote>
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<strong>एक सफल मनुष्य अपने कर्तव्य की पराकाष्ठा के लिए, समुचित मानव जाति की चुनौती स्वीकार कर लेता है।</strong>
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</blockquote>
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<strong>आत्मबल, सामर्थ्य देता है, और सामर्थ्य, विद्या प्रदान करती है। विद्या, स्थिरता प्रदान करती है, और स्थिरता, विजय की तरफ ले जाती है।</strong>
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<strong>एक पुरुषार्थी भी, एक तेजस्वी विद्वान के सामने झुकता है। क्योंकि पुरुर्षाथ भी विद्या से ही आती है।</strong>
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</blockquote>
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<strong>जो धर्म, सत्य, क्षेष्ठता और परमेश्वर के सामने झुकता है। उसका आदर समस्त संसार करता है।</strong>
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</blockquote>
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<strong>जीवन में सिर्फ अच्छे दिन की आशा नही रखनी चाहिए, क्योंकि दिन और रात की तरह अच्छे दिनों को भी बदलना पड़ता है।</strong>
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</blockquote>
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<strong>बदला लेने की भावना मनुष्य को जलाती रहती है, संयम ही प्रतिशोध को काबू करने का एक मात्र उपाय है।</strong>
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</blockquote>
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<strong>अपने आत्मबल को जगाने वाला, खुद को पहचानने वाला, और मानव जाति के कल्याण की सोच रखने वाला, पूरे विश्व पर राज्य कर सकता है।</strong>
</p>
</blockquote>
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<p>
<strong>कोई भी कार्य करने से पहले उसका परिणाम सोच लेना हितकर होता है; क्योंकि हमारी आने वाली पीढ़ी उसी का अनुसरण करती है।</strong>
</p>
</blockquote>
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<strong>जो धर्म, सत्य, क्षेष्ठता और परमेश्वर के सामने झुकता है। उसका आदर समस्त संसार करता है।</strong>
</p>
</blockquote>
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<p>
<strong>अंगूर को जब तक न पेरो वो मीठी मदिरा नही बनती, वैसे ही मनुष्य जब तक कष्ट मे पिसता नही, तब तक उसके अन्दर की सर्वोत्तम प्रतिभा बाहर नही आती।</strong>
</p>
</blockquote>
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<hr alt="शिवाजी से सम्बंधित रोचक तथ्य" class="system-pagebreak" title="शिवाजी से सम्बंधित रोचक तथ्य" />
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<span style="color:#0000CD;"><span style="font-size:20px;"><strong>शिवाजी से सम्बंधित रोचक तथ्य</strong></span></span>
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<ol>
<li>
<span style="font-size:14px;"><strong>शिवाजी का पूरा नाम शिवाजी राजे भोसले था और आगे चल कर वह छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम से प्रसिद्द हुए.</strong></span>
</li>
<li>
<span style="font-size:14px;"><strong>कई लोग मानते हैं कि शिवाजी का नाम भगवान् शिव के नाम से लिया गया है लेकिन दरअसल यह नाम एक अन्य क्षेत्रीय देवता शिवई के नाम से लिया गया है.</strong></span>
</li>
<li>
<span style="font-size:14px;"><strong>शिवाजी हिन्दू धर्म के महान रक्षक थे, पर कई लोग इसका अर्थ यह लगा लेते हैं कि वह अन्य धर्मों के शत्रु थे. पर तथ्य यह है कि शिवाजी एक पूर्णतः धर्म-निरपेक्ष शासक थे. उनकी सेना में कुछ प्रमुख पदों पर मुसलमान भी कार्यरत थे.</strong></span>
</li>
<li>
<span style="font-size:14px;"><strong>शिवाजी अन्य धर्मों के लोगों को हिन्दू धर्म अपनाने में सहायक रहते थे, पर वह इस काम के लिए किसी तरह का दबाव नहीं बनाते थे.</strong></span>
</li>
<li>
<span style="font-size:14px;"><strong>शिवाजी ने अपनी बेटी का विवाह भी एक ऐसे व्यक्ति से किया था जो मूलतः हिन्दू नहीं था पर बाद में उसने हिन्दू धर्म अपना लिया था.</strong></span>
</li>
<li>
<span style="font-size:14px;"><strong>शिवाजी की लड़ाइयों को धर्म-युद्ध से जोड़कर देखा जाता है, जबकि वह अपने राज्य की रक्षा करने के लिए युद्ध करते थे.</strong></span>
</li>
<li>
<span style="font-size:14px;"><strong>शिवाजी एक व्यवहारिक योद्धा थे और बड़ी-बड़ी सेनाओं को हारने के लिए वे गोरिल्ला युद्ध का प्रयोग करते थे.</strong></span>
</li>
<li>
<span style="font-size:14px;"><strong>शिवाजी सैनिकों के जान की कीमत अच्छी तरह समझते थे इसलिए वह कमजोर पड़ने पर मैदान छोड़ने और फिर से इकठ्ठा हो कर युद्ध करने के पक्ष में रहते थे.</strong></span>
</li>
<li>
<span style="font-size:14px;"><strong>शिवाजी ने अपनी सीमाओं की रक्षा करने के लिए नौसेना भी गठित कर रखी थी. इससे उनकी दूरदर्शिता और युद्ध-कौशल का अंदाजा लगाया जा सकता है.</strong></span>
</li>
<li>
<span style="font-size:14px;"><strong>एक बार शिवाजी ने अपने से कहीं लम्बे-चौड़े और बलशाली सेनापति अफज़ल खान को आमने-सामने के मुकाबले में हरा दिया था. शिवाजी को शक था कि अफज़ल खान उन पर हमला करेगा इसलिए उन्होंने कपड़ों के नीचे अपना कवच पहन रखा था और सचमुच अफज़ल खान ने उनपर धावा बोल दिया, पर शिवाजी ने उसे वहीँ ढेर कर दिया.</strong></span>
</li>
<li>
<span style="font-size:14px;"><strong>शिवाजी को “पहाड़ी चूहा” या “माउंटेन रैट” कह कर भी पुकारा जाता था क्योंकि वह अपने क्षेत्र को बहुत अच्छी तरह से जानते थे और कहीं से कहीं निकल कर अचानक ही हमला कर देते थे या गायब हो जाते थे.</strong></span>
</li>
<li>
<span style="font-size:14px;"><strong>शिवाजी को “एस्केप आर्टिस्ट” यानी गायब होने वाला कलाकार भी कहा जाता है. उन्होंने दो मौकों पर, एक बार औरंगजेब की आगरा किले की कैद से तो एक बार सिद्दी जौहर की पनाहला किले की कैद से आश्चर्यजनक रूप से फरार हो गए थे.</strong></span>
</li>
<li>
<span style="font-size:14px;"><strong>शिवाजी औरतों पर किसी भी तरह के अत्याचार के सख्त खिलाफ थे, फिर चाहे वो दुशमन की ओर की औरतें ही क्यों ना हों.</strong></span>
</li>
<li>
<span style="font-size:14px;"><strong>औरतों के सम्मान से खिलवाड़ करने वाला चाहे जो भी हो, उसे वह कठोर सजा दिया करते थे.</strong></span>
</li>
<li>
<span style="font-size:14px;"><strong>शिवाजी बड़े दयालु थे. युद्ध में जो लोग आत्म-समर्पण कर देते थे वे उन्हें अपनी सेना में शामिल कर लेते थे.</strong></span>
</li>
<li>
<span style="font-size:14px;"><strong>शिवाजी के ह्रदय में आम लोगों के लिए प्रेम और सम्मान था. वे कभी भी घरों या धार्मिक स्थलों पर लूट-पाट नहीं होने देते थे. यहाँ तक कि</strong></span>
</li>
<li>
<span style="font-size:14px;"><strong>खाने-पीने की सामग्री कम होने पर वे सैनिकों से सामान खरीद कर ही लाने को कहते थे.</strong></span>
</li>
<li>
<span style="font-size:14px;"><strong>शिवाजी युद्ध में जीते गए खजाने का बहीखाता बनवाते थे और हर एक चीज का उचित हिसाब रखते थे.</strong></span>
</li>
<li>
<span style="font-size:14px;"><strong>जब शिवाजी महज 15 साल के थे तभी उन्होंने बीजापुर के सेनापति को लालच देकर तोरणा का किला अपने कब्जे में ले लिया था.</strong></span>
</li>
<li>
<span style="font-size:14px;"><strong>शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक सन 1674 में रायगढ़ में हुआ. यहीं पर उन्हें छत्रपति की उपाधि मिली.</strong></span>
</li>
<li>
<span style="font-size:14px;"><strong>संत रामदास शिवाजी के आध्यात्मिक गुरु भी थे साथ ही वे संत तुकाराम से भी अत्यधिक प्रभावित थे.</strong></span>
</li>
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<hr alt="चिल्लाओ मत - Chillao mat" class="system-pagebreak" title="चिल्लाओ मत - Chillao mat" />
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<span style="color:#0000CD;"><span style="font-size:20px;"><strong>चिल्लाओ मत - Chillao mat</strong></span></span>
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<p>
एक हिन्दू सन्यासी अपने शिष्यों के साथ गंगा नदी के तट पर नहाने पहुंचा. वहां एक ही परिवार के कुछ लोग अचानक आपस में बात करते-करते एक दूसरे पर क्रोधित हो उठे और जोर-जोर से चिल्लाने लगे .
</p>
<p>
एक हिन्दू सन्यासी अपने शिष्यों के साथ गंगा नदी के तट पर नहाने पहुंचा. वहां एक ही परिवार के कुछ लोग अचानक आपस में बात करते-करते एक दूसरे पर क्रोधित हो उठे और जोर-जोर से चिल्लाने लगे .
</p>
<p>
संयासी यह देख तुरंत पलटा और अपने शिष्यों से पुछा ;
</p>
<p>
” क्रोध में लोग एक दूसरे पर चिल्लाते क्यों हैं ?’
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<p>
शिष्य कुछ देर सोचते रहे ,एक ने उत्तर दिया, ” क्योंकि हम क्रोध में शांति खो देते हैं इसलिए !”
</p>
<p>
” पर जब दूसरा व्यक्ति हमारे सामने ही खड़ा है तो भला उस पर चिल्लाने की क्या ज़रुरत है , जो कहना है वो आप धीमी आवाज़ में भी तो कह सकते हैं “, सन्यासी ने पुनः प्रश्न किया .
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कुछ और शिष्यों ने भी उत्तर देने का प्रयास किया पर बाकी लोग संतुष्ट नहीं हुए .
</p>
<p>
अंततः सन्यासी ने समझाया …
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<p>
“जब दो लोग आपस में नाराज होते हैं तो उनके दिल एक दूसरे से बहुत दूर हो जाते हैं . और इस अवस्था में वे एक दूसरे को बिना चिल्लाये नहीं सुन सकते ….वे जितना अधिक क्रोधित होंगे उनके बीच की दूरी उतनी ही अधिक हो जाएगी और उन्हें उतनी ही तेजी से चिल्लाना पड़ेगा.
</p>
<p>
क्या होता है जब दो लोग प्रेम में होते हैं ? तब वे चिल्लाते नहीं बल्कि धीरे-धीरे बात करते हैं , क्योंकि उनके दिल करीब होते हैं , उनके बीच की दूरी नाम मात्र की रह जाती है.”
</p>
<p>
सन्यासी ने बोलना जारी रखा ,” और जब वे एक दूसरे को हद से भी अधिक चाहने लगते हैं तो क्या होता है ? तब वे बोलते भी नहीं , वे सिर्फ एक दूसरे की तरफ देखते हैं और सामने वाले की बात समझ जाते हैं.”
</p>
<p>
“प्रिय शिष्यों ; जब तुम किसी से बात करो तो ये ध्यान रखो की तुम्हारे ह्रदय आपस में दूर न होने पाएं , तुम ऐसे शब्द मत बोलो जिससे तुम्हारे बीच की दूरी बढे नहीं तो एक समय ऐसा आएगा कि ये दूरी इतनी अधिक बढ़ जाएगी कि तुम्हे लौटने का रास्ता भी नहीं मिलेगा. इसलिए चर्चा करो, बात करो लेकिन चिल्लाओ मत.”
</p>
<hr alt="कद्दू की तीर्थयात्रा - kaddu ki tirth yatra" class="system-pagebreak" title="कद्दू की तीर्थयात्रा - kaddu ki tirth yatra" />
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<span style="color:#0000CD;"><span style="font-size:20px;"><strong>कद्दू की तीर्थयात्रा - kaddu ki tirth yatra</strong></span></span>
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हमारे यहाँ तीर्थ यात्रा का बहुत ही महत्त्व है। पहले के समय यात्रा में जाना बहुत कठिन था। पैदल या तो
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बैल गाड़ी में यात्रा की जाती थी। थोड़े थोड़े अंतर पे रुकना होता था। विविध प्रकार के लोगो से मिलना होता था, समाज का दर्शन होता था। विविध बोली और विविध रीति-रीवाज से परिचय होता था। कंई कठिनाईओ से गुजरना पड़ता, कंई अनुभव भी प्राप्त होते थे।
</p>
<p>
एकबार तीर्थ यात्रा पे जानेवाले लोगो का संघ संत तुकाराम जी के पास जाकर उनके साथ चलनेकी प्रार्थना की। तुकारामजी ने अपनी असमर्थता बताई। उन्होंने तीर्थयात्रियो को एक कड़वा कद्दू देते हुए कहा : “मै तो आप लोगो के साथ आ नहीं सकता लेकिन आप इस कद्दू को साथ ले जाईए और जहाँ – जहाँ भी स्नान करे, इसे भी पवित्र जल में स्नान करा लाये।”
</p>
<p>
लोगो ने उनके गूढार्थ पे गौर किये बिना ही वह कद्दू ले लिया और जहाँ – जहाँ गए, स्नान किया वहाँ – वहाँ स्नान करवाया; मंदिर में जाकर दर्शन किया तो उसे भी दर्शन करवाया। ऐसे यात्रा पूरी होते सब वापस आए और उन लोगो ने वह कद्दू संतजी को दिया। तुकारामजी ने सभी यात्रिओ को प्रीतिभोज पर आमंत्रित किया। तीर्थयात्रियो को विविध पकवान परोसे गए। तीर्थ में घूमकर आये हुए कद्दूकी सब्जी विशेष रूपसे बनवायी गयी थी। सभी यात्रिओ ने खाना शुरू किया और सबने कहा कि “यह सब्जी कड़वी है।” तुकारामजी ने आश्चर्य बताते कहा कि “यह तो उसी कद्दू से बनी है, जो तीर्थ स्नान कर आया है। बेशक यह तीर्थाटन के पूर्व कड़वा था, मगर तीर्थ दर्शन तथा स्नान के बाद भी इसी में कड़वाहट है !”
</p>
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यह सुन सभी यात्रिओ को बोध हो गया कि ‘हमने तीर्थाटन किया है लेकिन अपने मन को एवं स्वभाव को सुधारा नहीं तो तीर्थयात्रा का अधिक मूल्य नहीं है। हम भी एक कड़वे कद्दू जैसे कड़वे रहकर वापस आये है।’
</p>
<hr alt="मकड़ी, चींटी और जाला" class="system-pagebreak" title="मकड़ी, चींटी और जाला" />
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<span style="color:#0000CD;"><span style="font-size:20px;"><strong>मकड़ी, चींटी और जाला</strong></span></span>
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<p>
एक मकड़ी थी. उसने आराम से रहने के लिए एक शानदार जाला बनाने का विचार किया और सोचा की इस जाले मे खूब कीड़ें, मक्खियाँ फसेंगी और मै उसे आहार बनाउंगी और मजे से रहूंगी . उसने कमरे के एक कोने को पसंद किया और वहाँ जाला बुनना शुरू किया. कुछ देर बाद आधा जाला बुन कर तैयार हो गया. यह देखकर वह मकड़ी काफी खुश हुई कि तभी अचानक उसकी नजर एक बिल्ली पर पड़ी जो उसे देखकर हँस रही थी.
</p>
<p>
मकड़ी को गुस्सा आ गया और वह बिल्ली से बोली , ” हँस क्यो रही हो?”
</p>
<p>
“हँसू नही तो क्या करू.” , बिल्ली ने जवाब दिया , ” यहाँ मक्खियाँ नही है ये जगह तो बिलकुल साफ सुथरी है, यहाँ कौन आयेगा तेरे जाले मे.”
</p>
<p>
ये बात मकड़ी के गले उतर गई. उसने अच्छी सलाह के लिये बिल्ली को धन्यवाद दिया और जाला अधूरा छोड़कर दूसरी जगह तलाश करने लगी. उसने ईधर ऊधर देखा. उसे एक खिड़की नजर आयी और फिर उसमे जाला बुनना शुरू किया कुछ देर तक वह जाला बुनती रही , तभी एक चिड़िया आयी और मकड़ी का मजाक उड़ाते हुए बोली , ” अरे मकड़ी , तू भी कितनी बेवकूफ है.”
</p>
<p>
“क्यो ?”, मकड़ी ने पूछा.
</p>
<p>
चिड़िया उसे समझाने लगी , ” अरे यहां तो खिड़की से तेज हवा आती है. यहा तो तू अपने जाले के साथ ही उड़ जायेगी.”
</p>
<p>
मकड़ी को चिड़िया की बात ठीक लगीँ और वह वहाँ भी जाला अधूरा बना छोड़कर सोचने लगी अब कहाँ जाला बनायाँ जाये. समय काफी बीत चूका था और अब उसे भूख भी लगने लगी थी .अब उसे एक आलमारी का खुला दरवाजा दिखा और उसने उसी मे अपना जाला बुनना शुरू किया. कुछ जाला बुना ही था तभी उसे एक काक्रोच नजर आया जो जाले को अचरज भरे नजरो से देख रहा था.
</p>
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मकड़ी ने पूछा – ‘इस तरह क्यो देख रहे हो?’
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काक्रोच बोला-,” अरे यहाँ कहाँ जाला बुनने चली आयी ये तो बेकार की आलमारी है. अभी ये यहाँ पड़ी है कुछ दिनों बाद इसे बेच दिया जायेगा और तुम्हारी सारी मेहनत बेकार चली जायेगी. यह सुन कर मकड़ी ने वहां से हट जाना ही बेहतर समझा .
</p>
<p>
बार-बार प्रयास करने से वह काफी थक चुकी थी और उसके अंदर जाला बुनने की ताकत ही नही बची थी. भूख की वजह से वह परेशान थी. उसे पछतावा हो रहा था कि अगर पहले ही जाला बुन लेती तो अच्छा रहता. पर अब वह कुछ नहीं कर सकती थी उसी हालत मे पड़ी रही.
</p>
<p>
जब मकड़ी को लगा कि अब कुछ नहीं हो सकता है तो उसने पास से गुजर रही चींटी से मदद करने का आग्रह किया .
</p>
<p>
चींटी बोली, ” मैं बहुत देर से तुम्हे देख रही थी , तुम बार- बार अपना काम शुरू करती और दूसरों के कहने पर उसे अधूरा छोड़ देती . और जो लोग ऐसा करते हैं , उनकी यही हालत होती है.” और ऐसा कहते हुए वह अपने रास्ते चली गई और मकड़ी पछताती हुई निढाल पड़ी रही.
</p>
<p>
दोस्तों , हमारी ज़िन्दगी मे भी कई बार कुछ ऐसा ही होता है. हम कोई काम start करते है. शुरू -शुरू मे तो हम उस काम के लिये बड़े उत्साहित रहते है पर लोगो के comments की वजह से उत्साह कम होने लगता है और हम अपना काम बीच मे ही छोड़ देते है और जब बाद मे पता चलता है कि हम अपने सफलता के कितने नजदीक थे तो बाद मे पछतावे के अलावा कुछ नही बचता.
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<hr alt="स्वामी जी का उपदेश - swami ji ka updesh" class="system-pagebreak" title="स्वामी जी का उपदेश - swami ji ka updesh" />
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<span style="color:#0000CD;"><span style="font-size:20px;"><strong>स्वामी जी का उपदेश - swami ji ka updesh</strong></span></span>
</p>
<p>
</p>
<p>
एक बार समर्थ स्वामी रामदासजी भिक्षा माँगते हुए एक घर के सामने खड़े हुए और उन्होंने आवाज लगायी– “जय जय रघुवीर समर्थ !” घर से महिला बाहर आयी। उसने उनकी झोलीमे भिक्षा डाली और कहा, “महात्माजी, कोई उपदेश दीजिए !”स्वामीजी बोले, “आज नहीं, कल दूँगा।”
</p>
<p>
दूसरे दिन स्वामीजी ने पुन: उस घर के सामने आवाज दी – “जय जय रघुवीर समर्थ !”उस घर की स्त्रीने उस दिन खीर बनायीं थी, जिसमे बादाम-पिस्ते भी डाले थे।वह खीर का कटोरा लेकर बाहर आयी। स्वामीजीने अपना कमंडल आगे कर दिया। वह स्त्री जब खीर डालने लगी, तो उसने देखा कि कमंडल में गोबर और कूड़ा भरा पड़ा है। उसके हाथ ठिठक गए। वह बोली, “महाराज ! यह कमंडल तो गन्दा है।”
</p>
<p>
स्वामीजी बोले, “हाँ, गन्दा तो है, किन्तु खीर इसमें डाल दो।” स्त्री बोली, “नहीं महाराज, तब तो खीर ख़राब हो जायेगी। दीजिये यह कमंडल, में इसे शुद्ध कर लाती हूँ।”
</p>
<p>
स्वामीजी बोले, मतलब जब यह कमंडल साफ़ हो जायेगा, तभी खीर डालोगी न ?”
</p>
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स्त्री ने कहा : “जी महाराज !”
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स्वामीजी बोले, “मेरा भी यही उपदेश है। मन में जब तक चिन्ताओ का कूड़ा-कचरा और बुरे संस्करो का गोबर भरा है, तब तक उपदेशामृत का कोई लाभ न होगा। यदि उपदेशामृत पान करना है, तो प्रथम अपने मन को शुद्ध करना चाहिए, कुसंस्कारो का त्याग करना चाहिए, तभी सच्चे सुख और आनन्द की प्राप्ति होगी।”
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<hr alt="मैं सबसे तेज दौड़ना चाहती हूँ - mai sabse tej dodna chahti hu" class="system-pagebreak" title="मैं सबसे तेज दौड़ना चाहती हूँ - mai sabse tej dodna chahti hu" />
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<span style="color:#0000CD;"><span style="font-size:20px;"><strong>मैं सबसे तेज दौड़ना चाहती हूँ - mai sabse tej dodna chahti hu</strong></span></span>
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विल्मा रुडोल्फ का जन्म टेनिसी के एक गरीब परिवार में हुआ था. चार साल की उम्र में उन्हें लाल बुखार के साथ डबल निमोनिया हो गया , जिस वजह से वह पोलियो से ग्रसित हो गयीं. उन्हें पैरों में ब्रेस पहनने पड़ते थे और डॉक्टरों के अनुसार अब वो कभी भी चल नहीं सकती थीं.लेकिन उनकी माँ हमेशा उनको प्रोत्साहित करती रहतीं और कहती कि भगवान् की दी हुई योग्यता ,दृढ़ता और विश्वास से वो कुछ भी कर सकती हैं.
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विल्मा बोलीं , ” मैं इस दुनिया कि सबसे तेज दौड़ने वाली महिला बनना चाहती हूँ .”
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डॉक्टरों की सलाह के विरूद्ध 9 साल की उम्र में उन्होंने ने अपने ब्रेस उतार फेंकें और अपना पहला कदम आगे बढाया जिसे डोक्टरों ने ही नामुमकिन बताया था . 13 साल की उम्र में उन्होंने पहली बार रेस में हिस्सा लिया और बहुत बड़े अन्तर से आखिरी स्थान पर आयीं. और उसके बाद वे अपनी दूसरी, तीसरी, और चौथी रेस में दौड़ीं और आखिरी आती रहीं , पर उन्होंने हार नहीं मानी वो दौड़ती रहीं और फिर एक दिन ऐसा आया कि वो रेस में फर्स्ट आ गयीं. 15 साल की उम्र में उन्होंने टेनिसी स्टेट यूनिवर्सिटी में दाखिल ले लिया , जहाँ उनकी मुलाकात एक कोच से हुई जिनका नाम एड टेम्पल था .
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उन्होंने ने कोच से कहा , ” मैं इस दुनिया की सबसे तेज धाविका बनना चाहती हूँ.”
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टेम्पल ने कहा ,” तुम्हारे अन्दर जिस तरह का जज़्बा हैं तुम्हे कोई रोक नहीं सकता , और उसके आलावा मैं भी तुम्हारी मदद करुगा.”
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देखते-देखते वो दिन आ गया जब विल्मा ओलंपिक्स में पहुँच गयीं जहाँ अच्छे से अच्छे एथलीटों के साथ उनका मुकाबला होना था , जिसमे कभी न हारने वाली युटा हीन भी शामिल थीं. पहले 100 मीटर रेस हुई , विल्मा ने युटा को हराकर गोल्ड मैडल जीता, फिर 200 मीटर का मुकाबला हुआ, इसमें भी विल्माने युटा को पीछे छोड़ दिया और अपना दूसरा गोल्ड मैडल जीत गयीं . तीसरा इवेंट 400 मीटर रिले रेस थी , जिसमे अक्सर सबसे तेज दौड़ने वाला व्यक्ति अंत में दौड़ता है . विल्मा और युटा भी अपनी-अपनी टीम्स में आखिरी में दौड़ रही थीं. रेस शुरू हुई , पहली तीन एथलीट्स ने आसानी से बेटन बदल लीं , पर जब विल्मा की बारी आई तो थोड़ी गड़बड़ हो गयी और बेटन गिरते-गिरते बची , इस बीच युटा आगे निकल गयी , विल्मा ने बिना देरी किये अपनी स्पीड बढ़ाई और मशीन की तरह दौड़ते हुए आगे निकल गयीं और युटा को हराते हुए अपना तीसरा गोल्ड मैडल जीत गयीं. यह इतिहास बन गया : कभी पोलियो से ग्रस्त रही महिला आज दुनिया की सबसे तेज धाविका बन चुकी थी.
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<hr alt="गुब्बारे वाला - gubarre wala" class="system-pagebreak" title="गुब्बारे वाला - gubarre wala" />
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<span style="color:#0000CD;"><span style="font-size:20px;"><strong>गुब्बारे वाला - gubarre wala</strong></span></span>
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एक आदमी गुब्बारे बेच कर जीवन-यापन करता था. वह गाँव के आस-पास लगने वाली हाटों में
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जाता और गुब्बारे बेचता . बच्चों को लुभाने के लिए वह तरह-तरह के गुब्बारे रखता …लाल, पीले ,हरे, नीले…. और जब कभी उसे लगता की बिक्री कम हो रही है वह झट से एक गुब्बारा हवा में छोड़ देता, जिसे उड़ता देखकर बच्चे खुश हो जाते और गुब्बारे खरीदने के लिए पहुँच जाते.
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इसी तरह तरह एक दिन वह हाट में गुब्बारे बेच रहा था और बिक्री बढाने के लिए बीच-बीच में गुब्बारे उड़ा रहा था. पास ही खड़ा एक छोटा बच्चा ये सब बड़ी जिज्ञासा के साथ देख रहा था . इस बार जैसे ही गुब्बारे वाले ने एक सफ़ेद गुब्बारा उड़ाया वह तुरंत उसके पास पहुंचा और मासूमियत से बोला, ” अगर आप ये काल वाला गुब्बारा छोड़ेंगे…तो क्या वो भी ऊपर जाएगा ?”
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गुब्बारा वाले ने थोड़े अचरज के साथ उसे देखा और बोला, ” हाँ बिलकुल जाएगा. बेटे ! गुब्बारे का ऊपर जाना इस बात पर नहीं निर्भर करता है कि वो किस रंग का है बल्कि इसपर निर्भर करता है कि उसके अन्दर क्या है .”
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Friends , ठीक इसी तरह हम इंसानों के लिए भी ये बात लागु होती है. कोई अपनी life में क्या achieve करेगा, ये उसके बाहरी रंग-रूप पर नहीं depend करता है , ये इस बात पर depend करता है कि उसके अन्दर क्या है. अंतत: हमारा attitude हमारा altitude decide करता है .
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शिक्षाप्रद कहानियाँ हिंदी में 2018-07-03T18:04:23+05:302018-07-03T18:04:23+05:30https://www.sandybook.in/latestsms/hindi-stories/short-stories-in-hindi/903-%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A6-%E0%A4%95%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%81-%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A5%80-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82Sandybooksandybook.in@gmail.com<p>
<strong><span style="color:#0000CD;"><span style="font-size:20px;">पेड़ों की समस्या</span></span></strong>
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एक राजा बहुत दिनों बाद अपने बागीचे में सैर करने गया , पर वहां पहुँच उसने देखा कि सारे पेड़- पौधे मुरझाए हुए हैं । राजा बहुत चिंतित हुआ, उसने इसकी वजह जानने के सभी पेड़-पौधों से एक-एक करके सवाल पूछने लगा।
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ओक वृक्ष ने कहा, वह मर रहा है क्योंकि वह देवदार जितना लंबा नहीं है। राजा ने देवदार की और देखा तो उसके भी कंधे झुके हुए थे क्योंकि वह अंगूर लता की भांति फल पैदा नहीं कर सकता था। अंगूर लता इसलिए मरी जा रही थी की वह गुलाब की तरह खिल नहीं पाती थी।
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राजा थोडा आगे गया तो उसे एक पेड़ नजर आया जो निश्चिंत था, खिला हुआ था और ताजगी में नहाया हुआ था।
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राजा ने उससे पूछा , ” बड़ी अजीब बात है , मैं पूरे बाग़ में घूम चुका लेकिन एक से बढ़कर एक ताकतवर और बड़े पेड़ दुखी हुई बैठे हैं लेकिन तुम इतने प्रसन्न नज़र आ रहे हो…. ऐसा कैसे संभव है ?”
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पेड़ बोला , ” महाराज , बाकी पेड़ अपनी विशेषता देखने की बजाये स्वयं की दूसरों से तुलना कर दुखी हैं , जबकि मैंने यह मान लिया है कि जब आपने मुझे रोपित कराया होगा तो आप यही चाहते थे कि मैं अपने गुणों से इस बागीचे को सुन्दर बनाऊं , यदि आप इस स्थान पर ओक , अंगूर या गुलाब चाहते तो उन्हें लगवाते !! इसीलिए मैं किसी और की तरह बनने की बजाय अपनी क्षमता केअनुसार श्रेष्ठतम बनने का प्रयास करता हूँ और प्रसन्न रहता हूँ । “
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Friends, इस छोटी सी कहानी में बहुत बड़ा संदेश छिपा है। हम अकसर दुसरो से अपनी तुलना कर स्वयं को कम आंकने की गलती कर बैठते हैं । दूसरो की विशेषताओ से प्रेरित होने की बजाए हम अफ़सोस करने लगते हैं कि हम उन जैसे क्यों नहीं हैं ।
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न तो हम Sachin Tendulkar की तरह बैटिंग कर सकते हैं , न Amitabh Bachchan की तरह acting कर सकते है और न ही हम Usain Bolt की तरह दौड़ सकते हैं या Roger Federer की तरह Tennis खेल सकते है। हमें यह याद रखना चाहिए की सभी व्यक्ति अलग हैं और सभी की विशेषताए अलग हैं । हम जैसे है वैसे ही अस्तित्व हमें चाहता है। हम सभी में कुछ ऐसी qualities है, जो अन्य लोगो में नहीं है। जरुरत है तो सिर्फ उसे पहचानने की और उस quality को और विकसित कर अपने क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने की ।
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हम सभी में कुछ ऐसी Qualities है, जो अन्य लोगो में नहीं है। जरुरत है तो सिर्फ उसे पहचानने की और उस quality को और विकसित कर अपने क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने की। अगर हम यकीन कर ले की हम सफल हो सकते है, तो इससे दूसरे भी हम पर विश्वास करने लगते है। इंसान की सबसे बड़ी कमजोरी खुद का मूल्यांकन कम करने की होती है। हमें अपनी कमिया पता होना अच्छी बात है। इनसे हमें यह पता चलता है की हमें किस क्षेत्र में सुधार करना है।
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हमेशा अपने गुणों, अपनी योग्यताओ पर ध्यान केन्द्रित करे। यह जान ले, आप जितना समझते है, आप उससे कही बेहतर है। बड़ी सफलता उन्ही लोगो का दरवाजा खटखटाती है जो लगातार खुद के सामने उचे लक्ष्य रखते है, जो अपनी कार्यक्षमता सुधारना चाहते है।
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<hr alt="जोकर की सीख" class="system-pagebreak" title="जोकर की सीख" />
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<span style="color:#0000FF;"><span style="font-size:20px;"><strong>जोकर की सीख</strong></span></span>
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एक बार एक जोकर सर्कस मे लोगो को एक चुटकुला सुना रहा था। चुटकुला सुनकर लोग खूब जोर-जोर से हंसने लगे । कुछ देर बाद जोकर ने वही चुटकुला दुबारा सुनाया । अबकी बार कम लोग हंसे । थोडा और समय बीतेने के बाद तीसरी बार भी जोकर ने वही चुटकुला सुनाना शुरू किया ।
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पर इससे पहले कि वो अपनी बात ख़त्म करता बीच में ही एक दर्शक बोला, ” अरे ! कितनी बार एक ही चुटकुला सुनाओगे…. कुछ और सुनाओ अब इस पर हंसी नहीं आती। “
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जोकर थोड़ा गंभीर होते हुए बोला , ” धन्यवाद भाई साहब , यही तो मैं भी कहना चाहता हूँ…. जब ख़ुशी के एक कारण की वजह से आप लोग बार- बार खुश नहीं हो सकते तो दुःख के एक कारण से बार-बार दुखी क्यों होते हो , भाइयों हमारे जीवन में अधिक दुःख और कम ख़ुशी का यही कारण है…हम ख़ुशी को आसानी से छोड़ देते हैं पर दुःख को पकड़ कर बैठे रहते हैं … “
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मित्रो इस बात का आशय यह है कि जीवन मे सुख-दुःख का आना-जाना लगा रहता है ।पर जिस तरह एक ही खुशी को हम बार बार नही महसूस करना चाहते उसी तरह हमें एक ही दु:ख से बार-बार दुखी नहीं महसूस करना चाहिए । जीवन मे सफलता तभी मिलती है जब हम दु:खो को भूलकर आगे बढने का परयत्न करते है ।
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<hr alt="ताबूत" class="system-pagebreak" title="ताबूत" />
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<span style="font-size:20px;"><span style="color:#0000CD;"><strong>ताबूत</strong></span></span>
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एक दिन एम्प्लाइज जब ऑफिस पहुंचे तो उन्हें गेट पर एक बड़ा सा नोटिस लगा दिखा :” इस कंपनी में जो व्यक्ति आपको आगे बढ़ने से रोक रहा था कल उसकी मृत्यु हो गयी . हम आपको उसे आखिरी बार देखने का मौका दे रहे हैं , कृपया बारी-बारी से मीटिंग हॉल में जाएं और उसे देखने का कष्ट करें .”
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जो भी नोटिस पढता उसे पहले तो दुःख होता लेकिन फिर जिज्ञासा हो जाती की आखिर वो कौन था जिसने उसकी ग्रोथ रोक रखी थी … और वो हॉल की तरफ चल देता …देखते देखते हॉल के बाहर काफी भीड़ इकठ्ठा हो गयी , गार्ड्स ने सभी को रोक रखा था और उन्हें एक -एक कर के अन्दर जाने दे रहा था.
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सबने देखा की अन्दर जाने वाला व्यक्ति काफी गंभीर हो कर बाहर निकलता , मानो उसके किसी करीबी की मृत्यु हुई हो !… इस बार अन्दर जाने की बारी एक पुराने एम्प्लोयी की थी …उसे सब जानते थे ,सबको पता था कि उसे हर एक चीज से शिकायत रहती है …. कंपनी से , सहकर्मियों से , वेतन से हर एक चीज से !
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पर आज वो थोडा खुश लग रहा था …उसे लगा कि चलो जिसकी वजह से उसकी लाइफ में इतनी प्रोब्लम्स थीं वो गुजर गया …अपनी बारी आते ही वो तेजी से ताबूत के पास पहुंचा और बड़ी जिज्ञासा से उचक कर अन्दर झाँकने लगा …पर ये क्या अन्दर तो एक बड़ा सा आइना रखा हुआ था.
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यह देख वह क्रोधित हो उठा और जोर से चिल्लाने के हुआ कि तभी उसे आईने के बगल में एक सन्देश लिखा दिखा –
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“इस दुनिया में केवल एक ही व्यक्ति है जो आपकी ग्रोथ रोक सकता है और वो आप खुद हैं . इस पूरे संसार में आप वो अकेले व्यक्ति हैं जो आपकी ज़िन्दगी में क्रांति ला सकता है .
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आपकी ज़िन्दगी तब नहीं बदलती जब आपका बॉस बदलता है , जब आपके दोस्त बदलते हैं , जब आपके पार्टनर बदलते हैं , या जब आपकी कंपनी बदलती है …. ज़िन्दगी तब बदलती है जब आप बदलते हैं , जब आप अपनी लिमिटिंग बिलीफ्स तोड़ते हैं , जब आप इस बात को रीयलाईज करते हैं कि अपनी ज़िंदगी के लिए सिर्फ और सिर्फ आप जिम्मेदार हैं . सबसे अच्छा रिश्ता जो आप बना सकते हैं वो खुद से बनाया रिश्ता है . खुद को देखिये , समझिये …कठिनाइयों से घबराइए नहीं उन्हें पीछे छोडिये … विजेता बनिए , खुद का विकस करिए और अपनी उस वास्तविकता का निर्माण करिए जिसका करना चाहते हैं !
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दुनिया एक आईने की तरह है : वो इंसान को उसके शशक्त विचारों का प्रतिबिम्ब प्रदान करती है . ताबूत में पड़ा आइना दरअसल आपको ये बताता है की जहाँ आप अपने विचारों की शक्ति से अपनी दुनिया बदल सकते हैं वहां आप जीवित होकर भी एक मृत के समान जी रहे हैं।
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इसी वक़्त दफना दीजिये उस पुराने ‘मैं’ को और एक नए ‘मैं’ का सृजन कीजिये !!!”
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<hr alt="आखिरी काम !" class="system-pagebreak" title="आखिरी काम !" />
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<span style="color:#0000CD;"><span style="font-size:20px;"><strong>आखिरी काम !</strong></span></span>
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एक बूढ़ा कारपेंटर अपने काम के लिए काफी जाना जाता था , उसके बनाये लकड़ी के घर दूर -दूर तक प्रसिद्द थे . पर अब बूढा हो जाने के कारण उसने सोचा कि बाकी की ज़िन्दगी आराम से गुजारी जाए और वह अगले दिन सुबह-सुबह अपने मालिक के पास पहुंचा और बोला , ” ठेकेदार साहब , मैंने बरसों आपकी सेवा की है पर अब मैं बाकी का समय आराम से पूजा-पाठ में बिताना चाहता हूँ , कृपया मुझे काम छोड़ने की अनुमति दें . “
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ठेकेदार कारपेंटर को बहुत मानता था , इसलिए उसे ये सुनकर थोडा दुःख हुआ पर वो कारपेंटर को निराश नहीं करना चाहता था , उसने कहा , ” आप यहाँ के सबसे अनुभवी व्यक्ति हैं , आपकी कमी यहाँ कोई नहीं पूरी कर पायेगा लेकिन मैं आपसे निवेदन करता हूँ कि जाने से पहले एक आखिरी काम करते जाइये .”
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“जी , क्या काम करना है ?” , कारपेंटर ने पूछा .
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“मैं चाहता हूँ कि आप जाते -जाते हमारे लिए एक और लकड़ी का घर तैयार कर दीजिये .” , ठेकेदार घर बनाने के लिए ज़रूरी पैसे देते हुए बोला .
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कारपेंटर इस काम के लिए तैयार हो गया . उसने अगले दिन से ही घर बनाना शुरू कर दिया , पर ये जान कर कि ये उसका आखिरी काम है और इसके बाद उसे और कुछ नहीं करना होगा वो थोड़ा ढीला पड़ गया . पहले जहाँ वह बड़ी सावधानी से लकड़ियाँ चुनता और काटता था अब बस काम चालाऊ तरीके से ये सब करने लगा . कुछ एक हफ्तों में घर तैयार हो गया और वो ठेकेदार के पास पहुंचा , ” ठेकेदार साहब , मैंने घर तैयार कर लिया है , अब तो मैं काम छोड़ कर जा सकता हूँ ?”
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ठेकेदार बोला ” हाँ , आप बिलकुल जा सकते हैं लेकिन अब आपको अपने पुराने छोटे से घर में जाने की ज़रुरत नहीं है , क्योंकि इस बार जो घर आपने बनाया है वो आपकी बरसों की मेहनत का इनाम है; जाइये अपने परिवार के साथ उसमे खुशहाली से रहिये !”.!”.
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कारपेंटर यह सुनकर स्तब्ध रह गया , वह मन ही मन सोचने लगा , “कहाँ मैंने दूसरों के लिए एक से बढ़ कर एक घर बनाये और अपने घर को ही इतने घटिया तरीके से बना बैठा …क़ाश मैंने ये घर भी बाकी घरों की तरह ही बनाया होता .”
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दोस्तों , कब आपका कौन सा काम किस तरह आपको affect कर सकता है ये बताना मुश्किल है. ये भी समझने की ज़रुरत है कि हमारा काम हमारी पहचान बना भी सकता है और बिगाड़ भी सकता है. इसलिए हमारी कोशिश होनी चाहिए कि हम हर एक काम अपनी best of abilities के साथ करें फिर चाहे वो हमारा आखिरी काम ही क्यों न हो!
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<hr alt="सफलता की तैयारी" class="system-pagebreak" title="सफलता की तैयारी" />
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<span style="color:#0000CD;"><span style="font-size:20px;"><strong>सफलता की तैयारी</strong></span></span>
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शहर से कुछ दूर एक बुजुर्ग दम्पत्ती रहते थे . वो जगह बिलकुल शांत थी और आस -पास इक्का -दुक्का लोग ही नज़र आते थे .
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एक दिन भोर में उन्होंने देखा की एक युवक हाथ में फावड़ा लिए अपनी साइकिल से कहीं जा रहा है , वह कुछ देर दिखाई दिया और फिर उनकी नज़रों से ओझल हो गया .दम्पत्ती ने इस बात पर अधिक ध्यान नहीं दिया , पर अगले दिन फिर वह व्यक्ति उधर से जाता दिखा .अब तो मानो ये रोज की ही बात बन गयी , वह व्यक्ति रोज फावड़ा लिए उधर से गुजरता और थोड़ी देर में आँखों से ओझल हो जाता .
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दम्पत्ती इस सुन्सान इलाके में इस तरह किसी के रोज आने -जाने से कुछ परेशान हो गए और उन्होंने उसका पीछा करने का फैसला किया .अगले दिन जब वह उनके घर के सामने से गुजरा तो दंपत्ती भी अपनी गाडी से उसके पीछे -पीछे चलने लगे . कुछ दूर जाने के बाद वह एक पेड़ के पास रुक और अपनी साइकिल वहीँ कड़ी कर आगे बढ़ने लगा . १५-२० कदम चलने के बाद वह रुका और अपने फावड़े से ज़मीन खोदने लगा .
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दम्पत्ती को ये बड़ा अजीब लगा और वे हिम्मत कर उसके पास पहुंचे ,“तुम यहाँ इस वीराने में ये काम क्यों कर रहे हो ?”
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युवक बोला , “ जी, दो दिन बाद मुझे एक किसान के यहाँ काम पाने क लिए जाना है , और उन्हें ऐसा आदमी चाहिए जिसे खेतों में काम करने का अनुभव हो , चूँकि मैंने पहले कभी खेतों में काम नहीं किया इसलिए कुछ दिनों से यहाँ आकार खेतों में काम करने की तैयारी कर रहा हूँ!!”
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दम्पत्ती यह सुनकर काफी प्रभावित हुए और उसे काम मिल जाने का आशीर्वाद दिया .
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दोस्तों , किसी भी चीज में सफलता पाने के लिए तैयारी बहुत ज़रूरी है . जिस sincerity के साथ युवक ने खुद को खेतों में काम करने के लिए तैयार किया कुछ उसी तरह हमें भी अपने-अपने क्षेत्र में सफलता के लिए खुद को तैयार करना चाहिए।
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<hr alt="ब्लैक बेल्ट" class="system-pagebreak" title="ब्लैक बेल्ट" />
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<span style="color:#0000CD;"><span style="font-size:20px;"><strong>ब्लैक बेल्ट</strong></span></span>
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एक नौजवान मार्शल आर्टिस्ट को सालों की मेहनत के बाद ब्लैक बेल्ट देने के लिए चयनित किया गया . ये बेल्ट एक समारोह में मास्टर सेन्सेइ द्वारा दी जानी थी .समारोह वाले दिन नवयुवक मास्टर सेन्सेइ के समक्ष ब्लैक – बेल्ट प्राप्त करने पहुंचा .
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“ बेल्ट देने से पहले , तुम्हे एक और परीक्षा देनी होगी ,” सेन्सेइ बोले .
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ब्लैक बेल्ट पाने का अर्थ ?
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“मैं तैयार हूँ ,” नवयुवक बोला ; उसे लगा की शायद उसे किसी से मुकाबला करना होगा .
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लेकिन सेंसेई के दिमाग में तो कुछ और ही चल रहा था . उन्होंने पूछा , “ तुम्हे इस प्रश्न का उत्तर देना होगा : ब्लैक बेल्ट हांसिल करने का असली मतलब क्या है ?”
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“ मेरी यात्रा का अंत ,” नवयुवक बोला . “मेरे कठोर परिश्रम का इनाम .”
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सेंसेई इस उत्तर से संतुष्ट नहीं हुए और बोले ; “ तुम अभी ब्लैक बेल्ट पाने के काबिल नहीं बने हो . एक साल बाद आना .”
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एक साल बाद नवयुवक एक बार फिर ब्लैक बेल्ट लेने के लिए पहुंचा , सेंसेई ने दुबारा वही प्रश्न किया , “ब्लैक बेल्ट हांसिल करने का असली मतलब क्या है ?”
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“ यह इस कला में सबसे बड़ी उपलब्धि पाने का प्रतीक है ,” नवयुवक बोला
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सेंसेई संतुष्ट नहीं हुए और कुछ देर इंतज़ार किया की वो कुछ और भी बोले पर युवक शांत ही रहा .
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“ तुम अभी भी बेल्ट पाने के हकदार नहीं बन पाए हो , जाओ अगले साल फिर आना .” , और ऐसा कहते हुए सेंसेई ने युवक को वापस भेज दिया .
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एक साल बाद फिर वह युवक सेंसेई के सामने क्ल्हादा था . सेंसेई ने पुनः वही प्रश्न किया ,
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“ब्लैक बेल्ट हांसिल करने का असली मतलब क्या है ?”
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“ ब्लैक बेल्ट आरम्भ है एक कभी न ख़त्म होने वाली यात्रा का जिसमे अनुशाशन है ,कठोर परिश्रम है , और हमेशा सर्वोत्तम मापदंड छूने की लालसा है .” नवयुवक ने पूरे आत्म -विश्वास के साथ उत्तर दिया .
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“सेंसेई उत्तर सुन कर प्रसन्न हुए और बोले , “ बिलकुल सही . अब तुम ब्लैक -बेल्ट पाने के लायक बने हो . लो इस सम्मान को ग्रहण करो और अपने कार्य में लग जाओ .”,
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दोस्तों , कई बार किसी बड़ी उपलब्धि को हांसिल करने के बाद हम थोड़े निश्चिंत हो जाते हैं , शायद यही वजह है की शिखर पर पहुंचना शिखर पर बने रहने से आसान होता है. हमें चाहिए की हम अपनी उपलब्धि के मुताबिक और भी कड़ी मेहनत करें और अपने सम्मान की प्रतिष्ठा बनाये रखें.
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<hr alt="बड़ा काम छोटा काम" class="system-pagebreak" title="बड़ा काम छोटा काम" />
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<span style="color:#0000CD;"><span style="font-size:20px;"><strong>बड़ा काम छोटा काम</strong></span></span>
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शहर की मेन मार्केट में एक गराज था जिसे अब्दुल नाम का मैकेनिक चलाता था . वैसे तो अब्दुल एक अच्छा आदमी था लेकिन उसके अन्दर एक कमी थी , वो अपने काम को बड़ा और दूसरों के काम को छोटा समझता था .
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एक बार एक हार्ट सर्जन अपनी लक्ज़री कार लेकर उसके यहाँ सर्विसिंग कराने पहुंचे . बातों -बातों में जब अब्दुल को पता चला की कस्टमर एक हार्ट सर्जन है तो उसने तुरन्त पूछा , “ डॉक्टर साहब मैं ये सोच रहा था की हम दोनों के काम एक जैसे हैं… !”
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“एक जैसे ! वो कैसे ?” , सर्जन ने थोडा अचरज से पूछा .
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“देखिये जनाब ,” अब्दुल कार के कौम्प्लिकेटेड इंजन पर काम करते हुए बोल , “ ये इंजन कार का दिल है , मैं चेक करता हूँ की ये कैसा चल रहा है , मैं इसे खोलता हूँ , इसके वाल्वस फिट करता हूँ , अच्छी तरह से सर्विसिंग कर के इसकी प्रोब्लम्स ख़तम करता हूँ और फिर वापस जोड़ देता हूँ …आप भी कुछ ऐसा ही करते हैं ; क्यों ?”
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“हम्म ”, सर्जन ने हामी भरी .
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“तो ये बताइए की आपको मुझसे 10 गुना अधिक पैसे क्यों मिलते हैं, काम तो आप भी मेरे जैसा ही करते हैं ?”, अब्दुल ने खीजते हुए पूछा .
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सर्जन ने एक क्षण सोचा और मुस्कुराते हुए बोला , “ जो तुम कर रहे हो उसे चालू इंजन पे कर के देखो , समझ जाओगे .”
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अब्दुल को इससे पहले किसी ने ऐसा जवाब नही दिया था, अब वह अपनी गलती समझ चुका था.
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दोस्तों , हर एक काम की अपनी importance होती है , अपने काम को बड़ा समझना ठीक है पर दूसरों के काम को कभी छोटा नहीं समझना चाहिए ; हम औरों के काम के बारे में बस उपरी तौर पे जानते हैं लेकिन उसे करने में आने वाले challenges के बारे में हमें कुछ ख़ास नहीं पता होता . इसलिए किसी के काम को छोटा नहीं समझें और सभी की respect करें .
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<strong><span style="color:#0000CD;"><span style="font-size:20px;">पेड़ों की समस्या</span></span></strong>
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एक राजा बहुत दिनों बाद अपने बागीचे में सैर करने गया , पर वहां पहुँच उसने देखा कि सारे पेड़- पौधे मुरझाए हुए हैं । राजा बहुत चिंतित हुआ, उसने इसकी वजह जानने के सभी पेड़-पौधों से एक-एक करके सवाल पूछने लगा।
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ओक वृक्ष ने कहा, वह मर रहा है क्योंकि वह देवदार जितना लंबा नहीं है। राजा ने देवदार की और देखा तो उसके भी कंधे झुके हुए थे क्योंकि वह अंगूर लता की भांति फल पैदा नहीं कर सकता था। अंगूर लता इसलिए मरी जा रही थी की वह गुलाब की तरह खिल नहीं पाती थी।
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राजा थोडा आगे गया तो उसे एक पेड़ नजर आया जो निश्चिंत था, खिला हुआ था और ताजगी में नहाया हुआ था।
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राजा ने उससे पूछा , ” बड़ी अजीब बात है , मैं पूरे बाग़ में घूम चुका लेकिन एक से बढ़कर एक ताकतवर और बड़े पेड़ दुखी हुई बैठे हैं लेकिन तुम इतने प्रसन्न नज़र आ रहे हो…. ऐसा कैसे संभव है ?”
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पेड़ बोला , ” महाराज , बाकी पेड़ अपनी विशेषता देखने की बजाये स्वयं की दूसरों से तुलना कर दुखी हैं , जबकि मैंने यह मान लिया है कि जब आपने मुझे रोपित कराया होगा तो आप यही चाहते थे कि मैं अपने गुणों से इस बागीचे को सुन्दर बनाऊं , यदि आप इस स्थान पर ओक , अंगूर या गुलाब चाहते तो उन्हें लगवाते !! इसीलिए मैं किसी और की तरह बनने की बजाय अपनी क्षमता केअनुसार श्रेष्ठतम बनने का प्रयास करता हूँ और प्रसन्न रहता हूँ । “
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Friends, इस छोटी सी कहानी में बहुत बड़ा संदेश छिपा है। हम अकसर दुसरो से अपनी तुलना कर स्वयं को कम आंकने की गलती कर बैठते हैं । दूसरो की विशेषताओ से प्रेरित होने की बजाए हम अफ़सोस करने लगते हैं कि हम उन जैसे क्यों नहीं हैं ।
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न तो हम Sachin Tendulkar की तरह बैटिंग कर सकते हैं , न Amitabh Bachchan की तरह acting कर सकते है और न ही हम Usain Bolt की तरह दौड़ सकते हैं या Roger Federer की तरह Tennis खेल सकते है। हमें यह याद रखना चाहिए की सभी व्यक्ति अलग हैं और सभी की विशेषताए अलग हैं । हम जैसे है वैसे ही अस्तित्व हमें चाहता है। हम सभी में कुछ ऐसी qualities है, जो अन्य लोगो में नहीं है। जरुरत है तो सिर्फ उसे पहचानने की और उस quality को और विकसित कर अपने क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने की ।
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हम सभी में कुछ ऐसी Qualities है, जो अन्य लोगो में नहीं है। जरुरत है तो सिर्फ उसे पहचानने की और उस quality को और विकसित कर अपने क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने की। अगर हम यकीन कर ले की हम सफल हो सकते है, तो इससे दूसरे भी हम पर विश्वास करने लगते है। इंसान की सबसे बड़ी कमजोरी खुद का मूल्यांकन कम करने की होती है। हमें अपनी कमिया पता होना अच्छी बात है। इनसे हमें यह पता चलता है की हमें किस क्षेत्र में सुधार करना है।
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हमेशा अपने गुणों, अपनी योग्यताओ पर ध्यान केन्द्रित करे। यह जान ले, आप जितना समझते है, आप उससे कही बेहतर है। बड़ी सफलता उन्ही लोगो का दरवाजा खटखटाती है जो लगातार खुद के सामने उचे लक्ष्य रखते है, जो अपनी कार्यक्षमता सुधारना चाहते है।
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<hr alt="जोकर की सीख" class="system-pagebreak" title="जोकर की सीख" />
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<span style="color:#0000FF;"><span style="font-size:20px;"><strong>जोकर की सीख</strong></span></span>
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एक बार एक जोकर सर्कस मे लोगो को एक चुटकुला सुना रहा था। चुटकुला सुनकर लोग खूब जोर-जोर से हंसने लगे । कुछ देर बाद जोकर ने वही चुटकुला दुबारा सुनाया । अबकी बार कम लोग हंसे । थोडा और समय बीतेने के बाद तीसरी बार भी जोकर ने वही चुटकुला सुनाना शुरू किया ।
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पर इससे पहले कि वो अपनी बात ख़त्म करता बीच में ही एक दर्शक बोला, ” अरे ! कितनी बार एक ही चुटकुला सुनाओगे…. कुछ और सुनाओ अब इस पर हंसी नहीं आती। “
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जोकर थोड़ा गंभीर होते हुए बोला , ” धन्यवाद भाई साहब , यही तो मैं भी कहना चाहता हूँ…. जब ख़ुशी के एक कारण की वजह से आप लोग बार- बार खुश नहीं हो सकते तो दुःख के एक कारण से बार-बार दुखी क्यों होते हो , भाइयों हमारे जीवन में अधिक दुःख और कम ख़ुशी का यही कारण है…हम ख़ुशी को आसानी से छोड़ देते हैं पर दुःख को पकड़ कर बैठे रहते हैं … “
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मित्रो इस बात का आशय यह है कि जीवन मे सुख-दुःख का आना-जाना लगा रहता है ।पर जिस तरह एक ही खुशी को हम बार बार नही महसूस करना चाहते उसी तरह हमें एक ही दु:ख से बार-बार दुखी नहीं महसूस करना चाहिए । जीवन मे सफलता तभी मिलती है जब हम दु:खो को भूलकर आगे बढने का परयत्न करते है ।
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<hr alt="ताबूत" class="system-pagebreak" title="ताबूत" />
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<span style="font-size:20px;"><span style="color:#0000CD;"><strong>ताबूत</strong></span></span>
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एक दिन एम्प्लाइज जब ऑफिस पहुंचे तो उन्हें गेट पर एक बड़ा सा नोटिस लगा दिखा :” इस कंपनी में जो व्यक्ति आपको आगे बढ़ने से रोक रहा था कल उसकी मृत्यु हो गयी . हम आपको उसे आखिरी बार देखने का मौका दे रहे हैं , कृपया बारी-बारी से मीटिंग हॉल में जाएं और उसे देखने का कष्ट करें .”
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जो भी नोटिस पढता उसे पहले तो दुःख होता लेकिन फिर जिज्ञासा हो जाती की आखिर वो कौन था जिसने उसकी ग्रोथ रोक रखी थी … और वो हॉल की तरफ चल देता …देखते देखते हॉल के बाहर काफी भीड़ इकठ्ठा हो गयी , गार्ड्स ने सभी को रोक रखा था और उन्हें एक -एक कर के अन्दर जाने दे रहा था.
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सबने देखा की अन्दर जाने वाला व्यक्ति काफी गंभीर हो कर बाहर निकलता , मानो उसके किसी करीबी की मृत्यु हुई हो !… इस बार अन्दर जाने की बारी एक पुराने एम्प्लोयी की थी …उसे सब जानते थे ,सबको पता था कि उसे हर एक चीज से शिकायत रहती है …. कंपनी से , सहकर्मियों से , वेतन से हर एक चीज से !
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पर आज वो थोडा खुश लग रहा था …उसे लगा कि चलो जिसकी वजह से उसकी लाइफ में इतनी प्रोब्लम्स थीं वो गुजर गया …अपनी बारी आते ही वो तेजी से ताबूत के पास पहुंचा और बड़ी जिज्ञासा से उचक कर अन्दर झाँकने लगा …पर ये क्या अन्दर तो एक बड़ा सा आइना रखा हुआ था.
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यह देख वह क्रोधित हो उठा और जोर से चिल्लाने के हुआ कि तभी उसे आईने के बगल में एक सन्देश लिखा दिखा –
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“इस दुनिया में केवल एक ही व्यक्ति है जो आपकी ग्रोथ रोक सकता है और वो आप खुद हैं . इस पूरे संसार में आप वो अकेले व्यक्ति हैं जो आपकी ज़िन्दगी में क्रांति ला सकता है .
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आपकी ज़िन्दगी तब नहीं बदलती जब आपका बॉस बदलता है , जब आपके दोस्त बदलते हैं , जब आपके पार्टनर बदलते हैं , या जब आपकी कंपनी बदलती है …. ज़िन्दगी तब बदलती है जब आप बदलते हैं , जब आप अपनी लिमिटिंग बिलीफ्स तोड़ते हैं , जब आप इस बात को रीयलाईज करते हैं कि अपनी ज़िंदगी के लिए सिर्फ और सिर्फ आप जिम्मेदार हैं . सबसे अच्छा रिश्ता जो आप बना सकते हैं वो खुद से बनाया रिश्ता है . खुद को देखिये , समझिये …कठिनाइयों से घबराइए नहीं उन्हें पीछे छोडिये … विजेता बनिए , खुद का विकस करिए और अपनी उस वास्तविकता का निर्माण करिए जिसका करना चाहते हैं !
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दुनिया एक आईने की तरह है : वो इंसान को उसके शशक्त विचारों का प्रतिबिम्ब प्रदान करती है . ताबूत में पड़ा आइना दरअसल आपको ये बताता है की जहाँ आप अपने विचारों की शक्ति से अपनी दुनिया बदल सकते हैं वहां आप जीवित होकर भी एक मृत के समान जी रहे हैं।
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इसी वक़्त दफना दीजिये उस पुराने ‘मैं’ को और एक नए ‘मैं’ का सृजन कीजिये !!!”
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<hr alt="आखिरी काम !" class="system-pagebreak" title="आखिरी काम !" />
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<span style="color:#0000CD;"><span style="font-size:20px;"><strong>आखिरी काम !</strong></span></span>
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एक बूढ़ा कारपेंटर अपने काम के लिए काफी जाना जाता था , उसके बनाये लकड़ी के घर दूर -दूर तक प्रसिद्द थे . पर अब बूढा हो जाने के कारण उसने सोचा कि बाकी की ज़िन्दगी आराम से गुजारी जाए और वह अगले दिन सुबह-सुबह अपने मालिक के पास पहुंचा और बोला , ” ठेकेदार साहब , मैंने बरसों आपकी सेवा की है पर अब मैं बाकी का समय आराम से पूजा-पाठ में बिताना चाहता हूँ , कृपया मुझे काम छोड़ने की अनुमति दें . “
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ठेकेदार कारपेंटर को बहुत मानता था , इसलिए उसे ये सुनकर थोडा दुःख हुआ पर वो कारपेंटर को निराश नहीं करना चाहता था , उसने कहा , ” आप यहाँ के सबसे अनुभवी व्यक्ति हैं , आपकी कमी यहाँ कोई नहीं पूरी कर पायेगा लेकिन मैं आपसे निवेदन करता हूँ कि जाने से पहले एक आखिरी काम करते जाइये .”
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“जी , क्या काम करना है ?” , कारपेंटर ने पूछा .
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“मैं चाहता हूँ कि आप जाते -जाते हमारे लिए एक और लकड़ी का घर तैयार कर दीजिये .” , ठेकेदार घर बनाने के लिए ज़रूरी पैसे देते हुए बोला .
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कारपेंटर इस काम के लिए तैयार हो गया . उसने अगले दिन से ही घर बनाना शुरू कर दिया , पर ये जान कर कि ये उसका आखिरी काम है और इसके बाद उसे और कुछ नहीं करना होगा वो थोड़ा ढीला पड़ गया . पहले जहाँ वह बड़ी सावधानी से लकड़ियाँ चुनता और काटता था अब बस काम चालाऊ तरीके से ये सब करने लगा . कुछ एक हफ्तों में घर तैयार हो गया और वो ठेकेदार के पास पहुंचा , ” ठेकेदार साहब , मैंने घर तैयार कर लिया है , अब तो मैं काम छोड़ कर जा सकता हूँ ?”
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ठेकेदार बोला ” हाँ , आप बिलकुल जा सकते हैं लेकिन अब आपको अपने पुराने छोटे से घर में जाने की ज़रुरत नहीं है , क्योंकि इस बार जो घर आपने बनाया है वो आपकी बरसों की मेहनत का इनाम है; जाइये अपने परिवार के साथ उसमे खुशहाली से रहिये !”.!”.
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कारपेंटर यह सुनकर स्तब्ध रह गया , वह मन ही मन सोचने लगा , “कहाँ मैंने दूसरों के लिए एक से बढ़ कर एक घर बनाये और अपने घर को ही इतने घटिया तरीके से बना बैठा …क़ाश मैंने ये घर भी बाकी घरों की तरह ही बनाया होता .”
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दोस्तों , कब आपका कौन सा काम किस तरह आपको affect कर सकता है ये बताना मुश्किल है. ये भी समझने की ज़रुरत है कि हमारा काम हमारी पहचान बना भी सकता है और बिगाड़ भी सकता है. इसलिए हमारी कोशिश होनी चाहिए कि हम हर एक काम अपनी best of abilities के साथ करें फिर चाहे वो हमारा आखिरी काम ही क्यों न हो!
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<hr alt="सफलता की तैयारी" class="system-pagebreak" title="सफलता की तैयारी" />
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<span style="color:#0000CD;"><span style="font-size:20px;"><strong>सफलता की तैयारी</strong></span></span>
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शहर से कुछ दूर एक बुजुर्ग दम्पत्ती रहते थे . वो जगह बिलकुल शांत थी और आस -पास इक्का -दुक्का लोग ही नज़र आते थे .
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एक दिन भोर में उन्होंने देखा की एक युवक हाथ में फावड़ा लिए अपनी साइकिल से कहीं जा रहा है , वह कुछ देर दिखाई दिया और फिर उनकी नज़रों से ओझल हो गया .दम्पत्ती ने इस बात पर अधिक ध्यान नहीं दिया , पर अगले दिन फिर वह व्यक्ति उधर से जाता दिखा .अब तो मानो ये रोज की ही बात बन गयी , वह व्यक्ति रोज फावड़ा लिए उधर से गुजरता और थोड़ी देर में आँखों से ओझल हो जाता .
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दम्पत्ती इस सुन्सान इलाके में इस तरह किसी के रोज आने -जाने से कुछ परेशान हो गए और उन्होंने उसका पीछा करने का फैसला किया .अगले दिन जब वह उनके घर के सामने से गुजरा तो दंपत्ती भी अपनी गाडी से उसके पीछे -पीछे चलने लगे . कुछ दूर जाने के बाद वह एक पेड़ के पास रुक और अपनी साइकिल वहीँ कड़ी कर आगे बढ़ने लगा . १५-२० कदम चलने के बाद वह रुका और अपने फावड़े से ज़मीन खोदने लगा .
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दम्पत्ती को ये बड़ा अजीब लगा और वे हिम्मत कर उसके पास पहुंचे ,“तुम यहाँ इस वीराने में ये काम क्यों कर रहे हो ?”
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युवक बोला , “ जी, दो दिन बाद मुझे एक किसान के यहाँ काम पाने क लिए जाना है , और उन्हें ऐसा आदमी चाहिए जिसे खेतों में काम करने का अनुभव हो , चूँकि मैंने पहले कभी खेतों में काम नहीं किया इसलिए कुछ दिनों से यहाँ आकार खेतों में काम करने की तैयारी कर रहा हूँ!!”
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दम्पत्ती यह सुनकर काफी प्रभावित हुए और उसे काम मिल जाने का आशीर्वाद दिया .
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दोस्तों , किसी भी चीज में सफलता पाने के लिए तैयारी बहुत ज़रूरी है . जिस sincerity के साथ युवक ने खुद को खेतों में काम करने के लिए तैयार किया कुछ उसी तरह हमें भी अपने-अपने क्षेत्र में सफलता के लिए खुद को तैयार करना चाहिए।
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<hr alt="ब्लैक बेल्ट" class="system-pagebreak" title="ब्लैक बेल्ट" />
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<span style="color:#0000CD;"><span style="font-size:20px;"><strong>ब्लैक बेल्ट</strong></span></span>
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एक नौजवान मार्शल आर्टिस्ट को सालों की मेहनत के बाद ब्लैक बेल्ट देने के लिए चयनित किया गया . ये बेल्ट एक समारोह में मास्टर सेन्सेइ द्वारा दी जानी थी .समारोह वाले दिन नवयुवक मास्टर सेन्सेइ के समक्ष ब्लैक – बेल्ट प्राप्त करने पहुंचा .
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“ बेल्ट देने से पहले , तुम्हे एक और परीक्षा देनी होगी ,” सेन्सेइ बोले .
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ब्लैक बेल्ट पाने का अर्थ ?
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“मैं तैयार हूँ ,” नवयुवक बोला ; उसे लगा की शायद उसे किसी से मुकाबला करना होगा .
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लेकिन सेंसेई के दिमाग में तो कुछ और ही चल रहा था . उन्होंने पूछा , “ तुम्हे इस प्रश्न का उत्तर देना होगा : ब्लैक बेल्ट हांसिल करने का असली मतलब क्या है ?”
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“ मेरी यात्रा का अंत ,” नवयुवक बोला . “मेरे कठोर परिश्रम का इनाम .”
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सेंसेई इस उत्तर से संतुष्ट नहीं हुए और बोले ; “ तुम अभी ब्लैक बेल्ट पाने के काबिल नहीं बने हो . एक साल बाद आना .”
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एक साल बाद नवयुवक एक बार फिर ब्लैक बेल्ट लेने के लिए पहुंचा , सेंसेई ने दुबारा वही प्रश्न किया , “ब्लैक बेल्ट हांसिल करने का असली मतलब क्या है ?”
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“ यह इस कला में सबसे बड़ी उपलब्धि पाने का प्रतीक है ,” नवयुवक बोला
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सेंसेई संतुष्ट नहीं हुए और कुछ देर इंतज़ार किया की वो कुछ और भी बोले पर युवक शांत ही रहा .
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“ तुम अभी भी बेल्ट पाने के हकदार नहीं बन पाए हो , जाओ अगले साल फिर आना .” , और ऐसा कहते हुए सेंसेई ने युवक को वापस भेज दिया .
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एक साल बाद फिर वह युवक सेंसेई के सामने क्ल्हादा था . सेंसेई ने पुनः वही प्रश्न किया ,
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“ब्लैक बेल्ट हांसिल करने का असली मतलब क्या है ?”
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“ ब्लैक बेल्ट आरम्भ है एक कभी न ख़त्म होने वाली यात्रा का जिसमे अनुशाशन है ,कठोर परिश्रम है , और हमेशा सर्वोत्तम मापदंड छूने की लालसा है .” नवयुवक ने पूरे आत्म -विश्वास के साथ उत्तर दिया .
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“सेंसेई उत्तर सुन कर प्रसन्न हुए और बोले , “ बिलकुल सही . अब तुम ब्लैक -बेल्ट पाने के लायक बने हो . लो इस सम्मान को ग्रहण करो और अपने कार्य में लग जाओ .”,
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दोस्तों , कई बार किसी बड़ी उपलब्धि को हांसिल करने के बाद हम थोड़े निश्चिंत हो जाते हैं , शायद यही वजह है की शिखर पर पहुंचना शिखर पर बने रहने से आसान होता है. हमें चाहिए की हम अपनी उपलब्धि के मुताबिक और भी कड़ी मेहनत करें और अपने सम्मान की प्रतिष्ठा बनाये रखें.
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<hr alt="बड़ा काम छोटा काम" class="system-pagebreak" title="बड़ा काम छोटा काम" />
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<span style="color:#0000CD;"><span style="font-size:20px;"><strong>बड़ा काम छोटा काम</strong></span></span>
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शहर की मेन मार्केट में एक गराज था जिसे अब्दुल नाम का मैकेनिक चलाता था . वैसे तो अब्दुल एक अच्छा आदमी था लेकिन उसके अन्दर एक कमी थी , वो अपने काम को बड़ा और दूसरों के काम को छोटा समझता था .
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एक बार एक हार्ट सर्जन अपनी लक्ज़री कार लेकर उसके यहाँ सर्विसिंग कराने पहुंचे . बातों -बातों में जब अब्दुल को पता चला की कस्टमर एक हार्ट सर्जन है तो उसने तुरन्त पूछा , “ डॉक्टर साहब मैं ये सोच रहा था की हम दोनों के काम एक जैसे हैं… !”
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“एक जैसे ! वो कैसे ?” , सर्जन ने थोडा अचरज से पूछा .
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“देखिये जनाब ,” अब्दुल कार के कौम्प्लिकेटेड इंजन पर काम करते हुए बोल , “ ये इंजन कार का दिल है , मैं चेक करता हूँ की ये कैसा चल रहा है , मैं इसे खोलता हूँ , इसके वाल्वस फिट करता हूँ , अच्छी तरह से सर्विसिंग कर के इसकी प्रोब्लम्स ख़तम करता हूँ और फिर वापस जोड़ देता हूँ …आप भी कुछ ऐसा ही करते हैं ; क्यों ?”
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“हम्म ”, सर्जन ने हामी भरी .
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“तो ये बताइए की आपको मुझसे 10 गुना अधिक पैसे क्यों मिलते हैं, काम तो आप भी मेरे जैसा ही करते हैं ?”, अब्दुल ने खीजते हुए पूछा .
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सर्जन ने एक क्षण सोचा और मुस्कुराते हुए बोला , “ जो तुम कर रहे हो उसे चालू इंजन पे कर के देखो , समझ जाओगे .”
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अब्दुल को इससे पहले किसी ने ऐसा जवाब नही दिया था, अब वह अपनी गलती समझ चुका था.
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दोस्तों , हर एक काम की अपनी importance होती है , अपने काम को बड़ा समझना ठीक है पर दूसरों के काम को कभी छोटा नहीं समझना चाहिए ; हम औरों के काम के बारे में बस उपरी तौर पे जानते हैं लेकिन उसे करने में आने वाले challenges के बारे में हमें कुछ ख़ास नहीं पता होता . इसलिए किसी के काम को छोटा नहीं समझें और सभी की respect करें .
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शिक्षाप्रद कहानियां -शार्ट हिंदी स्टोरी 2018-07-03T17:41:28+05:302018-07-03T17:41:28+05:30https://www.sandybook.in/latestsms/hindi-stories/short-stories-in-hindi/902-%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A6-%E0%A4%95%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%82-%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9F-%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A5%80-%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A5%80Sandybooksandybook.in@gmail.com<h1>
<span style="color:#0000CD;"><strong>एक बाल्टी दूध हिंदी स्टोरी </strong></span>
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एक बार एक राजा के राज्य में महामारी फैल गयी। चारो ओर लोग मरने लगे। राजा ने इसे रोकने के लिये बहुत सारे उपाय करवाये मगर कुछ असर न हुआ और लोग मरते रहे। दुखी राजा ईश्वर से प्रार्थना करने लगा। तभी अचानक आकाशवाणी हुई। आसमान से आवाज़ आयी कि हे राजा तुम्हारी राजधानी के बीचो बीच जो पुराना सूखा कुंआ है अगर अमावस्या की रात को राज्य के प्रत्येक घर से एक – एक बाल्टी दूध उस कुएं में डाला जाये तो अगली ही सुबह ये महामारी समाप्त हो जायेगी और लोगों का मरना बन्द हो जायेगा। राजा ने तुरन्त ही पूरे राज्य में यह घोषणा करवा दी कि महामारी से बचने के लिए अमावस्या की रात को हर घर से कुएं में एक-एक बाल्टी दूध डाला जाना अनिवार्य है ।
</p>
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अमावस्या की रात जब लोगों को कुएं में दूध डालना था उसी रात राज्य में रहने वाली एक चालाक एवं कंजूस बुढ़िया ने सोंचा कि सारे लोग तो कुंए में दूध डालेंगे अगर मै अकेली एक बाल्टी पानी डाल दूं तो किसी को क्या पता चलेगा। इसी विचार से उस कंजूस बुढ़िया ने रात में चुपचाप एक बाल्टी पानी कुंए में डाल दिया। अगले दिन जब सुबह हुई तो लोग वैसे ही मर रहे थे। कुछ भी नहीं बदला था क्योंकि महामारी समाप्त नहीं हुयी थी। राजा ने जब कुंए के पास जाकर इसका कारण जानना चाहा तो उसने देखा कि सारा कुंआ पानी से भरा हुआ है। दूध की एक बूंद भी वहां नहीं थी। राजा समझ गया कि इसी कारण से महामारी दूर नहीं हुई और लोग अभी भी मर रहे हैं।
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दरअसल ऐसा इसलिये हुआ क्योंकि जो विचार उस बुढ़िया के मन में आया था वही विचार पूरे राज्य के लोगों के मन में आ गया और किसी ने भी कुंए में दूध नहीं डाला।
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मित्रों , जैसा इस कहानी में हुआ वैसा ही हमारे जीवन में भी होता है। जब भी कोई ऐसा काम आता है जिसे बहुत सारे लोगों को मिल कर करना होता है तो अक्सर हम अपनी जिम्मेदारियों से यह सोच कर पीछे हट जाते हैं कि कोई न कोई तो कर ही देगा और हमारी इसी सोच की वजह से स्थितियां वैसी की वैसी बनी रहती हैं। अगर हम दूसरों की परवाह किये बिना अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभाने लग जायें तो पूरे देश मेंबर ऐसा बदलाव ला सकते हैं जिसकी आज हमें ज़रूरत है।
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<hr alt="दिल छू लेने वाली हिंदी कहानी" class="system-pagebreak" title="दिल छू लेने वाली हिंदी कहानी" />
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<span style="color:#0000FF;"><span style="font-size:20px;"><strong>पछतावा</strong></span></span>
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एक मेहनती और ईमानदार नौजवान बहुत पैसे कमाना चाहता था क्योंकि वह गरीब था और बदहाली में जी रहा था। उसका सपना था कि वह मेहनत करके खूब पैसे कमाये और एक दिन अपने पैसे से एक कार खरीदे। जब भी वह कोई कार देखता तो उसे अपनी कार खरीदने का मन करता।
</p>
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कुछ साल बाद उसकी अच्छी नौकरी लग गयी। उसकी शादी भी हो गयी और कुछ ही वर्षों में वह एक बेटे का पिता भी बन गया। सब कुछ ठीक चल रहा था मगर फिर भी उसे एक दुख सताता था कि उसके पास उसकी अपनी कार नहीं थी। धीरे – धीरे उसने पैसे जोड़ कर एक कार खरीद ली। कार खरीदने का उसका सपना पूरा हो चुका था और इससे वह बहुत खुश था। वह कार की बहुत अच्छी तरह देखभाल करता था और उससे शान से घूमता था।
</p>
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एक दिन रविवार को वह कार को रगड़ – रगड़ कर धो रहा था। यहां तक कि गाड़ी के टायरों को भी चमका रहा था। उसका 5 वर्षीय बेटा भी उसके साथ था। बेटा भी पिता के आगे पीछे घूम – घूम कर कार को साफ होते देख रहा था। कार धोते धोते अचानक उस आदमी ने देखा कि उसका बेटा कार के बोनट पर किसी चीज़ से खुरच – खुरच कर कुछ लिख रहा है।
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यह देखते ही उसे बहुत गुस्सा आया। वह अपने बेटे को पीटने लगा। उसने उसे इतनी जो़र से पीटा कि बेटे के हाथ की एक उंगली ही टूट गयी।
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दरअसल वह आदमी अपनी कार को बहुत चाहता था और वह बेटे की इस शरारत को बर्दाश्त नहीं कर सका । बाद में जब उसका गुस्सा कुछ कम हुआ तो उसने सोंचा कि जा कर देखूं कि कार में कितनी खरोंच लगी है। कार के पास जा कर देखने पर उसके होश उड़ गये। उसे खुद पर बहुत गुस्सा आ रहा था। वह फूट – फूट कर रोने लगा। कार पर उसके बेटे ने खुरच कर लिखा था-
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<blockquote>
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<span style="font-size:22px;">"Papa, I love you."</span>
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</blockquote>
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यह कहानी हमें यह सिखाती है कि किसी के बारे में कोई गलत राय रखने से पहले या गलत फैसला लेने से पहले हमें ये ज़रूर सोंचना चाहिये कि उस व्यक्ति ने वह काम किस नियत से किया है।
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<hr alt="मेरी ख्वाइश" class="system-pagebreak" title="मेरी ख्वाइश" />
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<span style="color:#0000FF;"><span style="font-size:20px;"><strong>मेरी ख्वाइश</strong></span></span>
</p>
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वह प्राइमरी स्कूल की टीचर थी | सुबह उसने बच्चो का टेस्ट लिया था और उनकी कॉपिया जाचने के लिए घर ले आई थी | बच्चो की कॉपिया देखते देखते उसके आंसू बहने लगे | उसका पति वही लेटे TV देख रहा था | उसने रोने का कारण पूछा ।
</p>
<p>
टीचर बोली , “सुबह मैंने बच्चो को ‘मेरी सबसे बड़ी ख्वाइश’ विषय पर कुछ पंक्तिया लिखने को कहा था ; एक बच्चे ने इच्छा जाहिर करी है की भगवन उसे टेलीविजन बना दे |
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<p>
यह सुनकर पतिदेव हंसने लगे |
</p>
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टीचर बोली , “आगे तो सुनो बच्चे ने लिखा है यदि मै TV बन जाऊंगा, तो घर में मेरी एक खास जगह होगी और सारा परिवार मेरे इर्द-गिर्द रहेगा | जब मै बोलूँगा, तो सारे लोग मुझे ध्यान से सुनेंगे | मुझे रोका टोका नहीं जायेंगा और नहीं उल्टे सवाल होंगे | जब मै TV बनूंगा, तो पापा ऑफिस से आने के बाद थके होने के बावजूद मेरे साथ बैठेंगे | मम्मी को जब तनाव होगा, तो वे मुझे डाटेंगी नहीं, बल्कि मेरे साथ रहना चाहेंगी | मेरे बड़े भाई-बहनों के बीच मेरे पास रहने के लिए झगडा होगा | यहाँ तक की जब TV बंद रहेंगा, तब भी उसकी अच्छी तरह देखभाल होंगी | और हा, TV के रूप में मै सबको ख़ुशी भी दे सकूँगा | “
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यह सब सुनने के बाद पति भी थोड़ा गंभीर होते हुए बोला , ‘हे भगवान ! बेचारा बच्चा …. उसके माँ-बाप तो उस पर जरा भी ध्यान नहीं देते !’
</p>
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टीचर पत्नी ने आंसूं भरी आँखों से उसकी तरफ देखा और बोली, “जानते हो, यह बच्चा कौन है? ………………………हमारा अपना बच्चा…….. हमारा छोटू |”
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सोचिये, यह छोटू कही आपका बच्चा तो नहीं ।
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मित्रों , आज की भाग-दौड़ भरी ज़िन्दगी में हमें वैसे ही एक दूसरे के लिए कम वक़्त मिलता है , और अगर हम वो भी सिर्फ टीवी देखने , मोबाइल पर गेम खेलने और फेसबुक से चिपके रहने में गँवा देंगे तो हम कभी अपने रिश्तों की अहमियत और उससे मिलने वाले प्यार को नहीं समझ पायेंगे।
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चलिए प्रयास करें की हमारी वजह से किसी छोटू को टीवी बनने के बारे में ना सोचना पड़े!
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<hr alt="काबिलियत की पहचान" class="system-pagebreak" title="काबिलियत की पहचान" />
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<span style="color:#0000FF;"><span style="font-size:20px;"><strong>काबिलियत की पहचान</strong></span></span>
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किसी जंगल में एक बहुत बड़ा तालाब था . तालाब के पास एक बागीचा था , जिसमे अनेक प्रकार के पेड़ पौधे लगे थे . दूर- दूर से लोग वहाँ आते और बागीचे की तारीफ करते .
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गुलाब के पेड़ पे लगा पत्ता हर रोज लोगों को आते-जाते और फूलों की तारीफ करते देखता, उसे लगता की हो सकता है एक दिन कोई उसकी भी तारीफ करे. पर जब काफी दिन बीत जाने के बाद भी किसी ने उसकी तारीफ नहीं की तो वो काफी हीन महसूस करने लगा . उसके अन्दर तरह-तरह के विचार आने लगे—” सभी लोग गुलाब और अन्य फूलों की तारीफ करते नहीं थकते पर मुझे कोई देखता तक नहीं , शायद मेरा जीवन किसी काम का नहीं …कहाँ ये खूबसूरत फूल और कहाँ मैं… ” और ऐसे विचार सोच कर वो पत्ता काफी उदास रहने लगा.
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दिन यूँही बीत रहे थे कि एक दिन जंगल में बड़ी जोर-जोर से हवा चलने लगी और देखते-देखते उसने आंधी का रूप ले लिया. बागीचे के पेड़-पौधे तहस-नहस होने लगे , देखते-देखते सभी फूल ज़मीन पर गिर कर निढाल हो गए , पत्ता भी अपनी शाखा से अलग हो गया और उड़ते-उड़ते तालाब में जा गिरा.
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पत्ते ने देखा कि उससे कुछ ही दूर पर कहीं से एक चींटी हवा के झोंको की वजह से तालाब में आ गिरी थी और अपनी जान बचाने के लिए संघर्ष कर रही थी.
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चींटी प्रयास करते-करते काफी थक चुकी थी और उसे अपनी मृत्यु तय लग रही थी कि तभी पत्ते ने उसे आवाज़ दी, ” घबराओ नहीं, आओ , मैं तुम्हारी मदद कर देता हूँ .”, और ऐसा कहते हुए अपनी उपर बैठा लिया. आंधी रुकते-रुकते पत्ता तालाब के एक छोर पर पहुँच गया; चींटी किनारे पर पहुँच कर बहुत खुश हो गयी और बोली, ” आपने आज मेरी जान बचा कर बहुत बड़ा उपकार किया है , सचमुच आप महान हैं, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद ! “
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यह सुनकर पत्ता भावुक हो गया और बोला,” धन्यवाद तो मुझे करना चाहिए, क्योंकि तुम्हारी वजह से आज पहली बार मेरा सामना मेरी काबिलियत से हुआ , जिससे मैं आज तक अनजान था. आज पहली बार मैंने अपने जीवन के मकसद और अपनी ताकत को पहचान पाया हूँ … .’
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मित्रों , ईश्वर ने हम सभी को अनोखी शक्तियां दी हैं ; कई बार हम खुद अपनी काबिलियत से अनजान होते हैं और समय आने पर हमें इसका पता चलता है, हमें इस बात को समझना चाहिए कि किसी एक काम में असफल होने का मतलब हमेशा के लिए अयोग्य होना नही है . खुद की काबिलियत को पहचान कर आप वह काम कर सकते हैं , जो आज तक किसी ने नही किया है !
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<hr alt="ली-ली का बदला" class="system-pagebreak" title="ली-ली का बदला" />
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<span style="color:#0000FF;"><span style="font-size:20px;"><strong>ली-ली का बदला</strong></span></span>
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बहुत समय पहले की बात है , चाइना के किसी गाँव में ली-ली नाम की एक लड़की रहती थी . शादी के बाद वो अपने ससुराल पहुंची , उसके परिवार में सिर्फ वो , उसका पति और उसकी सास थीं .
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कुछ दिनों तक सब ठीक चला पर महीना बीतते -बीतते ली-ली और उसकी सास में खटपट होने लगी .
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दिन बीतते गए … महीने बीतते गए , पर सास -बहु के समबन्ध सुधरने की बजाये और भी बिगड़ गए . और एक दिन जब नौबत मार-पीट तक पहुचंह गयी तो ली-ली गुस्से में अपने मायके चली गयी. उसने निश्चय किया कि वो किसी भी तरह अपनी सास से बदला लेकर रहेगी , और इसी विचार के साथ वो गाँव के एक वैद्य के पास पहुंची .
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“ वैद्य जी , मैं अपनी सास से बहुत परेशान हूँ , मेरा किया कुछ भी उसे अच्छा नहीं लगता , हर काम में कमीं निकालना और ताने मारना उसका स्वभाव है …मुझे किसी भी तरह उससे छुटकारा दिला दीजिये बस ….” , ली-ली ने क्रोध में अपनी बात कही .
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वैद्य बोले , “बेटी , चूँकि तुम्हारे पिताजी मेरे अच्छे मित्र हैं , इसलिए मैं तुम्हारी मदद ज़रूर करूँगा , पर तुम्हे एक बात का ध्यान रखना होगा , मैं जैसा कहूँ ठीक वैसा ही करना, वर्ना मुसीबत में फंस जाओगी “
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” मैं बिलकुल वैसा ही करुँगी। “, ली -ली बोली .
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वैद्य अन्दर गए और कुछ देर बाद जड़ी -बूटियों का एक डिब्बा लेकर वापस आये , और ली -ली को थमाते हुए बोले – “ली -ली , तुम अपनी सास को मारने के लिए किसी तेज ज़हर का प्रयोग नहीं कर सकती , क्योंकि उससे तुम पकड़ी जाओगी …य़े डिब्बा लो , इसके अन्दर कुछ दुर्लभ जड़ी -बूटियाँ हैं जो धीरे -धीरे इंसान के अन्दर ज़हर पैदा कर देती हैं और 7-8 महीने में उसकी मौत हो जाती है …अब हर रोज तुम अपनी सास के लिए कुछ पकवान बनाना और चुपके से इन्हें उस खाने में मिला देना , और ध्यान रहे इस बीच तुम्हे अपनी सास से अच्छी तरह से पेश आना होगा , उनकी बात माननी होगी , ताकि मौत के बाद किसी का शक तुम पर ना जाये …ज़ाओ अब अपने ससुराल वापस जाओ और अपनी सास के साथ अच्छे से अच्छा व्यवहार करो …”
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ली -ली ख़ुशी -ख़ुशी जड़ी -बूटियाँ लेकर ससुराल वापस लौट गयी . अब उसका व्यवहार बिलकुल बदल चुका था , अब वो अपने सास की बात मानने लगी थी , और आये दिन उनके लिए स्वादिष्ट व्यंजन भी बनाने लगी थी . और जब कभी उसे गुस्सा आता तो वैद्य जी की बात ध्यान में रखकर कर वो अपने गुस्से पर काबू कर लेती। 6 महीने बीतते -बीतते घर का माहौल बिलकुल बदल चुका था . जो सास पहले बहु की बुराई करते नहीं थकती थी वही अब घर -घर घूम कर ली -ली की तारीफ़ करते नहीं थकती थीं . ली -ली भी अभिनय करते – करते अब सचमुच बदल चुकी थी , उसे अपनी सास में अपनी माँ नज़र आने लगी थीं .
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ली-ली को अब अपनी सास की मौत का भय सताने लगा और एक दिन वो किसी बहाने से मायके के लिए निकली और सीधे वैद्य जी के पास पहुंची .
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” वैद्य जी , कृपया मेरी मदद करिए , मैं अब अपनी सास को नहीं मारना चाहती , वो तो एकदम बदल गयी हैं , और मुझे बहुत प्यार करने लगी हैं , मैं भी उन्हें उतना ही मानने लगी हूँ …कुछ भी कर के उस ज़हर का असर ख़त्म कर दीजिये ….” , ली -ली रोते हुए बोली .
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वैद्य बोले , ” बेटी , चिंता करने की कोई ज़रुरत नहीं है , दरअसल मैंने तुम्हे कभी ज़हर दिया ही नहीं था , उस डिब्बे में तो बस स्वास्थ्य – वर्धक जड़ी -बूटियाँ थीं . ज़हर तो तुम्हारे दिमाग और नज़रिए में था , लेकिन मैं खुश हूँ कि तुमने अपनी सास की जो सेवा की और उन्हें जो प्रेम दिया उससे वो भी ख़त्म हो गया …, जाओ अब खुशहाली से अपने सास और पति के साथ जीवन व्यतीत करो .
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<hr alt="ज़िन्दगी चलती जाती है !" class="system-pagebreak" title="ज़िन्दगी चलती जाती है !" />
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<span style="color:#0000FF;"><span style="font-size:20px;"><strong>ज़िन्दगी चलती जाती है !</strong></span></span>
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जब जूलियो 10 साल का था तो उसका बस एक ही सपना था , अपने फेवरेट क्लब रियल मेड्रिड की ओर से फुटबाल खेलना ! वह दिन भर खेलता, प्रैक्टिस करता और धीरे-धीरे वह एक बहुत अच्छा गोलकीपर बन गया. 20 का होते-होते उसके बचपन का सपना हकीकत बनने के करीब पहुँच गया; उसे रियल मेड्रिड की तरफ से फुटबाल खेलने के लिए साइन कर लिया गया. खेल के धुरंधर जूलियो से बहुत प्रभावित थे और ये मान कर चल रहे थे कि बहुत जल्द वह स्पेन का नंबर 1 गोलकीपर बन जायेगा.
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1963 की एक शाम , जूलियो और उसके दोस्त कार से कहीं घूमने निकले. पर दुर्भाग्यवश उस कार का एक भयानक एक्सीडेंट हो गया , और रियल मेड्रिड और स्पेन का नंबर 1 गोलकीपर बनने वाला जूलियो हॉस्पिटल में पड़ा हुआ था , उसके कमर के नीचे का हिस्सा पैरलाइज हो चुका था. डॉक्टर्स इस बात को लेकर भी आस्वस्थ नहीं थे कि जूलियो फिर कभी चल पायेगा, फ़ुटबाल खेलना तो दूर की बात थी.
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वापस ठीक होना बहुत लम्बा और दर्दनाक अनुभव था. जूलियो बिलकुल निराश हो चुका था , वह बार-बार उस घटना को याद करता और क्रोध और मायूसी से भर जाता. अपना दर्द कम करने के लिए वह रात में गाने और कविताएँ लिखने लगा. धीरे-धीरे उसने गिटार पर भी अपना हाथ आजमाना शुरू किया और उसे बजाते हुए अपने लिखे गाने भी गाने लगा.
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18 महीने तक बिस्तर पर रहने के बाद , जूलियो अपनी ज़िन्दगी को फिर से सामान्य बनाने लगा. एक्सीडेंट के पांच साल बाद उसने एक सिंगिंग कम्पटीशन में भाग लिया और ” लाइफ गोज ओन द सेम ” गाना गा कर फर्स्ट प्राइज जीता.
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वह फिर कभी फ़ुटबाल नहीं खेल पाया पर अपने हाथों में गिटार और होंठों पे गाने लिए जूलियो इग्लेसियस संगीत की दुनिया में Top Ten सिंगर्स में शुमार हुआ ,और अब तक उनके 30 करोड़ से अधिक एल्बम बिक चुके हैं.
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<hr alt="धक्का" class="system-pagebreak" title="धक्का" />
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<span style="font-size:20px;"><span style="color:#0000FF;"><strong>धक्का</strong></span></span>
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एक बार की बात है , किसी शहर में एक बहुत अमीर आदमी रहता था. उसे एक अजीब शौक था , वो अपने घर के अन्दर बने एक बड़े से स्विमिंग पूल में बड़े-बड़े रेप्टाइल्स पाले हुए था ; जिसमे एक से बढ़कर एक सांप, मगरमच्छ ,घड़ियाल ,आदि शामिल थे .
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एक बार वो अपने घर पर एक पार्टी देता है .बहुत से लोग उस पार्टी में आते हैं.
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खाने-पीने के बाद वो सभी मेहमानों को स्विमिंग पूल के पास ले जाता है और कहता है –
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” दोस्तों, आप इस पूल को देख रहे हैं, इसमें एक से एक खतरनाक जीव हैं , अगर आपमें से कोई इसे तैर कर पार कर ले तो मैं उसे १ करोड़ रुपये या अपनी बेटी का हाथ दूंगा…”
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सभी लोग पूल की तरफ देखते हैं पर किसी की भी हिम्मत नहीं होती है कि उसे पार करे….लेकिन तभी छपाक से आवाज होती है और एक लड़का उसमे कूद जाता है ,और मगरमच्छों , साँपों, इत्यादि से बचता हुआ पूल पार कर जाता है.
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सभी लोग उसकी इस बहादुरी को देख हैरत में पड़ जाते हैं. अमीर आदमी को भी यकीन नहीं होता है कि कोई ऐसा कर सकता है ; इतने सालों में किसी ने पूल पार करना तो दूर उसका पानी छूने तक की हिम्मत नहीं की !
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वो उस लड़के को बुलाता है , ” लड़के , आज तुमने बहुत ही हिम्मत का काम किया है , तुम सच- मुच बहादुर हो बताओ तुम कौन सा इनाम चाहते हो।
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” अरे , इनाम-विनाम तो मैं लेता रहूँगा , पहले ये बताओ कि मुझे धक्का किसने दिया था….!” , लड़का बोला.
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मित्रों ये एक छोटा सा जोक था। पर इसमें एक बहुत बड़ा सन्देश छुपा हुआ है – उस लड़के में तैर कर स्विमिंग पूल पार करने की काबीलियत तो थी पर वो अपने आप नहीं कूदा , जब किसी ने धक्का दिया तो वो कूद गया और पार भी कर गया . अगर कोई उसे धक्का नहीं देता तो वो कभी न कूदने की सोचता और न पूल पार कर पाता , पर अब उसकी ज़िन्दगी हमेशा के लिए बदल चुकी थी …ऐसे ही हमारे अन्दर कई टैलेंट छुपे होते हैं जब तक हमारे अन्दर कॉन्फिडेंस और रिस्क उठाने की हिम्मत नहीं होती तब तक हम लाइफ के ऐसे कई चैलेंजेज में कूदे बगैर ही हार मान लेते हैं , हमें चाहिए कि हम अपनी काबीलियत पर विश्वास करें और ज़िन्दगी में मिले अवसरों का लाभ उठाएं।वो उस लड़के को बुलाता है , ” लड़के , आज तुमने बहुत ही हिम्मत का काम किया है , तुम सच- मुच बहादुर हो बताओ तुम कौन सा इनाम चाहते हो।
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” अरे , इनाम-विनाम तो मैं लेता रहूँगा , पहले ये बताओ कि मुझे धक्का किसने दिया था….!” , लड़का बोला.
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मित्रों ये एक छोटा सा जोक था। पर इसमें एक बहुत बड़ा सन्देश छुपा हुआ है – उस लड़के में तैर कर स्विमिंग पूल पार करने की काबीलियत तो थी पर वो अपने आप नहीं कूदा , जब किसी ने धक्का दिया तो वो कूद गया और पार भी कर गया . अगर कोई उसे धक्का नहीं देता तो वो कभी न कूदने की सोचता और न पूल पार कर पाता , पर अब उसकी ज़िन्दगी हमेशा के लिए बदल चुकी थी …ऐसे ही हमारे अन्दर कई टैलेंट छुपे होते हैं जब तक हमारे अन्दर कॉन्फिडेंस और रिस्क उठाने की हिम्मत नहीं होती तब तक हम लाइफ के ऐसे कई चैलेंजेज में कूदे बगैर ही हार मान लेते हैं , हमें चाहिए कि हम अपनी काबीलियत पर विश्वास करें और ज़िन्दगी में मिले अवसरों का लाभ उठाएं।
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<hr alt="बीज" class="system-pagebreak" title="बीज" />
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<span style="color:#0000FF;"><span style="font-size:20px;"><strong>बीज</strong></span></span>
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मिटटी के नीचे दबा एक बीज अपने खोल में आराम से सो रहा था . उसके बाकी साथी भी अपने अपने खोल में सिमटे पड़े हुए थे . तभी अचानक एक दिन बरसात हुई, जिस्से. मिटटी के ऊपर कुछ पानी इकठ्ठा हो गया और सारे बीज भीग कर सड़ने लगे . वह भी बीज भी तर -बतर हो गया और सड़ने लगा .
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बीज ने सोचा , ”इस तरह तो मैं एक बीज के रूप में ही मर जाऊंगा . मेरी हालत भी मेरे दोस्तों की तरह ही हो जाएगी , जो अब ख़त्म हो चुके हैं . मुझे कुछ ऐसा करना चाहिए कि मैं अमर हो जाऊं .” बीज ने हिम्मत दिखाई और पूरी ताकत लगाकर अपना खोल तोड़ कर खुद एक पौधे के रूप में परिवर्तित कर लिया . अब बरसात और मिटटी उसके दोस्त बन चुके थे और नुक्सान पहुँचाने की जगह बड़े होने में उसकी मदद करने लगे . धीरे – धीरे वह बड़ा होने लगा . एक दिन वह स्थिति आई जब वह इतना बड़ा हो गया कि अब और नही बढ़ सकता था। उसने मन ही मन सोचा , इस तरह यहाँ खड़े-खड़े मैं एक दिन मर जाऊँगा , पर मुझे तो अमर होना है. और ये सोच कर उसने खुद को एक कली के रूप में परिवर्तित कर लिया।
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कली बसंत में खिलने लगी , उसकी खुशबू दूर-दूर तक फ़ैल गयी जिससे आकर्षित हो कर भँवरे वहां मडराने लगे , इस प्रकार इस पौधे के बीज दूर-दूर तक फ़ैल गए और वह एक बीज जिसने परिस्थितियों के सामने हार ना मान कर खुद को खुद को परिवर्तित करने का फैसला किया था , दुबारा लाखों बीजों के रूप में जीवित हो गया .
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परिवर्तन को एक घटना की तरह नही , बल्कि एक प्रक्रिया की तरह देखना चाहिए . यह नयी खोज की तरह होता है . यह हमारे वातावरण को ही नही , बल्कि हमे भी बदलता है . हम विकास की नयी संभावनाओं को देखने लगते हैं और परिवर्तन में सक्षम होते हैं . यह हमे मिटाने की जगह मजबूत बनाता है और हम प्रगतिशील हो जाते हैं .
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<hr alt="खिड़की" class="system-pagebreak" title="खिड़की" />
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<span style="color:#0000FF;"><span style="font-size:20px;"><strong>खिड़की</strong></span></span>
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एक बार की बात है , एक नौविवाहित जोड़ा किसी किराए के घर में रहने पहुंचा . अगली सुबह , जब वे नाश्ता कर रहे थे , तभी पत्नी ने खिड़की से देखा कि सामने वाली छत पर कुछ कपड़े फैले हैं , – “ लगता है इन लोगों को कपड़े साफ़ करना भी नहीं आता …ज़रा देखो तो कितने मैले लग रहे हैं ? “
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पति ने उसकी बात सुनी पर अधिक ध्यान नहीं दिया .
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एक -दो दिन बाद फिर उसी जगह कुछ कपड़े फैले थे . पत्नी ने उन्हें देखते ही अपनी बात दोहरा दी ….” कब सीखेंगे ये लोग की कपड़े कैसे साफ़ करते हैं …!!”
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पति सुनता रहा पर इस बार भी उसने कुछ नहीं कहा .
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पर अब तो ये आये दिन की बात हो गयी , जब भी पत्नी कपडे फैले देखती भला -बुरा कहना शुरू हो जाती .
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लगभग एक महीने बाद वे यूँहीं बैठ कर नाश्ता कर रहे थे . पत्नी ने हमेशा की तरह नजरें उठायीं और सामने वाली छत<br />
की तरफ देखा , ” अरे वाह , लगता है इन्हें अकल आ ही गयी …आज तो कपडे बिलकुल साफ़ दिख रहे हैं , ज़रूर किसी ने टोका होगा !”
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पति बोल , ” नहीं उन्हें किसी ने नहीं टोका .”
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” तुम्हे कैसे पता ?” , पत्नी ने आश्चर्य से पूछा .
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” आज मैं सुबह जल्दी उठ गया था और मैंने इस खिड़की पर लगे कांच को बाहर से साफ़ कर दिया , इसलिए तुम्हे कपडे साफ़ नज़र आ रहे हैं . “, पति ने बात पूरी की .
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ज़िन्दगी में भी यही बात लागू होती है : बहुत बार हम दूसरों को कैसे देखते हैं ये इस पर निर्भर करता है की हम खुद अन्दर से कितने साफ़ हैं . किसी के बारे में भला-बुरा कहने से पहले अपनी मनोस्थिति देख लेनी चाहिए और खुद से पूछना चाहिए की क्या हम सामने वाले में कुछ बेहतर देखने के लिए तैयार हैं या अभी भी हमारी खिड़की गन्दी है !
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<hr alt="बुद्ध और अनुयायी" class="system-pagebreak" title="बुद्ध और अनुयायी" />
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<span style="color:#0000FF;"><span style="font-size:20px;"><strong>बुद्ध और अनुयायी</strong></span></span>
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भगवान् बुद्ध क एक अनुयायी ने कहा , ” प्रभु ! मुझे आपसे एक निवेदन करना है .”
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बुद्ध: बताओ क्या कहना है ?
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अनुयायी: मेरे वस्त्र पुराने हो चुके हैं . अब ये पहनने लायक नहीं रहे . कृपया मुझे नए वस्त्र देने का कष्ट करें !
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बुद्ध ने अनुयायी के वस्त्र देखे , वे सचमुच बिलकुल जीर्ण हो चुके थे और जगह जगह से घिस चुके थे …इसलिए उन्होंने एक अन्य अनुयायी को नए वस्त्र देने का आदेश दे दिए.
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कुछ दिनों बाद बुद्ध अनुयायी के घर पहुंचे .
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बुद्ध : क्या तुम अपने नए वस्त्रों में आराम से हो ? तुम्हे और कुछ तो नहीं चाहिए ?
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अनुयायी: धन्यवाद प्रभु . मैं इन वस्त्रों में बिलकुल आराम से हूँ और मुझे और कुछ नहीं चाहिए .
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बुद्ध: अब जबकि तुम्हारे पास नए वस्त्र हैं तो तुमने पुराने वस्त्रों का क्या किया ?
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अनुयायी: मैं अब उसे ओढने के लिए प्रयोग कर रहा हूँ ?
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बुद्ध: तो तुमने अपनी पुरानी ओढ़नी का क्या किया ?
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अनुयायी: जी मैंने उसे खिड़की पर परदे की जगह लगा दिया है .
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बुद्ध: तो क्या तुमने पुराने परदे फ़ेंक दिए ?
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अनुयायी: जी नहीं , मैंने उसके चार टुकड़े किये और उनका प्रयोग रसोई में गरम पतीलों को आग से उतारने के लिए कर रहा हूँ.
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बुद्ध: तो फिर रसॊइ के पुराने कपड़ों का क्या किया ?
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अनुयायी: अब मैं उन्हें पोछा लगाने के लिए प्रयोग करूँगा .
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बुद्ध: तो तुम्हारा पुराना पोछा क्या हुआ ?
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अनुयायी: प्रभु वो अब इतना तार -तार हो चुका था कि उसका कुछ नहीं किया जा सकता था , इसलिए मैंने उसका एक -एक धागा अलग कर दिए की बातियाँ तैयार कर लीं ….उन्ही में से एक कल रात आपके कक्ष में प्रकाशित था .
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बुद्ध अनुयायी से संतुष्ट हो गए . वो प्रसन्न थे कि उनका शिष्य वस्तुओं को बर्वाद नहीं करता और उसमे समझ है कि उनका उपयोग किस तरह से किया जा सकता है।
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मित्रों , आज जब प्राकृतिक संसाधन दिन – प्रतिदिन कम होते जा रहे हैं ऐसे में हमें भी कोशिश करनी चाहिए कि चीजों को बर्वाद ना करें और अपने छोटे छोटे प्रयत्नों से इस धरा को सुरक्षित बना कर रखें .
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<span style="color:#0000CD;"><strong>एक बाल्टी दूध हिंदी स्टोरी </strong></span>
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एक बार एक राजा के राज्य में महामारी फैल गयी। चारो ओर लोग मरने लगे। राजा ने इसे रोकने के लिये बहुत सारे उपाय करवाये मगर कुछ असर न हुआ और लोग मरते रहे। दुखी राजा ईश्वर से प्रार्थना करने लगा। तभी अचानक आकाशवाणी हुई। आसमान से आवाज़ आयी कि हे राजा तुम्हारी राजधानी के बीचो बीच जो पुराना सूखा कुंआ है अगर अमावस्या की रात को राज्य के प्रत्येक घर से एक – एक बाल्टी दूध उस कुएं में डाला जाये तो अगली ही सुबह ये महामारी समाप्त हो जायेगी और लोगों का मरना बन्द हो जायेगा। राजा ने तुरन्त ही पूरे राज्य में यह घोषणा करवा दी कि महामारी से बचने के लिए अमावस्या की रात को हर घर से कुएं में एक-एक बाल्टी दूध डाला जाना अनिवार्य है ।
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अमावस्या की रात जब लोगों को कुएं में दूध डालना था उसी रात राज्य में रहने वाली एक चालाक एवं कंजूस बुढ़िया ने सोंचा कि सारे लोग तो कुंए में दूध डालेंगे अगर मै अकेली एक बाल्टी पानी डाल दूं तो किसी को क्या पता चलेगा। इसी विचार से उस कंजूस बुढ़िया ने रात में चुपचाप एक बाल्टी पानी कुंए में डाल दिया। अगले दिन जब सुबह हुई तो लोग वैसे ही मर रहे थे। कुछ भी नहीं बदला था क्योंकि महामारी समाप्त नहीं हुयी थी। राजा ने जब कुंए के पास जाकर इसका कारण जानना चाहा तो उसने देखा कि सारा कुंआ पानी से भरा हुआ है। दूध की एक बूंद भी वहां नहीं थी। राजा समझ गया कि इसी कारण से महामारी दूर नहीं हुई और लोग अभी भी मर रहे हैं।
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दरअसल ऐसा इसलिये हुआ क्योंकि जो विचार उस बुढ़िया के मन में आया था वही विचार पूरे राज्य के लोगों के मन में आ गया और किसी ने भी कुंए में दूध नहीं डाला।
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मित्रों , जैसा इस कहानी में हुआ वैसा ही हमारे जीवन में भी होता है। जब भी कोई ऐसा काम आता है जिसे बहुत सारे लोगों को मिल कर करना होता है तो अक्सर हम अपनी जिम्मेदारियों से यह सोच कर पीछे हट जाते हैं कि कोई न कोई तो कर ही देगा और हमारी इसी सोच की वजह से स्थितियां वैसी की वैसी बनी रहती हैं। अगर हम दूसरों की परवाह किये बिना अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभाने लग जायें तो पूरे देश मेंबर ऐसा बदलाव ला सकते हैं जिसकी आज हमें ज़रूरत है।
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<hr alt="दिल छू लेने वाली हिंदी कहानी" class="system-pagebreak" title="दिल छू लेने वाली हिंदी कहानी" />
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<span style="color:#0000FF;"><span style="font-size:20px;"><strong>पछतावा</strong></span></span>
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एक मेहनती और ईमानदार नौजवान बहुत पैसे कमाना चाहता था क्योंकि वह गरीब था और बदहाली में जी रहा था। उसका सपना था कि वह मेहनत करके खूब पैसे कमाये और एक दिन अपने पैसे से एक कार खरीदे। जब भी वह कोई कार देखता तो उसे अपनी कार खरीदने का मन करता।
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कुछ साल बाद उसकी अच्छी नौकरी लग गयी। उसकी शादी भी हो गयी और कुछ ही वर्षों में वह एक बेटे का पिता भी बन गया। सब कुछ ठीक चल रहा था मगर फिर भी उसे एक दुख सताता था कि उसके पास उसकी अपनी कार नहीं थी। धीरे – धीरे उसने पैसे जोड़ कर एक कार खरीद ली। कार खरीदने का उसका सपना पूरा हो चुका था और इससे वह बहुत खुश था। वह कार की बहुत अच्छी तरह देखभाल करता था और उससे शान से घूमता था।
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एक दिन रविवार को वह कार को रगड़ – रगड़ कर धो रहा था। यहां तक कि गाड़ी के टायरों को भी चमका रहा था। उसका 5 वर्षीय बेटा भी उसके साथ था। बेटा भी पिता के आगे पीछे घूम – घूम कर कार को साफ होते देख रहा था। कार धोते धोते अचानक उस आदमी ने देखा कि उसका बेटा कार के बोनट पर किसी चीज़ से खुरच – खुरच कर कुछ लिख रहा है।
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यह देखते ही उसे बहुत गुस्सा आया। वह अपने बेटे को पीटने लगा। उसने उसे इतनी जो़र से पीटा कि बेटे के हाथ की एक उंगली ही टूट गयी।
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दरअसल वह आदमी अपनी कार को बहुत चाहता था और वह बेटे की इस शरारत को बर्दाश्त नहीं कर सका । बाद में जब उसका गुस्सा कुछ कम हुआ तो उसने सोंचा कि जा कर देखूं कि कार में कितनी खरोंच लगी है। कार के पास जा कर देखने पर उसके होश उड़ गये। उसे खुद पर बहुत गुस्सा आ रहा था। वह फूट – फूट कर रोने लगा। कार पर उसके बेटे ने खुरच कर लिखा था-
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<blockquote>
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<span style="font-size:22px;">"Papa, I love you."</span>
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</blockquote>
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यह कहानी हमें यह सिखाती है कि किसी के बारे में कोई गलत राय रखने से पहले या गलत फैसला लेने से पहले हमें ये ज़रूर सोंचना चाहिये कि उस व्यक्ति ने वह काम किस नियत से किया है।
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<hr alt="मेरी ख्वाइश" class="system-pagebreak" title="मेरी ख्वाइश" />
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<span style="color:#0000FF;"><span style="font-size:20px;"><strong>मेरी ख्वाइश</strong></span></span>
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वह प्राइमरी स्कूल की टीचर थी | सुबह उसने बच्चो का टेस्ट लिया था और उनकी कॉपिया जाचने के लिए घर ले आई थी | बच्चो की कॉपिया देखते देखते उसके आंसू बहने लगे | उसका पति वही लेटे TV देख रहा था | उसने रोने का कारण पूछा ।
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टीचर बोली , “सुबह मैंने बच्चो को ‘मेरी सबसे बड़ी ख्वाइश’ विषय पर कुछ पंक्तिया लिखने को कहा था ; एक बच्चे ने इच्छा जाहिर करी है की भगवन उसे टेलीविजन बना दे |
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यह सुनकर पतिदेव हंसने लगे |
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टीचर बोली , “आगे तो सुनो बच्चे ने लिखा है यदि मै TV बन जाऊंगा, तो घर में मेरी एक खास जगह होगी और सारा परिवार मेरे इर्द-गिर्द रहेगा | जब मै बोलूँगा, तो सारे लोग मुझे ध्यान से सुनेंगे | मुझे रोका टोका नहीं जायेंगा और नहीं उल्टे सवाल होंगे | जब मै TV बनूंगा, तो पापा ऑफिस से आने के बाद थके होने के बावजूद मेरे साथ बैठेंगे | मम्मी को जब तनाव होगा, तो वे मुझे डाटेंगी नहीं, बल्कि मेरे साथ रहना चाहेंगी | मेरे बड़े भाई-बहनों के बीच मेरे पास रहने के लिए झगडा होगा | यहाँ तक की जब TV बंद रहेंगा, तब भी उसकी अच्छी तरह देखभाल होंगी | और हा, TV के रूप में मै सबको ख़ुशी भी दे सकूँगा | “
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यह सब सुनने के बाद पति भी थोड़ा गंभीर होते हुए बोला , ‘हे भगवान ! बेचारा बच्चा …. उसके माँ-बाप तो उस पर जरा भी ध्यान नहीं देते !’
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टीचर पत्नी ने आंसूं भरी आँखों से उसकी तरफ देखा और बोली, “जानते हो, यह बच्चा कौन है? ………………………हमारा अपना बच्चा…….. हमारा छोटू |”
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सोचिये, यह छोटू कही आपका बच्चा तो नहीं ।
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मित्रों , आज की भाग-दौड़ भरी ज़िन्दगी में हमें वैसे ही एक दूसरे के लिए कम वक़्त मिलता है , और अगर हम वो भी सिर्फ टीवी देखने , मोबाइल पर गेम खेलने और फेसबुक से चिपके रहने में गँवा देंगे तो हम कभी अपने रिश्तों की अहमियत और उससे मिलने वाले प्यार को नहीं समझ पायेंगे।
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चलिए प्रयास करें की हमारी वजह से किसी छोटू को टीवी बनने के बारे में ना सोचना पड़े!
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<hr alt="काबिलियत की पहचान" class="system-pagebreak" title="काबिलियत की पहचान" />
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<span style="color:#0000FF;"><span style="font-size:20px;"><strong>काबिलियत की पहचान</strong></span></span>
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किसी जंगल में एक बहुत बड़ा तालाब था . तालाब के पास एक बागीचा था , जिसमे अनेक प्रकार के पेड़ पौधे लगे थे . दूर- दूर से लोग वहाँ आते और बागीचे की तारीफ करते .
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गुलाब के पेड़ पे लगा पत्ता हर रोज लोगों को आते-जाते और फूलों की तारीफ करते देखता, उसे लगता की हो सकता है एक दिन कोई उसकी भी तारीफ करे. पर जब काफी दिन बीत जाने के बाद भी किसी ने उसकी तारीफ नहीं की तो वो काफी हीन महसूस करने लगा . उसके अन्दर तरह-तरह के विचार आने लगे—” सभी लोग गुलाब और अन्य फूलों की तारीफ करते नहीं थकते पर मुझे कोई देखता तक नहीं , शायद मेरा जीवन किसी काम का नहीं …कहाँ ये खूबसूरत फूल और कहाँ मैं… ” और ऐसे विचार सोच कर वो पत्ता काफी उदास रहने लगा.
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दिन यूँही बीत रहे थे कि एक दिन जंगल में बड़ी जोर-जोर से हवा चलने लगी और देखते-देखते उसने आंधी का रूप ले लिया. बागीचे के पेड़-पौधे तहस-नहस होने लगे , देखते-देखते सभी फूल ज़मीन पर गिर कर निढाल हो गए , पत्ता भी अपनी शाखा से अलग हो गया और उड़ते-उड़ते तालाब में जा गिरा.
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पत्ते ने देखा कि उससे कुछ ही दूर पर कहीं से एक चींटी हवा के झोंको की वजह से तालाब में आ गिरी थी और अपनी जान बचाने के लिए संघर्ष कर रही थी.
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चींटी प्रयास करते-करते काफी थक चुकी थी और उसे अपनी मृत्यु तय लग रही थी कि तभी पत्ते ने उसे आवाज़ दी, ” घबराओ नहीं, आओ , मैं तुम्हारी मदद कर देता हूँ .”, और ऐसा कहते हुए अपनी उपर बैठा लिया. आंधी रुकते-रुकते पत्ता तालाब के एक छोर पर पहुँच गया; चींटी किनारे पर पहुँच कर बहुत खुश हो गयी और बोली, ” आपने आज मेरी जान बचा कर बहुत बड़ा उपकार किया है , सचमुच आप महान हैं, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद ! “
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यह सुनकर पत्ता भावुक हो गया और बोला,” धन्यवाद तो मुझे करना चाहिए, क्योंकि तुम्हारी वजह से आज पहली बार मेरा सामना मेरी काबिलियत से हुआ , जिससे मैं आज तक अनजान था. आज पहली बार मैंने अपने जीवन के मकसद और अपनी ताकत को पहचान पाया हूँ … .’
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मित्रों , ईश्वर ने हम सभी को अनोखी शक्तियां दी हैं ; कई बार हम खुद अपनी काबिलियत से अनजान होते हैं और समय आने पर हमें इसका पता चलता है, हमें इस बात को समझना चाहिए कि किसी एक काम में असफल होने का मतलब हमेशा के लिए अयोग्य होना नही है . खुद की काबिलियत को पहचान कर आप वह काम कर सकते हैं , जो आज तक किसी ने नही किया है !
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<hr alt="ली-ली का बदला" class="system-pagebreak" title="ली-ली का बदला" />
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<span style="color:#0000FF;"><span style="font-size:20px;"><strong>ली-ली का बदला</strong></span></span>
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बहुत समय पहले की बात है , चाइना के किसी गाँव में ली-ली नाम की एक लड़की रहती थी . शादी के बाद वो अपने ससुराल पहुंची , उसके परिवार में सिर्फ वो , उसका पति और उसकी सास थीं .
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कुछ दिनों तक सब ठीक चला पर महीना बीतते -बीतते ली-ली और उसकी सास में खटपट होने लगी .
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दिन बीतते गए … महीने बीतते गए , पर सास -बहु के समबन्ध सुधरने की बजाये और भी बिगड़ गए . और एक दिन जब नौबत मार-पीट तक पहुचंह गयी तो ली-ली गुस्से में अपने मायके चली गयी. उसने निश्चय किया कि वो किसी भी तरह अपनी सास से बदला लेकर रहेगी , और इसी विचार के साथ वो गाँव के एक वैद्य के पास पहुंची .
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“ वैद्य जी , मैं अपनी सास से बहुत परेशान हूँ , मेरा किया कुछ भी उसे अच्छा नहीं लगता , हर काम में कमीं निकालना और ताने मारना उसका स्वभाव है …मुझे किसी भी तरह उससे छुटकारा दिला दीजिये बस ….” , ली-ली ने क्रोध में अपनी बात कही .
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वैद्य बोले , “बेटी , चूँकि तुम्हारे पिताजी मेरे अच्छे मित्र हैं , इसलिए मैं तुम्हारी मदद ज़रूर करूँगा , पर तुम्हे एक बात का ध्यान रखना होगा , मैं जैसा कहूँ ठीक वैसा ही करना, वर्ना मुसीबत में फंस जाओगी “
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” मैं बिलकुल वैसा ही करुँगी। “, ली -ली बोली .
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वैद्य अन्दर गए और कुछ देर बाद जड़ी -बूटियों का एक डिब्बा लेकर वापस आये , और ली -ली को थमाते हुए बोले – “ली -ली , तुम अपनी सास को मारने के लिए किसी तेज ज़हर का प्रयोग नहीं कर सकती , क्योंकि उससे तुम पकड़ी जाओगी …य़े डिब्बा लो , इसके अन्दर कुछ दुर्लभ जड़ी -बूटियाँ हैं जो धीरे -धीरे इंसान के अन्दर ज़हर पैदा कर देती हैं और 7-8 महीने में उसकी मौत हो जाती है …अब हर रोज तुम अपनी सास के लिए कुछ पकवान बनाना और चुपके से इन्हें उस खाने में मिला देना , और ध्यान रहे इस बीच तुम्हे अपनी सास से अच्छी तरह से पेश आना होगा , उनकी बात माननी होगी , ताकि मौत के बाद किसी का शक तुम पर ना जाये …ज़ाओ अब अपने ससुराल वापस जाओ और अपनी सास के साथ अच्छे से अच्छा व्यवहार करो …”
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ली -ली ख़ुशी -ख़ुशी जड़ी -बूटियाँ लेकर ससुराल वापस लौट गयी . अब उसका व्यवहार बिलकुल बदल चुका था , अब वो अपने सास की बात मानने लगी थी , और आये दिन उनके लिए स्वादिष्ट व्यंजन भी बनाने लगी थी . और जब कभी उसे गुस्सा आता तो वैद्य जी की बात ध्यान में रखकर कर वो अपने गुस्से पर काबू कर लेती। 6 महीने बीतते -बीतते घर का माहौल बिलकुल बदल चुका था . जो सास पहले बहु की बुराई करते नहीं थकती थी वही अब घर -घर घूम कर ली -ली की तारीफ़ करते नहीं थकती थीं . ली -ली भी अभिनय करते – करते अब सचमुच बदल चुकी थी , उसे अपनी सास में अपनी माँ नज़र आने लगी थीं .
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ली-ली को अब अपनी सास की मौत का भय सताने लगा और एक दिन वो किसी बहाने से मायके के लिए निकली और सीधे वैद्य जी के पास पहुंची .
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” वैद्य जी , कृपया मेरी मदद करिए , मैं अब अपनी सास को नहीं मारना चाहती , वो तो एकदम बदल गयी हैं , और मुझे बहुत प्यार करने लगी हैं , मैं भी उन्हें उतना ही मानने लगी हूँ …कुछ भी कर के उस ज़हर का असर ख़त्म कर दीजिये ….” , ली -ली रोते हुए बोली .
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वैद्य बोले , ” बेटी , चिंता करने की कोई ज़रुरत नहीं है , दरअसल मैंने तुम्हे कभी ज़हर दिया ही नहीं था , उस डिब्बे में तो बस स्वास्थ्य – वर्धक जड़ी -बूटियाँ थीं . ज़हर तो तुम्हारे दिमाग और नज़रिए में था , लेकिन मैं खुश हूँ कि तुमने अपनी सास की जो सेवा की और उन्हें जो प्रेम दिया उससे वो भी ख़त्म हो गया …, जाओ अब खुशहाली से अपने सास और पति के साथ जीवन व्यतीत करो .
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<hr alt="ज़िन्दगी चलती जाती है !" class="system-pagebreak" title="ज़िन्दगी चलती जाती है !" />
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<span style="color:#0000FF;"><span style="font-size:20px;"><strong>ज़िन्दगी चलती जाती है !</strong></span></span>
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जब जूलियो 10 साल का था तो उसका बस एक ही सपना था , अपने फेवरेट क्लब रियल मेड्रिड की ओर से फुटबाल खेलना ! वह दिन भर खेलता, प्रैक्टिस करता और धीरे-धीरे वह एक बहुत अच्छा गोलकीपर बन गया. 20 का होते-होते उसके बचपन का सपना हकीकत बनने के करीब पहुँच गया; उसे रियल मेड्रिड की तरफ से फुटबाल खेलने के लिए साइन कर लिया गया. खेल के धुरंधर जूलियो से बहुत प्रभावित थे और ये मान कर चल रहे थे कि बहुत जल्द वह स्पेन का नंबर 1 गोलकीपर बन जायेगा.
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1963 की एक शाम , जूलियो और उसके दोस्त कार से कहीं घूमने निकले. पर दुर्भाग्यवश उस कार का एक भयानक एक्सीडेंट हो गया , और रियल मेड्रिड और स्पेन का नंबर 1 गोलकीपर बनने वाला जूलियो हॉस्पिटल में पड़ा हुआ था , उसके कमर के नीचे का हिस्सा पैरलाइज हो चुका था. डॉक्टर्स इस बात को लेकर भी आस्वस्थ नहीं थे कि जूलियो फिर कभी चल पायेगा, फ़ुटबाल खेलना तो दूर की बात थी.
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वापस ठीक होना बहुत लम्बा और दर्दनाक अनुभव था. जूलियो बिलकुल निराश हो चुका था , वह बार-बार उस घटना को याद करता और क्रोध और मायूसी से भर जाता. अपना दर्द कम करने के लिए वह रात में गाने और कविताएँ लिखने लगा. धीरे-धीरे उसने गिटार पर भी अपना हाथ आजमाना शुरू किया और उसे बजाते हुए अपने लिखे गाने भी गाने लगा.
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18 महीने तक बिस्तर पर रहने के बाद , जूलियो अपनी ज़िन्दगी को फिर से सामान्य बनाने लगा. एक्सीडेंट के पांच साल बाद उसने एक सिंगिंग कम्पटीशन में भाग लिया और ” लाइफ गोज ओन द सेम ” गाना गा कर फर्स्ट प्राइज जीता.
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वह फिर कभी फ़ुटबाल नहीं खेल पाया पर अपने हाथों में गिटार और होंठों पे गाने लिए जूलियो इग्लेसियस संगीत की दुनिया में Top Ten सिंगर्स में शुमार हुआ ,और अब तक उनके 30 करोड़ से अधिक एल्बम बिक चुके हैं.
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<hr alt="धक्का" class="system-pagebreak" title="धक्का" />
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<span style="font-size:20px;"><span style="color:#0000FF;"><strong>धक्का</strong></span></span>
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एक बार की बात है , किसी शहर में एक बहुत अमीर आदमी रहता था. उसे एक अजीब शौक था , वो अपने घर के अन्दर बने एक बड़े से स्विमिंग पूल में बड़े-बड़े रेप्टाइल्स पाले हुए था ; जिसमे एक से बढ़कर एक सांप, मगरमच्छ ,घड़ियाल ,आदि शामिल थे .
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एक बार वो अपने घर पर एक पार्टी देता है .बहुत से लोग उस पार्टी में आते हैं.
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खाने-पीने के बाद वो सभी मेहमानों को स्विमिंग पूल के पास ले जाता है और कहता है –
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” दोस्तों, आप इस पूल को देख रहे हैं, इसमें एक से एक खतरनाक जीव हैं , अगर आपमें से कोई इसे तैर कर पार कर ले तो मैं उसे १ करोड़ रुपये या अपनी बेटी का हाथ दूंगा…”
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सभी लोग पूल की तरफ देखते हैं पर किसी की भी हिम्मत नहीं होती है कि उसे पार करे….लेकिन तभी छपाक से आवाज होती है और एक लड़का उसमे कूद जाता है ,और मगरमच्छों , साँपों, इत्यादि से बचता हुआ पूल पार कर जाता है.
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सभी लोग उसकी इस बहादुरी को देख हैरत में पड़ जाते हैं. अमीर आदमी को भी यकीन नहीं होता है कि कोई ऐसा कर सकता है ; इतने सालों में किसी ने पूल पार करना तो दूर उसका पानी छूने तक की हिम्मत नहीं की !
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वो उस लड़के को बुलाता है , ” लड़के , आज तुमने बहुत ही हिम्मत का काम किया है , तुम सच- मुच बहादुर हो बताओ तुम कौन सा इनाम चाहते हो।
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” अरे , इनाम-विनाम तो मैं लेता रहूँगा , पहले ये बताओ कि मुझे धक्का किसने दिया था….!” , लड़का बोला.
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मित्रों ये एक छोटा सा जोक था। पर इसमें एक बहुत बड़ा सन्देश छुपा हुआ है – उस लड़के में तैर कर स्विमिंग पूल पार करने की काबीलियत तो थी पर वो अपने आप नहीं कूदा , जब किसी ने धक्का दिया तो वो कूद गया और पार भी कर गया . अगर कोई उसे धक्का नहीं देता तो वो कभी न कूदने की सोचता और न पूल पार कर पाता , पर अब उसकी ज़िन्दगी हमेशा के लिए बदल चुकी थी …ऐसे ही हमारे अन्दर कई टैलेंट छुपे होते हैं जब तक हमारे अन्दर कॉन्फिडेंस और रिस्क उठाने की हिम्मत नहीं होती तब तक हम लाइफ के ऐसे कई चैलेंजेज में कूदे बगैर ही हार मान लेते हैं , हमें चाहिए कि हम अपनी काबीलियत पर विश्वास करें और ज़िन्दगी में मिले अवसरों का लाभ उठाएं।वो उस लड़के को बुलाता है , ” लड़के , आज तुमने बहुत ही हिम्मत का काम किया है , तुम सच- मुच बहादुर हो बताओ तुम कौन सा इनाम चाहते हो।
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” अरे , इनाम-विनाम तो मैं लेता रहूँगा , पहले ये बताओ कि मुझे धक्का किसने दिया था….!” , लड़का बोला.
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मित्रों ये एक छोटा सा जोक था। पर इसमें एक बहुत बड़ा सन्देश छुपा हुआ है – उस लड़के में तैर कर स्विमिंग पूल पार करने की काबीलियत तो थी पर वो अपने आप नहीं कूदा , जब किसी ने धक्का दिया तो वो कूद गया और पार भी कर गया . अगर कोई उसे धक्का नहीं देता तो वो कभी न कूदने की सोचता और न पूल पार कर पाता , पर अब उसकी ज़िन्दगी हमेशा के लिए बदल चुकी थी …ऐसे ही हमारे अन्दर कई टैलेंट छुपे होते हैं जब तक हमारे अन्दर कॉन्फिडेंस और रिस्क उठाने की हिम्मत नहीं होती तब तक हम लाइफ के ऐसे कई चैलेंजेज में कूदे बगैर ही हार मान लेते हैं , हमें चाहिए कि हम अपनी काबीलियत पर विश्वास करें और ज़िन्दगी में मिले अवसरों का लाभ उठाएं।
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<hr alt="बीज" class="system-pagebreak" title="बीज" />
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<span style="color:#0000FF;"><span style="font-size:20px;"><strong>बीज</strong></span></span>
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मिटटी के नीचे दबा एक बीज अपने खोल में आराम से सो रहा था . उसके बाकी साथी भी अपने अपने खोल में सिमटे पड़े हुए थे . तभी अचानक एक दिन बरसात हुई, जिस्से. मिटटी के ऊपर कुछ पानी इकठ्ठा हो गया और सारे बीज भीग कर सड़ने लगे . वह भी बीज भी तर -बतर हो गया और सड़ने लगा .
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बीज ने सोचा , ”इस तरह तो मैं एक बीज के रूप में ही मर जाऊंगा . मेरी हालत भी मेरे दोस्तों की तरह ही हो जाएगी , जो अब ख़त्म हो चुके हैं . मुझे कुछ ऐसा करना चाहिए कि मैं अमर हो जाऊं .” बीज ने हिम्मत दिखाई और पूरी ताकत लगाकर अपना खोल तोड़ कर खुद एक पौधे के रूप में परिवर्तित कर लिया . अब बरसात और मिटटी उसके दोस्त बन चुके थे और नुक्सान पहुँचाने की जगह बड़े होने में उसकी मदद करने लगे . धीरे – धीरे वह बड़ा होने लगा . एक दिन वह स्थिति आई जब वह इतना बड़ा हो गया कि अब और नही बढ़ सकता था। उसने मन ही मन सोचा , इस तरह यहाँ खड़े-खड़े मैं एक दिन मर जाऊँगा , पर मुझे तो अमर होना है. और ये सोच कर उसने खुद को एक कली के रूप में परिवर्तित कर लिया।
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कली बसंत में खिलने लगी , उसकी खुशबू दूर-दूर तक फ़ैल गयी जिससे आकर्षित हो कर भँवरे वहां मडराने लगे , इस प्रकार इस पौधे के बीज दूर-दूर तक फ़ैल गए और वह एक बीज जिसने परिस्थितियों के सामने हार ना मान कर खुद को खुद को परिवर्तित करने का फैसला किया था , दुबारा लाखों बीजों के रूप में जीवित हो गया .
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परिवर्तन को एक घटना की तरह नही , बल्कि एक प्रक्रिया की तरह देखना चाहिए . यह नयी खोज की तरह होता है . यह हमारे वातावरण को ही नही , बल्कि हमे भी बदलता है . हम विकास की नयी संभावनाओं को देखने लगते हैं और परिवर्तन में सक्षम होते हैं . यह हमे मिटाने की जगह मजबूत बनाता है और हम प्रगतिशील हो जाते हैं .
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<hr alt="खिड़की" class="system-pagebreak" title="खिड़की" />
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<span style="color:#0000FF;"><span style="font-size:20px;"><strong>खिड़की</strong></span></span>
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एक बार की बात है , एक नौविवाहित जोड़ा किसी किराए के घर में रहने पहुंचा . अगली सुबह , जब वे नाश्ता कर रहे थे , तभी पत्नी ने खिड़की से देखा कि सामने वाली छत पर कुछ कपड़े फैले हैं , – “ लगता है इन लोगों को कपड़े साफ़ करना भी नहीं आता …ज़रा देखो तो कितने मैले लग रहे हैं ? “
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पति ने उसकी बात सुनी पर अधिक ध्यान नहीं दिया .
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एक -दो दिन बाद फिर उसी जगह कुछ कपड़े फैले थे . पत्नी ने उन्हें देखते ही अपनी बात दोहरा दी ….” कब सीखेंगे ये लोग की कपड़े कैसे साफ़ करते हैं …!!”
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पति सुनता रहा पर इस बार भी उसने कुछ नहीं कहा .
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पर अब तो ये आये दिन की बात हो गयी , जब भी पत्नी कपडे फैले देखती भला -बुरा कहना शुरू हो जाती .
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लगभग एक महीने बाद वे यूँहीं बैठ कर नाश्ता कर रहे थे . पत्नी ने हमेशा की तरह नजरें उठायीं और सामने वाली छत<br />
की तरफ देखा , ” अरे वाह , लगता है इन्हें अकल आ ही गयी …आज तो कपडे बिलकुल साफ़ दिख रहे हैं , ज़रूर किसी ने टोका होगा !”
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पति बोल , ” नहीं उन्हें किसी ने नहीं टोका .”
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” तुम्हे कैसे पता ?” , पत्नी ने आश्चर्य से पूछा .
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” आज मैं सुबह जल्दी उठ गया था और मैंने इस खिड़की पर लगे कांच को बाहर से साफ़ कर दिया , इसलिए तुम्हे कपडे साफ़ नज़र आ रहे हैं . “, पति ने बात पूरी की .
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ज़िन्दगी में भी यही बात लागू होती है : बहुत बार हम दूसरों को कैसे देखते हैं ये इस पर निर्भर करता है की हम खुद अन्दर से कितने साफ़ हैं . किसी के बारे में भला-बुरा कहने से पहले अपनी मनोस्थिति देख लेनी चाहिए और खुद से पूछना चाहिए की क्या हम सामने वाले में कुछ बेहतर देखने के लिए तैयार हैं या अभी भी हमारी खिड़की गन्दी है !
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<hr alt="बुद्ध और अनुयायी" class="system-pagebreak" title="बुद्ध और अनुयायी" />
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<span style="color:#0000FF;"><span style="font-size:20px;"><strong>बुद्ध और अनुयायी</strong></span></span>
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भगवान् बुद्ध क एक अनुयायी ने कहा , ” प्रभु ! मुझे आपसे एक निवेदन करना है .”
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बुद्ध: बताओ क्या कहना है ?
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अनुयायी: मेरे वस्त्र पुराने हो चुके हैं . अब ये पहनने लायक नहीं रहे . कृपया मुझे नए वस्त्र देने का कष्ट करें !
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बुद्ध ने अनुयायी के वस्त्र देखे , वे सचमुच बिलकुल जीर्ण हो चुके थे और जगह जगह से घिस चुके थे …इसलिए उन्होंने एक अन्य अनुयायी को नए वस्त्र देने का आदेश दे दिए.
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कुछ दिनों बाद बुद्ध अनुयायी के घर पहुंचे .
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बुद्ध : क्या तुम अपने नए वस्त्रों में आराम से हो ? तुम्हे और कुछ तो नहीं चाहिए ?
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अनुयायी: धन्यवाद प्रभु . मैं इन वस्त्रों में बिलकुल आराम से हूँ और मुझे और कुछ नहीं चाहिए .
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बुद्ध: अब जबकि तुम्हारे पास नए वस्त्र हैं तो तुमने पुराने वस्त्रों का क्या किया ?
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अनुयायी: मैं अब उसे ओढने के लिए प्रयोग कर रहा हूँ ?
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बुद्ध: तो तुमने अपनी पुरानी ओढ़नी का क्या किया ?
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अनुयायी: जी मैंने उसे खिड़की पर परदे की जगह लगा दिया है .
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बुद्ध: तो क्या तुमने पुराने परदे फ़ेंक दिए ?
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अनुयायी: जी नहीं , मैंने उसके चार टुकड़े किये और उनका प्रयोग रसोई में गरम पतीलों को आग से उतारने के लिए कर रहा हूँ.
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बुद्ध: तो फिर रसॊइ के पुराने कपड़ों का क्या किया ?
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अनुयायी: अब मैं उन्हें पोछा लगाने के लिए प्रयोग करूँगा .
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बुद्ध: तो तुम्हारा पुराना पोछा क्या हुआ ?
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अनुयायी: प्रभु वो अब इतना तार -तार हो चुका था कि उसका कुछ नहीं किया जा सकता था , इसलिए मैंने उसका एक -एक धागा अलग कर दिए की बातियाँ तैयार कर लीं ….उन्ही में से एक कल रात आपके कक्ष में प्रकाशित था .
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बुद्ध अनुयायी से संतुष्ट हो गए . वो प्रसन्न थे कि उनका शिष्य वस्तुओं को बर्वाद नहीं करता और उसमे समझ है कि उनका उपयोग किस तरह से किया जा सकता है।
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मित्रों , आज जब प्राकृतिक संसाधन दिन – प्रतिदिन कम होते जा रहे हैं ऐसे में हमें भी कोशिश करनी चाहिए कि चीजों को बर्वाद ना करें और अपने छोटे छोटे प्रयत्नों से इस धरा को सुरक्षित बना कर रखें .
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एक सच्ची कहानी इंसानी जजबे की - Maricel Apatan2018-07-03T17:18:53+05:302018-07-03T17:18:53+05:30https://www.sandybook.in/latestsms/hindi-stories/short-stories-in-hindi/901-%E0%A4%8F%E0%A4%95-%E0%A4%B8%E0%A4%9A%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A5%80-%E0%A4%95%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%80-%E0%A4%87%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%80-%E0%A4%9C%E0%A4%9C%E0%A4%AC%E0%A5%87-%E0%A4%95%E0%A5%80-maricel-apatanSandybooksandybook.in@gmail.com<h1>
<span style="color:#0000CD;">एक सच्ची कहानी </span>
</h1>
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ये एक लड़की की सच्ची कहानी है जो हमें कठिन से कठिन परिस्थितियों के बावजूद जीवन को सकारात्मक तरीके से जीने और अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की प्रेरणा देती है .
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25 सितम्बर , 2000 की बात है . तब Maricel Apatan ( मैरिकेल ऐप्टैन) महज 11 साल की थी . उस दिन वो अपने अंकल के साथ पानी लाने के लिए बाहर निकली हुई थी. रास्ते में उन्हें चार -पांच लोगों ने घेर लिया , उनके हाथों में धारदार हथियार थे . उन्होंने अंकल से जमीन पर झुक जाने के लिए कहा और उन्हें बेहरहमी से मारने लगे .
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ये देख Maricel सदमें में आ गयीं , वो उन लोगों को जानती थी , वे उसके पडोसी थे . उसे लगा कि अब उसकी जान भी नहीं बचेगी और वो उनसे बच कर भागने लगी . पर वो छोटी थी और हत्यारे आसानी से उसतक पहुँच गए …वो चिल्लाने लगी …, “कुया , ‘वाग पो , ‘वाग न ’यो एकांग टैगईन ! मावा पो कायो सा एकिन !” ( मुझे मत मारो …मुझ पर दया करो …)
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पर उन दरिंदो ने उसकी एक ना सुनी , और उनमे से एक ने गले पर चाक़ू से वार कीया। Maricel जमीन पर गिरकर बेहोश हो गयी .जब थोड़ी देर बाद उसे होश आया तो उसने देखा कि वहाँ खून ही खून था और वे लोग अभी भी वहीँ खड़े थे , इसलिए उसने बिना किसी हरकत के मरे होने का नाटक किया .
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जब वे लोग चले गए तब वो उठी और घर की और दौड़ने लगी…. भागते -भागते ही उसने देखा कि उसकी दोनों हथेलियां हाथ से जुडी लटक रही हैं . यह देख Maricel और भी घबरा गयी , और रोते -रोते भागती रही …. जब वो अपने घर के करीब पहुँच गयी तब अपनी माँ को आवाज़ दी …
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माँ बाहर आयीं और अपनी बेटी की ये हालत देख भयभीत हो गयीं , उन्होंने बेटी को तुरंत एक कम्बल में लपेटा और हॉस्पिटल ले गयीं . हॉस्पिटल दूर था , पहुँचते -पहुँचते काफी वक़्त बीत गया . डॉक्टर्स को कोई उम्मीद नहीं थी कि वे Maricel को बचा पाएंगे पर 5 घंटे के ऑपरेशन के बाद भी वो ज़िंदा थी . पर डॉक्टर्स उसका हाथ नहीं बचा पाये थे .
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<p>
परेशानियां यहीं नहीं ख़त्म हुईं , जब वे वापस गए तो उनका घर लूट कर जलाया जा चुका था . गरीब होने के कारण उनके पास हॉस्पिटल का बिल भरने के पैसे भी नहीं थे …पर दूर के एक रिश्तेदार आर्चबिशप अंटोनिओ लेडेसमा की मदद से वे बिल भर पाये और अपराधियों को सजा भी दिलवा पाये .
</p>
<p>
इतना कुछ हो जाने के बाद भी Maricel ने कभी भगवन को नहीं कोसा कि उसके साथ ही ऐसा क्यों हुआ , बल्कि उसका कहना है कि , “ ईश्वर में विश्वाश रखते हुए , मैं और भी दृढ निश्चियी हो गयी कि मुझे एक सामान्य जीवन जीना है . मुझे लगता है कि मैं दुनिया में किसी ज़रूरी मिशन के लिए हूँ इसीलिए मैं इस हमले से बच पायी हूँ .”
</p>
<p>
Maricel ने हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी की और 2008 में होटल मैनेजमेंट का कोर्स भी पूरा किया . और बचपन से खाना बनाने के शौक के कारण 2011 में शेफ बनने की शिक्षा पूरी की.
</p>
<p>
इतनी बड़ी डिसेबिलिटी के बावजूद जीवन में आगे जाने के जज़बे को आस -पास के लोग नज़रअंदाज नहीं कर सकते थे , और जल्द ही Maricel को मीडिया हाईलाइट करने लगा . ऐसे ही एक कार्यक्रम को देख कर होटल एडसा शांग्री -ला , Manila, Philippines ने उसे अपने यहाँ किसी प्रोजेक्ट पर काम करने का मौका दिया .
</p>
<p>
Maricel के साथ काम करने वाले शेफ अल्ज़ामिल बोर्जा बताते हैं ,“वो मदद के लिए सिर्फ तभी पुकारती हैं जब उन्हें कोई गरम पात्र हटाना होता है या किसी शीशी का चिकना ढक्कन खोलना होता है .”
</p>
<p>
Maricel आज भी उसी होटल में बतौर शेफ काम करती हैं और अपने जज़बे के दम पर लाखो -करोड़ों लोगो को प्रेरित करती रहती हैं
</p>
<p>
दोस्तों, अक्सर हम अपनी life में आने वाली छोटी -मोटी परेशानियों से घबरा जाते हैं और अपना विश्वास कमजोर कर बैठते हैं , पर आज की ये कहानी बताती है कि situation कितनी ही खराब क्यों न हो हम उसे बदल सकते हैं। Maricel की कही एक बात हमें याद रखनी चाहिए- , ” यदि आप सपने देखें, कड़ी मेहनत करें और ईश्वर में आस्था रखें तो कुछ भी सम्भव है।
</p>
<h1>
<span style="color:#0000CD;">एक सच्ची कहानी </span>
</h1>
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ये एक लड़की की सच्ची कहानी है जो हमें कठिन से कठिन परिस्थितियों के बावजूद जीवन को सकारात्मक तरीके से जीने और अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की प्रेरणा देती है .
</p>
<p>
25 सितम्बर , 2000 की बात है . तब Maricel Apatan ( मैरिकेल ऐप्टैन) महज 11 साल की थी . उस दिन वो अपने अंकल के साथ पानी लाने के लिए बाहर निकली हुई थी. रास्ते में उन्हें चार -पांच लोगों ने घेर लिया , उनके हाथों में धारदार हथियार थे . उन्होंने अंकल से जमीन पर झुक जाने के लिए कहा और उन्हें बेहरहमी से मारने लगे .
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<p>
ये देख Maricel सदमें में आ गयीं , वो उन लोगों को जानती थी , वे उसके पडोसी थे . उसे लगा कि अब उसकी जान भी नहीं बचेगी और वो उनसे बच कर भागने लगी . पर वो छोटी थी और हत्यारे आसानी से उसतक पहुँच गए …वो चिल्लाने लगी …, “कुया , ‘वाग पो , ‘वाग न ’यो एकांग टैगईन ! मावा पो कायो सा एकिन !” ( मुझे मत मारो …मुझ पर दया करो …)
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<p>
पर उन दरिंदो ने उसकी एक ना सुनी , और उनमे से एक ने गले पर चाक़ू से वार कीया। Maricel जमीन पर गिरकर बेहोश हो गयी .जब थोड़ी देर बाद उसे होश आया तो उसने देखा कि वहाँ खून ही खून था और वे लोग अभी भी वहीँ खड़े थे , इसलिए उसने बिना किसी हरकत के मरे होने का नाटक किया .
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<p>
जब वे लोग चले गए तब वो उठी और घर की और दौड़ने लगी…. भागते -भागते ही उसने देखा कि उसकी दोनों हथेलियां हाथ से जुडी लटक रही हैं . यह देख Maricel और भी घबरा गयी , और रोते -रोते भागती रही …. जब वो अपने घर के करीब पहुँच गयी तब अपनी माँ को आवाज़ दी …
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<p>
माँ बाहर आयीं और अपनी बेटी की ये हालत देख भयभीत हो गयीं , उन्होंने बेटी को तुरंत एक कम्बल में लपेटा और हॉस्पिटल ले गयीं . हॉस्पिटल दूर था , पहुँचते -पहुँचते काफी वक़्त बीत गया . डॉक्टर्स को कोई उम्मीद नहीं थी कि वे Maricel को बचा पाएंगे पर 5 घंटे के ऑपरेशन के बाद भी वो ज़िंदा थी . पर डॉक्टर्स उसका हाथ नहीं बचा पाये थे .
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परेशानियां यहीं नहीं ख़त्म हुईं , जब वे वापस गए तो उनका घर लूट कर जलाया जा चुका था . गरीब होने के कारण उनके पास हॉस्पिटल का बिल भरने के पैसे भी नहीं थे …पर दूर के एक रिश्तेदार आर्चबिशप अंटोनिओ लेडेसमा की मदद से वे बिल भर पाये और अपराधियों को सजा भी दिलवा पाये .
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इतना कुछ हो जाने के बाद भी Maricel ने कभी भगवन को नहीं कोसा कि उसके साथ ही ऐसा क्यों हुआ , बल्कि उसका कहना है कि , “ ईश्वर में विश्वाश रखते हुए , मैं और भी दृढ निश्चियी हो गयी कि मुझे एक सामान्य जीवन जीना है . मुझे लगता है कि मैं दुनिया में किसी ज़रूरी मिशन के लिए हूँ इसीलिए मैं इस हमले से बच पायी हूँ .”
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Maricel ने हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी की और 2008 में होटल मैनेजमेंट का कोर्स भी पूरा किया . और बचपन से खाना बनाने के शौक के कारण 2011 में शेफ बनने की शिक्षा पूरी की.
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इतनी बड़ी डिसेबिलिटी के बावजूद जीवन में आगे जाने के जज़बे को आस -पास के लोग नज़रअंदाज नहीं कर सकते थे , और जल्द ही Maricel को मीडिया हाईलाइट करने लगा . ऐसे ही एक कार्यक्रम को देख कर होटल एडसा शांग्री -ला , Manila, Philippines ने उसे अपने यहाँ किसी प्रोजेक्ट पर काम करने का मौका दिया .
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Maricel के साथ काम करने वाले शेफ अल्ज़ामिल बोर्जा बताते हैं ,“वो मदद के लिए सिर्फ तभी पुकारती हैं जब उन्हें कोई गरम पात्र हटाना होता है या किसी शीशी का चिकना ढक्कन खोलना होता है .”
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Maricel आज भी उसी होटल में बतौर शेफ काम करती हैं और अपने जज़बे के दम पर लाखो -करोड़ों लोगो को प्रेरित करती रहती हैं
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दोस्तों, अक्सर हम अपनी life में आने वाली छोटी -मोटी परेशानियों से घबरा जाते हैं और अपना विश्वास कमजोर कर बैठते हैं , पर आज की ये कहानी बताती है कि situation कितनी ही खराब क्यों न हो हम उसे बदल सकते हैं। Maricel की कही एक बात हमें याद रखनी चाहिए- , ” यदि आप सपने देखें, कड़ी मेहनत करें और ईश्वर में आस्था रखें तो कुछ भी सम्भव है।
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मुट्ठी भर मेढक - शिक्षाप्रद कहानी 2018-07-03T17:10:40+05:302018-07-03T17:10:40+05:30https://www.sandybook.in/latestsms/hindi-stories/short-stories-in-hindi/900-%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%A0%E0%A5%80-%E0%A4%AD%E0%A4%B0-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%A2%E0%A4%95-%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A6-%E0%A4%95%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%80Sandybooksandybook.in@gmail.com<h1>
<span style="color:#0000CD;"><strong>मुट्ठी भर मेढक - शिक्षाप्रद कहानी </strong></span>
</h1>
<p>
</p>
<p>
बहुत समय पहले की बात है किसी गाँव में मोहन नाम का एक किसान रहता था . वह बड़ा मेहनती और ईमानदार था . अपने अच्छे व्यवहार के कारण दूर -दूर तक उसे लोग उसे जानते थे और उसकी प्रशंशा करते थे . पर एक दिन जब देर शाम वह खेतों से काम कर लौट रहा था तभी रास्ते में उसने कुछ लोगों को बाते करते सुना , वे उसी के बारे में बात कर रहे थे .
</p>
<p>
मोहन अपनी प्रशंशा सुनने के लिए उन्हें बिना बताये धीरे -धीरे उनके पीछे चलने लगा , पर उसने उनकी बात सुनी तो पाया कि वे उसकी बुराई कर रहे थे , कोई कह रहा था कि , “ मोहन घमण्डी है .” , तो कोई कह रहा था कि ,” सब जानते हैं वो अच्छा होने का दिखावा करता है …”
</p>
<p>
मोहन ने इससे पहले सिर्फ अपनी प्रशंशा सुनी थी पर इस घटना का उसके दिमाग पर बहुत बुरा असर पड़ा और अब वह जब भी कुछ लोगों को बाते करते देखता तो उसे लगता वे उसकी बुराई कर रहे हैं . यहाँ तक कि अगर कोई उसकी तारीफ़ करता तो भी उसे लगता कि उसका मजाक उड़ाया जा रहा है . धीरे -धीरे सभी ये महसूस करने लगे कि मोहन बदल गया है , और उसकी पत्नी भी अपने पति के व्यवहार में आये बदलाव से दुखी रहने लगी और एक दिन उसने पूछा , “ आज -कल आप इतने परेशान क्यों रहते हैं ;कृपया मुझे इसका कारण बताइये.”
</p>
<p>
मोहन ने उदास होते हुए उस दिन की बात बता दी . पत्नी को भी समझ नहीं आया कि क्या किया जाए पर तभी उसे ध्यान आया कि पास के ही एक गाँव में एक सिद्ध महात्मा आये हुए हैं , और वो बोली , “ स्वामी , मुझे पता चला है कि पड़ोस के गाँव में एक पहुंचे हुए संत आये हैं ।चलिये हम उनसे कोई समाधान पूछते हैं .”
</p>
<p>
अगले दिन वे महात्मा जी के शिविर में पहुंचे .
</p>
<p>
मोहन ने सारी घटना बतायी और बोला , महाराज उस दिन के बाद से सभी मेरी बुराई और झूठी प्रशंशा करते हैं , कृपया मुझे बताइये कि मैं वापस अपनी साख कैसे बना सकता हूँ ! !”<br />
महात्मा मोहन कि समस्या समझ चुके थे .
</p>
<p>
“ पुत्र तुम अपनी पत्नी को घर छोड़ आओ और आज रात मेरे शिविर में ठहरो .”, महात्मा कुछ सोचते हुए बोले .
</p>
<p>
मोहन ने ऐसा ही किया , पर जब रात में सोने का समय हुआ तो अचानक ही मेढ़कों के टर्र -टर्र की आवाज आने लगी .<br />
मोहन बोला , “ ये क्या महाराज यहाँ इतना कोलाहल क्यों है ?”
</p>
<p>
“पुत्र , पीछे एक तालाब है , रात के वक़्त उसमे मौजूद मेढक अपना राग अलापने लगते हैं !!!”
</p>
<p>
“पर ऐसे में तो कोई यहाँ सो नहीं सकता ??,” मोहान ने चिंता जताई।
</p>
<p>
“हाँ बेटा , पर तुम ही बताओ हम क्या कर सकते हैं , हो सके तो तुम हमारी मदद करो “, महात्मा जी बोले .
</p>
<p>
मोहन बोला , “ ठीक है महाराज , इतना शोर सुनके लगता है इन मेढकों की संख्या हज़ारों में होगी , मैं कल ही गांव से पचास -साठ मजदूरों को लेकर आता हूँ और इन्हे पकड़ कर दूर नदी में छोड़ आता हूँ .”
</p>
<p>
और अगले दिन मोहन सुबह -सुबह मजदूरों के साथ वहाँ पंहुचा , महात्मा जी भी वहीँ खड़े सब कुछ देख रहे थे .
</p>
<p>
तालाब जयादा बड़ा नहीं था , 8-10 मजदूरों ने चारों और से जाल डाला और मेढ़कों को पकड़ने लगे …थोड़ी देर की ही मेहनत में सारे मेढक पकड़ लिए गए.
</p>
<p>
जब मोहन ने देखा कि कुल मिला कर 50-60 ही मेढक पकडे गए हैं तब उसने माहत्मा जी से पूछा , “ महाराज , कल रात तो इसमें हज़ारों मेढक थे , भला आज वे सब कहाँ चले गए , यहाँ तो बस मुट्ठी भर मेढक ही बचे हैं .”
</p>
<p>
महात्मा जी गम्भीर होते हुए बोले , “ कोई मेढक कहीं नहीं गया , तुमने कल इन्ही मेढ़कों की आवाज सुनी थी , ये मुट्ठी भर मेढक ही इतना शोर कर रहे थे कि तुम्हे लगा हज़ारों मेढक टर्र -टर्र कर रहे हों . पुत्र, इसी प्रकार जब तुमने कुछ लोगों को अपनी बुराई करते सुना तो भी तुम यही गलती कर बैठे , तुम्हे लगा कि हर कोई तुम्हारी बुराई करता है पर सच्चाई ये है कि बुराई करने वाले लोग मुठ्ठी भर मेढक के सामान ही थे. इसलिए अगली बार किसी को अपनी बुराई करते सुनना तो इतना याद रखना कि हो सकता है ये कुछ ही लोग हों जो ऐसा कर रहे हों , और इस बात को भी समझना कि भले तुम कितने ही अच्छे क्यों न हो ऐसे कुछ लोग होंगे ही होंगे जो तुम्हारी बुराई करेंगे।”
</p>
<p>
अब मोहन को अपनी गलती का अहसास हो चुका था , वह पुनः पुराना वाला मोहन बन चुका था.
</p>
<p>
दोस्तों, मोहन की तरह हमें भी कुछ लोगों के व्यवहार को हर किसी का व्यवहार नहीं समझ लेना चाहिए और positive frame of mind से अपनी ज़िन्दगी जीनी चाहिए। हम कुछ भी कर लें पर life में कभी ना कभी ऐसी समस्या आ ही जाती है जो रात के अँधेरे में ऐसी लगती है मानो हज़ारों मेढक कान में टर्र-टर्र कर रहे हों। पर जब दिन के उजाले में हम उसका समाधान करने का प्रयास करते हैं तो वही समस्या छोटी लगने लगती है. इसलिए हमें ऐसी situations में घबराने की बजाये उसका solution खोजने का प्रयास करना चाहिए और कभी मुट्ठी भर मेढकों से घबराना नहीं चाहिए.
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<span style="color:#0000CD;"><strong>मुट्ठी भर मेढक - शिक्षाप्रद कहानी </strong></span>
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बहुत समय पहले की बात है किसी गाँव में मोहन नाम का एक किसान रहता था . वह बड़ा मेहनती और ईमानदार था . अपने अच्छे व्यवहार के कारण दूर -दूर तक उसे लोग उसे जानते थे और उसकी प्रशंशा करते थे . पर एक दिन जब देर शाम वह खेतों से काम कर लौट रहा था तभी रास्ते में उसने कुछ लोगों को बाते करते सुना , वे उसी के बारे में बात कर रहे थे .
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मोहन अपनी प्रशंशा सुनने के लिए उन्हें बिना बताये धीरे -धीरे उनके पीछे चलने लगा , पर उसने उनकी बात सुनी तो पाया कि वे उसकी बुराई कर रहे थे , कोई कह रहा था कि , “ मोहन घमण्डी है .” , तो कोई कह रहा था कि ,” सब जानते हैं वो अच्छा होने का दिखावा करता है …”
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मोहन ने इससे पहले सिर्फ अपनी प्रशंशा सुनी थी पर इस घटना का उसके दिमाग पर बहुत बुरा असर पड़ा और अब वह जब भी कुछ लोगों को बाते करते देखता तो उसे लगता वे उसकी बुराई कर रहे हैं . यहाँ तक कि अगर कोई उसकी तारीफ़ करता तो भी उसे लगता कि उसका मजाक उड़ाया जा रहा है . धीरे -धीरे सभी ये महसूस करने लगे कि मोहन बदल गया है , और उसकी पत्नी भी अपने पति के व्यवहार में आये बदलाव से दुखी रहने लगी और एक दिन उसने पूछा , “ आज -कल आप इतने परेशान क्यों रहते हैं ;कृपया मुझे इसका कारण बताइये.”
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मोहन ने उदास होते हुए उस दिन की बात बता दी . पत्नी को भी समझ नहीं आया कि क्या किया जाए पर तभी उसे ध्यान आया कि पास के ही एक गाँव में एक सिद्ध महात्मा आये हुए हैं , और वो बोली , “ स्वामी , मुझे पता चला है कि पड़ोस के गाँव में एक पहुंचे हुए संत आये हैं ।चलिये हम उनसे कोई समाधान पूछते हैं .”
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अगले दिन वे महात्मा जी के शिविर में पहुंचे .
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मोहन ने सारी घटना बतायी और बोला , महाराज उस दिन के बाद से सभी मेरी बुराई और झूठी प्रशंशा करते हैं , कृपया मुझे बताइये कि मैं वापस अपनी साख कैसे बना सकता हूँ ! !”<br />
महात्मा मोहन कि समस्या समझ चुके थे .
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“ पुत्र तुम अपनी पत्नी को घर छोड़ आओ और आज रात मेरे शिविर में ठहरो .”, महात्मा कुछ सोचते हुए बोले .
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मोहन ने ऐसा ही किया , पर जब रात में सोने का समय हुआ तो अचानक ही मेढ़कों के टर्र -टर्र की आवाज आने लगी .<br />
मोहन बोला , “ ये क्या महाराज यहाँ इतना कोलाहल क्यों है ?”
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“पुत्र , पीछे एक तालाब है , रात के वक़्त उसमे मौजूद मेढक अपना राग अलापने लगते हैं !!!”
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“पर ऐसे में तो कोई यहाँ सो नहीं सकता ??,” मोहान ने चिंता जताई।
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“हाँ बेटा , पर तुम ही बताओ हम क्या कर सकते हैं , हो सके तो तुम हमारी मदद करो “, महात्मा जी बोले .
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मोहन बोला , “ ठीक है महाराज , इतना शोर सुनके लगता है इन मेढकों की संख्या हज़ारों में होगी , मैं कल ही गांव से पचास -साठ मजदूरों को लेकर आता हूँ और इन्हे पकड़ कर दूर नदी में छोड़ आता हूँ .”
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और अगले दिन मोहन सुबह -सुबह मजदूरों के साथ वहाँ पंहुचा , महात्मा जी भी वहीँ खड़े सब कुछ देख रहे थे .
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तालाब जयादा बड़ा नहीं था , 8-10 मजदूरों ने चारों और से जाल डाला और मेढ़कों को पकड़ने लगे …थोड़ी देर की ही मेहनत में सारे मेढक पकड़ लिए गए.
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जब मोहन ने देखा कि कुल मिला कर 50-60 ही मेढक पकडे गए हैं तब उसने माहत्मा जी से पूछा , “ महाराज , कल रात तो इसमें हज़ारों मेढक थे , भला आज वे सब कहाँ चले गए , यहाँ तो बस मुट्ठी भर मेढक ही बचे हैं .”
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महात्मा जी गम्भीर होते हुए बोले , “ कोई मेढक कहीं नहीं गया , तुमने कल इन्ही मेढ़कों की आवाज सुनी थी , ये मुट्ठी भर मेढक ही इतना शोर कर रहे थे कि तुम्हे लगा हज़ारों मेढक टर्र -टर्र कर रहे हों . पुत्र, इसी प्रकार जब तुमने कुछ लोगों को अपनी बुराई करते सुना तो भी तुम यही गलती कर बैठे , तुम्हे लगा कि हर कोई तुम्हारी बुराई करता है पर सच्चाई ये है कि बुराई करने वाले लोग मुठ्ठी भर मेढक के सामान ही थे. इसलिए अगली बार किसी को अपनी बुराई करते सुनना तो इतना याद रखना कि हो सकता है ये कुछ ही लोग हों जो ऐसा कर रहे हों , और इस बात को भी समझना कि भले तुम कितने ही अच्छे क्यों न हो ऐसे कुछ लोग होंगे ही होंगे जो तुम्हारी बुराई करेंगे।”
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अब मोहन को अपनी गलती का अहसास हो चुका था , वह पुनः पुराना वाला मोहन बन चुका था.
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दोस्तों, मोहन की तरह हमें भी कुछ लोगों के व्यवहार को हर किसी का व्यवहार नहीं समझ लेना चाहिए और positive frame of mind से अपनी ज़िन्दगी जीनी चाहिए। हम कुछ भी कर लें पर life में कभी ना कभी ऐसी समस्या आ ही जाती है जो रात के अँधेरे में ऐसी लगती है मानो हज़ारों मेढक कान में टर्र-टर्र कर रहे हों। पर जब दिन के उजाले में हम उसका समाधान करने का प्रयास करते हैं तो वही समस्या छोटी लगने लगती है. इसलिए हमें ऐसी situations में घबराने की बजाये उसका solution खोजने का प्रयास करना चाहिए और कभी मुट्ठी भर मेढकों से घबराना नहीं चाहिए.
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मुल्ला नसरुदीन के किस्से और कहानियां 2018-07-03T16:59:00+05:302018-07-03T16:59:00+05:30https://www.sandybook.in/latestsms/hindi-stories/short-stories-in-hindi/899-%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%BE-%E0%A4%A8%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A5%80%E0%A4%A8-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B8%E0%A5%87-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%95%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%82Sandybooksandybook.in@gmail.com<p>
<span style="color:#0000CD;"><span style="font-size:20px;"><strong>मुल्ला नसरुदीन के किस्से और कहानियां </strong></span></span>
</p>
<div>
माना जाता है कि मुल्ला नसरुदीन तुर्की में रहने वाला एक बुद्धिमान दार्शनिक था जिसे उसके किस्से कहानियों के लिए जाना जाता था. ओशो अक्सर अपने उपदेशों में मुल्ला के कहानी किस्सों का ज़िक्र किया करते थे.
</div>
<div>
</div>
<div>
<strong><span style="font-size:20px;">मुल्ला का प्रवचन</span></strong>
</div>
<div>
<p>
एक बार मुल्ला नसरुदीन को प्रवचन देने के लिए आमंत्रित किया गया . मुल्ला समय से पहुंचे और स्टेज पर चढ़ गए , “ क्या आप जानते हैं मैं क्या बताने वाला हूँ ? मुल्ला ने पूछा .
</p>
<p>
“नहीं ” बैठे हुए लोगों ने जवाब दिया .
</p>
<p>
यह सुन मुल्ला नाराज़ हो गए ,” जिन लोगों को ये भी नहीं पता कि मैं क्या बोलने वाला हूँ मेरी उनके सामने बोलने की कोई इच्छा नहीं है . “ और ऐसा कह कर वो चले गए .
</p>
<p>
उपस्थित लोगों को थोड़ी शर्मिंदगी हुई और उन्होंने अगले दिन फिर से मुल्ला नसरुदीन को बुलावा भेज .
</p>
<p>
इस बार भी मुल्ला ने वही प्रश्न दोहराया , “ क्या आप जानते हैं मैं क्या बताने वाला हूँ ?”
</p>
<p>
“हाँ ”, कोरस में उत्तर आया .
</p>
<p>
“बहुत अच्छे जब आप पहले से ही जानते हैं तो भला दुबारा बता कर मैं आपका समय क्यों बर्वाद करूँ ”, और ऐसा खेते हुए मुल्ला वहां से निकल गए .
</p>
<p>
अब लोग थोडा क्रोधित हो उठे , और उन्होंने एक बार फिर मुल्ला को आमंत्रित किया .
</p>
<p>
इस बार भी मुल्ला ने वही प्रश्न किया , “क्या आप जानते हैं मैं क्या बताने वाला हूँ ?”
</p>
<p>
इस बार सभी ने पहले से योजना बना रखी थी इसलिए आधे लोगों ने “हाँ ” और आधे लोगों ने “ना ” में उत्तर दिया .
</p>
<p>
“ ठीक है जो आधे लोग जानते हैं कि मैं क्या बताने वाला हूँ वो बाकी के आधे लोगों को बता दें .”
</p>
<p>
फिर कभी किसी ने मुल्ला को नहीं बुलाया !
</p>
</div>
<div>
<strong><span style="font-size:20px;">मुल्ला बने कम्युनिस्ट</span></strong>
</div>
<div>
<p>
एक बार खबर फैली की मुल्ला नसरुदीन कम्युनिस्ट बन गए हैं . जो भी सुनता उसे आश्चर्य होता क्योंकि सभी जानते थे की मुल्ला अपनी चीजों को लेकर कितने पोजेसिव हैं .
</p>
<p>
जब उनके परम मित्र ने ये खबर सुनी तो वो तुरंत मुल्ला के पास पहुंचा .
</p>
<p>
मित्र : “ मुल्ला क्या तुम जानते हो कम्युनिज्म का मतलब क्या है ?”<br />
मुल्ला : “हाँ , मुझे पता है .”
</p>
<p>
मित्र : “ क्या तुम्हे पता है अगर तुम्हारे पास दो कार है और किसी के पास एक भी नहीं तो तुम्हे अपनी एक कार देनी पड़ेगी ”<br />
मुल्ला : “ हाँ , और मैं अपनी इच्छा से देने के लिए तैयार हूँ .”
</p>
<p>
मित्र : “ अगर तुम्हारे पास दो बंगले हैं और किसी के पास एक भी नहीं तो तुम्हे अपना एक बंगला देना होगा ?”<br />
मुल्ला : “ हाँ , और मैं पूरी तरह से देने को तैयार हूँ .”
</p>
<p>
मित्र :” और तुम जानते हो अगर तुम्हारे पास दो गधे हैं और किसी के पास एक भी नहीं तो तुम्हे अपना एक गधा देना पड़ेगा ?”<br />
मुल्ला : “ नहीं , मैं इस बात से मतलब नहीं रखता , मैं नहीं दे सकता , मैं बिलकुल भी ऐसा नहीं कर सकता .”
</p>
<p>
मित्र : “ पर क्यों , यहाँ भी तो वही तर्क लागू होता है ?”<br />
मुल्ला : “ क्योंकि मेरे पास कार और बंगले तो नहीं हैं , पर दो गधे ज़रूर हैं .”
</p>
<p>
</p>
<p>
<span style="font-size:20px;"><strong>मुल्ला और पड़ोसी</strong></span>
</p>
<p>
एक पड़ोसी मुल्ला नसरुद्दीन के द्वार पर पहुंचा . मुल्ला उससे मिलने बाहर निकले .
</p>
<p>
“ मुल्ला क्या तुम आज के लिए अपना गधा मुझे दे सकते हो , मुझे कुछ सामान दूसरे शहर पहुंचाना है ? ”
</p>
<p>
मुल्ला उसे अपना गधा नहीं देना चाहते थे , पर साफ़ -साफ़ मन करने से पड़ोसी को ठेस पहुँचती इसलिए उन्होंने झूठ कह दिया , “ मुझे माफ़ करना मैंने तो आज सुबह ही अपना गधा किसी उर को दे दिया है .”
</p>
<p>
मुल्ला ने अभी अपनी बात पूरी भी नहीं की थी कि अन्दर से ढेंचू-ढेंचू की आवाज़ आने लगी .
</p>
<p>
“ लेकिन मुल्ला , गधा तो अन्दर बंधा चिल्ला रहा है .”, पड़ोसी ने चौकते हुए कहा .
</p>
<p>
“ तुम किस पर यकीन करते हो .”, मुल्ला बिना घबराए बोले , “ गधे पर या अपने मुल्ला पर ?”
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पडोसी चुप – चाप वापस चला गया .
</p>
</div>
<p>
</p>
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<span style="color:#0000CD;"><span style="font-size:20px;"><strong>मुल्ला नसरुदीन के किस्से और कहानियां </strong></span></span>
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माना जाता है कि मुल्ला नसरुदीन तुर्की में रहने वाला एक बुद्धिमान दार्शनिक था जिसे उसके किस्से कहानियों के लिए जाना जाता था. ओशो अक्सर अपने उपदेशों में मुल्ला के कहानी किस्सों का ज़िक्र किया करते थे.
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<strong><span style="font-size:20px;">मुल्ला का प्रवचन</span></strong>
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एक बार मुल्ला नसरुदीन को प्रवचन देने के लिए आमंत्रित किया गया . मुल्ला समय से पहुंचे और स्टेज पर चढ़ गए , “ क्या आप जानते हैं मैं क्या बताने वाला हूँ ? मुल्ला ने पूछा .
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“नहीं ” बैठे हुए लोगों ने जवाब दिया .
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यह सुन मुल्ला नाराज़ हो गए ,” जिन लोगों को ये भी नहीं पता कि मैं क्या बोलने वाला हूँ मेरी उनके सामने बोलने की कोई इच्छा नहीं है . “ और ऐसा कह कर वो चले गए .
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उपस्थित लोगों को थोड़ी शर्मिंदगी हुई और उन्होंने अगले दिन फिर से मुल्ला नसरुदीन को बुलावा भेज .
</p>
<p>
इस बार भी मुल्ला ने वही प्रश्न दोहराया , “ क्या आप जानते हैं मैं क्या बताने वाला हूँ ?”
</p>
<p>
“हाँ ”, कोरस में उत्तर आया .
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<p>
“बहुत अच्छे जब आप पहले से ही जानते हैं तो भला दुबारा बता कर मैं आपका समय क्यों बर्वाद करूँ ”, और ऐसा खेते हुए मुल्ला वहां से निकल गए .
</p>
<p>
अब लोग थोडा क्रोधित हो उठे , और उन्होंने एक बार फिर मुल्ला को आमंत्रित किया .
</p>
<p>
इस बार भी मुल्ला ने वही प्रश्न किया , “क्या आप जानते हैं मैं क्या बताने वाला हूँ ?”
</p>
<p>
इस बार सभी ने पहले से योजना बना रखी थी इसलिए आधे लोगों ने “हाँ ” और आधे लोगों ने “ना ” में उत्तर दिया .
</p>
<p>
“ ठीक है जो आधे लोग जानते हैं कि मैं क्या बताने वाला हूँ वो बाकी के आधे लोगों को बता दें .”
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<p>
फिर कभी किसी ने मुल्ला को नहीं बुलाया !
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<div>
<strong><span style="font-size:20px;">मुल्ला बने कम्युनिस्ट</span></strong>
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<div>
<p>
एक बार खबर फैली की मुल्ला नसरुदीन कम्युनिस्ट बन गए हैं . जो भी सुनता उसे आश्चर्य होता क्योंकि सभी जानते थे की मुल्ला अपनी चीजों को लेकर कितने पोजेसिव हैं .
</p>
<p>
जब उनके परम मित्र ने ये खबर सुनी तो वो तुरंत मुल्ला के पास पहुंचा .
</p>
<p>
मित्र : “ मुल्ला क्या तुम जानते हो कम्युनिज्म का मतलब क्या है ?”<br />
मुल्ला : “हाँ , मुझे पता है .”
</p>
<p>
मित्र : “ क्या तुम्हे पता है अगर तुम्हारे पास दो कार है और किसी के पास एक भी नहीं तो तुम्हे अपनी एक कार देनी पड़ेगी ”<br />
मुल्ला : “ हाँ , और मैं अपनी इच्छा से देने के लिए तैयार हूँ .”
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<p>
मित्र : “ अगर तुम्हारे पास दो बंगले हैं और किसी के पास एक भी नहीं तो तुम्हे अपना एक बंगला देना होगा ?”<br />
मुल्ला : “ हाँ , और मैं पूरी तरह से देने को तैयार हूँ .”
</p>
<p>
मित्र :” और तुम जानते हो अगर तुम्हारे पास दो गधे हैं और किसी के पास एक भी नहीं तो तुम्हे अपना एक गधा देना पड़ेगा ?”<br />
मुल्ला : “ नहीं , मैं इस बात से मतलब नहीं रखता , मैं नहीं दे सकता , मैं बिलकुल भी ऐसा नहीं कर सकता .”
</p>
<p>
मित्र : “ पर क्यों , यहाँ भी तो वही तर्क लागू होता है ?”<br />
मुल्ला : “ क्योंकि मेरे पास कार और बंगले तो नहीं हैं , पर दो गधे ज़रूर हैं .”
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<span style="font-size:20px;"><strong>मुल्ला और पड़ोसी</strong></span>
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<p>
एक पड़ोसी मुल्ला नसरुद्दीन के द्वार पर पहुंचा . मुल्ला उससे मिलने बाहर निकले .
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<p>
“ मुल्ला क्या तुम आज के लिए अपना गधा मुझे दे सकते हो , मुझे कुछ सामान दूसरे शहर पहुंचाना है ? ”
</p>
<p>
मुल्ला उसे अपना गधा नहीं देना चाहते थे , पर साफ़ -साफ़ मन करने से पड़ोसी को ठेस पहुँचती इसलिए उन्होंने झूठ कह दिया , “ मुझे माफ़ करना मैंने तो आज सुबह ही अपना गधा किसी उर को दे दिया है .”
</p>
<p>
मुल्ला ने अभी अपनी बात पूरी भी नहीं की थी कि अन्दर से ढेंचू-ढेंचू की आवाज़ आने लगी .
</p>
<p>
“ लेकिन मुल्ला , गधा तो अन्दर बंधा चिल्ला रहा है .”, पड़ोसी ने चौकते हुए कहा .
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“ तुम किस पर यकीन करते हो .”, मुल्ला बिना घबराए बोले , “ गधे पर या अपने मुल्ला पर ?”
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<p>
पडोसी चुप – चाप वापस चला गया .
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शेख चिल्ली के मजेदार किस्से 2018-07-03T16:50:12+05:302018-07-03T16:50:12+05:30https://www.sandybook.in/latestsms/hindi-stories/short-stories-in-hindi/898-%E0%A4%B6%E0%A5%87%E0%A4%96-%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%80-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%AE%E0%A4%9C%E0%A5%87%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B8%E0%A5%87Sandybooksandybook.in@gmail.com<h1>
<span style="color:#0000CD;">कौन थे शेख चिल्ली?</span>
</h1>
<p>
माना जाता है कि सूफी संत अब्द-उर-रहीम, जिन्हें अब्द-उई-करीम और अब्द-उर- रज़ाक के नाम से भी जाना जाता था उन्ही का प्रसिद्द नाम शेख चिल्ली पड़ा। उनकी मौजूदगी 1650 AD के आस-पास की मानी जाती है और हरयाणा में उनका एक मकबरा भी बना हुआ है।<br />
भारत में शेख चिल्ली को एक मजेदार कैरेक्टर के रूप में देख जाता है जो अक्सर ख्यालों में खो जाता है और हवाई-किलें बनाया करता है। पर जब उसे होश आता है तो वो खुद को लोगों के बीच पाता है और सबके लिए हंसी का पात्र बन जाता है।
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<p>
आज हम आपके साथ शेख चिल्ली की कुछ मजेदार कहानियां पढ़ेंगे
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<p>
<span style="font-size:16px;"><strong>क्यों पड़ा “मियां शेख” का नाम “मियां शेख चिल्ली”</strong></span>
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<p>
मियां शेख चिल्ली नें मौलवी साहब की यह सीख गाठ बांध ली।
</p>
<p>
फिर एक दिन मियां शेख चिल्ली जंगल से गुज़र रहे थे। तभी उन्हे किसी कुएं के अंदर से किसी के चिल्लाने की आवाज़ आई। वह फौरन वहाँ दौड़ कर जा पहुंचे। उन्होने देखा की वहाँ कुए में एक लड़की गिरि पड़ी थी और वह मदद के लिए चिल्ला रही थी।
</p>
<p>
मियां शेख चिल्ली तुरंत दौड़ कर अपने दोस्तों के पास गए और उन्हे बोलने लगे कि वहाँ कुएं के अंदर एक लड़की गिरि पड़ी है और वह मदद के लिए चिल्ली रही है।
</p>
<p>
मियां शेख चिल्ली और उनके दोस्तों नें मिल कर उस लड़की को कुएं से बाहर निकाल लिया।फिर घर जाते वक्त मियां शेख चिल्ली के एक दोस्त नें यह सवाल किया की मियां शेख आप लड़की चिल्ली रही….चिल्ली रही… क्यों बोले जा रहे थे?
</p>
<p>
तब मियां शेख के एक पुराने दोस्त नें खुलासा किया कि मौलवी साहब नें मियां शेख को पढ़ाया था की लड़का होगा तो… खाना खा रहा है, और लड़की हुई तो खाना खा रही है इसी हिसाब से मियां शेख नें लड़की के चिल्लाने पर “<strong>चिल्ली रही</strong>” शब्द का प्रयोग किया।
</p>
<p>
मियां शेख चिल्ली के सारे दोस्त मियां शेख की इस मूर्खता पर पेट पकड़ कर हंस पड़े और तभी से मियां शेख बन गए “<strong>मियां शेख चिल्ली</strong>”।
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<p>
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<p>
<span style="font-size:16px;"><strong>मियां शेख चिल्ली के खयाली पुलाव</strong></span>
</p>
<p>
एक दिन सुबह-सुबह मियां शेख चिल्ली बाज़ार पहुँच गए। बाज़ार से उन्होने अंडे खरीदे और उन अंडों को एक टोकरी नें भर कर अपने सिर Shekh Chilli Stories in Hindi शेख चिल्ली की कहानियांपर रख लिया, फिर वह घर की ओर जाने लगे। घर जाते-जाते उन्हे खयाल आया कि अगर इन अंडों से बच्चे निकलें तो मेरे पास ढेर सारी मुर्गियाँ होंगी। वह सब मुर्गियाँ ढेर सारे अंडे देंगी। उन अंडों को बाज़ार में बैच कर मै धनवान बन जाऊंगा। अमीर बन जाने के बाद मै एक नौकर रखूँगा जो मेरे लिए शॉपिंग कर लाएगा। उसके बाद में अपनें लिए एक महल जैसा आलीशान घर बनवाऊंगा। उस बड़े से घर में हर प्रकार की भव्य सुख-सुविधा होंगी।
</p>
<p>
भोजन करने के लिए, आराम करने के लिए और बैठने के लिए उसमें अलग-अलग कमरे होंगे। घर सजा लेने के बाद मैं एक गुणवान, रूपवान और धनवान लड़की से शादी करूंगा। अपनी पत्नी के लिए भी एक नौकर रखूँगा और उसके लिए अच्छे-अच्छे कपड़े, गहने वगैरह ख़रीदूँगा। शादी के बाद मेरे 5-6 बच्चे होंगे, बच्चों को में खूब लाड़ प्यार से बड़ा करूंगा। और फिर उनके बड़े हो जाने के बाद उनकी शादी करवा दूंगा। फिर उनके बच्चे होंगे। फिर में अपने पोतों के साथ खुशी-खुशी खेलूँगा।
</p>
<p>
मियां शेख चिल्ली अपने ख़यालों में लहराते सोचते चले जा रहे थे तभी उनके पैर पर ठोकर लगी और सिर पर रखी हुई अंडों की टोकरी धड़ाम से ज़मीन पर आ गिरी। अंडों की टोकरी ज़मीन पर गिरते ही सारे अंडे फूट कर बरबाद हो गए। अंडों के फूटने के साथ साथ मियां शेख चिल्ली के खयाली पुलाव जैसे सपनें भी टूट कर चूर-चूर हो गए।
</p>
<p>
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<p>
<span style="font-size:16px;"><strong>मियां शेख चिल्ली चले लकड़ीयां काटनें</strong></span>
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<p>
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<p>
एक बार मियां शेख चिल्ली अपने मित्र के साथ जंगल में लकड़ियाँ कांटने गए। एक बड़ा सा पेड़ देख कर वह दोनों दोस्त उस पर लकड़ियाँ काटने के लिए चढ़ गए। मियां शेख चिल्ली अब लकड़ियाँ काटते-काटते लगे अपनी सोच के घोड़े दौड़ने। उन्होने सोचा कि मै इस जंगल से ढेर सारी लकड़ियाँ काटूँगा। उन लकड़ियों को बाज़ार में अच्छे दामों में बेचूंगा। इस तरह मुझे काफी धन-लाभ होगा।
</p>
<p>
इस काम से मै कुछ ही समय में अमीर बन जाऊंगा। फिर लकड़ियाँ काटने के लिए ढेर सारे नौकर रख लूँगा। काटी हुई लकड़ियों से फर्नीचर का बिज़नस शुरू करूंगा। कुछ ही दिनों में मै इतना समृद्ध व्यापारी बन जाऊंगा की नगर का राजा मुझ से राजकुमारी का विवाह करवाने के लिए खुद सामने से राज़ी हो जाएगा।
</p>
<p>
शादी के बाद हम घूमने जायेंगे और एक सुन्दर सी बागीचे में राजकुमारी अपना हाथ मेरी तरफ बढ़ाएंगी…. ख़यालों में खोये हुए मियां शेख चिल्ली ऐसा सोचते-सोचते पेड़ की डाल छोड़ कर सचमुच राजकुमारी का हाथ थामने के लिए अपने हाथ आगे बढाने लगते हैं…तभी अचानक उनका संतुलन बिगड़ जाता है और वो धड़ाम से नीचे ज़मीन पर गिर पड़ते है। ऊंचाई से गिरने पर मियां शेख चिल्ली के पैर की हड्डी टूट जाती है। और साथ-साथ उनके बिना सिर-पैर के खयाली सपनें भी टूट कर बिखर जाते हैं।
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<p>
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<span style="font-size:16px;"><strong>मियां शेख चिल्ली चले चोरों के संग “चोरी करने”</strong></span>
</p>
<p>
</p>
<p>
एक बार अंधेरी रात में मियां शेख चिल्ली अपने घर की ओर चले जा रहे थे। तभी अचानक उनके पास से चार चोर गुज़रे। चुप-चाप दबे पाँव आगे बढ़ रहे चोरों के पास जा कर मियां शेख चिल्ली नें उनसे पूछा कि आप सब इस वक्त कहाँ जा रहे हैं। चोरों नें सोचा कि मियां शेख चिल्ली भी उन्ही की तरह कोई चोर है और साफ-साफ बता दिया कि हम चोर हैं और चोरी करनें जा रहे हैं।
</p>
<p>
मियां शेख चिल्ली को खयाल आया कि इन लोगों के साथ चला जाता हूँ… कुछ नया सीखने को मिलेगा। यही सोच कर उन्होने चोरों को कहा कि मुझे भी अपने साथ ले चलो।
</p>
<p>
पहले तो चोरों नें मियां शेख चिल्ली को मना कर दिया , पर बार-बार मिन्नतें करने पर उन्होने उन्हें भी साथ ले लिया। चोरों ने एक रिहाईशी इलाके में बने आलिशाना मकान में चोरी करने का फैसला किया, जिसमे एक अकेली बुढ़िया रहती थी। और फिर चारों घर के अंदर घुस गए और उनके पीछे-पीछे मियां शेख चिल्ली भी हो लिए।
</p>
<p>
चोरो नें उन्हें हिदायत दी कि जैसा हम कहें वैसा ही करना और हेमशा छुपे रहना।
</p>
<p>
घर के अंदर आते ही चारों चोर पैसों गहनों और अन्य कीमती चीजों की खोज में लग गए। मियां शेख चिल्ली की यह पहली चोरी थी और वो काफी उत्साहित थे। उन्होने सोचा कि चलो मैं भी घर में कुछ कीमती सामान ढूँढता हूँ और चोरों का हाथ बटाता हूँ।
</p>
<p>
खोज करते-करते मियां शेख चिल्ली घर के रसोई-घर पर जा पहुंचे। वहाँ से खीर पकने की खुशबू आ रही थी। मियां शेख चिल्ली के मुंह में पानी आ गया, चोरी करने का खयाल अब उनके दिमाग से पूरी तरह से जा चुका था। अब उन्हे किसी भी कीमत पर वह पक रही खीर खानी थी!
</p>
<p>
मियां शेख चिल्ली दबे पाँव चूल्हे के पास पहुंचे तो उन्होने देखा कि वहीं पास ही में एक बुढ़िया कुर्सी पर बैठी थी, जो शायद खीर पकाते-पकाते सो गयी थी।
</p>
<p>
खीर के ख्यालों में खोये मियां शेख चिल्ली भूल ही गए कि वो एक चोर हैं, उन्होंने फटा-फट एक प्लेट में खीर निकाली और मजे से खाने लगे।
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<p>
वो खा ही रहे थे कई तभी अचानक कुरसी पर सो रही बुढ़िया का हाथ सीधा हो कर कुरसी से बाहर की और लहरा गया।
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<p>
मियां शेख चिल्ली को लगा कि बेचारी बुढ़िया भूखी होगी, इसीलिए हाथ बाधा कर खीर मांग रही है। इसी नेक सोच के साथ उन्होने पतीले से एक प्याला खीर भर कर बुढ़िया के हाथ में रख दिया। गरम खीर के प्याले की तपन से सो रही बुढ़िया तिलमिला उठी। और चोर-चोर चिल्लाने लगी। चिल्लम-चिल्ली होने पर आस-पड़ोस के लोग जमा हो गए।
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मियां शेख चिल्ली और चोर बाहर नहीं भाग सकते थे सो घर में ही इधर उधर छुप गए।
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जल्द ही एक चोर पकड़ा गया। लोग उसे मार-मार कर सवाल-जवाब करने लगे?
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तू यहाँ क्यों आया था?
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“ऊपर वाला जाने!”
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तूने क्या-क्या चुराया?
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“ऊपर वाला जाने!”
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इस तरह लोग कुछ भी पूछते चोर यही कहता कि ऊपर वाला यानि अल्लाह जाने।
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लोगों ने सोचा कि चलो जाने दो, भले चोर है लेकिन हर बात में अल्लाह को तो याद करता है!
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लेकिन तभी धडाम से आवाज़ आई….मियां शेख चिल्ली जो ठीक ऊपर दूछत्ती में छुपे थे नीचे कूद पड़े और चोर को थप्पड़ जड़ते हुए बोले….
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<p>
“सारा करम तुमने और तुम्हारे तीन साथियो ने किया….लेकिन हर बात में तू मेरा नाम लगा दे रहा है….” ऊपर वाला जाने–ऊपर वाला जाने”…भाइयों मैं कुछ नहीं जानता मैं तो बस ऐसे ही इनके साथ हो लिया था…”
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<p>
फिर क्या था…लोगों ने बाकी तीनो चोरों को भी खोजा और उनकी धुनाई करने लगे….और मौके का फायदा उठाते हुए मियां शेख चिल्ली पतली गली से निकल लिए!
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<span style="font-size:16px;"><strong>शेख चिल्ली की “चिट्ठी”</strong></span>
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एक बार मियां शेख चिल्ली के भाई बीमार पड़ गए। इस बात की खबर पाते ही मियां शेख चिल्ली नें अपनें भाई की खैरियत पूछने के लिए चिट्ठी लिखने की सोची।
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<p>
पूर्व काल में डाक व्यवस्था और फोन जैसी आधुनिक सुविधाएं थी नहीं तो खत और चिट्ठियाँ मुसाफिर (लोगों) के हाथों ही भिजवाई जाती थीं। मियां शेख चिल्ली नें अपनें गाँव में नाई से चिट्ठी पहुंचानें को कहा, पर उनके गाँव का नाई (चिट्ठियाँ पहुंचाने वाला) पहले से ही बीमार चल रहा था सो उसने मना कर दिया। गाँव में फसल पकी होने के कारण दूसरे अन्य नौकर या मुसाफिर का मिलना भी मुश्किल हो गया।
</p>
<p>
तब मियां शेख चिल्ली नें सोचा की मै खुद ही जा कर भाई जान को चिट्ठी दे आता हूँ।
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<p>
अगले ही दिन सुबह-सुबह मियां शेख चिल्ली अपने भाई के घर रवाना हो गए। शाम तक वह उसके घर भी पहुँच गए।
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<p>
घर का दरवाज़ा खटखटाने पर उनके बीमार भाई तुरंत बाहर आए। मियां शेख चिल्ली नें उन्हे चिट्ठी पकड़ाई और उल्टे पाँव वापसअपने गाँव की और लौटने लगे।
</p>
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तभी उनके भाई उनके पीछे दौड़े और उन्हे रोक कर बोले –
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<blockquote>
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"तू इतनी दूर से आया है तो घर में तो आ मुझ से गले तो मिल। नाराज़ है क्या मुझ से?"
</p>
</blockquote>
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यह बोल कर भाई साहब मियां शेख चिल्ली को गले लगाने आगे बढ़े।
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तभी मियां शेख चिल्ली नें अपने भाई से दूर हटते हुए कहा कि-
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<blockquote>
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"मै आप से नाराज़ बिलकुल नहीं हूँ, पर यह तो मुझे चिट्ठी पहुंचाने वाला “नाई” मिल नहीं रहा था इसलिए आप की खैर खबर पूछने की चिट्ठी देने मुझे खुद आप के गाँव तक यहाँ आना पड़ा।"
</p>
</blockquote>
<p>
मियां शेख चिल्ली के भाई ने समझाया कि अब तुम आ ही गए हो तो दो चार दिन रुक कर जाओ। इस बात पर मियां शेख चिल्ली का पारा चढ़ गया। उन्होने मुंह टेढ़ा करते हुए कहा, “भाईजान आप तो अजीब इन्सान है। आप को यह बात समझ नहीं आती की मै यहाँ नाई का फर्ज़ अदा करने आया हूँ। मुझे आप से मिलने आना होता तो मै खुद चला आता, नाई के बदले थोड़े ही आता।
</p>
<h1>
<span style="color:#0000CD;">कौन थे शेख चिल्ली?</span>
</h1>
<p>
माना जाता है कि सूफी संत अब्द-उर-रहीम, जिन्हें अब्द-उई-करीम और अब्द-उर- रज़ाक के नाम से भी जाना जाता था उन्ही का प्रसिद्द नाम शेख चिल्ली पड़ा। उनकी मौजूदगी 1650 AD के आस-पास की मानी जाती है और हरयाणा में उनका एक मकबरा भी बना हुआ है।<br />
भारत में शेख चिल्ली को एक मजेदार कैरेक्टर के रूप में देख जाता है जो अक्सर ख्यालों में खो जाता है और हवाई-किलें बनाया करता है। पर जब उसे होश आता है तो वो खुद को लोगों के बीच पाता है और सबके लिए हंसी का पात्र बन जाता है।
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आज हम आपके साथ शेख चिल्ली की कुछ मजेदार कहानियां पढ़ेंगे
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<span style="font-size:16px;"><strong>क्यों पड़ा “मियां शेख” का नाम “मियां शेख चिल्ली”</strong></span>
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<p>
मियां शेख चिल्ली नें मौलवी साहब की यह सीख गाठ बांध ली।
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<p>
फिर एक दिन मियां शेख चिल्ली जंगल से गुज़र रहे थे। तभी उन्हे किसी कुएं के अंदर से किसी के चिल्लाने की आवाज़ आई। वह फौरन वहाँ दौड़ कर जा पहुंचे। उन्होने देखा की वहाँ कुए में एक लड़की गिरि पड़ी थी और वह मदद के लिए चिल्ला रही थी।
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मियां शेख चिल्ली तुरंत दौड़ कर अपने दोस्तों के पास गए और उन्हे बोलने लगे कि वहाँ कुएं के अंदर एक लड़की गिरि पड़ी है और वह मदद के लिए चिल्ली रही है।
</p>
<p>
मियां शेख चिल्ली और उनके दोस्तों नें मिल कर उस लड़की को कुएं से बाहर निकाल लिया।फिर घर जाते वक्त मियां शेख चिल्ली के एक दोस्त नें यह सवाल किया की मियां शेख आप लड़की चिल्ली रही….चिल्ली रही… क्यों बोले जा रहे थे?
</p>
<p>
तब मियां शेख के एक पुराने दोस्त नें खुलासा किया कि मौलवी साहब नें मियां शेख को पढ़ाया था की लड़का होगा तो… खाना खा रहा है, और लड़की हुई तो खाना खा रही है इसी हिसाब से मियां शेख नें लड़की के चिल्लाने पर “<strong>चिल्ली रही</strong>” शब्द का प्रयोग किया।
</p>
<p>
मियां शेख चिल्ली के सारे दोस्त मियां शेख की इस मूर्खता पर पेट पकड़ कर हंस पड़े और तभी से मियां शेख बन गए “<strong>मियां शेख चिल्ली</strong>”।
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</p>
<p>
<span style="font-size:16px;"><strong>मियां शेख चिल्ली के खयाली पुलाव</strong></span>
</p>
<p>
एक दिन सुबह-सुबह मियां शेख चिल्ली बाज़ार पहुँच गए। बाज़ार से उन्होने अंडे खरीदे और उन अंडों को एक टोकरी नें भर कर अपने सिर Shekh Chilli Stories in Hindi शेख चिल्ली की कहानियांपर रख लिया, फिर वह घर की ओर जाने लगे। घर जाते-जाते उन्हे खयाल आया कि अगर इन अंडों से बच्चे निकलें तो मेरे पास ढेर सारी मुर्गियाँ होंगी। वह सब मुर्गियाँ ढेर सारे अंडे देंगी। उन अंडों को बाज़ार में बैच कर मै धनवान बन जाऊंगा। अमीर बन जाने के बाद मै एक नौकर रखूँगा जो मेरे लिए शॉपिंग कर लाएगा। उसके बाद में अपनें लिए एक महल जैसा आलीशान घर बनवाऊंगा। उस बड़े से घर में हर प्रकार की भव्य सुख-सुविधा होंगी।
</p>
<p>
भोजन करने के लिए, आराम करने के लिए और बैठने के लिए उसमें अलग-अलग कमरे होंगे। घर सजा लेने के बाद मैं एक गुणवान, रूपवान और धनवान लड़की से शादी करूंगा। अपनी पत्नी के लिए भी एक नौकर रखूँगा और उसके लिए अच्छे-अच्छे कपड़े, गहने वगैरह ख़रीदूँगा। शादी के बाद मेरे 5-6 बच्चे होंगे, बच्चों को में खूब लाड़ प्यार से बड़ा करूंगा। और फिर उनके बड़े हो जाने के बाद उनकी शादी करवा दूंगा। फिर उनके बच्चे होंगे। फिर में अपने पोतों के साथ खुशी-खुशी खेलूँगा।
</p>
<p>
मियां शेख चिल्ली अपने ख़यालों में लहराते सोचते चले जा रहे थे तभी उनके पैर पर ठोकर लगी और सिर पर रखी हुई अंडों की टोकरी धड़ाम से ज़मीन पर आ गिरी। अंडों की टोकरी ज़मीन पर गिरते ही सारे अंडे फूट कर बरबाद हो गए। अंडों के फूटने के साथ साथ मियां शेख चिल्ली के खयाली पुलाव जैसे सपनें भी टूट कर चूर-चूर हो गए।
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<span style="font-size:16px;"><strong>मियां शेख चिल्ली चले लकड़ीयां काटनें</strong></span>
</p>
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<p>
एक बार मियां शेख चिल्ली अपने मित्र के साथ जंगल में लकड़ियाँ कांटने गए। एक बड़ा सा पेड़ देख कर वह दोनों दोस्त उस पर लकड़ियाँ काटने के लिए चढ़ गए। मियां शेख चिल्ली अब लकड़ियाँ काटते-काटते लगे अपनी सोच के घोड़े दौड़ने। उन्होने सोचा कि मै इस जंगल से ढेर सारी लकड़ियाँ काटूँगा। उन लकड़ियों को बाज़ार में अच्छे दामों में बेचूंगा। इस तरह मुझे काफी धन-लाभ होगा।
</p>
<p>
इस काम से मै कुछ ही समय में अमीर बन जाऊंगा। फिर लकड़ियाँ काटने के लिए ढेर सारे नौकर रख लूँगा। काटी हुई लकड़ियों से फर्नीचर का बिज़नस शुरू करूंगा। कुछ ही दिनों में मै इतना समृद्ध व्यापारी बन जाऊंगा की नगर का राजा मुझ से राजकुमारी का विवाह करवाने के लिए खुद सामने से राज़ी हो जाएगा।
</p>
<p>
शादी के बाद हम घूमने जायेंगे और एक सुन्दर सी बागीचे में राजकुमारी अपना हाथ मेरी तरफ बढ़ाएंगी…. ख़यालों में खोये हुए मियां शेख चिल्ली ऐसा सोचते-सोचते पेड़ की डाल छोड़ कर सचमुच राजकुमारी का हाथ थामने के लिए अपने हाथ आगे बढाने लगते हैं…तभी अचानक उनका संतुलन बिगड़ जाता है और वो धड़ाम से नीचे ज़मीन पर गिर पड़ते है। ऊंचाई से गिरने पर मियां शेख चिल्ली के पैर की हड्डी टूट जाती है। और साथ-साथ उनके बिना सिर-पैर के खयाली सपनें भी टूट कर बिखर जाते हैं।
</p>
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</p>
<p>
<span style="font-size:16px;"><strong>मियां शेख चिल्ली चले चोरों के संग “चोरी करने”</strong></span>
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<p>
एक बार अंधेरी रात में मियां शेख चिल्ली अपने घर की ओर चले जा रहे थे। तभी अचानक उनके पास से चार चोर गुज़रे। चुप-चाप दबे पाँव आगे बढ़ रहे चोरों के पास जा कर मियां शेख चिल्ली नें उनसे पूछा कि आप सब इस वक्त कहाँ जा रहे हैं। चोरों नें सोचा कि मियां शेख चिल्ली भी उन्ही की तरह कोई चोर है और साफ-साफ बता दिया कि हम चोर हैं और चोरी करनें जा रहे हैं।
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मियां शेख चिल्ली को खयाल आया कि इन लोगों के साथ चला जाता हूँ… कुछ नया सीखने को मिलेगा। यही सोच कर उन्होने चोरों को कहा कि मुझे भी अपने साथ ले चलो।
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पहले तो चोरों नें मियां शेख चिल्ली को मना कर दिया , पर बार-बार मिन्नतें करने पर उन्होने उन्हें भी साथ ले लिया। चोरों ने एक रिहाईशी इलाके में बने आलिशाना मकान में चोरी करने का फैसला किया, जिसमे एक अकेली बुढ़िया रहती थी। और फिर चारों घर के अंदर घुस गए और उनके पीछे-पीछे मियां शेख चिल्ली भी हो लिए।
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<p>
चोरो नें उन्हें हिदायत दी कि जैसा हम कहें वैसा ही करना और हेमशा छुपे रहना।
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<p>
घर के अंदर आते ही चारों चोर पैसों गहनों और अन्य कीमती चीजों की खोज में लग गए। मियां शेख चिल्ली की यह पहली चोरी थी और वो काफी उत्साहित थे। उन्होने सोचा कि चलो मैं भी घर में कुछ कीमती सामान ढूँढता हूँ और चोरों का हाथ बटाता हूँ।
</p>
<p>
खोज करते-करते मियां शेख चिल्ली घर के रसोई-घर पर जा पहुंचे। वहाँ से खीर पकने की खुशबू आ रही थी। मियां शेख चिल्ली के मुंह में पानी आ गया, चोरी करने का खयाल अब उनके दिमाग से पूरी तरह से जा चुका था। अब उन्हे किसी भी कीमत पर वह पक रही खीर खानी थी!
</p>
<p>
मियां शेख चिल्ली दबे पाँव चूल्हे के पास पहुंचे तो उन्होने देखा कि वहीं पास ही में एक बुढ़िया कुर्सी पर बैठी थी, जो शायद खीर पकाते-पकाते सो गयी थी।
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<p>
खीर के ख्यालों में खोये मियां शेख चिल्ली भूल ही गए कि वो एक चोर हैं, उन्होंने फटा-फट एक प्लेट में खीर निकाली और मजे से खाने लगे।
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<p>
वो खा ही रहे थे कई तभी अचानक कुरसी पर सो रही बुढ़िया का हाथ सीधा हो कर कुरसी से बाहर की और लहरा गया।
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<p>
मियां शेख चिल्ली को लगा कि बेचारी बुढ़िया भूखी होगी, इसीलिए हाथ बाधा कर खीर मांग रही है। इसी नेक सोच के साथ उन्होने पतीले से एक प्याला खीर भर कर बुढ़िया के हाथ में रख दिया। गरम खीर के प्याले की तपन से सो रही बुढ़िया तिलमिला उठी। और चोर-चोर चिल्लाने लगी। चिल्लम-चिल्ली होने पर आस-पड़ोस के लोग जमा हो गए।
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मियां शेख चिल्ली और चोर बाहर नहीं भाग सकते थे सो घर में ही इधर उधर छुप गए।
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जल्द ही एक चोर पकड़ा गया। लोग उसे मार-मार कर सवाल-जवाब करने लगे?
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तू यहाँ क्यों आया था?
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“ऊपर वाला जाने!”
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तूने क्या-क्या चुराया?
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“ऊपर वाला जाने!”
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इस तरह लोग कुछ भी पूछते चोर यही कहता कि ऊपर वाला यानि अल्लाह जाने।
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<p>
लोगों ने सोचा कि चलो जाने दो, भले चोर है लेकिन हर बात में अल्लाह को तो याद करता है!
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<p>
लेकिन तभी धडाम से आवाज़ आई….मियां शेख चिल्ली जो ठीक ऊपर दूछत्ती में छुपे थे नीचे कूद पड़े और चोर को थप्पड़ जड़ते हुए बोले….
</p>
<p>
“सारा करम तुमने और तुम्हारे तीन साथियो ने किया….लेकिन हर बात में तू मेरा नाम लगा दे रहा है….” ऊपर वाला जाने–ऊपर वाला जाने”…भाइयों मैं कुछ नहीं जानता मैं तो बस ऐसे ही इनके साथ हो लिया था…”
</p>
<p>
फिर क्या था…लोगों ने बाकी तीनो चोरों को भी खोजा और उनकी धुनाई करने लगे….और मौके का फायदा उठाते हुए मियां शेख चिल्ली पतली गली से निकल लिए!
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<p>
<span style="font-size:16px;"><strong>शेख चिल्ली की “चिट्ठी”</strong></span>
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<p>
एक बार मियां शेख चिल्ली के भाई बीमार पड़ गए। इस बात की खबर पाते ही मियां शेख चिल्ली नें अपनें भाई की खैरियत पूछने के लिए चिट्ठी लिखने की सोची।
</p>
<p>
पूर्व काल में डाक व्यवस्था और फोन जैसी आधुनिक सुविधाएं थी नहीं तो खत और चिट्ठियाँ मुसाफिर (लोगों) के हाथों ही भिजवाई जाती थीं। मियां शेख चिल्ली नें अपनें गाँव में नाई से चिट्ठी पहुंचानें को कहा, पर उनके गाँव का नाई (चिट्ठियाँ पहुंचाने वाला) पहले से ही बीमार चल रहा था सो उसने मना कर दिया। गाँव में फसल पकी होने के कारण दूसरे अन्य नौकर या मुसाफिर का मिलना भी मुश्किल हो गया।
</p>
<p>
तब मियां शेख चिल्ली नें सोचा की मै खुद ही जा कर भाई जान को चिट्ठी दे आता हूँ।
</p>
<p>
अगले ही दिन सुबह-सुबह मियां शेख चिल्ली अपने भाई के घर रवाना हो गए। शाम तक वह उसके घर भी पहुँच गए।
</p>
<p>
घर का दरवाज़ा खटखटाने पर उनके बीमार भाई तुरंत बाहर आए। मियां शेख चिल्ली नें उन्हे चिट्ठी पकड़ाई और उल्टे पाँव वापसअपने गाँव की और लौटने लगे।
</p>
<p>
तभी उनके भाई उनके पीछे दौड़े और उन्हे रोक कर बोले –
</p>
<blockquote>
<p>
"तू इतनी दूर से आया है तो घर में तो आ मुझ से गले तो मिल। नाराज़ है क्या मुझ से?"
</p>
</blockquote>
<p>
यह बोल कर भाई साहब मियां शेख चिल्ली को गले लगाने आगे बढ़े।
</p>
<p>
तभी मियां शेख चिल्ली नें अपने भाई से दूर हटते हुए कहा कि-
</p>
<blockquote>
<p>
"मै आप से नाराज़ बिलकुल नहीं हूँ, पर यह तो मुझे चिट्ठी पहुंचाने वाला “नाई” मिल नहीं रहा था इसलिए आप की खैर खबर पूछने की चिट्ठी देने मुझे खुद आप के गाँव तक यहाँ आना पड़ा।"
</p>
</blockquote>
<p>
मियां शेख चिल्ली के भाई ने समझाया कि अब तुम आ ही गए हो तो दो चार दिन रुक कर जाओ। इस बात पर मियां शेख चिल्ली का पारा चढ़ गया। उन्होने मुंह टेढ़ा करते हुए कहा, “भाईजान आप तो अजीब इन्सान है। आप को यह बात समझ नहीं आती की मै यहाँ नाई का फर्ज़ अदा करने आया हूँ। मुझे आप से मिलने आना होता तो मै खुद चला आता, नाई के बदले थोड़े ही आता।
</p>
प्रसिद्द ज़ेन कथाएँ2018-07-02T21:25:43+05:302018-07-02T21:25:43+05:30https://www.sandybook.in/latestsms/hindi-stories/short-stories-in-hindi/892-%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%A6-%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A5%87%E0%A4%A8-%E0%A4%95%E0%A4%A5%E0%A4%BE%E0%A4%8F%E0%A4%81Sandybooksandybook.in@gmail.com<h1>
<span style="color:#0000CD;">तीन प्रसिद्द ज़ेन कथाएँ</span>
</h1>
<p>
ज़ेन बौद्ध धर्म के एक रूप है जो मनुष्य की जागृति पर जोर देता है. इसे जीवन का सही अर्थ खोजने की कोशिश की एक विधि के रूप में प्रयोग किया जाता है. जेन अपने अनुयायियों को सिखाता है कि वे अपनी उम्मीदों, विचारों और यहाँ तक की अपने विश्वास की परतों को भी हटाएं ताकि सच को जान सकें.<br />
और आज मैं आपके साथ ऐसी ही कुछ रोचक ज़ेन कथाएँ share कर रहा हूँ जो सत्य को जानने -समझने में आपकी मदद करेंगी .
</p>
<p>
</p>
<p>
<span style="font-size:20px;"><strong>चोरी की सजा</strong></span>
</p>
<p>
</p>
<p>
जब ज़ेन मास्टर बनकेइ ने ध्यान करना सिखाने का कैंप लगाया तो पूरे जापान से कई बच्चे उनसे सीखने आये . कैंप के दौरान ही एक दिन किसी छात्र को चोरी करते हुए पकड़ लिया गया . बनकेइ को ये बात बताई गयी , बाकी छात्रों ने अनुरोध किया की चोरी की सजा के रूप में इस छात्र को कैंप से निकाल दिया जाए .
</p>
<p>
पर बनकेइ ने इस पर ध्यान नहीं दिया और उसे और बच्चों के साथ पढने दिया .
</p>
<p>
कुछ दिनों बाद फिर ऐसा ही हुआ , वही छात्र दुबारा चोरी करते हुए पकड़ा गया . एक बार फिर उसे बनकेइ के सामने ले जाया गया , पर सभी की उम्मीदों के विरूद्ध इस बार भी उन्होंने छात्र को कोई सजा नहीं सुनाई .
</p>
<p>
इस वजह से अन्य बच्चे क्रोधित हो उठे और सभी ने मिलकर बनकेइ को पत्र लिखा की यदि उस छात्र को नहीं निकाला जायेगा तो हम सब कैंप छोड़ कर चले जायेंगे .<br />
बनकेइ ने पत्र पढ़ा और तुरंत ही सभी छात्रों को इकठ्ठा होने के लिए कहा . .” आप सभी बुद्धिमान हैं .” बनकेइ ने बोलना शुरू किया ,“ आप जानते हैं की क्या सही है और क्या गलत . यदि आप कहीं और पढने जाना चाहते हैं तो जा सकते हैं , पर ये बेचारा यह भी नहीं जानता की क्या सही है और क्या गलत . यदि इसे मैं नहीं पढ़ाऊंगा तो और कौन पढ़ायेगा ? आप सभी चले भी जाएं तो भी मैं इसे यहाँ पढ़ाऊंगा .”
</p>
<p>
यह सुनकर चोरी करने वाला छात्र फूट -फूट कर रोने लगा . अब उसके अन्दर से चोरी करने की इच्छा हमेशा के लिए जा चुकी थी .
</p>
<p>
</p>
<p>
<span style="font-size:20px;"><strong>एक कप चाय</strong></span>
</p>
<p>
नैन -इन , एक जापानी जेन मास्टर थे . एक बार एक प्रोफ़ेसर उनसे जेन के बारे में कुछ पूछने आये , पर पूछने से ज्यादा वो खुद इस बारे में बताने में मग्न हो गए .
</p>
<p>
मास्टर ने प्रोफ़ेसर के लिए चाय मंगाई , और केतली से कप में चाय डालने लगे , प्रोफ़ेसर अभी भी अपनी बात करते जा रहा था की तभी उसने देखा की कप भर जाने के बाद भी मास्टर उसमे चाय डालते जा रहे हैं , और चाय जमीन पर गिरे जा रही है .
</p>
<p>
“ यह कप भर चुका है , अब इसमें और चाय नहीं आ सकती .”, प्रोफ़ेसर ने मास्टर को रोकते हुए कहा .
</p>
<p>
“इस कप की तरह तुम भी अपने विचारों और ख़यालों से भरे हुए हो . भला जब तक तुम अपना कप खाली नहीं करते मैं तुम्हे जेन कैसे दिखा सकता हूँ ?” , मास्टर ने उत्तर दिया .
</p>
<p>
</p>
<p>
<span style="font-size:20px;"><strong>दो भिक्षुक </strong></span>
</p>
<p>
शाम के वक्त दो बौद्ध भिक्षुक आश्रम को लौट रहे थे . अभी-अभी बारिश हुई थी और सड़क पर जगह जगह पानी लगा हुआ था . चलते चलते उन्होंने देखा की एक खूबसूरत नवयुवती सड़क पार करने की कोशिश कर रही है पर पानी अधिक होने की वजह से ऐसा नहीं कर पा रही है . दोनों में से बड़ा बौद्ध भिक्षुक युवती के पास गया और उसे उठा कर सड़क की दूसरी और ले आया . इसके बाद वह अपने साथी के साथ आश्रम को चल दिया .
</p>
<p>
शाम को छोटा बौद्ध भिक्षुक बड़े वाले के पास पहुंचा और बोला , “ भाई , भिक्षुक होने के नाते हम किसी औरत को नहीं छू सकते ?”
</p>
<p>
“हाँ ” , बड़े ने उत्तर दिया .
</p>
<p>
तब छोटे ने पुनः पूछा , “ लेकिन आपने तो उस नवयुवती को अपनी गोद में उठाया था ?”
</p>
<p>
यह सुन बड़ा बौद्ध भिक्षुक मुस्कुराते हुए बोला, “ मैंने तो उसे सड़क की दूसरी और छोड़ दिया था , पर तुम अभी भी उसे उठाये हुए हो .
</p>
<h1>
<span style="color:#0000CD;">तीन प्रसिद्द ज़ेन कथाएँ</span>
</h1>
<p>
ज़ेन बौद्ध धर्म के एक रूप है जो मनुष्य की जागृति पर जोर देता है. इसे जीवन का सही अर्थ खोजने की कोशिश की एक विधि के रूप में प्रयोग किया जाता है. जेन अपने अनुयायियों को सिखाता है कि वे अपनी उम्मीदों, विचारों और यहाँ तक की अपने विश्वास की परतों को भी हटाएं ताकि सच को जान सकें.<br />
और आज मैं आपके साथ ऐसी ही कुछ रोचक ज़ेन कथाएँ share कर रहा हूँ जो सत्य को जानने -समझने में आपकी मदद करेंगी .
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<span style="font-size:20px;"><strong>चोरी की सजा</strong></span>
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<p>
जब ज़ेन मास्टर बनकेइ ने ध्यान करना सिखाने का कैंप लगाया तो पूरे जापान से कई बच्चे उनसे सीखने आये . कैंप के दौरान ही एक दिन किसी छात्र को चोरी करते हुए पकड़ लिया गया . बनकेइ को ये बात बताई गयी , बाकी छात्रों ने अनुरोध किया की चोरी की सजा के रूप में इस छात्र को कैंप से निकाल दिया जाए .
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<p>
पर बनकेइ ने इस पर ध्यान नहीं दिया और उसे और बच्चों के साथ पढने दिया .
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कुछ दिनों बाद फिर ऐसा ही हुआ , वही छात्र दुबारा चोरी करते हुए पकड़ा गया . एक बार फिर उसे बनकेइ के सामने ले जाया गया , पर सभी की उम्मीदों के विरूद्ध इस बार भी उन्होंने छात्र को कोई सजा नहीं सुनाई .
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इस वजह से अन्य बच्चे क्रोधित हो उठे और सभी ने मिलकर बनकेइ को पत्र लिखा की यदि उस छात्र को नहीं निकाला जायेगा तो हम सब कैंप छोड़ कर चले जायेंगे .<br />
बनकेइ ने पत्र पढ़ा और तुरंत ही सभी छात्रों को इकठ्ठा होने के लिए कहा . .” आप सभी बुद्धिमान हैं .” बनकेइ ने बोलना शुरू किया ,“ आप जानते हैं की क्या सही है और क्या गलत . यदि आप कहीं और पढने जाना चाहते हैं तो जा सकते हैं , पर ये बेचारा यह भी नहीं जानता की क्या सही है और क्या गलत . यदि इसे मैं नहीं पढ़ाऊंगा तो और कौन पढ़ायेगा ? आप सभी चले भी जाएं तो भी मैं इसे यहाँ पढ़ाऊंगा .”
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यह सुनकर चोरी करने वाला छात्र फूट -फूट कर रोने लगा . अब उसके अन्दर से चोरी करने की इच्छा हमेशा के लिए जा चुकी थी .
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<span style="font-size:20px;"><strong>एक कप चाय</strong></span>
</p>
<p>
नैन -इन , एक जापानी जेन मास्टर थे . एक बार एक प्रोफ़ेसर उनसे जेन के बारे में कुछ पूछने आये , पर पूछने से ज्यादा वो खुद इस बारे में बताने में मग्न हो गए .
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<p>
मास्टर ने प्रोफ़ेसर के लिए चाय मंगाई , और केतली से कप में चाय डालने लगे , प्रोफ़ेसर अभी भी अपनी बात करते जा रहा था की तभी उसने देखा की कप भर जाने के बाद भी मास्टर उसमे चाय डालते जा रहे हैं , और चाय जमीन पर गिरे जा रही है .
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“ यह कप भर चुका है , अब इसमें और चाय नहीं आ सकती .”, प्रोफ़ेसर ने मास्टर को रोकते हुए कहा .
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“इस कप की तरह तुम भी अपने विचारों और ख़यालों से भरे हुए हो . भला जब तक तुम अपना कप खाली नहीं करते मैं तुम्हे जेन कैसे दिखा सकता हूँ ?” , मास्टर ने उत्तर दिया .
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<span style="font-size:20px;"><strong>दो भिक्षुक </strong></span>
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शाम के वक्त दो बौद्ध भिक्षुक आश्रम को लौट रहे थे . अभी-अभी बारिश हुई थी और सड़क पर जगह जगह पानी लगा हुआ था . चलते चलते उन्होंने देखा की एक खूबसूरत नवयुवती सड़क पार करने की कोशिश कर रही है पर पानी अधिक होने की वजह से ऐसा नहीं कर पा रही है . दोनों में से बड़ा बौद्ध भिक्षुक युवती के पास गया और उसे उठा कर सड़क की दूसरी और ले आया . इसके बाद वह अपने साथी के साथ आश्रम को चल दिया .
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शाम को छोटा बौद्ध भिक्षुक बड़े वाले के पास पहुंचा और बोला , “ भाई , भिक्षुक होने के नाते हम किसी औरत को नहीं छू सकते ?”
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“हाँ ” , बड़े ने उत्तर दिया .
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तब छोटे ने पुनः पूछा , “ लेकिन आपने तो उस नवयुवती को अपनी गोद में उठाया था ?”
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यह सुन बड़ा बौद्ध भिक्षुक मुस्कुराते हुए बोला, “ मैंने तो उसे सड़क की दूसरी और छोड़ दिया था , पर तुम अभी भी उसे उठाये हुए हो .
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तेनालीराम की कहानियां (Tenali Raman Stories in Hindi)2018-07-02T21:02:36+05:302018-07-02T21:02:36+05:30https://www.sandybook.in/latestsms/hindi-stories/short-stories-in-hindi/891-%E0%A4%A4%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%80%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%95%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%82-tenali-raman-stories-in-hindiSandybooksandybook.in@gmail.com<h1>
<span style="color:#0000CD;"><strong>तेनालीराम की कहानियां (Tenali Raman Stories in Hindi)</strong></span>
</h1>
<h2>
<strong>कौन थे तेनालीराम? About Tenali Raman in Hindi</strong>
</h2>
<p>
तेनालीराम (Tenali Raman) का जन्म 16th century में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के गुन्टूर जिले के गाँव – गरलापाडु में हुआ था। तेनालीराम एक तेलुगू Tenaliram stories in Hindi ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे। वह पेशे से कवि थे, व तेलुगू साहित्य के महान ज्ञानी थे। अपने वाक चातुर्य के कारण वह काफी प्रख्यात थे। और उन्हे “विकट कवि” के उपनाम से संबोधित किया जाता था। तेनालीराम के पिता गरलापती रामय्या, तेनाली गाँव के रामलिंगेश्वरास्वामी मंदिर के पुजारी हुआ करते थे।
</p>
<p>
तेनालीराम जब आयु में युवा थे तभी उनके के पिता गरलापती रामय्या की मृत्यु हो गयी। और उसके बाद उनकी माता उन्हें लेकर अपने गाँव तेनाली, अपने भाई के पास रहने चली गयी थी। तेनालीराम शिव भक्त भी थे। इस लिए उन्हे तेनाली रामलिंगा के नाम से भी पुकारा जाता था। इतिहास कारों के मुताबिक कुछ समय के बाद उन्होंने वैष्णव धर्म अपना लिया था।
</p>
<p>
तेनालीराम को पाठशाला का विधिवत अभ्यास नहीं प्राप्त हुआ था, पर उनकी सीखने की तीव्र इच्छा और ज्ञान के प्रति धुन, के कारण उन्हे शिश्यावृति प्राप्त हुई थी। परंतु उनके पूर्व शिव भक्त होने के कारण उन्हे वैष्णव अनुयायियों द्वारा एक शिष्य की तरह स्वीकारा नहीं गया था, फिर एक महान संत ने उन्हे काली की पूजा करने की सलाह दी। और ऐसा कहा जाता है के संत की बात मान कर तेनालीराम ने काली देवी की खूब तपस्या की। और उसी के परिणाम स्वरूप तेनालीराम को देवी काली से उत्कृष्ट हास्य कवी बनने का वरदान मिला।
</p>
<p>
तेनालीराम ने अपने आगे के जीवन में “भागवत मेला” मंडल के साथ जुड़ाव किया। और एक दिन “भागवत मेला” मंडल, महाराज कृष्णदेव राय के दरबार में अपना कार्यक्रम प्रदर्शित करने के लिए पहुंचा।उन्होंने अपने प्रभावशाली प्रदर्शन से राजा कृष्णदेव राय को बहुत प्रभावित कर दिया और कृष्णदेव राय तेनालीराम को अपने दरबार में आठवे स्कॉलर (अस्ठदिग्गज) मंडल में हास्य कवी के पद पर शामिल कर लिया।
</p>
<p>
महाराज कृष्णदेव राय – वर्ष 1509 से 1529 तक विजयनगर की राजगद्दी पर विराजमान थे, तब तेनालीराम उनके दरबार में एक हास्य कवी और मंत्री सहायक की भूमिका में उपस्थित हुआ करते थे। इतिहासकारों के मुताबिक तेनालीराम एक हास्य कवी होने के साथ साथ ज्ञानी और चतुर व्यक्ति थे। तेनालीराम राज्य से जुड़ी विकट परेशानीयों से उभरने के लिए कई बार महाराज कृष्णदेव राय की मदद करते थे। उनकी बुद्धि चातुर्य और ज्ञान बोध से जुड़ी कई कहानिया है जिनमे से कुछ चुनिन्दा कहानियाँ नीचे बताई गयी हैं।
</p>
<p>
</p>
<p>
<span style="font-size:20px;"><strong>अरबी घोड़े (Tenali Raman Stories in Hindi)</strong></span>
</p>
<p>
महाराज कृष्णदेव राय के दरबार में एक दिन एक अरब प्रदेश का व्यापारी घोड़े बेचने आता है। वह अपने घोड़ो का बखान कर के महाराज कृष्णदेव राय को सारे घोड़े खरीदने के लिए राजी कर लेता है तथा अपने घोड़े बेच जाता है। अब महाराज के घुड़साल इतने अधिक घोड़े हो जाते हैं कि उन्हें रखने की जगह नहीं बचती, इसलिए महाराज के आदेश पर बहुत से घोड़ों को विजयनगर के आम नागरिकों और राजदरबार के कुछ लोगों को तीन महीने तक देखभाल के लिए दे दिया जाता है। हर एक देखभाल करने वाले को घोड़ों के पालन खर्च और प्रशिक्षण के लिए प्रति माह एक सोने का सिक्का दिया जाता है।
</p>
<p>
विजयनगर के सभी नागरिकों की तरह चतुर तेनालीराम को भी एक घोडा दिया गया। तेनालीराम ने घोड़े को घर लेजा कर घर के पिछवाड़े एक छोटी सी घुड़साल बना कर बांध दिया। और घुड़साल की नन्ही खिड़की से उसे हर रोज थोड़ी मात्रा में चारा खिलाने लगे।
</p>
<p>
बाकी लोग भी महाराज कृष्णदेव राय की सौंपी गयी ज़िम्मेदारी को निभाने लगे। महाराज नाराज ना हो जाए और उन पर क्रोधित हो कोई दंड ना दे दें; इस भय से सभी लोग अपना पेट काट-काट कर भी घोड़े को उत्तम चारा खरीद कर खिलाने लगे।
</p>
<p>
ऐसा करते-करते तीन महीने बीत जाते हैं। तय दिन सारे नागरिक घोड़ो को ले कर महाराज कृष्णदेव राय के समक्ष इकठ्ठा हो जाते हैं। पर तेनालीराम खाली हाथ आते हैं। राजगुरु तेनालीराम के घोड़ा ना लाने की वजह पूछते है। तेनालीराम उत्तर मे कहते है कि घोड़ा काफी बिगडैल और खतरनाक हो चुका है, और वह खुद उस घोड़े के समीप नहीं जाना चाहते हैं। राजगुरु , महाराज कृष्णदेव राय को कहते है के तेनालीराम झूठ बोल रहे है। महाराज कृष्णदेव राय सच्चाई का पता लगाने के लिए और तेनालीराम के साथ राजगुरु को भेजते हैं।
</p>
<p>
तेनालीराम के घर के पीछे बनी छोटी सी घुड़साल देख राजगुरु कहते है कि अरे मूर्ख मानव तुम इस छोटी कुटिया को घुड़साल कहते हो? तेनालीराम बड़े विवेक से राजगुरु से कहते है के क्षमा करें मैं आप की तरह विद्वान नहीं हूँ। कृपया घोड़े को पहले खिड़की से झाँक कर देख लें। और उसके पश्चात ही घुड़साल के अंदर कदम रखें।
</p>
<p>
राजगुरु जैसे ही खिड़की से अंदर झाँकते हैं, घोडा लपक कर उनकी दाढ़ी पकड़ लेता है। लोग जमा होने लगते हैं। काफी मशक्कत करने के बाद भी भूखा घोड़ा राजगुरु की दाढ़ी नहीं छोड़ता है। अंततः कुटिया तोड़ कर तेज हथियार से राजगुरु की दाढ़ी काट कर उन्हे घोड़े के चंगुल से छुड़ाया जाता है। परेशान राजगुरु और चतुर तेनालीराम भूखे घोड़े को ले कर राजा के पास पहुँचते हैं।
</p>
<p>
घोड़े की दुबली-पतली हालत देख कर महाराज कृष्णदेव राय तेनालीराम से इसका कारण पूछते हैं। तेनालीराम कहते है कि मैं घोड़े को प्रति दिन थोड़ा सा चारा ही देता था, जिस तरह आप की गरीब प्रजा थोड़ा भोजन कर के गुजारा करती है। और आवश्यकता से कम सुविधा मिलने के कारण घोडा और व्यथित और बिगड़ेल होता गया। ठीक वैसे ही जैसे के आप की प्रजा परिवार पालन की जिम्मेदारी के अतिरिक्त, घोड़ो को संभालने के बोझ से त्रस्त हुई।
</p>
<p>
राजा का कर्तव्य प्रजा की रक्षा करना होता है। उन पर अधिक बोझ डालना नहीं। आपके दिये हुए घोड़े पालने के कार्य-आदेश से घोड़े तो बलवान हो गए पर आप की प्रजा दुर्बल हो गयी है। महाराज कृष्णदेव राय को तेनालीराम की यह बात समझ में आ जाती है, और वह तेनालीराम की प्रसंशा करते हुए उन्हे पुरस्कार देते है।
</p>
<p>
</p>
<p>
<span style="font-size:20px;"><strong>स्वर्ग की खोज</strong></span>
</p>
<p>
</p>
<p>
महाराज कृष्णदेव राय अपने बचपन में सुनी कथा अनुसार यह विश्वास करते थे कि संसार-ब्रह्मांड की सबसे उत्तम और मनमोहक जगह स्वर्ग है। एक दिन अचानक महाराज को स्वर्ग देखने की इच्छा उत्पन्न होती है, इसलिए दरबार में उपस्थित मंत्रियों से पूछते हैं, ” बताइए स्वर्ग कहाँ है ?”
</p>
<p>
सारे मंत्रीगण सिर खुजाते बैठे रहते हैं पर चतुर तेनालीराम महाराज कृष्णदेव राय को स्वर्ग का पता बताने का वचन देते हैं। और इस काम के लिए दस हजार सोने के सिक्के और दो माह का समय मांगते हैं।
</p>
<p>
महाराज कृष्णदेव राय तेनालीराम को सोने के सिक्के और दो माह का समय दे देते हैं और शर्त रखते हैं कि अगर तेनालीराम ऐसा न कर सके तो उन्हे कड़ा दंड दिया जाएगा। अन्य दरबारी तेनालीराम की कुशलता से काफी जलते हैं। और इस बात से मन ही मन बहुत खुश होते हैं कि तेनालीराम स्वर्ग नहीं खोज पाएगा और सजा भुगतेगा।
</p>
<p>
दो माह की अवधि बीत जाती है, महाराज कृष्णदेव राय तेनालीराम को दरबार में बुलवाते हैं। तेनालीराम कहते हैं के उन्होने स्वर्ग ढूंढ लिया है और वे कल सुबह स्वर्ग देखने के लिए प्रस्थान करेंगे।
</p>
<p>
अगले दिन तेनालीराम, महाराज कृष्णदेव राय और उनके खास मंत्रीगणों को एक सुंदर स्थान पर ले जाते हैं। जहां खूब हरियाली, चहचहाते पक्षी, और वातावरण को शुद्ध करने वाले पेड़ पौधे होते हैं। जगह का सौंदर्य देख महाराज कृष्णदेव राय अति प्रसन्न होते हैं। पर उनके अन्य मंत्री गण स्वर्ग देखने की बात महाराज कृष्णदेव राय को याद दिलाते रहते हैं।
</p>
<p>
महाराज कृष्णदेव राय भी तेनालीराम से उसका वादा निभाने को कहते हैं। उसके जवाब में तेनालीराम कहते हैं कि जब हमारी पृथ्वी पर फल, फूल, पेड़, पौधे, अनंत प्रकार के पशु, पक्षी, और अद्भुत वातावरण और अलौकिक सौन्दर्य है। फिर स्वर्ग की कामना क्यों? जबकि स्वर्ग जैसी कोई जगह है भी इसका कोई प्रमाण नहीं है।
</p>
<p>
महाराज कृष्णदेव राय को चतुर तेनालीराम की बात समझ आ जाती है और वो उनकी प्रसंशा करते हैं।बाकी मंत्री जलन के मारे महाराज को दस हज़ार सोने के सिक्कों की याद दिलाते हैं। तब महाराज कृष्णदेव राय तेनालीराम से पूछते हैं कि उन्होंने उन सिक्को का क्या किया?
</p>
<p>
तब तेनालीराम कहते हैं कि वह तो उन्होने खर्च कर दिये!
</p>
<p>
तेनालीराम कहते हैं कि आपने जो दस हजार सोने के सिक्के दिये थे उनसे मैंने इस जगह से उत्तम पौधे और उच्च कोटी के बीज खरीदे हैं। जिनको हम अपने राज्य विजयनगर की जमीन में प्रत्यर्पित करेंगे; ताकि हमारा राज्य भी इस सुंदर स्थान के समीप आकर्षक और उपजाऊ बन जाए।
</p>
<p>
महाराज इस बात से और भी प्रसन्न हो जाते हैं और तेनालीराम को ढेरों इनाम देते हैं। और एक बार फिर बाकी मंत्री अपना सा मुंह ले कर रह जाते हैं!
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<span style="font-size:20px;"><strong>रसगुगुल्ले की जड़</strong></span>
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मध्य पूर्वी देश से एक ईरानी शेख व्यापारी महाराज कृष्णदेव राय का अतिथि बन कर आता है। महाराज अपने अतिथि का सत्कार बड़े भव्य तरीके से करते हैं और उसके अच्छे खाने और रहने का प्रबंध करते हैं, और साथ ही कई अन्य सुविधाएं भी प्रदान करते हैं।
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<p>
एक दिन भोजन पर महाराज का रसोइया शेख व्यापारी के लिए रसगुल्ले बना कर लता है। व्यापारी कहता है कि उसे रसगुल्ले नहीं खाने है। पर हो सके तो उन्हे रसगुल्ले की जड़ क्या है यह बताए। रसोइया सोच मे पड़ जाता है। और अवसर आने पर महाराज कृष्णदेव राय को व्यापारी की मांग बताता है। महाराज रसगुल्ले की जड़ पकड़ने के लिए अपने चतुर मंत्री तेनालीराम को बुलाते हैं।
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तेनालीराम झट से रसगुल्ले की जड़ खोजने की चुनौती का प्रस्ताव स्वीकार कर लेते हैं। वह एक खाली कटोरे और धार दार छूरि की मांग करते हैं और महाराज से एक दिन का समय मांगते हैं।
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अगले दिन रसगुल्ले की जड़ के टुकड़ो से भरे कटोरे को, मलमल से ढके कपड़े मे ला कर राज दरबार में बैठे ईरानी शेख व्यापारी को देते हैं और उसे कपड़ा हटा कर रसगुल्ले की जड़ देखने को कहते हैं। ईरानी व्यापारी कटोरे में गन्ने के टुकड़े देख कर हैरान हो जाता है। और सारे दरबारी तथा महाराज कृष्णदेव राय, तेनालीराम से पूछते है के यह क्या है?
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<p>
चतुर तेनालीराम समझाते हैं के हर एक मिठाई शक्कर से बनती है और शक्कर का स्रोत गन्ना होता है। इस लिए रसगुल्ले की जड़ गन्ना है। तेनालीराम के इस गणित से सारे दरबारी, ईरानी व्यापारी और महाराज कृष्णदेव राय प्रफ़्फुलित हो कर हंस पड़ते हैं। और तेनालीराम के तर्क से सहमत भी होते हैं।
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<p style="text-align: center;">
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<p style="text-align: center;">
<span style="color:#0000CD;"><span style="font-size:20px;">तेनालीराम की चतुराई भरी कहानियाँ</span></span>
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<p style="text-align: center;">
सोलहवीं सदी (1509 से 1529 ) में विजयनगर की सत्ता महाराज कृष्णदेव राय के हाथों में थी। उनके दरबार में एक से बढ़कर एक दरबारी हुआ करते थे, और उन्हें में से एक थे महाचतुर तेनालीराम। अक्सर महाराज किसी अनसुलझी गुत्थी को सुलझाने के लिए तेनालीराम की मदद लिया करते थे। कालांतर में तेनालीराम एक प्रसिद्द किरदार बन गए और अकबर-बीरबल की तरह उनके जीवन से भी कई चतुराई भरे किस्से जोड़ दिए गए। इस तरह तेनालीराम की चतुराई भरी कहानियां प्रसिद्द होती गयीं और बच्चों के साथ-साथ बड़ों की भी शिक्षा और मनोरंजन का जरिया बन गयीं.
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आइये आज हम ऐसी ही तीन प्रसिद्द कहानियों को जानते हैं:
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<span style="font-size:20px;"><strong> </strong></span>
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<span style="font-size:20px;"><strong>अंगूठी चोर</strong></span>
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महाराजा कृष्ण देव राय एक कीमती रत्न जड़ित अंगूठी पहना करते थे। जब भी वह दरबार में उपस्थित होते तो अक्सर उनकी नज़र अपनी सुंदर अंगूठी पर जाकर टिक जाती थी। राजमहल में आने वाले मेहमानों और मंत्रीगणों से भी वह बार-बार अपनी उस अंगूठी का ज़िक्र किया करते थे।
</p>
<p>
एक बार राजा कृष्ण देव राय उदास हो कर अपने सिंहासन पर बैठे थे। तभी तेनालीराम वहाँ आ पहुंचे। उन्होने राजा की उदासी का कारण पूछा। तब राजा ने बताया कि उनकी पसंदीदा अंगूठी खो गयी है, और उन्हे पक्का शक है कि उसे उनके बारह अंग रक्षकों में से किसी एक ने चुराया है।
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<p>
चूँकि राजा कृष्ण देव राय का सुरक्षा घेरा इतना चुस्त होता था की कोई चोर-उचक्का या सामान्य व्यक्ति उनके नज़दीक नहीं जा सकता था।<br />
तेनालीराम ने तुरंत महाराज से कहा कि-
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<blockquote>
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"मैं अंगूठी चोर को बहुत जल्द पकड़ लूँगा।"
</p>
</blockquote>
<p>
यह बात सुन कर राजा कृष्ण देव राय बहुत प्रसन्न हुए। उन्होने तुरंत अपने अंगरक्षकों को बुलवा लिया।<br />
तेनालीराम बोले, “राजा की अंगूठी आप बारह अंगरक्षकों में से किसी एक ने की है। लेकिन मैं इसका पता बड़ी आसानी से लगा लूँगा। जो सच्चा है उसे डरने की कोई ज़रुरत नहीं और जो चोर है वह कठोर दण्ड भोगने के लिए तैयार हो जाए।”
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तेनालीराम ने बोलना जारी रखा, “आप सब मेरे साथ आइये हम सबको काली माँ के मंदिर जाना है।”
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राजा बोले, ” ये कर रहे हो तेनालीराम हमें चोर का पता लगाना है मंदिर के दर्शन नहीं कराने हैं!”
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“महाराज, आप धैर्य रखिये जल्द ही चोर का पता चल जाएगा।”, तेनालीराम ने राजा को सब्र रखने को कहा।
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मंदिर पहुँच कर तेनालीराम पुजारी के पास गए और उन्हें कुछ निर्देश दिए। इसके बाद उन्होंने अंगरक्षकों से कहा, ” आप सबको बारी-बारी से मंदिर में जा कर माँ काली की मूर्ति के पैर छूने हैं और फ़ौरन बाहर निकल आना है। ऐसा करने से माँ काली आज रात स्वप्न में मुझे उस चोर का नाम बता देंगी।
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<p>
अब सारे अंगरक्षक बारी-बारी से मंदिर में जा कर माता के पैर छूने लगे। जैसे ही कोई अंगरक्षक पैर छू कर बाहर निकलता तेनालीराम उसका हाथ सूंघते आर एक कतार में खड़ा कर देते। कुछ ही देर में सभी अंगरक्षक एक कतार में खड़े हो गए।
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महाराज बोले, “चोर का पता तो कल सुबह लगेगा, तब तक इनका क्या किया जाए?”
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नहीं महाराज, चोर का पता तो ला चुका है। सातवें स्थान पर खड़ा अंगरक्षक ही चोर है।
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ऐसा सुनते ही वह अंगरक्षक भागने लगा, पर वहां मौजूद सिपाहियों ने उसे धर दबोचा, और कारागार में डाल दिया.
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राजा और बाकी सभी लोग आशार्यचाकित थे कि तेनालीराम ने बिना स्वप्न देखे कैसे पता कर लिया कि चोर वही है।
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तेनालीराम सबकी जिज्ञासा शांत करते हुए बोले,”मैंने पुजारी जी से कह कर काली माँ के पैरों पर तेज सुगन्धित इत्र छिड़कवा दिया था। जिस कारण जिसने भी माँ के पैर छुए उसके हाथ में वही सुगन्ध आ गयी। लेकिन जब मैंने सातवें अंगरक्षक के हाथ महके तो उनमे कोई खुशबु नहीं थी… उसने पकड़े जाने के डर से माँ काली की मूर्ति के पैर छूए ही नहीं। इसलिए यह साबित हो गया की उसी के मन में पाप था और वही चोर है।”
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राजा कृष्ण देव राय एक बार फिर तेनालीराम की बुद्धिमत्ता के कायल हो गए। और उन्हें स्वर्ण मुद्राओं से सम्मानित किया।
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<span style="font-size:20px;"><strong>कुछ नहीं</strong></span>
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तेनालीराम राजा कृष्ण देव राय के निकट होने के कारण बहुत से लोग उनसे जलते थे। उनमे से एक था रघु नाम का ईर्ष्यालु फल व्यापारी। उसने एक बार तेनालीराम को षड्यंत्र में फसाने की युक्ति बनाई। उसने तेनालीराम को फल खरीदने के लिए बुलाया। जब तेनालीराम ने उनका दाम पूछा तो रघु मुस्कुराते हुए बोला,
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<blockquote>
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“आपके लिए तो इनका दाम ‘कुछ नहीं’ है।”
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</blockquote>
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यह बात सुन कर तेनालीराम ने कुछ फल खाए और बाकी थैले में भर आगे बढ़ने लगे। तभी रघु ने उन्हें रोका और कहा कि मेरे फल के दाम तो देते जाओ।
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तेनालीराम रघु के इस सवाल से हैरान हुए, वह बोले कि अभी तो तुमने कहा की फल के दाम ‘कुछ नहीं’ है। तो अब क्यों अपनी बात से पलट रहे हो। तब रघु बोला की, मेरे फल मुफ्त नहीं है। मैंने साफ-साफ बताया था की मेरे फलों का दाम कुछ नहीं है। अब सीधी तरह मुझे ‘कुछ नहीं’ दे दो, वरना मै राजा कृष्ण देव राय के पास फरियाद ले कर जाऊंगा और तुम्हें कठोर दंड दिलाऊँगा।
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तेनालीराम सिर खुझाने लगे। और यह सोचते-सोचते वहाँ से अपने घर चले गए।
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उनके मन में एक ही सवाल चल रहा था कि इस पागल फल वाले के अजीब षड्यंत्र का तोड़ कैसे खोजूँ। इसे कुछ नहीं कहाँ से लाकर दूँ।
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अगले ही दिन फल वाला राजा कृष्ण देव राय के दरबार में आ गया और फरियाद करने लगा। वह बोला की तेनाली ने मेरे फलों का दाम ‘कुछ नहीं’ मुझे नहीं दिया है।
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राजा कृष्ण देव राय ने तुरंत तेनालीराम को हाज़िर किया और उससे सफाई मांगी। तेनालीराम पहले से तैयार थे उन्होंने एक रत्न-जड़ित संदूक लाकर रघु फल वाले के सामने रख दिया और कहा ये लो तुम्हारे फलों का दाम।
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उसे देखते ही रघु की आँखें चौंधिया, उसने अनुमान लगाया कि इस संदूक में बहुमूल्य हीरे-जवाहरात होंगे… वह रातों-रात अमीर बनने के ख्वाब देखने लगा। और इन्ही ख़यालों में खोये-खोये उसने संदूक खोला।
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संदूक खोलते ही मानो उसका खाब टूट गया, वह जोर से चीखा, ” ये क्या? इसमें तो ‘कुछ नहीं’ है!”
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तब तेनालीराम बोले, “बिलकुल सही, अब तुम इसमें से अपना ‘कुछ नहीं’ निकाल लो और यहाँ से चलते बनो।”
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वहां मौजूद महाराज और सभी दरबारी ठहाका लगा कर हंसने लगे। और रघु को अपना सा मुंह लेकर वापस जाना पड़ा। एक बार फिर तेनालीराम ने अपने बुद्धि चातुर्य से महाराज का मन जीत लिया था।
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<span style="font-size:20px;"><strong>जादूगर का घमंड</strong></span>
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एक बार राजा कृष्ण देव राय के दरबार में एक जादूगर आया। उसने बहुत देर तक हैरतअंगेज़ जादू करतब दिखा कर पूरे दरबार का मनोरंजन किया। फिर जाते समय राजा से ढेर सारे उपहार ले कर अपनी कला के घमंड में सबको चुनौती दे डाली-
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<blockquote>
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"क्या कोई व्यक्ति मेरे जैसे अद्भुत करतब दिखा सकता है। क्या कोई मुझे यहाँ टक्कर दे सकता है?"
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</blockquote>
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इस खुली चुनौती को सुन कर सारे दरबारी चुप हो गए। परंतु तेनालीराम को इस जादूगर का यह अभिमान अच्छा नहीं लगा। वह तुरंत उठ खड़े हुए और बोले कि हाँ मैं तुम्हे चुनौती देता हूँ कि जो करतब मैं अपनी आँखें बंद कर के दिखा दूंगा वह तुम खुली आंखो से भी नहीं कर पाओगे। अब बताओ क्या तुम मेरी चुनौती स्वीकार करते हो?
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जादूगर अपने अहम में अंध था। उसने तुरंत इस चुनौती को स्वीकार कर लिया।
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तेनालीराम ने रसोइये को बुला कर उस के साथ मिर्ची का पाउडर मंगवाया। अब तेनालीराम ने अपनी आँखें बंद की और उनपर एक मुट्ठी मिर्ची पाउडर डाल दिया। फिर थोड़ी देर में उन्होंने मिर्ची पाउडर झटक कर कपड़े से आँखें पोंछ कर शीतल जल से अपना चेहरा धो लिया। और फिर जादूगर से कहा कि अब तुम खुली आँखों से यह करतब करके अपनी जादूगरी का नमूना दिखाओ।
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घमंडी जादूगर को अपनी गलती समझ आ गयी। उसने माफी मांगी और हाथ जोड़ कर राजा के दरबार से चला गया।
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राजा कृष्ण देव राय अपने चतुर मंत्री तेनालीराम की इस युक्ति से अत्यंत प्रभावित हुए। उन्होने तुरंत तेनालीराम को पुरस्कार दे कर सम्मानित किया और राज्य की इज्जत रखने के लिए धन्यवाद दिया।
</p>
<h1>
<span style="color:#0000CD;"><strong>तेनालीराम की कहानियां (Tenali Raman Stories in Hindi)</strong></span>
</h1>
<h2>
<strong>कौन थे तेनालीराम? About Tenali Raman in Hindi</strong>
</h2>
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तेनालीराम (Tenali Raman) का जन्म 16th century में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के गुन्टूर जिले के गाँव – गरलापाडु में हुआ था। तेनालीराम एक तेलुगू Tenaliram stories in Hindi ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे। वह पेशे से कवि थे, व तेलुगू साहित्य के महान ज्ञानी थे। अपने वाक चातुर्य के कारण वह काफी प्रख्यात थे। और उन्हे “विकट कवि” के उपनाम से संबोधित किया जाता था। तेनालीराम के पिता गरलापती रामय्या, तेनाली गाँव के रामलिंगेश्वरास्वामी मंदिर के पुजारी हुआ करते थे।
</p>
<p>
तेनालीराम जब आयु में युवा थे तभी उनके के पिता गरलापती रामय्या की मृत्यु हो गयी। और उसके बाद उनकी माता उन्हें लेकर अपने गाँव तेनाली, अपने भाई के पास रहने चली गयी थी। तेनालीराम शिव भक्त भी थे। इस लिए उन्हे तेनाली रामलिंगा के नाम से भी पुकारा जाता था। इतिहास कारों के मुताबिक कुछ समय के बाद उन्होंने वैष्णव धर्म अपना लिया था।
</p>
<p>
तेनालीराम को पाठशाला का विधिवत अभ्यास नहीं प्राप्त हुआ था, पर उनकी सीखने की तीव्र इच्छा और ज्ञान के प्रति धुन, के कारण उन्हे शिश्यावृति प्राप्त हुई थी। परंतु उनके पूर्व शिव भक्त होने के कारण उन्हे वैष्णव अनुयायियों द्वारा एक शिष्य की तरह स्वीकारा नहीं गया था, फिर एक महान संत ने उन्हे काली की पूजा करने की सलाह दी। और ऐसा कहा जाता है के संत की बात मान कर तेनालीराम ने काली देवी की खूब तपस्या की। और उसी के परिणाम स्वरूप तेनालीराम को देवी काली से उत्कृष्ट हास्य कवी बनने का वरदान मिला।
</p>
<p>
तेनालीराम ने अपने आगे के जीवन में “भागवत मेला” मंडल के साथ जुड़ाव किया। और एक दिन “भागवत मेला” मंडल, महाराज कृष्णदेव राय के दरबार में अपना कार्यक्रम प्रदर्शित करने के लिए पहुंचा।उन्होंने अपने प्रभावशाली प्रदर्शन से राजा कृष्णदेव राय को बहुत प्रभावित कर दिया और कृष्णदेव राय तेनालीराम को अपने दरबार में आठवे स्कॉलर (अस्ठदिग्गज) मंडल में हास्य कवी के पद पर शामिल कर लिया।
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<p>
महाराज कृष्णदेव राय – वर्ष 1509 से 1529 तक विजयनगर की राजगद्दी पर विराजमान थे, तब तेनालीराम उनके दरबार में एक हास्य कवी और मंत्री सहायक की भूमिका में उपस्थित हुआ करते थे। इतिहासकारों के मुताबिक तेनालीराम एक हास्य कवी होने के साथ साथ ज्ञानी और चतुर व्यक्ति थे। तेनालीराम राज्य से जुड़ी विकट परेशानीयों से उभरने के लिए कई बार महाराज कृष्णदेव राय की मदद करते थे। उनकी बुद्धि चातुर्य और ज्ञान बोध से जुड़ी कई कहानिया है जिनमे से कुछ चुनिन्दा कहानियाँ नीचे बताई गयी हैं।
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<span style="font-size:20px;"><strong>अरबी घोड़े (Tenali Raman Stories in Hindi)</strong></span>
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महाराज कृष्णदेव राय के दरबार में एक दिन एक अरब प्रदेश का व्यापारी घोड़े बेचने आता है। वह अपने घोड़ो का बखान कर के महाराज कृष्णदेव राय को सारे घोड़े खरीदने के लिए राजी कर लेता है तथा अपने घोड़े बेच जाता है। अब महाराज के घुड़साल इतने अधिक घोड़े हो जाते हैं कि उन्हें रखने की जगह नहीं बचती, इसलिए महाराज के आदेश पर बहुत से घोड़ों को विजयनगर के आम नागरिकों और राजदरबार के कुछ लोगों को तीन महीने तक देखभाल के लिए दे दिया जाता है। हर एक देखभाल करने वाले को घोड़ों के पालन खर्च और प्रशिक्षण के लिए प्रति माह एक सोने का सिक्का दिया जाता है।
</p>
<p>
विजयनगर के सभी नागरिकों की तरह चतुर तेनालीराम को भी एक घोडा दिया गया। तेनालीराम ने घोड़े को घर लेजा कर घर के पिछवाड़े एक छोटी सी घुड़साल बना कर बांध दिया। और घुड़साल की नन्ही खिड़की से उसे हर रोज थोड़ी मात्रा में चारा खिलाने लगे।
</p>
<p>
बाकी लोग भी महाराज कृष्णदेव राय की सौंपी गयी ज़िम्मेदारी को निभाने लगे। महाराज नाराज ना हो जाए और उन पर क्रोधित हो कोई दंड ना दे दें; इस भय से सभी लोग अपना पेट काट-काट कर भी घोड़े को उत्तम चारा खरीद कर खिलाने लगे।
</p>
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ऐसा करते-करते तीन महीने बीत जाते हैं। तय दिन सारे नागरिक घोड़ो को ले कर महाराज कृष्णदेव राय के समक्ष इकठ्ठा हो जाते हैं। पर तेनालीराम खाली हाथ आते हैं। राजगुरु तेनालीराम के घोड़ा ना लाने की वजह पूछते है। तेनालीराम उत्तर मे कहते है कि घोड़ा काफी बिगडैल और खतरनाक हो चुका है, और वह खुद उस घोड़े के समीप नहीं जाना चाहते हैं। राजगुरु , महाराज कृष्णदेव राय को कहते है के तेनालीराम झूठ बोल रहे है। महाराज कृष्णदेव राय सच्चाई का पता लगाने के लिए और तेनालीराम के साथ राजगुरु को भेजते हैं।
</p>
<p>
तेनालीराम के घर के पीछे बनी छोटी सी घुड़साल देख राजगुरु कहते है कि अरे मूर्ख मानव तुम इस छोटी कुटिया को घुड़साल कहते हो? तेनालीराम बड़े विवेक से राजगुरु से कहते है के क्षमा करें मैं आप की तरह विद्वान नहीं हूँ। कृपया घोड़े को पहले खिड़की से झाँक कर देख लें। और उसके पश्चात ही घुड़साल के अंदर कदम रखें।
</p>
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राजगुरु जैसे ही खिड़की से अंदर झाँकते हैं, घोडा लपक कर उनकी दाढ़ी पकड़ लेता है। लोग जमा होने लगते हैं। काफी मशक्कत करने के बाद भी भूखा घोड़ा राजगुरु की दाढ़ी नहीं छोड़ता है। अंततः कुटिया तोड़ कर तेज हथियार से राजगुरु की दाढ़ी काट कर उन्हे घोड़े के चंगुल से छुड़ाया जाता है। परेशान राजगुरु और चतुर तेनालीराम भूखे घोड़े को ले कर राजा के पास पहुँचते हैं।
</p>
<p>
घोड़े की दुबली-पतली हालत देख कर महाराज कृष्णदेव राय तेनालीराम से इसका कारण पूछते हैं। तेनालीराम कहते है कि मैं घोड़े को प्रति दिन थोड़ा सा चारा ही देता था, जिस तरह आप की गरीब प्रजा थोड़ा भोजन कर के गुजारा करती है। और आवश्यकता से कम सुविधा मिलने के कारण घोडा और व्यथित और बिगड़ेल होता गया। ठीक वैसे ही जैसे के आप की प्रजा परिवार पालन की जिम्मेदारी के अतिरिक्त, घोड़ो को संभालने के बोझ से त्रस्त हुई।
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<p>
राजा का कर्तव्य प्रजा की रक्षा करना होता है। उन पर अधिक बोझ डालना नहीं। आपके दिये हुए घोड़े पालने के कार्य-आदेश से घोड़े तो बलवान हो गए पर आप की प्रजा दुर्बल हो गयी है। महाराज कृष्णदेव राय को तेनालीराम की यह बात समझ में आ जाती है, और वह तेनालीराम की प्रसंशा करते हुए उन्हे पुरस्कार देते है।
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<span style="font-size:20px;"><strong>स्वर्ग की खोज</strong></span>
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महाराज कृष्णदेव राय अपने बचपन में सुनी कथा अनुसार यह विश्वास करते थे कि संसार-ब्रह्मांड की सबसे उत्तम और मनमोहक जगह स्वर्ग है। एक दिन अचानक महाराज को स्वर्ग देखने की इच्छा उत्पन्न होती है, इसलिए दरबार में उपस्थित मंत्रियों से पूछते हैं, ” बताइए स्वर्ग कहाँ है ?”
</p>
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सारे मंत्रीगण सिर खुजाते बैठे रहते हैं पर चतुर तेनालीराम महाराज कृष्णदेव राय को स्वर्ग का पता बताने का वचन देते हैं। और इस काम के लिए दस हजार सोने के सिक्के और दो माह का समय मांगते हैं।
</p>
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महाराज कृष्णदेव राय तेनालीराम को सोने के सिक्के और दो माह का समय दे देते हैं और शर्त रखते हैं कि अगर तेनालीराम ऐसा न कर सके तो उन्हे कड़ा दंड दिया जाएगा। अन्य दरबारी तेनालीराम की कुशलता से काफी जलते हैं। और इस बात से मन ही मन बहुत खुश होते हैं कि तेनालीराम स्वर्ग नहीं खोज पाएगा और सजा भुगतेगा।
</p>
<p>
दो माह की अवधि बीत जाती है, महाराज कृष्णदेव राय तेनालीराम को दरबार में बुलवाते हैं। तेनालीराम कहते हैं के उन्होने स्वर्ग ढूंढ लिया है और वे कल सुबह स्वर्ग देखने के लिए प्रस्थान करेंगे।
</p>
<p>
अगले दिन तेनालीराम, महाराज कृष्णदेव राय और उनके खास मंत्रीगणों को एक सुंदर स्थान पर ले जाते हैं। जहां खूब हरियाली, चहचहाते पक्षी, और वातावरण को शुद्ध करने वाले पेड़ पौधे होते हैं। जगह का सौंदर्य देख महाराज कृष्णदेव राय अति प्रसन्न होते हैं। पर उनके अन्य मंत्री गण स्वर्ग देखने की बात महाराज कृष्णदेव राय को याद दिलाते रहते हैं।
</p>
<p>
महाराज कृष्णदेव राय भी तेनालीराम से उसका वादा निभाने को कहते हैं। उसके जवाब में तेनालीराम कहते हैं कि जब हमारी पृथ्वी पर फल, फूल, पेड़, पौधे, अनंत प्रकार के पशु, पक्षी, और अद्भुत वातावरण और अलौकिक सौन्दर्य है। फिर स्वर्ग की कामना क्यों? जबकि स्वर्ग जैसी कोई जगह है भी इसका कोई प्रमाण नहीं है।
</p>
<p>
महाराज कृष्णदेव राय को चतुर तेनालीराम की बात समझ आ जाती है और वो उनकी प्रसंशा करते हैं।बाकी मंत्री जलन के मारे महाराज को दस हज़ार सोने के सिक्कों की याद दिलाते हैं। तब महाराज कृष्णदेव राय तेनालीराम से पूछते हैं कि उन्होंने उन सिक्को का क्या किया?
</p>
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तब तेनालीराम कहते हैं कि वह तो उन्होने खर्च कर दिये!
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<p>
तेनालीराम कहते हैं कि आपने जो दस हजार सोने के सिक्के दिये थे उनसे मैंने इस जगह से उत्तम पौधे और उच्च कोटी के बीज खरीदे हैं। जिनको हम अपने राज्य विजयनगर की जमीन में प्रत्यर्पित करेंगे; ताकि हमारा राज्य भी इस सुंदर स्थान के समीप आकर्षक और उपजाऊ बन जाए।
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महाराज इस बात से और भी प्रसन्न हो जाते हैं और तेनालीराम को ढेरों इनाम देते हैं। और एक बार फिर बाकी मंत्री अपना सा मुंह ले कर रह जाते हैं!
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<span style="font-size:20px;"><strong>रसगुगुल्ले की जड़</strong></span>
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मध्य पूर्वी देश से एक ईरानी शेख व्यापारी महाराज कृष्णदेव राय का अतिथि बन कर आता है। महाराज अपने अतिथि का सत्कार बड़े भव्य तरीके से करते हैं और उसके अच्छे खाने और रहने का प्रबंध करते हैं, और साथ ही कई अन्य सुविधाएं भी प्रदान करते हैं।
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एक दिन भोजन पर महाराज का रसोइया शेख व्यापारी के लिए रसगुल्ले बना कर लता है। व्यापारी कहता है कि उसे रसगुल्ले नहीं खाने है। पर हो सके तो उन्हे रसगुल्ले की जड़ क्या है यह बताए। रसोइया सोच मे पड़ जाता है। और अवसर आने पर महाराज कृष्णदेव राय को व्यापारी की मांग बताता है। महाराज रसगुल्ले की जड़ पकड़ने के लिए अपने चतुर मंत्री तेनालीराम को बुलाते हैं।
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तेनालीराम झट से रसगुल्ले की जड़ खोजने की चुनौती का प्रस्ताव स्वीकार कर लेते हैं। वह एक खाली कटोरे और धार दार छूरि की मांग करते हैं और महाराज से एक दिन का समय मांगते हैं।
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अगले दिन रसगुल्ले की जड़ के टुकड़ो से भरे कटोरे को, मलमल से ढके कपड़े मे ला कर राज दरबार में बैठे ईरानी शेख व्यापारी को देते हैं और उसे कपड़ा हटा कर रसगुल्ले की जड़ देखने को कहते हैं। ईरानी व्यापारी कटोरे में गन्ने के टुकड़े देख कर हैरान हो जाता है। और सारे दरबारी तथा महाराज कृष्णदेव राय, तेनालीराम से पूछते है के यह क्या है?
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चतुर तेनालीराम समझाते हैं के हर एक मिठाई शक्कर से बनती है और शक्कर का स्रोत गन्ना होता है। इस लिए रसगुल्ले की जड़ गन्ना है। तेनालीराम के इस गणित से सारे दरबारी, ईरानी व्यापारी और महाराज कृष्णदेव राय प्रफ़्फुलित हो कर हंस पड़ते हैं। और तेनालीराम के तर्क से सहमत भी होते हैं।
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<span style="color:#0000CD;"><span style="font-size:20px;">तेनालीराम की चतुराई भरी कहानियाँ</span></span>
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सोलहवीं सदी (1509 से 1529 ) में विजयनगर की सत्ता महाराज कृष्णदेव राय के हाथों में थी। उनके दरबार में एक से बढ़कर एक दरबारी हुआ करते थे, और उन्हें में से एक थे महाचतुर तेनालीराम। अक्सर महाराज किसी अनसुलझी गुत्थी को सुलझाने के लिए तेनालीराम की मदद लिया करते थे। कालांतर में तेनालीराम एक प्रसिद्द किरदार बन गए और अकबर-बीरबल की तरह उनके जीवन से भी कई चतुराई भरे किस्से जोड़ दिए गए। इस तरह तेनालीराम की चतुराई भरी कहानियां प्रसिद्द होती गयीं और बच्चों के साथ-साथ बड़ों की भी शिक्षा और मनोरंजन का जरिया बन गयीं.
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आइये आज हम ऐसी ही तीन प्रसिद्द कहानियों को जानते हैं:
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<span style="font-size:20px;"><strong> </strong></span>
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<span style="font-size:20px;"><strong>अंगूठी चोर</strong></span>
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महाराजा कृष्ण देव राय एक कीमती रत्न जड़ित अंगूठी पहना करते थे। जब भी वह दरबार में उपस्थित होते तो अक्सर उनकी नज़र अपनी सुंदर अंगूठी पर जाकर टिक जाती थी। राजमहल में आने वाले मेहमानों और मंत्रीगणों से भी वह बार-बार अपनी उस अंगूठी का ज़िक्र किया करते थे।
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एक बार राजा कृष्ण देव राय उदास हो कर अपने सिंहासन पर बैठे थे। तभी तेनालीराम वहाँ आ पहुंचे। उन्होने राजा की उदासी का कारण पूछा। तब राजा ने बताया कि उनकी पसंदीदा अंगूठी खो गयी है, और उन्हे पक्का शक है कि उसे उनके बारह अंग रक्षकों में से किसी एक ने चुराया है।
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चूँकि राजा कृष्ण देव राय का सुरक्षा घेरा इतना चुस्त होता था की कोई चोर-उचक्का या सामान्य व्यक्ति उनके नज़दीक नहीं जा सकता था।<br />
तेनालीराम ने तुरंत महाराज से कहा कि-
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<blockquote>
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"मैं अंगूठी चोर को बहुत जल्द पकड़ लूँगा।"
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</blockquote>
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यह बात सुन कर राजा कृष्ण देव राय बहुत प्रसन्न हुए। उन्होने तुरंत अपने अंगरक्षकों को बुलवा लिया।<br />
तेनालीराम बोले, “राजा की अंगूठी आप बारह अंगरक्षकों में से किसी एक ने की है। लेकिन मैं इसका पता बड़ी आसानी से लगा लूँगा। जो सच्चा है उसे डरने की कोई ज़रुरत नहीं और जो चोर है वह कठोर दण्ड भोगने के लिए तैयार हो जाए।”
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तेनालीराम ने बोलना जारी रखा, “आप सब मेरे साथ आइये हम सबको काली माँ के मंदिर जाना है।”
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राजा बोले, ” ये कर रहे हो तेनालीराम हमें चोर का पता लगाना है मंदिर के दर्शन नहीं कराने हैं!”
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“महाराज, आप धैर्य रखिये जल्द ही चोर का पता चल जाएगा।”, तेनालीराम ने राजा को सब्र रखने को कहा।
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मंदिर पहुँच कर तेनालीराम पुजारी के पास गए और उन्हें कुछ निर्देश दिए। इसके बाद उन्होंने अंगरक्षकों से कहा, ” आप सबको बारी-बारी से मंदिर में जा कर माँ काली की मूर्ति के पैर छूने हैं और फ़ौरन बाहर निकल आना है। ऐसा करने से माँ काली आज रात स्वप्न में मुझे उस चोर का नाम बता देंगी।
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अब सारे अंगरक्षक बारी-बारी से मंदिर में जा कर माता के पैर छूने लगे। जैसे ही कोई अंगरक्षक पैर छू कर बाहर निकलता तेनालीराम उसका हाथ सूंघते आर एक कतार में खड़ा कर देते। कुछ ही देर में सभी अंगरक्षक एक कतार में खड़े हो गए।
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महाराज बोले, “चोर का पता तो कल सुबह लगेगा, तब तक इनका क्या किया जाए?”
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नहीं महाराज, चोर का पता तो ला चुका है। सातवें स्थान पर खड़ा अंगरक्षक ही चोर है।
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ऐसा सुनते ही वह अंगरक्षक भागने लगा, पर वहां मौजूद सिपाहियों ने उसे धर दबोचा, और कारागार में डाल दिया.
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राजा और बाकी सभी लोग आशार्यचाकित थे कि तेनालीराम ने बिना स्वप्न देखे कैसे पता कर लिया कि चोर वही है।
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तेनालीराम सबकी जिज्ञासा शांत करते हुए बोले,”मैंने पुजारी जी से कह कर काली माँ के पैरों पर तेज सुगन्धित इत्र छिड़कवा दिया था। जिस कारण जिसने भी माँ के पैर छुए उसके हाथ में वही सुगन्ध आ गयी। लेकिन जब मैंने सातवें अंगरक्षक के हाथ महके तो उनमे कोई खुशबु नहीं थी… उसने पकड़े जाने के डर से माँ काली की मूर्ति के पैर छूए ही नहीं। इसलिए यह साबित हो गया की उसी के मन में पाप था और वही चोर है।”
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राजा कृष्ण देव राय एक बार फिर तेनालीराम की बुद्धिमत्ता के कायल हो गए। और उन्हें स्वर्ण मुद्राओं से सम्मानित किया।
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<span style="font-size:20px;"><strong>कुछ नहीं</strong></span>
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तेनालीराम राजा कृष्ण देव राय के निकट होने के कारण बहुत से लोग उनसे जलते थे। उनमे से एक था रघु नाम का ईर्ष्यालु फल व्यापारी। उसने एक बार तेनालीराम को षड्यंत्र में फसाने की युक्ति बनाई। उसने तेनालीराम को फल खरीदने के लिए बुलाया। जब तेनालीराम ने उनका दाम पूछा तो रघु मुस्कुराते हुए बोला,
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<blockquote>
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“आपके लिए तो इनका दाम ‘कुछ नहीं’ है।”
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</blockquote>
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यह बात सुन कर तेनालीराम ने कुछ फल खाए और बाकी थैले में भर आगे बढ़ने लगे। तभी रघु ने उन्हें रोका और कहा कि मेरे फल के दाम तो देते जाओ।
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तेनालीराम रघु के इस सवाल से हैरान हुए, वह बोले कि अभी तो तुमने कहा की फल के दाम ‘कुछ नहीं’ है। तो अब क्यों अपनी बात से पलट रहे हो। तब रघु बोला की, मेरे फल मुफ्त नहीं है। मैंने साफ-साफ बताया था की मेरे फलों का दाम कुछ नहीं है। अब सीधी तरह मुझे ‘कुछ नहीं’ दे दो, वरना मै राजा कृष्ण देव राय के पास फरियाद ले कर जाऊंगा और तुम्हें कठोर दंड दिलाऊँगा।
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तेनालीराम सिर खुझाने लगे। और यह सोचते-सोचते वहाँ से अपने घर चले गए।
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उनके मन में एक ही सवाल चल रहा था कि इस पागल फल वाले के अजीब षड्यंत्र का तोड़ कैसे खोजूँ। इसे कुछ नहीं कहाँ से लाकर दूँ।
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अगले ही दिन फल वाला राजा कृष्ण देव राय के दरबार में आ गया और फरियाद करने लगा। वह बोला की तेनाली ने मेरे फलों का दाम ‘कुछ नहीं’ मुझे नहीं दिया है।
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राजा कृष्ण देव राय ने तुरंत तेनालीराम को हाज़िर किया और उससे सफाई मांगी। तेनालीराम पहले से तैयार थे उन्होंने एक रत्न-जड़ित संदूक लाकर रघु फल वाले के सामने रख दिया और कहा ये लो तुम्हारे फलों का दाम।
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उसे देखते ही रघु की आँखें चौंधिया, उसने अनुमान लगाया कि इस संदूक में बहुमूल्य हीरे-जवाहरात होंगे… वह रातों-रात अमीर बनने के ख्वाब देखने लगा। और इन्ही ख़यालों में खोये-खोये उसने संदूक खोला।
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संदूक खोलते ही मानो उसका खाब टूट गया, वह जोर से चीखा, ” ये क्या? इसमें तो ‘कुछ नहीं’ है!”
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तब तेनालीराम बोले, “बिलकुल सही, अब तुम इसमें से अपना ‘कुछ नहीं’ निकाल लो और यहाँ से चलते बनो।”
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वहां मौजूद महाराज और सभी दरबारी ठहाका लगा कर हंसने लगे। और रघु को अपना सा मुंह लेकर वापस जाना पड़ा। एक बार फिर तेनालीराम ने अपने बुद्धि चातुर्य से महाराज का मन जीत लिया था।
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<span style="font-size:20px;"><strong>जादूगर का घमंड</strong></span>
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एक बार राजा कृष्ण देव राय के दरबार में एक जादूगर आया। उसने बहुत देर तक हैरतअंगेज़ जादू करतब दिखा कर पूरे दरबार का मनोरंजन किया। फिर जाते समय राजा से ढेर सारे उपहार ले कर अपनी कला के घमंड में सबको चुनौती दे डाली-
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"क्या कोई व्यक्ति मेरे जैसे अद्भुत करतब दिखा सकता है। क्या कोई मुझे यहाँ टक्कर दे सकता है?"
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इस खुली चुनौती को सुन कर सारे दरबारी चुप हो गए। परंतु तेनालीराम को इस जादूगर का यह अभिमान अच्छा नहीं लगा। वह तुरंत उठ खड़े हुए और बोले कि हाँ मैं तुम्हे चुनौती देता हूँ कि जो करतब मैं अपनी आँखें बंद कर के दिखा दूंगा वह तुम खुली आंखो से भी नहीं कर पाओगे। अब बताओ क्या तुम मेरी चुनौती स्वीकार करते हो?
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जादूगर अपने अहम में अंध था। उसने तुरंत इस चुनौती को स्वीकार कर लिया।
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तेनालीराम ने रसोइये को बुला कर उस के साथ मिर्ची का पाउडर मंगवाया। अब तेनालीराम ने अपनी आँखें बंद की और उनपर एक मुट्ठी मिर्ची पाउडर डाल दिया। फिर थोड़ी देर में उन्होंने मिर्ची पाउडर झटक कर कपड़े से आँखें पोंछ कर शीतल जल से अपना चेहरा धो लिया। और फिर जादूगर से कहा कि अब तुम खुली आँखों से यह करतब करके अपनी जादूगरी का नमूना दिखाओ।
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घमंडी जादूगर को अपनी गलती समझ आ गयी। उसने माफी मांगी और हाथ जोड़ कर राजा के दरबार से चला गया।
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राजा कृष्ण देव राय अपने चतुर मंत्री तेनालीराम की इस युक्ति से अत्यंत प्रभावित हुए। उन्होने तुरंत तेनालीराम को पुरस्कार दे कर सम्मानित किया और राज्य की इज्जत रखने के लिए धन्यवाद दिया।
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अकबर बीरबल के 3 मजेदार किस्से ( Akbar Birbal Stories in Hindi )2018-07-02T20:43:52+05:302018-07-02T20:43:52+05:30https://www.sandybook.in/latestsms/hindi-stories/short-stories-in-hindi/890-%E0%A4%85%E0%A4%95%E0%A4%AC%E0%A4%B0-%E0%A4%AC%E0%A5%80%E0%A4%B0%E0%A4%AC%E0%A4%B2-%E0%A4%95%E0%A5%87-3-%E0%A4%AE%E0%A4%9C%E0%A5%87%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B8%E0%A5%87-akbar-birbal-stories-in-hindiSandybooksandybook.in@gmail.com<h1><span style="font-family: georgia,serif;"><span style="color: #0000cd;"><strong>अकबर बीरबल के 3 मजेदार किस्से ( Akbar Birbal Stories in Hindi )</strong></span></span></h1>
<p>मुग़ल वंश के बादशाह और नसीरुद्दीन हुमायूँ के बेटे, जलाल उद्दीन मोहम्मद अकबर और उनके कहे जाने वाले नवरत्न में से एक रत्न बीरबल के किस्से काफी मशहूर हैं । बादशाह अकबर कई बार परेशानियों में फसने पर, या किसी गंभीर मुद्दे पर अपने सलाहकार मंत्री बीरबल की सहायता अवश्य लेते थे।</p>
<p>बीरबल ने सन 1528 से सन 1583 तक बादशाह अकबर के दरबार में एक विदूषक एवं सलाहकार बन कर सेवाएँ दी थी। बीरबल स्वभाव से बुद्धिशाली, और किसी भी समस्या का समाधान ढूँढने में निपुण थे। अकबर और बीरबल के अनगिनत किस्सो में से चुनिन्दा किस्से वार्ता स्वरूप दर्शाये हैं, जिसमे बीरबल के बुद्धिचातुर्य का वर्णन है।</p>
<p> </p>
<p><span style="font-size: 20px;"><strong>मोम का शेर </strong></span></p>
<p>सर्दियों के दिन थे, अकबर का दरबार लगा हुआ था। तभी फारस के राजा का भेजा एक दूत दरबार में उपस्थित हुआ।</p>
<p>राजा को नीचा दिखाने के लिए फारस के राजा ने मोम से बना शेर का एक पुतला बनवाया था और उसे पिंजरे में बंद कर के दूत के हाथों अकबर को भिजवाया, और उन्हे चुनौती दी की इस शेर को पिंजरा खोले बिना बाहर निकाल कर दिखाएं।</p>
<p>बीरबल की अनुपस्थिति के कारण अकबर सोच पड़ गए की अब इस समस्या को कैसे सुलझाया जाए। अकबर ने सोचा कि अगर दी हुई चुनौती पार नहीं की गयी तो जग हसायी होगी। इतने में ही परम चतुर, ज्ञान गुणवान बीरबल आ गए। और उन्होने मामला हाथ में ले लिया।</p>
<p>बीरबल ने एक गरम सरिया मंगवाया और पिंजरे में कैद मोम के शेर को पिंजरे में ही पिघला डाला। देखते-देखते मोम पिघल कर बाहर निकल गया ।</p>
<p>अकबर अपने सलाहकार बीरबल की इस चतुराई से काफी प्रसन्न हुए और फारस के राजा ने फिर कभी अकबर को चुनौती नहीं दी।</p>
<p>Moral: बुद्धि के बल पर बड़ी से बड़ी समस्या का हल निकाला जा सकता है.</p>
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<p><span style="font-size: 20px;"><strong>बीरबल की खिचड़ी</strong></span></p>
<p>अकबर ने कडकड़ाती सर्दियों के मौसम में एक दिन यह ऐलान किया की अगर कोई व्यक्ति पूरी रात भर पानी के अंदर छाती तक डूब कर खड़ा रह पाएगा तो उसे 1000 मोहरों का इनाम दिया जाएगा। इस चुनौती को पार करना काफी कठिन था।</p>
<p>पर फिर भी एक गरीब ब्राह्मण अपनी बेटी के विवाह के लिए धन जोड़ने की खातिर तैयार हो गया। जैसे-तैसे कर के उसने कांपते, ठिठुरते रात निकाल ली। और सुबह बादशाह अकबर से अपना अर्जित इनाम मांगा। अकबर ने पूछा कि तुम इतनी सर्द रात में पानी के अंदर कैसे खड़े रह पाये।</p>
<p>ब्राह्मण ने कहा कि मैं दूर आप के किले के झरोखों पर जल रहे दिये का चिंतन कर कर के खड़ा रहा, और यह सोचता रहा कि वह दिया मेरे पास ही है। इस तरह रात बीत गयी। अकबर ने यह सुन कर तुरंत इनाम देने से माना कर दिया, और यह तर्क दिया की, उसी दिये की गर्मी से तुम पानी में रात भर खड़े रह सके। इसलिए तुम इनाम के हक़दार नहीं। ब्राह्मण रोता हुआ उदास हो कर चला गया।</p>
<p>बीरबल जानता था की ब्राह्मण के साथ यह अन्याय हुआ है। उसने ब्राह्मण का हक़ दिलवाने का निश्चय कर लिया।</p>
<p>अगले दिन अकबर और बीरबल वन में शिकार खेलने चले गए। दोपहर में बीरबल ने तिपाई लगायी और आग जला कर खिचड़ी पकाने लगा। अकबर सामने बैठे थे। बीरबल ने जानबूझ कर खिचड़ी का पात्र आग से काफी ऊंचा लटकाया। अकबर देख कर बोल पड़े कि अरे मूर्ख इतनी ऊपर बंधी हांडी को तपन कैसे मिलेगी हांडी को नीचे बांध वरना खिचड़ी नहीं पकेगी।</p>
<p>बीरबल ने कहा पकेगी… पकेगी… खिचड़ी पकेगी। आप धैर्य रखें। इस तरह दो पहर से शाम हो गयी, और अकबर लाल पीले हो गए और गुस्से में बोले,</p>
<blockquote>
<p>"बीरबल तू मेरा मज़ाक उड़ा रहा है? तुझे समझ नहीं आता? इतनी दूर तक आंच नहीं पहुंचेगी, हांडी नीचे लगा।"</p>
</blockquote>
<p>तब बीरबल ने कहा कि अगर इतनी सी दूरी से अग्नि खिचड़ी नहीं पका सकती तो उस ब्राह्मण को आप के किले के झरोखे पर जल रहे दिये से ऊर्जा केसे प्राप्त हुई होगी ?</p>
<p>यह सुनकर अकबर फौरन अपनी गलती समझ जाते हैं और अगले दिन ही गरीब ब्राह्मण को बुला कर उसे 1000 मोहरे दे देते हैं। और भरे दरबार में गलती बताने के बीरबल के इस तरीके की प्रसंशा करते हैं।</p>
<p><strong>Moral:</strong> कभी किसी के साथ अन्याय नहीं करना चाहिए.</p>
<p> </p>
<p><span style="font-size: 20px;"><strong>एक पेड़ दो मालिक</strong></span></p>
<p>अकबर बादशाह दरबार लगा कर बैठे थे। तभी राघव और केशव नाम के दो व्यक्ति अपने घर के पास स्थित आम के पेड़ का मामला ले कर आए। दोनों व्यक्तियों का कहना था कि वे ही आम के पेड़ के असल मालिक हैं और दुसरा व्यक्ति झूठ बोल रहा है। चूँकि आम का पेड़ फलों से लदा होता है, इसलिए दोनों में से कोई उसपर से अपना दावा नहीं हटाना चाहता।</p>
<p>मामले की सच्चाई जानने के लिए अकबर राघव और केशव के आसपास रहने वाले लोगो के बयान सुनते हैं। पर कोई फायदा नहीं हो पाता है। सभी लोग कहते हैं कि दोनों ही पेड़ को पानी देते थे। और दोनों ही पेड़ के आसपास कई बार देखे जाते थे। पेड़ की निगरानी करने वाले चौकीदार के बयान से भी साफ नहीं हुआ की पेड़ का असली मालिक राघव है कि केशव है, क्योंकि राघव और केशव दोनों ही पेड़ की रखवाली करने के लिए चौकीदार को पैसे देते थे।</p>
<p>अंत में अकबर थक हार कर अपने चतुर सलाहकार मंत्री बीरबल की सहायता लेते हैं। बीरबल तुरंत ही मामले की जड़ पकड़ लेते है। पर उन्हे सबूत के साथ मामला साबित करना होता है कि कौन सा पक्ष सही है और कौन सा झूठा। इस लिए वह एक नाटक रचते हैं।</p>
<p>बीरबल आम के पेड़ की चौकीदारी करने वाले चौकीदार को एक रात अपने पास रोक लेते हैं। उसके बाद बीरबल उसी रात को अपने दो भरोसेमंद व्यक्तियों को अलग अलग राघव और केशव के घर “झूठे समाचार” के साथ भेज देते हैं। और समाचार देने के बाद छुप कर घर में होने वाली बातचीत सुनने का निर्देश देते हैं।</p>
<p>केशव के घर पहुंचा व्यक्ति बताता है कि आम के पेड़ के पास कुछ अज्ञात व्यक्ति पके हुए आम चुराने की फिराक में है। आप जा कर देख लीजिये। यह खबर देते वक्त केशव घर पर नहीं होता है, पर केशव के घर आते ही उसकी पत्नी यह खबर केशव को सुनाती है।</p>
<p>केशव बोलता है, “हां… हां… सुन लिया अब खाना लगा। वैसे भी बादशाह के दरबार में अभी फेसला होना बाकी है… पता नही हमे मिलेगा कि नहीं। और खाली पेट चोरों से लड़ने की ताकत कहाँ से आएगी; वैसे भी चोरों के पास तो आजकल हथियार भी होते हैं।”</p>
<p>आदेश अनुसार “झूठा समाचार” पहुंचाने वाला व्यक्ति केशव की यह बात सुनकर बीरबल को बता देता है।</p>
<p> राघव के घर पहुंचा व्यक्ति बताता है, “आप के आम के पेड़ के पास कुछ अज्ञात व्यक्ति पके हुए आम चुराने की फिराक में है। आप जा कर देख लीजियेगा।”</p>
<p>यह खबर देते वक्त राघव भी अपने घर पर नहीं होता है, पर राघव के घर आते ही उसकी पत्नी यह खबर राघव को सुनाती है।</p>
<p>राघव आव देखता है न ताव, फ़ौरन लाठी उठता है और पेड़ की ओर भागता है। उसकी पत्नी आवाज लगाती है, अरे खाना तो खा लो फिर जाना… राघव जवाब देता है कि… खाना भागा नहीं जाएगा पर हमारे आम के पेड़ से आम चोरी हो गए तो वह वापस नहीं आएंगे… इतना बोल कर राघव दौड़ता हुआ पेड़ के पास चला जाता है।</p>
<p>आदेश अनुसार “झूठा समाचार” पहुंचाने वाला व्यक्ति बीरबल को सारी बात बता देते हैं।</p>
<p>दूसरे दिन अकबर के दरबार में राघव और केशव को बुलाया जाता है। और बीरबल रात को किए हुए परीक्षण का वृतांत बादशाह अकबर को सुना देते हैं जिसमे भेजे गए दोनों व्यक्ति गवाही देते हैं। अकबर राघव को आम के पेड़ का मालिक घोषित करते हैं। और केशव को पेड़ पर झूठा दावा करने के लिए कडा दंड देते हैं। तथा मामले को बुद्धि पूर्वक, चतुराई से सुल्झाने के लिए बीरबल की प्रशंशा करते हैं।</p>
<p>सच ही तो है, जो वक्ती परिश्रम कर के अपनी किसी वस्तु या संपत्ति का जतन करता है उसे उसकी परवाह अधिक होती है।</p>
<p><strong>Moral:</strong> ठगी करने वाले व्यक्ति को अंत में दण्डित होना पड़ता है, इसलिए कभी किसी को धोखा ना दें.</p>
<p> </p>
<p><span style="font-size: 20px;"><strong>तोते की मौत</strong></span></p>
<p>एक बार बादशाह अकबर किसी व्यापारी के पास से तोता खरीद कर लाये। वह तोता देखने में अत्यंत सुंदर था और उसकी बोली भी बड़ी मीठी थी। अकबर ने उस तोते की रखवाली के लिए एक सेवक को नियुक्त कर दिया, और उसे साफ़ हिदायत दे दी कि </p>
<blockquote>
<p>"अगर तोता मरा तो तुम्हें मृत्यु दंड दे दूंगा। और इसके अलावा जिसने भी अपने मुंह से कहा कि ‘तोता मर चुका है‘ उसे भी मौत की सज़ा मिलेगी । इसलिए तोते की रखवाली अच्छे से करना।"</p>
</blockquote>
<p>सेवक तोते को ले कर चला गया। और बड़े उत्साह से उसकी देखभाल करने लगा। उसे कहीं ना कहीं यह डर सता रहा था कि अगर कहीं बादशाह का तोता मरा तो उसकी जान पर बन आएगी। और फिर एक दिन ऐसा ही हुआ। तोता अचानक मर गया। अब सेवक के हाथ पाँव फूलने लगे। उसे बादशाह अकबर की कही बात याद थी। वह तुरंत दौड़ कर बीरबल के पास गया। और पूरी बात बताई।</p>
<p>बीरबल ने उस सेवक को पानी पिलाया और कहा, “चिंता मत करो। मै बादशाह से बात करूंगा.. तुम बस इस समय उस तोते से दूर हो जाओ। “</p>
<p>थोड़ी देर बाद बीरबल अकेले बादशाह के पास गए और बोले कि-</p>
<p>इतना बोल कर बीरबल ने बात अधूरी छोड़ दी।</p>
<p>अकबर बादशाह तुरंत सिंहासन से खड़े हुए और बोले, क्या हुआ? तोता मर गया?</p>
<p>बीरबल बोले, “मै सिर्फ इतना ही कहना चाहूँगा कि आप का तोता ना मुंह खोलता है, ना खाता है, ना पीता है, ना हिलता है, ना डुलता है। ना चलता है, ना फुदकता है। उसकी आँखें बंद है। और वह अपने पिंजरे में लेटा पड़ा है। आप आइये और ज़रा उसे देखिये।”</p>
<p>अकबर और बीरबल फ़ौरन तोते के पास गए।</p>
<p>“अरे बीरबल ‘<strong>तोता मर चुका है</strong>।’ ये बात तुम मुझे वहीं पर नहीं बता सकते थे।”, अकबर क्रोधित होते हुए बोले।”उस तोते का रखवाला कहाँ है? मैं उसे अभी अपनी तलवार से सजाये मौत दूंगा।”</p>
<p>तब बीरबल बोले, “जी मैं अभी उस रखवाले को हाज़िर करता हूँ लेकिन ये तो बताइये कि आपको मृत्यु देने के लिए मैं किसे बुलाऊं।”</p>
<p>“क्या मतलब है तुम्हारा?”, अकबर जोर से चीखे।</p>
<p>“जी, आप ही ने तो कहा था कि जो कोई भी बोलेगा कि ‘तोता मर चुका है’, उसे भी मौत की सजा दी जायेगी, और अभी कुछ देर पहले आप ही के मुख से ये बात निकली थी।”</p>
<p>अब अकबर को अपनी गलती का एहसास हो गया।</p>
<p>बीरबल की इस चतुराई से अकबर हंस पड़े और वे दोनों हँसते-हँसते दरबार लौट गए। अकबर ने तुरंत घोषणा कर दी की सेवक पर कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी। तोता अपनी मौत मरा है, उसमें किसी का कोई दोष नहीं है।</p>
<p> </p>
<p><span style="font-size: 20px;"><strong>आदमी एक खूबियाँ तीन</strong></span></p>
<p>एक बार अकबर और बीरबल बागीचे में बैठे थे। अचानक अकबर ने बीरबल से पूछा कि क्या तुम किसी ऐसे इन्सान को खोज सकते हो जिसमें अलग-अलग बोली बोलने की खूबी हों?</p>
<p>बीरबल ने कहा, क्यों नहीं, मै एक आदमी जानता हूँ जो तोते की बोली बोलता है, शेर की बोली बोलता है, और गधे की बोली भी बोलता है। अकबर इस बात को सुन कर हैरत में पड़ गए। उन्होने बीरबल को कहा किअगले दिन उस आदमी को पेश किया जाये।</p>
<p>बीरबल उस आदमी को अगले दिन सुबह दरबार में ले गए। और उसे एक छोटी बोतल शराब पीला दी। अब हल्के नशे की हालत में शराबी अकबर बादशाह के आगे खड़ा था। वह जानता था की दारू पी कर आया जान कर बादशाह सज़ा देगा। इस लिए वह गिड़गिड़ाने लगा। और बादशाह की खुशामत करने लगा। तब बीरबल बोले की हुज़ूर, यह जो सज़ा के डर से बोल रहा है वह <strong>तोते की भाषा है</strong>।</p>
<p>उसके बाद बीरबल ने वहीं, उस आदमी को एक और शराब की बोतल पिला दी। अब वह आदमी पूरी तरह नशे में था। वह अकबर बादशाह के सामने सीना तान कर खड़ा हो गया। उसने कहा कि आप नगर के बादशाह हैं तो क्या हुआ। में भी अपने घर का बादशाह हूँ। मै यहाँ किसी से नहीं डरता हूँ।</p>
<p>बीरबल बोले कि हुज़ूर, अब शराब के नशे में निडर होकर यह जो बोल रहा है <strong>यह शेर की भाषा है</strong>।</p>
<p>अब फिर से बीरबल ने उस आदमी का मुह पकड़ कर एक और बोतल उसके गले से उतार दी। इस बार वह आदमी लड़खड़ाते गिरते पड़ते हुए ज़मीन पर लेट गया और हाथ पाँव हवा में भांजते हुए, मुंह से उल-जूलूल आवाज़ें निकालने लगा। अब बीरबल बोले कि हुज़ूर अब यह जो बोल रहा है वह <strong>गधे की भाषा है</strong>।</p>
<p>अकबर एक बार फिर बीरबल की हाज़िर जवाबी से प्रसन्न हुए, और यह मनोरंजक उदाहरण पेश करने के लिए उन्होने बीरबल को इनाम दिया।</p>
<p> </p>
<p><span style="font-size: 20px;"><strong>तीन रूपये, तीन चीज़ें</strong></span></p>
<p>एक मंत्री की उदास शक्ल देख बादशाह अकबर ने उसकी उदासी का कारण पूछा। तब मंत्री बोले कि आप सारे महत्वपूर्ण कार्य बीरबल को सौप कर उसे महत्ता देते हैं। जिस कारण हमें अपनी प्रतिभा साबित करने का मौका ही नहीं मिलता है। इस बात को सुन कर अकबर ने उस मंत्री को तीन रूपये दिये और कहा कि आप बाज़ार जा कर इन तीन रुपयों को तीन चीजों पर बराबर-बराबर खर्च करें…यानी हर एक चीज पर 1 रुपये।</p>
<p>लेकिन शर्त यह है कि-</p>
<blockquote>
<p>"पहली चीज यहाँ की होनी चाहिए। दूसरी चीज वहाँ की होनी चाहिए। और तीसरी चीज ना यहाँ की होनी चाहिए और ना वहाँ की होनी चाहिए।"</p>
</blockquote>
<p>दरबारी मंत्री अकबर से तीन रूपये ले कर बाज़ार निकल पड़ा। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वो अब क्या करे। वह एक दुकान से दुसरे दुकान चक्कर लगाने लगा लेकिन उसे ऐसा कोई नहीं मिला जो इस शर्त के मुताबिक एक-एक रूपये वाली तीन चीज़ें दे सके। वह थक हार कर वापस अकबर के पास लौट आया।</p>
<p>अब बादशाह अकबर ने यही कार्य बीरबल को दिया।</p>
<p>बीरबल एक घंटे में अकबर बादशाह की चुनौती पार लगा कर तीन वस्तुएँ ले कर लौट आया। अब बीरबल ने उन वस्तुओं का वृतांत कुछ इस प्रकार सुनाया।</p>
<p>पहला एक रुपया मैंने मिठाई पर खर्च कर दिया जो यहाँ इस दुनिया की चीज है। दूसरा रुपया मैंने एक गरीब फ़कीर को दान किया जिससे मुझे पुण्य मिला जो वहाँ यानी ज़न्नत की चीज है। और तीसरे रुपये से मैंने जुवा खेला और हार गया… इस तरह “जुवे में हारा रुपया” वो तीसरी चीज थी जो ना यहाँ मेरे काम आई न वहां ,ज़न्नत में मुझे नसीब होगी।</p>
<p>बीरबल की चतुराईपूर्ण बात सुनकर राजा के साथ-साथ दरबारी भी मुस्कुरा पड़े और सभी ने उनकी बुद्धि का लोहा मान लिया।</p>
<p> </p>
<p><span style="font-size: 20px;"><strong>सबसे बड़ा मनहूस कौन?</strong></span></p>
<p>एक बार अकबर बिस्तर पर पड़े-पड़े पानी मांगे जा रहे थे। आसपास कोई खास निजी सेवक था नहीं। सो महल का कूड़ा कचरा साफ करने वाले निम्न दर्जे के मामूली नौकर ने हिम्मत कर के बादशाह को पानी का गिलास दिया। अकबर उसे अपने कमरे में देख कर चौक गए। लेकिन प्यास इतनी लगी थी कि वे खुद को रोक नहीं पाए और पानी ले लिया।</p>
<p>तभी वहां अकबर के खास सेवक आ पहुंचे। उन्होने फौरन उस कचरा साफ करने वाले नौकर को कमरे से बाहर कर दिया। और सभी अकबर की चापलूसी करने लगे।</p>
<p>दोपहर हुई तो अकबर का पेट खराब हो गया। हकीम को बुलाया गया। पर फिर भी अकबर की हालत में सुधार नहीं हुआ। अब राज वैद्य आए, उनके साथ राज्य ज्योतिष भी थे। उन्होने कहा की शायद आप पर किसी मनहूस व्यक्ति का साया पड़ा है, इसीलिए आप की तबीयत खराब हुई है।</p>
<p>अकबर बादशाह को तुरंत उस कचरा साफ करने वाले नौकर का खयाल आया। उन्होने कहा कि आज सुबह मैंने उस कचरा साफ करने वाले के हाथ से पानी पिया था इसीलिए मेरे साथ यह सब हुआ है। उन्होने गुस्से में उस नौकर को मौत की सज़ा दे दी। थोड़ी ही देर में सिपाहीयों ने उस नौकर को कारागार में बंद कर दिया।</p>
<p>बीरबल को जब इस बात का पता लगा तो वह उस नौकर के पास गए और उसे सांत्वना देते हुए कहा कि वह उसे बचा लेंगे।</p>
<p>बीरबल तुरंत अकबर के पास गए और उनका हाल-चाल लिया। तब अकबर ने बताया कि-</p>
<blockquote>
<p>"हमारे राज्य का सब से बड़ा मनहूस मुझे बीमार कर गया।"</p>
</blockquote>
<p>यह बात सुन कर बीरबल हंस पड़े। तब अकबर को गुस्सा आया और वह बोले कि तुम्हें मेरी यह हालत देख कर मज़ा आ रहा है? तो बीरबल ने कहा कि नहीं नहीं महाराज एक बात पूछनी थी। अगर मैं उस नौकर से बड़ा मनहूस आप को ढूंढ कर दूँ तो आप क्या करेंगे? क्या आप इस नौकर को सज़ा से मुक्ति दे देंगे? अकबर ने तुरंत बीरबल की यह शर्त मान ली। और पूछा की बताओ उस नौकर से बड़ा मनहूस कौन है?</p>
<p>अब बीरबल बोले, “उस नौकर से बड़े मनहूस तो आप खुद हैं। उस नौकर के हाथ पानी पीने से आप की तबियत खराब हुई, आप बिस्तर पर आ गए। लेकिन उसका तो सोचिए, वह तो आप की प्यास बुझाने आया था। आप की खिदमद कर रहा था। सुबह सुबह आप की शक्ल देखने से उसकी तो जान पर बन आई है। उसे तो मौत की सज़ा मिल गयी। तो इस लिए उस से बड़े मनहूस तो आप हुए। अब आप खुद को मौत की सज़ा मत दीजिएगा। चूँकि हम सब आप से बहुत प्यार करते हैं।”</p>
<p>बीरबल की यह चतुराई भरी बात सुन कर, अकबर बिस्तर पर पड़े-पड़े हंसने लगे। उन्होने उसी वक्त उस गरीब नौकर को छोड़ देने के आदेश दिये। और उसे इनाम भी दिया। और मनहूसियत का अंधविश्वासी सुझाव देने वाले राज्य ज्योतिष को उसी वक्त घोड़े के तबेले में मुनीमगिरी के काम में लगा दिया गया।</p>
<p><span style="font-size: 20px;"><strong>अकबर का साला</strong></span></p>
<p>अकबर का साला हमेशा से ही बीरबल की जगह लेना चाहता था। अकबर जानते थे कि बीरबल की जगह ले सके ऐसा बुद्धिमान इस संसार में कोई नहीं है। फिर भी जोरू के भाई को वह सीधी ‘ना’ नहीं बोल सकते थे। ऐसा कर के वह अपनी लाडली बेगम की बेरुखी मोल नहीं लेना चाहते थे। इसीलिए उन्होने अपने साले साहब को एक कोयले से भरी बोरी दे दी और कहा कि-</p>
<blockquote>
<p>"जाओ और इसे हमारे राज्य के सबसे मक्कार और लालची सेठ – सेठ दमड़ीलाल को बेचकर दिखाओ , अगर तुम यह काम कर गए तो तुम्हें बीरबल की जगह वज़ीर बना दूंगा।"</p>
</blockquote>
<p>अकबर की इस अजीब शर्त को सुन कर साला अचंभे में पड़ गया। वह कोयले की बोरी ले कर चला तो गया। पर उसे पता था कि वह सेठ किसी की बातो में नहीं आने वाला ऊपर से वह उल्टा उसे ही चूना लगा देगा। हुआ भी यही सेठ दमड़ीलाल ने कोयले की बोरी के बदले एक ढेला भी देने से इनकार कर दिया।</p>
<p>साला अपना सा मुंह लेकर महल वापस लौट आया और अपनी हार स्वीकार कर ली.</p>
<p>अब अकबर ने वही काम बीरबल को करने को कहा।</p>
<p>बीरबल कुछ सोचे और फिर बोले कि सेठ दमड़ीलाल जैसे मक्कार और लालची सेठ को यह कोयले की बोरी क्या मैं सिर्फ कोयले का एक टुकड़ा ही दस हज़ार रूपये में बेच आऊंगा। यह बोल कर वह तुरंत वहाँ से रवाना हो गए।</p>
<p>सबसे पहले उसने एक दरज़ी के पास जा कर एक मखमली कुर्ता सिलवाया। हीरे-मोती वाली मालाएँ गले में डाली। महंगी जूती पहनी और कोयले को बारीक सुरमे जैसा पिसवा लिया।</p>
<p>फिर उसने पिसे कोयले को एक सुरमे की छोटी चमकदार डिब्बी में भर लिया। इसके बाद बीरबल ने अपना भेष बदल लिया और एक मेहमानघर में रुक कर इश्तिहार दे दिया कि बगदाद से बड़े शेख आए हैं। जो करिश्माई सुरमा बेचते हैं। जिसे आँखों में लगाने से मरे हुए पूर्वज दिख जाते हैं और यदि उन्होंने कहीं कोई धन गाड़ा है तो उसका पता बताते हैं। यह बात शहर में आग की तरह फ़ैली।</p>
<p>सेठ दमड़ीलाल को भी ये बात पता चली। उसने सोचा ज़रूर उसके पूर्वजों ने कहीं न कहीं धन गाड़ा होगा। उसने तुरंत शेख बने बीरबल से सम्पर्क किया और सुरमे की डिब्बी खरीदने की पेशकश की। शेख ने डिब्बी के 20 हज़ार रुपये मांगे और मोल-भाव करते-करते 10 हज़ार में बात तय हुई।</p>
<p>पर सेठ भी होशियार था, उसने कहा मैं अभी तुरंत ये सुरमा लगाऊंगा और अगर मुझे मेरे पूर्वज नहीं दिखे तो मैं पैसे वापस ले लूँगा।</p>
<p>बीरबल बोला, “बिलकुल आप ऐसा कर सकते हैं, चलिए शहर के चौराहे पर चलिए और वहां इसे जांच लीजिये।”</p>
<p>सुरमे का चमत्कार देखने के लिए भीड़ इकठ्ठा हो गयी।</p>
<p>तब बीरबल ने ऊँची आवाज़ में कहा, “ये सेठ अभी ये चमत्कारी सुरमा लगायेंगे और अगर ये उन्ही की औलाद हैं जिन्हें ये अपना माँ-बाप समझते हैं तो इन्हें इनके पूर्वज दिखाई देंगे और गड़े धन के बारे में बताएँगे। लेकिन अगर आपके माँ-बाप में से किसी ने भी बेईमानी की होगी और आप उनकी असल औलाद नहीं होंगे तो आपको कुछ भी नहीं दिखेगा।</p>
<p>और ऐसा कहते ही बीरबल ने सेठ की आँखों में सुरमा लगा दिया।</p>
<p>फिर क्या था, सिर खुजाते हुए सेठ ने आँखें खोली। अब दिखना तो कुछ था नहीं, पर सेठ करे भी तो क्या करे!</p>
<p>अपनी इज्ज़त बचाने के लिए सेठ ने दस हज़ार बीरबल के हाथ थमा दिये। और मुंह फुलाते हुए आगे बढ़ गए।</p>
<p>बीरबल फ़ौरन अकबर के पास पहुंचे और रुपये थमाते हुए सारी कहानी सुना दी।</p>
<p>अकबर का साला बिना कुछ कहे अपने घर लौट गया। और अकबर-बीरबल एक दूसरे को देख कर मंद-मंद मुसकाने लगे। इस किस्से के बाद फिर कभी अकबर के साले ने बीरबल का स्थान नहीं मांगा।</p><h1><span style="font-family: georgia,serif;"><span style="color: #0000cd;"><strong>अकबर बीरबल के 3 मजेदार किस्से ( Akbar Birbal Stories in Hindi )</strong></span></span></h1>
<p>मुग़ल वंश के बादशाह और नसीरुद्दीन हुमायूँ के बेटे, जलाल उद्दीन मोहम्मद अकबर और उनके कहे जाने वाले नवरत्न में से एक रत्न बीरबल के किस्से काफी मशहूर हैं । बादशाह अकबर कई बार परेशानियों में फसने पर, या किसी गंभीर मुद्दे पर अपने सलाहकार मंत्री बीरबल की सहायता अवश्य लेते थे।</p>
<p>बीरबल ने सन 1528 से सन 1583 तक बादशाह अकबर के दरबार में एक विदूषक एवं सलाहकार बन कर सेवाएँ दी थी। बीरबल स्वभाव से बुद्धिशाली, और किसी भी समस्या का समाधान ढूँढने में निपुण थे। अकबर और बीरबल के अनगिनत किस्सो में से चुनिन्दा किस्से वार्ता स्वरूप दर्शाये हैं, जिसमे बीरबल के बुद्धिचातुर्य का वर्णन है।</p>
<p> </p>
<p><span style="font-size: 20px;"><strong>मोम का शेर </strong></span></p>
<p>सर्दियों के दिन थे, अकबर का दरबार लगा हुआ था। तभी फारस के राजा का भेजा एक दूत दरबार में उपस्थित हुआ।</p>
<p>राजा को नीचा दिखाने के लिए फारस के राजा ने मोम से बना शेर का एक पुतला बनवाया था और उसे पिंजरे में बंद कर के दूत के हाथों अकबर को भिजवाया, और उन्हे चुनौती दी की इस शेर को पिंजरा खोले बिना बाहर निकाल कर दिखाएं।</p>
<p>बीरबल की अनुपस्थिति के कारण अकबर सोच पड़ गए की अब इस समस्या को कैसे सुलझाया जाए। अकबर ने सोचा कि अगर दी हुई चुनौती पार नहीं की गयी तो जग हसायी होगी। इतने में ही परम चतुर, ज्ञान गुणवान बीरबल आ गए। और उन्होने मामला हाथ में ले लिया।</p>
<p>बीरबल ने एक गरम सरिया मंगवाया और पिंजरे में कैद मोम के शेर को पिंजरे में ही पिघला डाला। देखते-देखते मोम पिघल कर बाहर निकल गया ।</p>
<p>अकबर अपने सलाहकार बीरबल की इस चतुराई से काफी प्रसन्न हुए और फारस के राजा ने फिर कभी अकबर को चुनौती नहीं दी।</p>
<p>Moral: बुद्धि के बल पर बड़ी से बड़ी समस्या का हल निकाला जा सकता है.</p>
<p> </p>
<p><span style="font-size: 20px;"><strong>बीरबल की खिचड़ी</strong></span></p>
<p>अकबर ने कडकड़ाती सर्दियों के मौसम में एक दिन यह ऐलान किया की अगर कोई व्यक्ति पूरी रात भर पानी के अंदर छाती तक डूब कर खड़ा रह पाएगा तो उसे 1000 मोहरों का इनाम दिया जाएगा। इस चुनौती को पार करना काफी कठिन था।</p>
<p>पर फिर भी एक गरीब ब्राह्मण अपनी बेटी के विवाह के लिए धन जोड़ने की खातिर तैयार हो गया। जैसे-तैसे कर के उसने कांपते, ठिठुरते रात निकाल ली। और सुबह बादशाह अकबर से अपना अर्जित इनाम मांगा। अकबर ने पूछा कि तुम इतनी सर्द रात में पानी के अंदर कैसे खड़े रह पाये।</p>
<p>ब्राह्मण ने कहा कि मैं दूर आप के किले के झरोखों पर जल रहे दिये का चिंतन कर कर के खड़ा रहा, और यह सोचता रहा कि वह दिया मेरे पास ही है। इस तरह रात बीत गयी। अकबर ने यह सुन कर तुरंत इनाम देने से माना कर दिया, और यह तर्क दिया की, उसी दिये की गर्मी से तुम पानी में रात भर खड़े रह सके। इसलिए तुम इनाम के हक़दार नहीं। ब्राह्मण रोता हुआ उदास हो कर चला गया।</p>
<p>बीरबल जानता था की ब्राह्मण के साथ यह अन्याय हुआ है। उसने ब्राह्मण का हक़ दिलवाने का निश्चय कर लिया।</p>
<p>अगले दिन अकबर और बीरबल वन में शिकार खेलने चले गए। दोपहर में बीरबल ने तिपाई लगायी और आग जला कर खिचड़ी पकाने लगा। अकबर सामने बैठे थे। बीरबल ने जानबूझ कर खिचड़ी का पात्र आग से काफी ऊंचा लटकाया। अकबर देख कर बोल पड़े कि अरे मूर्ख इतनी ऊपर बंधी हांडी को तपन कैसे मिलेगी हांडी को नीचे बांध वरना खिचड़ी नहीं पकेगी।</p>
<p>बीरबल ने कहा पकेगी… पकेगी… खिचड़ी पकेगी। आप धैर्य रखें। इस तरह दो पहर से शाम हो गयी, और अकबर लाल पीले हो गए और गुस्से में बोले,</p>
<blockquote>
<p>"बीरबल तू मेरा मज़ाक उड़ा रहा है? तुझे समझ नहीं आता? इतनी दूर तक आंच नहीं पहुंचेगी, हांडी नीचे लगा।"</p>
</blockquote>
<p>तब बीरबल ने कहा कि अगर इतनी सी दूरी से अग्नि खिचड़ी नहीं पका सकती तो उस ब्राह्मण को आप के किले के झरोखे पर जल रहे दिये से ऊर्जा केसे प्राप्त हुई होगी ?</p>
<p>यह सुनकर अकबर फौरन अपनी गलती समझ जाते हैं और अगले दिन ही गरीब ब्राह्मण को बुला कर उसे 1000 मोहरे दे देते हैं। और भरे दरबार में गलती बताने के बीरबल के इस तरीके की प्रसंशा करते हैं।</p>
<p><strong>Moral:</strong> कभी किसी के साथ अन्याय नहीं करना चाहिए.</p>
<p> </p>
<p><span style="font-size: 20px;"><strong>एक पेड़ दो मालिक</strong></span></p>
<p>अकबर बादशाह दरबार लगा कर बैठे थे। तभी राघव और केशव नाम के दो व्यक्ति अपने घर के पास स्थित आम के पेड़ का मामला ले कर आए। दोनों व्यक्तियों का कहना था कि वे ही आम के पेड़ के असल मालिक हैं और दुसरा व्यक्ति झूठ बोल रहा है। चूँकि आम का पेड़ फलों से लदा होता है, इसलिए दोनों में से कोई उसपर से अपना दावा नहीं हटाना चाहता।</p>
<p>मामले की सच्चाई जानने के लिए अकबर राघव और केशव के आसपास रहने वाले लोगो के बयान सुनते हैं। पर कोई फायदा नहीं हो पाता है। सभी लोग कहते हैं कि दोनों ही पेड़ को पानी देते थे। और दोनों ही पेड़ के आसपास कई बार देखे जाते थे। पेड़ की निगरानी करने वाले चौकीदार के बयान से भी साफ नहीं हुआ की पेड़ का असली मालिक राघव है कि केशव है, क्योंकि राघव और केशव दोनों ही पेड़ की रखवाली करने के लिए चौकीदार को पैसे देते थे।</p>
<p>अंत में अकबर थक हार कर अपने चतुर सलाहकार मंत्री बीरबल की सहायता लेते हैं। बीरबल तुरंत ही मामले की जड़ पकड़ लेते है। पर उन्हे सबूत के साथ मामला साबित करना होता है कि कौन सा पक्ष सही है और कौन सा झूठा। इस लिए वह एक नाटक रचते हैं।</p>
<p>बीरबल आम के पेड़ की चौकीदारी करने वाले चौकीदार को एक रात अपने पास रोक लेते हैं। उसके बाद बीरबल उसी रात को अपने दो भरोसेमंद व्यक्तियों को अलग अलग राघव और केशव के घर “झूठे समाचार” के साथ भेज देते हैं। और समाचार देने के बाद छुप कर घर में होने वाली बातचीत सुनने का निर्देश देते हैं।</p>
<p>केशव के घर पहुंचा व्यक्ति बताता है कि आम के पेड़ के पास कुछ अज्ञात व्यक्ति पके हुए आम चुराने की फिराक में है। आप जा कर देख लीजिये। यह खबर देते वक्त केशव घर पर नहीं होता है, पर केशव के घर आते ही उसकी पत्नी यह खबर केशव को सुनाती है।</p>
<p>केशव बोलता है, “हां… हां… सुन लिया अब खाना लगा। वैसे भी बादशाह के दरबार में अभी फेसला होना बाकी है… पता नही हमे मिलेगा कि नहीं। और खाली पेट चोरों से लड़ने की ताकत कहाँ से आएगी; वैसे भी चोरों के पास तो आजकल हथियार भी होते हैं।”</p>
<p>आदेश अनुसार “झूठा समाचार” पहुंचाने वाला व्यक्ति केशव की यह बात सुनकर बीरबल को बता देता है।</p>
<p> राघव के घर पहुंचा व्यक्ति बताता है, “आप के आम के पेड़ के पास कुछ अज्ञात व्यक्ति पके हुए आम चुराने की फिराक में है। आप जा कर देख लीजियेगा।”</p>
<p>यह खबर देते वक्त राघव भी अपने घर पर नहीं होता है, पर राघव के घर आते ही उसकी पत्नी यह खबर राघव को सुनाती है।</p>
<p>राघव आव देखता है न ताव, फ़ौरन लाठी उठता है और पेड़ की ओर भागता है। उसकी पत्नी आवाज लगाती है, अरे खाना तो खा लो फिर जाना… राघव जवाब देता है कि… खाना भागा नहीं जाएगा पर हमारे आम के पेड़ से आम चोरी हो गए तो वह वापस नहीं आएंगे… इतना बोल कर राघव दौड़ता हुआ पेड़ के पास चला जाता है।</p>
<p>आदेश अनुसार “झूठा समाचार” पहुंचाने वाला व्यक्ति बीरबल को सारी बात बता देते हैं।</p>
<p>दूसरे दिन अकबर के दरबार में राघव और केशव को बुलाया जाता है। और बीरबल रात को किए हुए परीक्षण का वृतांत बादशाह अकबर को सुना देते हैं जिसमे भेजे गए दोनों व्यक्ति गवाही देते हैं। अकबर राघव को आम के पेड़ का मालिक घोषित करते हैं। और केशव को पेड़ पर झूठा दावा करने के लिए कडा दंड देते हैं। तथा मामले को बुद्धि पूर्वक, चतुराई से सुल्झाने के लिए बीरबल की प्रशंशा करते हैं।</p>
<p>सच ही तो है, जो वक्ती परिश्रम कर के अपनी किसी वस्तु या संपत्ति का जतन करता है उसे उसकी परवाह अधिक होती है।</p>
<p><strong>Moral:</strong> ठगी करने वाले व्यक्ति को अंत में दण्डित होना पड़ता है, इसलिए कभी किसी को धोखा ना दें.</p>
<p> </p>
<p><span style="font-size: 20px;"><strong>तोते की मौत</strong></span></p>
<p>एक बार बादशाह अकबर किसी व्यापारी के पास से तोता खरीद कर लाये। वह तोता देखने में अत्यंत सुंदर था और उसकी बोली भी बड़ी मीठी थी। अकबर ने उस तोते की रखवाली के लिए एक सेवक को नियुक्त कर दिया, और उसे साफ़ हिदायत दे दी कि </p>
<blockquote>
<p>"अगर तोता मरा तो तुम्हें मृत्यु दंड दे दूंगा। और इसके अलावा जिसने भी अपने मुंह से कहा कि ‘तोता मर चुका है‘ उसे भी मौत की सज़ा मिलेगी । इसलिए तोते की रखवाली अच्छे से करना।"</p>
</blockquote>
<p>सेवक तोते को ले कर चला गया। और बड़े उत्साह से उसकी देखभाल करने लगा। उसे कहीं ना कहीं यह डर सता रहा था कि अगर कहीं बादशाह का तोता मरा तो उसकी जान पर बन आएगी। और फिर एक दिन ऐसा ही हुआ। तोता अचानक मर गया। अब सेवक के हाथ पाँव फूलने लगे। उसे बादशाह अकबर की कही बात याद थी। वह तुरंत दौड़ कर बीरबल के पास गया। और पूरी बात बताई।</p>
<p>बीरबल ने उस सेवक को पानी पिलाया और कहा, “चिंता मत करो। मै बादशाह से बात करूंगा.. तुम बस इस समय उस तोते से दूर हो जाओ। “</p>
<p>थोड़ी देर बाद बीरबल अकेले बादशाह के पास गए और बोले कि-</p>
<p>इतना बोल कर बीरबल ने बात अधूरी छोड़ दी।</p>
<p>अकबर बादशाह तुरंत सिंहासन से खड़े हुए और बोले, क्या हुआ? तोता मर गया?</p>
<p>बीरबल बोले, “मै सिर्फ इतना ही कहना चाहूँगा कि आप का तोता ना मुंह खोलता है, ना खाता है, ना पीता है, ना हिलता है, ना डुलता है। ना चलता है, ना फुदकता है। उसकी आँखें बंद है। और वह अपने पिंजरे में लेटा पड़ा है। आप आइये और ज़रा उसे देखिये।”</p>
<p>अकबर और बीरबल फ़ौरन तोते के पास गए।</p>
<p>“अरे बीरबल ‘<strong>तोता मर चुका है</strong>।’ ये बात तुम मुझे वहीं पर नहीं बता सकते थे।”, अकबर क्रोधित होते हुए बोले।”उस तोते का रखवाला कहाँ है? मैं उसे अभी अपनी तलवार से सजाये मौत दूंगा।”</p>
<p>तब बीरबल बोले, “जी मैं अभी उस रखवाले को हाज़िर करता हूँ लेकिन ये तो बताइये कि आपको मृत्यु देने के लिए मैं किसे बुलाऊं।”</p>
<p>“क्या मतलब है तुम्हारा?”, अकबर जोर से चीखे।</p>
<p>“जी, आप ही ने तो कहा था कि जो कोई भी बोलेगा कि ‘तोता मर चुका है’, उसे भी मौत की सजा दी जायेगी, और अभी कुछ देर पहले आप ही के मुख से ये बात निकली थी।”</p>
<p>अब अकबर को अपनी गलती का एहसास हो गया।</p>
<p>बीरबल की इस चतुराई से अकबर हंस पड़े और वे दोनों हँसते-हँसते दरबार लौट गए। अकबर ने तुरंत घोषणा कर दी की सेवक पर कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी। तोता अपनी मौत मरा है, उसमें किसी का कोई दोष नहीं है।</p>
<p> </p>
<p><span style="font-size: 20px;"><strong>आदमी एक खूबियाँ तीन</strong></span></p>
<p>एक बार अकबर और बीरबल बागीचे में बैठे थे। अचानक अकबर ने बीरबल से पूछा कि क्या तुम किसी ऐसे इन्सान को खोज सकते हो जिसमें अलग-अलग बोली बोलने की खूबी हों?</p>
<p>बीरबल ने कहा, क्यों नहीं, मै एक आदमी जानता हूँ जो तोते की बोली बोलता है, शेर की बोली बोलता है, और गधे की बोली भी बोलता है। अकबर इस बात को सुन कर हैरत में पड़ गए। उन्होने बीरबल को कहा किअगले दिन उस आदमी को पेश किया जाये।</p>
<p>बीरबल उस आदमी को अगले दिन सुबह दरबार में ले गए। और उसे एक छोटी बोतल शराब पीला दी। अब हल्के नशे की हालत में शराबी अकबर बादशाह के आगे खड़ा था। वह जानता था की दारू पी कर आया जान कर बादशाह सज़ा देगा। इस लिए वह गिड़गिड़ाने लगा। और बादशाह की खुशामत करने लगा। तब बीरबल बोले की हुज़ूर, यह जो सज़ा के डर से बोल रहा है वह <strong>तोते की भाषा है</strong>।</p>
<p>उसके बाद बीरबल ने वहीं, उस आदमी को एक और शराब की बोतल पिला दी। अब वह आदमी पूरी तरह नशे में था। वह अकबर बादशाह के सामने सीना तान कर खड़ा हो गया। उसने कहा कि आप नगर के बादशाह हैं तो क्या हुआ। में भी अपने घर का बादशाह हूँ। मै यहाँ किसी से नहीं डरता हूँ।</p>
<p>बीरबल बोले कि हुज़ूर, अब शराब के नशे में निडर होकर यह जो बोल रहा है <strong>यह शेर की भाषा है</strong>।</p>
<p>अब फिर से बीरबल ने उस आदमी का मुह पकड़ कर एक और बोतल उसके गले से उतार दी। इस बार वह आदमी लड़खड़ाते गिरते पड़ते हुए ज़मीन पर लेट गया और हाथ पाँव हवा में भांजते हुए, मुंह से उल-जूलूल आवाज़ें निकालने लगा। अब बीरबल बोले कि हुज़ूर अब यह जो बोल रहा है वह <strong>गधे की भाषा है</strong>।</p>
<p>अकबर एक बार फिर बीरबल की हाज़िर जवाबी से प्रसन्न हुए, और यह मनोरंजक उदाहरण पेश करने के लिए उन्होने बीरबल को इनाम दिया।</p>
<p> </p>
<p><span style="font-size: 20px;"><strong>तीन रूपये, तीन चीज़ें</strong></span></p>
<p>एक मंत्री की उदास शक्ल देख बादशाह अकबर ने उसकी उदासी का कारण पूछा। तब मंत्री बोले कि आप सारे महत्वपूर्ण कार्य बीरबल को सौप कर उसे महत्ता देते हैं। जिस कारण हमें अपनी प्रतिभा साबित करने का मौका ही नहीं मिलता है। इस बात को सुन कर अकबर ने उस मंत्री को तीन रूपये दिये और कहा कि आप बाज़ार जा कर इन तीन रुपयों को तीन चीजों पर बराबर-बराबर खर्च करें…यानी हर एक चीज पर 1 रुपये।</p>
<p>लेकिन शर्त यह है कि-</p>
<blockquote>
<p>"पहली चीज यहाँ की होनी चाहिए। दूसरी चीज वहाँ की होनी चाहिए। और तीसरी चीज ना यहाँ की होनी चाहिए और ना वहाँ की होनी चाहिए।"</p>
</blockquote>
<p>दरबारी मंत्री अकबर से तीन रूपये ले कर बाज़ार निकल पड़ा। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वो अब क्या करे। वह एक दुकान से दुसरे दुकान चक्कर लगाने लगा लेकिन उसे ऐसा कोई नहीं मिला जो इस शर्त के मुताबिक एक-एक रूपये वाली तीन चीज़ें दे सके। वह थक हार कर वापस अकबर के पास लौट आया।</p>
<p>अब बादशाह अकबर ने यही कार्य बीरबल को दिया।</p>
<p>बीरबल एक घंटे में अकबर बादशाह की चुनौती पार लगा कर तीन वस्तुएँ ले कर लौट आया। अब बीरबल ने उन वस्तुओं का वृतांत कुछ इस प्रकार सुनाया।</p>
<p>पहला एक रुपया मैंने मिठाई पर खर्च कर दिया जो यहाँ इस दुनिया की चीज है। दूसरा रुपया मैंने एक गरीब फ़कीर को दान किया जिससे मुझे पुण्य मिला जो वहाँ यानी ज़न्नत की चीज है। और तीसरे रुपये से मैंने जुवा खेला और हार गया… इस तरह “जुवे में हारा रुपया” वो तीसरी चीज थी जो ना यहाँ मेरे काम आई न वहां ,ज़न्नत में मुझे नसीब होगी।</p>
<p>बीरबल की चतुराईपूर्ण बात सुनकर राजा के साथ-साथ दरबारी भी मुस्कुरा पड़े और सभी ने उनकी बुद्धि का लोहा मान लिया।</p>
<p> </p>
<p><span style="font-size: 20px;"><strong>सबसे बड़ा मनहूस कौन?</strong></span></p>
<p>एक बार अकबर बिस्तर पर पड़े-पड़े पानी मांगे जा रहे थे। आसपास कोई खास निजी सेवक था नहीं। सो महल का कूड़ा कचरा साफ करने वाले निम्न दर्जे के मामूली नौकर ने हिम्मत कर के बादशाह को पानी का गिलास दिया। अकबर उसे अपने कमरे में देख कर चौक गए। लेकिन प्यास इतनी लगी थी कि वे खुद को रोक नहीं पाए और पानी ले लिया।</p>
<p>तभी वहां अकबर के खास सेवक आ पहुंचे। उन्होने फौरन उस कचरा साफ करने वाले नौकर को कमरे से बाहर कर दिया। और सभी अकबर की चापलूसी करने लगे।</p>
<p>दोपहर हुई तो अकबर का पेट खराब हो गया। हकीम को बुलाया गया। पर फिर भी अकबर की हालत में सुधार नहीं हुआ। अब राज वैद्य आए, उनके साथ राज्य ज्योतिष भी थे। उन्होने कहा की शायद आप पर किसी मनहूस व्यक्ति का साया पड़ा है, इसीलिए आप की तबीयत खराब हुई है।</p>
<p>अकबर बादशाह को तुरंत उस कचरा साफ करने वाले नौकर का खयाल आया। उन्होने कहा कि आज सुबह मैंने उस कचरा साफ करने वाले के हाथ से पानी पिया था इसीलिए मेरे साथ यह सब हुआ है। उन्होने गुस्से में उस नौकर को मौत की सज़ा दे दी। थोड़ी ही देर में सिपाहीयों ने उस नौकर को कारागार में बंद कर दिया।</p>
<p>बीरबल को जब इस बात का पता लगा तो वह उस नौकर के पास गए और उसे सांत्वना देते हुए कहा कि वह उसे बचा लेंगे।</p>
<p>बीरबल तुरंत अकबर के पास गए और उनका हाल-चाल लिया। तब अकबर ने बताया कि-</p>
<blockquote>
<p>"हमारे राज्य का सब से बड़ा मनहूस मुझे बीमार कर गया।"</p>
</blockquote>
<p>यह बात सुन कर बीरबल हंस पड़े। तब अकबर को गुस्सा आया और वह बोले कि तुम्हें मेरी यह हालत देख कर मज़ा आ रहा है? तो बीरबल ने कहा कि नहीं नहीं महाराज एक बात पूछनी थी। अगर मैं उस नौकर से बड़ा मनहूस आप को ढूंढ कर दूँ तो आप क्या करेंगे? क्या आप इस नौकर को सज़ा से मुक्ति दे देंगे? अकबर ने तुरंत बीरबल की यह शर्त मान ली। और पूछा की बताओ उस नौकर से बड़ा मनहूस कौन है?</p>
<p>अब बीरबल बोले, “उस नौकर से बड़े मनहूस तो आप खुद हैं। उस नौकर के हाथ पानी पीने से आप की तबियत खराब हुई, आप बिस्तर पर आ गए। लेकिन उसका तो सोचिए, वह तो आप की प्यास बुझाने आया था। आप की खिदमद कर रहा था। सुबह सुबह आप की शक्ल देखने से उसकी तो जान पर बन आई है। उसे तो मौत की सज़ा मिल गयी। तो इस लिए उस से बड़े मनहूस तो आप हुए। अब आप खुद को मौत की सज़ा मत दीजिएगा। चूँकि हम सब आप से बहुत प्यार करते हैं।”</p>
<p>बीरबल की यह चतुराई भरी बात सुन कर, अकबर बिस्तर पर पड़े-पड़े हंसने लगे। उन्होने उसी वक्त उस गरीब नौकर को छोड़ देने के आदेश दिये। और उसे इनाम भी दिया। और मनहूसियत का अंधविश्वासी सुझाव देने वाले राज्य ज्योतिष को उसी वक्त घोड़े के तबेले में मुनीमगिरी के काम में लगा दिया गया।</p>
<p><span style="font-size: 20px;"><strong>अकबर का साला</strong></span></p>
<p>अकबर का साला हमेशा से ही बीरबल की जगह लेना चाहता था। अकबर जानते थे कि बीरबल की जगह ले सके ऐसा बुद्धिमान इस संसार में कोई नहीं है। फिर भी जोरू के भाई को वह सीधी ‘ना’ नहीं बोल सकते थे। ऐसा कर के वह अपनी लाडली बेगम की बेरुखी मोल नहीं लेना चाहते थे। इसीलिए उन्होने अपने साले साहब को एक कोयले से भरी बोरी दे दी और कहा कि-</p>
<blockquote>
<p>"जाओ और इसे हमारे राज्य के सबसे मक्कार और लालची सेठ – सेठ दमड़ीलाल को बेचकर दिखाओ , अगर तुम यह काम कर गए तो तुम्हें बीरबल की जगह वज़ीर बना दूंगा।"</p>
</blockquote>
<p>अकबर की इस अजीब शर्त को सुन कर साला अचंभे में पड़ गया। वह कोयले की बोरी ले कर चला तो गया। पर उसे पता था कि वह सेठ किसी की बातो में नहीं आने वाला ऊपर से वह उल्टा उसे ही चूना लगा देगा। हुआ भी यही सेठ दमड़ीलाल ने कोयले की बोरी के बदले एक ढेला भी देने से इनकार कर दिया।</p>
<p>साला अपना सा मुंह लेकर महल वापस लौट आया और अपनी हार स्वीकार कर ली.</p>
<p>अब अकबर ने वही काम बीरबल को करने को कहा।</p>
<p>बीरबल कुछ सोचे और फिर बोले कि सेठ दमड़ीलाल जैसे मक्कार और लालची सेठ को यह कोयले की बोरी क्या मैं सिर्फ कोयले का एक टुकड़ा ही दस हज़ार रूपये में बेच आऊंगा। यह बोल कर वह तुरंत वहाँ से रवाना हो गए।</p>
<p>सबसे पहले उसने एक दरज़ी के पास जा कर एक मखमली कुर्ता सिलवाया। हीरे-मोती वाली मालाएँ गले में डाली। महंगी जूती पहनी और कोयले को बारीक सुरमे जैसा पिसवा लिया।</p>
<p>फिर उसने पिसे कोयले को एक सुरमे की छोटी चमकदार डिब्बी में भर लिया। इसके बाद बीरबल ने अपना भेष बदल लिया और एक मेहमानघर में रुक कर इश्तिहार दे दिया कि बगदाद से बड़े शेख आए हैं। जो करिश्माई सुरमा बेचते हैं। जिसे आँखों में लगाने से मरे हुए पूर्वज दिख जाते हैं और यदि उन्होंने कहीं कोई धन गाड़ा है तो उसका पता बताते हैं। यह बात शहर में आग की तरह फ़ैली।</p>
<p>सेठ दमड़ीलाल को भी ये बात पता चली। उसने सोचा ज़रूर उसके पूर्वजों ने कहीं न कहीं धन गाड़ा होगा। उसने तुरंत शेख बने बीरबल से सम्पर्क किया और सुरमे की डिब्बी खरीदने की पेशकश की। शेख ने डिब्बी के 20 हज़ार रुपये मांगे और मोल-भाव करते-करते 10 हज़ार में बात तय हुई।</p>
<p>पर सेठ भी होशियार था, उसने कहा मैं अभी तुरंत ये सुरमा लगाऊंगा और अगर मुझे मेरे पूर्वज नहीं दिखे तो मैं पैसे वापस ले लूँगा।</p>
<p>बीरबल बोला, “बिलकुल आप ऐसा कर सकते हैं, चलिए शहर के चौराहे पर चलिए और वहां इसे जांच लीजिये।”</p>
<p>सुरमे का चमत्कार देखने के लिए भीड़ इकठ्ठा हो गयी।</p>
<p>तब बीरबल ने ऊँची आवाज़ में कहा, “ये सेठ अभी ये चमत्कारी सुरमा लगायेंगे और अगर ये उन्ही की औलाद हैं जिन्हें ये अपना माँ-बाप समझते हैं तो इन्हें इनके पूर्वज दिखाई देंगे और गड़े धन के बारे में बताएँगे। लेकिन अगर आपके माँ-बाप में से किसी ने भी बेईमानी की होगी और आप उनकी असल औलाद नहीं होंगे तो आपको कुछ भी नहीं दिखेगा।</p>
<p>और ऐसा कहते ही बीरबल ने सेठ की आँखों में सुरमा लगा दिया।</p>
<p>फिर क्या था, सिर खुजाते हुए सेठ ने आँखें खोली। अब दिखना तो कुछ था नहीं, पर सेठ करे भी तो क्या करे!</p>
<p>अपनी इज्ज़त बचाने के लिए सेठ ने दस हज़ार बीरबल के हाथ थमा दिये। और मुंह फुलाते हुए आगे बढ़ गए।</p>
<p>बीरबल फ़ौरन अकबर के पास पहुंचे और रुपये थमाते हुए सारी कहानी सुना दी।</p>
<p>अकबर का साला बिना कुछ कहे अपने घर लौट गया। और अकबर-बीरबल एक दूसरे को देख कर मंद-मंद मुसकाने लगे। इस किस्से के बाद फिर कभी अकबर के साले ने बीरबल का स्थान नहीं मांगा।</p>विक्रम बेताल की रहस्यमयी कहानियां Vikram Betal Stories in Hindi2018-07-02T20:17:18+05:302018-07-02T20:17:18+05:30https://www.sandybook.in/latestsms/hindi-stories/short-stories-in-hindi/889-%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AE-%E0%A4%AC%E0%A5%87%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%B2-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%B0%E0%A4%B9%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%AE%E0%A4%AF%E0%A5%80-%E0%A4%95%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%82-vikram-betal-stories-in-hindiSandybooksandybook.in@gmail.com<p>
<span style="color:#0000CD;"><span style="font-size:20px;"><strong>विक्रम बेताल की रहस्यमयी कहानियां Vikram Betal Stories in Hindi</strong></span></span>
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<p>
प्राचीन काल में विक्रमादित्य नाम के एक आदर्श राजा हुआ करते थे। अपने साहस, पराक्रम और शौर्य के लिए राजा विक्रम मशहूर थे। ऐसा भी कहा जाता है कि राजा विक्रम अपनी प्राजा के जीवन के दुख दर्द जानने के लिए रात्री के पहर में भेष बदल कर नगर में घूमते थे। और दुखियों का दुख भी दूर करते थे। राजा विक्रम और बेताल के किस्सों पर कई सारी किताबें और कहानियाँ प्रकाशित हुई हैं। विक्रमादित्य और बेताल के किस्सों पर छपी “बेताल पच्चीसी / Baital Pachisi” और “सिंहासन बत्तीसी / Singhasan Battisi” प्रख्यात किताबें हैं। जिन्हें आज भी अभूतपूर्व लोकप्रियता प्राप्त है।
</p>
<p>
प्राचीन साहित्य वार्ता लेख “बेताल पच्चीसी” महाकवि सोमदेव भट्ट द्वारा 2500 वर्ष पूर्व रचित किया गया था। और उसी के अनुसार, राजा विक्रम ने बेताल को पच्चीस बार पेड़ से उतार कर ले जाने की कोशिश की थी और बेताल ने हर बार रास्ते में एक नई कहानी राजा विक्रम को सुनाई थी।
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<span style="color:#0000FF;"><span style="font-size:16px;"><strong>कौन था बेताल और क्यों राजा विक्रमादित्य उसे पकड़ने गए थे?</strong></span></span>
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<p>
एक तांत्रिक बत्तीस लक्षण वाले स्वस्थ ब्राह्मण पुत्र की बली देने का तांत्रिक अनुष्ठान करता है। ताकि उसकी आसुरी शक्तियाँ और बढ़ जाए। इसी हेतु वह एक ब्राह्मण पुत्र को मारने के लिए उसके पीछे पड़ता है। परंतु वह ब्राह्मण पुत्र भाग कर जंगल में चला जाता है और वहाँ उसे एक प्रेत मिलता है, जो ब्राह्मण पुत्र को उस तांत्रिक से बचने के लिए शक्तियाँ देता है और वहीं प्रेत रूप में पेड़ पर उल्टा लटक जाने को कहता है। और यह भी कहता है कि जब तक वह उस पेड़ पर रहेगा तब तक वह तांत्रिक उसे मार नहीं पाएगा। वही ब्राह्मण पुत्र “बेताल” होता है।
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<p>
कपटी तांत्रिक एक भिक्षुक योगी का स्वांग रचता है। और राजा विक्रम के पराक्रम और शौर्य गाथाओं को सुन कर अपना काम निकलवा लेने का जाल बिछाता है। और राजा विक्रम को यात्रा के दौरान प्रति दिन एक स्वादिष्ट फल भेंट भेजता है। जिसके अंदर एक कीमती रत्न रूबी होता है। इस भेद का पता लगाने राजा विक्रम उस भिक्षुक की खोज करते हैं। अंततः राजा विक्रम उसे खोज लेते हैं।
</p>
<p>
चूँकि उस ढोंगी भिक्षुक में स्वयं बेताल को लाने की शक्ति नहीं होती इसलिए वह स्वांग रच कर राजा विक्रम से उस पेड़ पर लटक रहे प्रेत बेताल को लाने के लिए कहता है। राजा विक्रम उस तांत्रिक की असल मंशा से अनजान उसका काम करने निकल पड़ते है।
</p>
<p>
राजा विक्रम पेड़ से बेताल को हर बार उतार लेते और उस भिक्षुक के पास लेजाने लगते। रास्ता लंबा होने की वजह से हर बार बेताल कहानी सुनाने लगता और यह शर्त रखता है कि कहानी सुनने के बाद यदि राजा विक्रम ने उसके प्रश्न का सार्थक उत्तर ना दिया तो वह राजा विक्रम को मार देगा। और अगर राजा विक्रम ने जवाब देने के लिए मुंह खोला तो वह रूठ कर फिर से अपने पेड़ पर जा कर उल्टा लटक जाएगा।
</p>
<p>
दोस्तों, राष्ट्रीय चैनल दूरदर्शन पर नब्बे के दशक में “विक्रम और बेताल” नाम का एक सीरियल भी आता था, जिसे काफी सराहा गया था। आज हम इस लेख के द्वारा विक्रम और बेताल के किस्सो से जुड़ी दो रोचक कहानियाँ प्रस्तुत कर रहे हैं।
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<span style="color:#0000FF;"><span style="font-size:16px;"><strong>दगडू के स्वप्न </strong></span></span>
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<p>
घनघोर अंधेरी रात में राजा विक्रम अपनी खुली तलवार लिए बेताल को पकड़ने आगे बढ़ते हैं। और अपने पराक्रम से बेताल को वश में कर के अपने पीठ पर लाद कर ले जाने लगते है। सफर लंबा होने के कारण बेताल राजा विक्रम को कहानी सुनाता है और हमेशा की तरह शर्त रखता है कि–
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<blockquote>
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"अगर कहानी सुननें के बाद तुमने उत्तर देने के लिए मुह खोला तो में उड़ जाऊंगा।"
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</blockquote>
<p>
बेताल कहानी सुनाना शुरू करता है-
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<p>
चंदनपुर गाँव में एक वृद्ध स्त्री रहती थी। उसका एक बेटा था जिसका नाम दगड़ू था। वह स्त्री नए-पुराने कपड़े सिलने का काम कर के अपना और अपने बेटे का पेट पालती थी। दगड़ू एक कामचोर और आलसी लड़का था। और दिन रात सपने देखा करता था। दगड़ू के साथ एक बड़ी परेशानी थी कि उसे अक्सर बुरे सपने ही आते थे। और जब भी कोई बुरा सपना आता था, वह सपना हकीकत बन जाता था।
</p>
<p>
एक दिन दगड़ू को सपना आता है कि कुछ लोग नव विवाहित दम्पत्ति और बारात को लूट रहे हैं। और उनसे मारपीट भी कर रहे हैं। दगड़ू ने जिसे सपने में देखा होता है। वही दुल्हन बनने वाली लड़की अपनी शादी का लहंगा सिल जाने के बाद वापिस लेने दगड़ू की माँ के पास आती है। दगड़ू फौरन उसे सपने वाली बात कह देता है। वह लड़की अपनी माँ और ससुराल वालो को यह बात बताती है। पर सब लोग इस स्वप्न वाली बात को वहम समझ कर अनसुना कर देते हैं।
</p>
<p>
शादी के बाद जब वर-वधू बारात के साथ जा रहे होते हैं। तब सपने वाला वाकया सच में घटित हो जाता है। और इस पूरी घटना में दगड़ू पर आरोप लगते हैं कि वही लूटेरों से मिला होगा वरना उसे कैसे पता चल सकता है कि ऐसा ही होगा। और शक की बिनाह पर सारे लोग मिल कर दगड़ू की खूब पिटाई करते हैं।
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<p>
इस घटना के कुछ दिनों बाद एक रात दगड़ू को सपना आता है कि मोहल्ले मे रह रही चौधरायन का नया मकान गृहप्रवेश के दिन जल कर ख़ाक हो जाता है। तभी अगले ही दिन चौधरायन उस मकान को बनवाने की खुशी में लड्डू ले कर दगड़ू की माँ के पास पहुँचती हैं। और गृहप्रवेश समारोह के दिन जलसे में आने का न्योता देती है।
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<p>
वहीं पर सपने की बात दगड़ू फौरन अपनी माँ से और चौधरायन से कह देता है। चौधरायन गुस्से से लाल-पीली हो जाती है। और उल्टा दगड़ू की माँ को ही कहने लगती हैं कि तुम्हारा बेटा ही काली जुबान वाला है और उसके बोलने से ही सब के साथ अनर्थ हो जाता है। चौधरायन गुस्से में जली कटी सुना कर माँ बेटे को भला-बुरा कह कर वहाँ से चली जाती हैं।
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<p>
गृहप्रवेश समारोह के दौरान कोई घटना ना हो इसके लिए पक्के इंतजाम किये जाते हैं; पर फिर भी किसी ना किसी तरह आग की चिंगारी चौधरायन के भव्य मकान के परदों में लग जाती है और देखते-देखते रौद्र रूप धाराण कर के पूरा मकान जला कर खाक कर देती है। चूँकि दगडू इस बारे में पहले ही बोल चुका था इसलिए सब उसे काली जुबान का बोल उसपर टूट पड़ते हैं और उसे मारकर गाँव से निकाल देते हैं।
</p>
<p>
दगड़ू समझ नहीं पाता है कि लोगो को सच सुन कर उसी पर क्रोध क्यों आता है। खैर, दगडू एक दुसरे राज्य चला जाता है जहाँ उसे रात की पहर में महल की चौकीदारी करने का काम मिल जाता है।
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वहां के राजा को अगले दिन सोनपुर किसी काम से जाना होता है। इस लिए वह रानी को कहते है कि उसे सुबह जल्दी उठा दें।
</p>
<p>
दगड़ू रात में महल के दरवाजे पर चौकीदारी कर रहा होता है। तभी अंधेरा होने पर उसे नींद आ जाती है। और फिर उसे सपना आता है की सोनपुर में भूकंप आया है और वहां मौजूद सभी व्यक्ति मर गए हैं। दगड़ू चौंक कर जाग जाता है और अपनी चौकीदारी करने लगता है।
</p>
<p>
दगड़ू सुबह राजा के सोनपुर जाने की बात सुनता है। तभी उनका का रथ रुकवा कर अपने स्वप्न वाली बात राजा को बता देता है। राजा सोनपुर जाने का कार्यक्रम रद्द कर देते है। और अगले ही दिन समाचार आता है कि सोनपुर में अचानक भूकंप आया है और वहाँ एक भी व्यक्ति जीवित नहीं बचा है।
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<p>
राजा तुरंत दगड़ू को दरबार में बुला कर सोने का हार भेंट देते हैं और उसे नौकरी से निकाल बाहर करते हैं।
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<p>
<strong>इतनी कहानी सुना कर बेताल रुक जाता है। </strong>और राजा विक्रम को प्रश्न करता है कि बताओ राजा ने दगड़ू को पुरस्कार क्यों दिया? और पुरस्कार दिया तो उसे काम से क्यों निकाला?
</p>
<p>
राजा विक्रम उत्तर देते है की… दगड़ू ने अमंगल सवप्न देख कर उसका वृतांत बता कर राजा की जान बचाई इस लिए उसेने दगड़ू को पुरस्कार में सुवर्ण हार दिया। और दगड़ू काम के वक्त सो गया इस लिए राजा ने उसे काम से निकाल दिया।
</p>
<p>
बेताल अपनी शर्त के मुताबिक राजा विक्रम के उत्तर देने के कारण हाथ छुड़ा कर वापिस पेड़ की और उड़ गया!
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<hr alt="राजा चन्द्रसेन और नव युवक सत्वशील की कहानी" class="system-pagebreak" title="राजा चन्द्रसेन और नव युवक सत्वशील की कहानी" />
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<span style="color:#0000CD;"><span style="font-size:20px;"><strong>राजा चन्द्रसेन और नव युवक सत्वशील की कहानी</strong></span></span>
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समुद्र किनारे बसे नगर ताम्रलिपि के राजा चन्द्रसेन के पास सत्वशील नाम का युवक नौकरी मांगने आता है। पर चन्द्रसेन के सिपाही सत्वशील को उनके पास जाने नहीं देते है। सत्व्शील हमेशा इसी ताक में रहता है कि किसी तरह रजा से मिला जाए।
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<p>
एक दिन राजा की सवारी जा रही होती है। गर्मी अधिक होने के कारण राजा चन्द्रसेन को बहुत तेज प्यास लग जाती है। बहुत खोजने पर भी उन्हें पानी नहीं मिलता, ऐसा लगता है मानो प्यास से जान ही निकल जायेगी!
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<p>
तभी उन्हें मार्ग में खड़ा एक युवक दिखता है; वह कोई और नह सत्व्शील ही रहता है, जो जानबूझ कर पहले से राजा के मार्ग पर मौजूद रहता है। उसे देख राजा उससे पानी मांगते हैं। सत्वशील फ़ौरन राजा की प्यास बुझा देता है और साथ ही खाने के लिए उन्हें फल देता है। चन्द्रसेन सत्वशील से प्रसन्न हो पूछते हैं कि वह उनके लिए क्या कर सकते हैं?
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सत्वशील मौका देख अपने लिए नौकरी मांग लेता है। राजा चन्द्रसेन उसे काम दे देते हैं, और कहते हैं कि वो उसका उपकार याद रखेंगे। धीरे-धीरे सत्व्शील राजा का करीबी बन जाता है। एक दिन राजा उससे कहते है कि हमारे नगर में काफी बेरोजगारी है और पास में एक टापू काफी हारा भरा है। अगर उस टापू पर जा कर खोज की जाए तो हो सकता है हमारे नगर के लोगो के लिए वहां कोई अवसर निकल आये।
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सत्वशील तुरंत खोजबीन करने का बीड़ा उठा लेता है। और राजा चन्द्रसेन से एक नाव और कुछ सहयोगी प्राप्त कर के समंदर में टापू की और निकल पड़ता है। टापू के पास पहुँचते ही सत्वशील को एक झंडा पानी में तैरता नज़र आता है। उसे देख सत्वशील तुरंत हिम्मत कर के पड़ताल करने के लिए पानी में कूद पड़ता है।
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सत्वशील अचानक खुद को टापू की जमीन पर पाता है। जहां एक सुंदर युवती संगीत सुन रही होती वह उस टापू की राजकुमारी होती है, और उसके आस पास अन्य युवतियां भी होती है। सत्वशील उसे अपना परिचय देता है और राजकुमारी सत्वशील को भोजन करने का प्रस्ताव देती है और खाने से पहले एक पानी के छोटे तालाब में स्नान करने को कहती है।
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सत्वशील जैसे ही पानी में नहाने जाता है वह खुद कों ताम्रलिपि के महल में राजा चन्द्र सेन के पास पाता है। और इस चमत्कार को देख चन्द्रसेन भी चकित रह जाते हैं। चन्द्रसेन खुद इस रहस्यमय जगह पर जाने का फैसला कर लेते है और वहाँ जा कर उस टापू को जीत भी लेते हैं। उस टापू की राजकुमारी विजेता चन्द्रसेन को उस टापू का राजा घोषित करती हैं।
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जीत की ख़ुशी में राजा चन्द्रसेन उस राजकुमारी से सत्वशील का विवाह कराने का आदेश दे देते हैं और उस क्षेत्र की रक्षा और प्रतिनिधित्व का भार सत्वशील को सौप देते हैं। इस तरह चन्द्रसेन सत्वशील के उपकार का बदला चुकाते हैं।
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<strong>इतनी कहानी बता कर बेताल चुप हो जाता है</strong> और राजा विक्रम से प्रश्न करता है कि दोनों में से अधिक बहादुर कौन था? सत्वशील या टापू जीतने वाला राजा चन्द्रसेन। राजा
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विक्रम तुरंत उत्तर देते हैं की सत्वशील अधिक बहादुर था क्योंँकि जब टापू के पास उसने पानी में झंडा देख कर छलांग लगाई, तब वह वहाँ कि स्थिति से अंजान था। वहाँ मौत का खतरा भी हो सकता था। पर राजा चन्द्रसेन तो पूरी बात जानता था, और वह सेना की मदद से जीत हासिल कर पाया। इसलिए सत्वशील अधिक बहादुर था।
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एक बार फिर राजा विक्रम के मुंह खोलते ही बेताल उड़ गया…. और पेड़ पर जा कर उल्टा लटक गया।
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<span style="color:#0000CD;"><span style="font-size:20px;"><strong>विक्रम बेताल की रहस्यमयी कहानियां Vikram Betal Stories in Hindi</strong></span></span>
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प्राचीन काल में विक्रमादित्य नाम के एक आदर्श राजा हुआ करते थे। अपने साहस, पराक्रम और शौर्य के लिए राजा विक्रम मशहूर थे। ऐसा भी कहा जाता है कि राजा विक्रम अपनी प्राजा के जीवन के दुख दर्द जानने के लिए रात्री के पहर में भेष बदल कर नगर में घूमते थे। और दुखियों का दुख भी दूर करते थे। राजा विक्रम और बेताल के किस्सों पर कई सारी किताबें और कहानियाँ प्रकाशित हुई हैं। विक्रमादित्य और बेताल के किस्सों पर छपी “बेताल पच्चीसी / Baital Pachisi” और “सिंहासन बत्तीसी / Singhasan Battisi” प्रख्यात किताबें हैं। जिन्हें आज भी अभूतपूर्व लोकप्रियता प्राप्त है।
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प्राचीन साहित्य वार्ता लेख “बेताल पच्चीसी” महाकवि सोमदेव भट्ट द्वारा 2500 वर्ष पूर्व रचित किया गया था। और उसी के अनुसार, राजा विक्रम ने बेताल को पच्चीस बार पेड़ से उतार कर ले जाने की कोशिश की थी और बेताल ने हर बार रास्ते में एक नई कहानी राजा विक्रम को सुनाई थी।
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<span style="color:#0000FF;"><span style="font-size:16px;"><strong>कौन था बेताल और क्यों राजा विक्रमादित्य उसे पकड़ने गए थे?</strong></span></span>
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एक तांत्रिक बत्तीस लक्षण वाले स्वस्थ ब्राह्मण पुत्र की बली देने का तांत्रिक अनुष्ठान करता है। ताकि उसकी आसुरी शक्तियाँ और बढ़ जाए। इसी हेतु वह एक ब्राह्मण पुत्र को मारने के लिए उसके पीछे पड़ता है। परंतु वह ब्राह्मण पुत्र भाग कर जंगल में चला जाता है और वहाँ उसे एक प्रेत मिलता है, जो ब्राह्मण पुत्र को उस तांत्रिक से बचने के लिए शक्तियाँ देता है और वहीं प्रेत रूप में पेड़ पर उल्टा लटक जाने को कहता है। और यह भी कहता है कि जब तक वह उस पेड़ पर रहेगा तब तक वह तांत्रिक उसे मार नहीं पाएगा। वही ब्राह्मण पुत्र “बेताल” होता है।
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कपटी तांत्रिक एक भिक्षुक योगी का स्वांग रचता है। और राजा विक्रम के पराक्रम और शौर्य गाथाओं को सुन कर अपना काम निकलवा लेने का जाल बिछाता है। और राजा विक्रम को यात्रा के दौरान प्रति दिन एक स्वादिष्ट फल भेंट भेजता है। जिसके अंदर एक कीमती रत्न रूबी होता है। इस भेद का पता लगाने राजा विक्रम उस भिक्षुक की खोज करते हैं। अंततः राजा विक्रम उसे खोज लेते हैं।
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चूँकि उस ढोंगी भिक्षुक में स्वयं बेताल को लाने की शक्ति नहीं होती इसलिए वह स्वांग रच कर राजा विक्रम से उस पेड़ पर लटक रहे प्रेत बेताल को लाने के लिए कहता है। राजा विक्रम उस तांत्रिक की असल मंशा से अनजान उसका काम करने निकल पड़ते है।
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राजा विक्रम पेड़ से बेताल को हर बार उतार लेते और उस भिक्षुक के पास लेजाने लगते। रास्ता लंबा होने की वजह से हर बार बेताल कहानी सुनाने लगता और यह शर्त रखता है कि कहानी सुनने के बाद यदि राजा विक्रम ने उसके प्रश्न का सार्थक उत्तर ना दिया तो वह राजा विक्रम को मार देगा। और अगर राजा विक्रम ने जवाब देने के लिए मुंह खोला तो वह रूठ कर फिर से अपने पेड़ पर जा कर उल्टा लटक जाएगा।
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दोस्तों, राष्ट्रीय चैनल दूरदर्शन पर नब्बे के दशक में “विक्रम और बेताल” नाम का एक सीरियल भी आता था, जिसे काफी सराहा गया था। आज हम इस लेख के द्वारा विक्रम और बेताल के किस्सो से जुड़ी दो रोचक कहानियाँ प्रस्तुत कर रहे हैं।
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<span style="color:#0000FF;"><span style="font-size:16px;"><strong>दगडू के स्वप्न </strong></span></span>
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घनघोर अंधेरी रात में राजा विक्रम अपनी खुली तलवार लिए बेताल को पकड़ने आगे बढ़ते हैं। और अपने पराक्रम से बेताल को वश में कर के अपने पीठ पर लाद कर ले जाने लगते है। सफर लंबा होने के कारण बेताल राजा विक्रम को कहानी सुनाता है और हमेशा की तरह शर्त रखता है कि–
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"अगर कहानी सुननें के बाद तुमने उत्तर देने के लिए मुह खोला तो में उड़ जाऊंगा।"
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बेताल कहानी सुनाना शुरू करता है-
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चंदनपुर गाँव में एक वृद्ध स्त्री रहती थी। उसका एक बेटा था जिसका नाम दगड़ू था। वह स्त्री नए-पुराने कपड़े सिलने का काम कर के अपना और अपने बेटे का पेट पालती थी। दगड़ू एक कामचोर और आलसी लड़का था। और दिन रात सपने देखा करता था। दगड़ू के साथ एक बड़ी परेशानी थी कि उसे अक्सर बुरे सपने ही आते थे। और जब भी कोई बुरा सपना आता था, वह सपना हकीकत बन जाता था।
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एक दिन दगड़ू को सपना आता है कि कुछ लोग नव विवाहित दम्पत्ति और बारात को लूट रहे हैं। और उनसे मारपीट भी कर रहे हैं। दगड़ू ने जिसे सपने में देखा होता है। वही दुल्हन बनने वाली लड़की अपनी शादी का लहंगा सिल जाने के बाद वापिस लेने दगड़ू की माँ के पास आती है। दगड़ू फौरन उसे सपने वाली बात कह देता है। वह लड़की अपनी माँ और ससुराल वालो को यह बात बताती है। पर सब लोग इस स्वप्न वाली बात को वहम समझ कर अनसुना कर देते हैं।
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शादी के बाद जब वर-वधू बारात के साथ जा रहे होते हैं। तब सपने वाला वाकया सच में घटित हो जाता है। और इस पूरी घटना में दगड़ू पर आरोप लगते हैं कि वही लूटेरों से मिला होगा वरना उसे कैसे पता चल सकता है कि ऐसा ही होगा। और शक की बिनाह पर सारे लोग मिल कर दगड़ू की खूब पिटाई करते हैं।
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इस घटना के कुछ दिनों बाद एक रात दगड़ू को सपना आता है कि मोहल्ले मे रह रही चौधरायन का नया मकान गृहप्रवेश के दिन जल कर ख़ाक हो जाता है। तभी अगले ही दिन चौधरायन उस मकान को बनवाने की खुशी में लड्डू ले कर दगड़ू की माँ के पास पहुँचती हैं। और गृहप्रवेश समारोह के दिन जलसे में आने का न्योता देती है।
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वहीं पर सपने की बात दगड़ू फौरन अपनी माँ से और चौधरायन से कह देता है। चौधरायन गुस्से से लाल-पीली हो जाती है। और उल्टा दगड़ू की माँ को ही कहने लगती हैं कि तुम्हारा बेटा ही काली जुबान वाला है और उसके बोलने से ही सब के साथ अनर्थ हो जाता है। चौधरायन गुस्से में जली कटी सुना कर माँ बेटे को भला-बुरा कह कर वहाँ से चली जाती हैं।
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गृहप्रवेश समारोह के दौरान कोई घटना ना हो इसके लिए पक्के इंतजाम किये जाते हैं; पर फिर भी किसी ना किसी तरह आग की चिंगारी चौधरायन के भव्य मकान के परदों में लग जाती है और देखते-देखते रौद्र रूप धाराण कर के पूरा मकान जला कर खाक कर देती है। चूँकि दगडू इस बारे में पहले ही बोल चुका था इसलिए सब उसे काली जुबान का बोल उसपर टूट पड़ते हैं और उसे मारकर गाँव से निकाल देते हैं।
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दगड़ू समझ नहीं पाता है कि लोगो को सच सुन कर उसी पर क्रोध क्यों आता है। खैर, दगडू एक दुसरे राज्य चला जाता है जहाँ उसे रात की पहर में महल की चौकीदारी करने का काम मिल जाता है।
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वहां के राजा को अगले दिन सोनपुर किसी काम से जाना होता है। इस लिए वह रानी को कहते है कि उसे सुबह जल्दी उठा दें।
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दगड़ू रात में महल के दरवाजे पर चौकीदारी कर रहा होता है। तभी अंधेरा होने पर उसे नींद आ जाती है। और फिर उसे सपना आता है की सोनपुर में भूकंप आया है और वहां मौजूद सभी व्यक्ति मर गए हैं। दगड़ू चौंक कर जाग जाता है और अपनी चौकीदारी करने लगता है।
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दगड़ू सुबह राजा के सोनपुर जाने की बात सुनता है। तभी उनका का रथ रुकवा कर अपने स्वप्न वाली बात राजा को बता देता है। राजा सोनपुर जाने का कार्यक्रम रद्द कर देते है। और अगले ही दिन समाचार आता है कि सोनपुर में अचानक भूकंप आया है और वहाँ एक भी व्यक्ति जीवित नहीं बचा है।
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राजा तुरंत दगड़ू को दरबार में बुला कर सोने का हार भेंट देते हैं और उसे नौकरी से निकाल बाहर करते हैं।
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<strong>इतनी कहानी सुना कर बेताल रुक जाता है। </strong>और राजा विक्रम को प्रश्न करता है कि बताओ राजा ने दगड़ू को पुरस्कार क्यों दिया? और पुरस्कार दिया तो उसे काम से क्यों निकाला?
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राजा विक्रम उत्तर देते है की… दगड़ू ने अमंगल सवप्न देख कर उसका वृतांत बता कर राजा की जान बचाई इस लिए उसेने दगड़ू को पुरस्कार में सुवर्ण हार दिया। और दगड़ू काम के वक्त सो गया इस लिए राजा ने उसे काम से निकाल दिया।
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बेताल अपनी शर्त के मुताबिक राजा विक्रम के उत्तर देने के कारण हाथ छुड़ा कर वापिस पेड़ की और उड़ गया!
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<hr alt="राजा चन्द्रसेन और नव युवक सत्वशील की कहानी" class="system-pagebreak" title="राजा चन्द्रसेन और नव युवक सत्वशील की कहानी" />
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<span style="color:#0000CD;"><span style="font-size:20px;"><strong>राजा चन्द्रसेन और नव युवक सत्वशील की कहानी</strong></span></span>
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समुद्र किनारे बसे नगर ताम्रलिपि के राजा चन्द्रसेन के पास सत्वशील नाम का युवक नौकरी मांगने आता है। पर चन्द्रसेन के सिपाही सत्वशील को उनके पास जाने नहीं देते है। सत्व्शील हमेशा इसी ताक में रहता है कि किसी तरह रजा से मिला जाए।
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एक दिन राजा की सवारी जा रही होती है। गर्मी अधिक होने के कारण राजा चन्द्रसेन को बहुत तेज प्यास लग जाती है। बहुत खोजने पर भी उन्हें पानी नहीं मिलता, ऐसा लगता है मानो प्यास से जान ही निकल जायेगी!
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तभी उन्हें मार्ग में खड़ा एक युवक दिखता है; वह कोई और नह सत्व्शील ही रहता है, जो जानबूझ कर पहले से राजा के मार्ग पर मौजूद रहता है। उसे देख राजा उससे पानी मांगते हैं। सत्वशील फ़ौरन राजा की प्यास बुझा देता है और साथ ही खाने के लिए उन्हें फल देता है। चन्द्रसेन सत्वशील से प्रसन्न हो पूछते हैं कि वह उनके लिए क्या कर सकते हैं?
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सत्वशील मौका देख अपने लिए नौकरी मांग लेता है। राजा चन्द्रसेन उसे काम दे देते हैं, और कहते हैं कि वो उसका उपकार याद रखेंगे। धीरे-धीरे सत्व्शील राजा का करीबी बन जाता है। एक दिन राजा उससे कहते है कि हमारे नगर में काफी बेरोजगारी है और पास में एक टापू काफी हारा भरा है। अगर उस टापू पर जा कर खोज की जाए तो हो सकता है हमारे नगर के लोगो के लिए वहां कोई अवसर निकल आये।
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सत्वशील तुरंत खोजबीन करने का बीड़ा उठा लेता है। और राजा चन्द्रसेन से एक नाव और कुछ सहयोगी प्राप्त कर के समंदर में टापू की और निकल पड़ता है। टापू के पास पहुँचते ही सत्वशील को एक झंडा पानी में तैरता नज़र आता है। उसे देख सत्वशील तुरंत हिम्मत कर के पड़ताल करने के लिए पानी में कूद पड़ता है।
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सत्वशील अचानक खुद को टापू की जमीन पर पाता है। जहां एक सुंदर युवती संगीत सुन रही होती वह उस टापू की राजकुमारी होती है, और उसके आस पास अन्य युवतियां भी होती है। सत्वशील उसे अपना परिचय देता है और राजकुमारी सत्वशील को भोजन करने का प्रस्ताव देती है और खाने से पहले एक पानी के छोटे तालाब में स्नान करने को कहती है।
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सत्वशील जैसे ही पानी में नहाने जाता है वह खुद कों ताम्रलिपि के महल में राजा चन्द्र सेन के पास पाता है। और इस चमत्कार को देख चन्द्रसेन भी चकित रह जाते हैं। चन्द्रसेन खुद इस रहस्यमय जगह पर जाने का फैसला कर लेते है और वहाँ जा कर उस टापू को जीत भी लेते हैं। उस टापू की राजकुमारी विजेता चन्द्रसेन को उस टापू का राजा घोषित करती हैं।
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जीत की ख़ुशी में राजा चन्द्रसेन उस राजकुमारी से सत्वशील का विवाह कराने का आदेश दे देते हैं और उस क्षेत्र की रक्षा और प्रतिनिधित्व का भार सत्वशील को सौप देते हैं। इस तरह चन्द्रसेन सत्वशील के उपकार का बदला चुकाते हैं।
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<strong>इतनी कहानी बता कर बेताल चुप हो जाता है</strong> और राजा विक्रम से प्रश्न करता है कि दोनों में से अधिक बहादुर कौन था? सत्वशील या टापू जीतने वाला राजा चन्द्रसेन। राजा
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विक्रम तुरंत उत्तर देते हैं की सत्वशील अधिक बहादुर था क्योंँकि जब टापू के पास उसने पानी में झंडा देख कर छलांग लगाई, तब वह वहाँ कि स्थिति से अंजान था। वहाँ मौत का खतरा भी हो सकता था। पर राजा चन्द्रसेन तो पूरी बात जानता था, और वह सेना की मदद से जीत हासिल कर पाया। इसलिए सत्वशील अधिक बहादुर था।
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एक बार फिर राजा विक्रम के मुंह खोलते ही बेताल उड़ गया…. और पेड़ पर जा कर उल्टा लटक गया।
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