Article Index

एक फौजी भाई
की राजस्थान के बोर्डर
पै ड्यूटी लाग-गी ।
जाड्याँ (सर्दियों) के
दिन आ गए, फौजी नै
सोची अक परिवार तैं
मिल्ले घणे दिन हो-गे, क्यूं
ना आपणी "फैमिली" न
हाड़ै आपणै धोरै बुला ल्यूं ।
उसनै घरां आपणे बाबू धोरै
चिट्ठी लिक्खी - "बाबू,
सर्दी शुरू हो-गी सैं,
मेरी फैमिली नै भेज दे ।"
ईब भाई, बूढ़ा सोच में पड़-
ग्या अक ये "फैमिली" के
हो सै ? फिर उसनै
अंदाजा लगाया अक उसनै
जाड्याँ में फैमिली मंगाई
सै, तै "फैमिली" का मतलब
"रजाई" होवै सै ।
घर में कोई रजाई ना थी ।
बूढ़े नै
चिट्ठी गिरवा दी -
"बेटा, देख, तेरी फैमिली तै
पाछले जाड्याँ में
बाळकां नै पाड़ दी थी,
अर तन्नै बेरा सै अक मैं तै सूं
ऐं बिना फैमिली का । पर
बेटा, तू कहै तै पड़ौस के
भीम की फैमिली नै भेज दूँ,
वा सै भी नई ए ।"

We have 30 guests and no members online