Article Index


मैं छात पे खड़ा था
वा भी छात पे खड़ी थी बस नुहे मेरी उसपे नजर पड़ी थी मैं उस ओड़ मुह करके खड़ा था
वा इस ओड़ मुह करके खड़ी थी पर दोनुआ के बीच में एक गड़बड़ी थी मैं अपनी छात पे खड़ा था वा अपनी छात पे खड़ी थी
ना उसने मैं दिखा,ना मन्ने उसका मुह दिखा क्युकी मैं भी रात ने खड़ा था और वा भी रात ने खड़ी थी
मैं खड़ा खड़ा नु सोचु था
वा छात पे क्यूँ खड़ी थी
छात पे खड़ी थी तो खड़ी थी
पर छात पे रात ने क्यूँ खड़ी थी
मन्ने एक काकर उठाई,उस की ओड़ बगाई वा काकर भी जाके उसके धोरे पड़ी थी वा चांदणे में आई तो उसके मुह पे नजर पड़ी थी
ओह तेरी के होगी बड़ी गड़बड़ी थी जिसने मैं नू सोचु था के वा खड़ी थी
वा तो उसकी माँ खड़ी थी
मैं छात पे ते भाग के निचे आया गली में देखा तो ताऊ भरतु हांडता पाया
जब मेरी नजर ताऊ भरतु पे पड़ी थी तो मेरे समझ में आया के गड़बड़ी थी
वा इतनी रात ने छात पे क्यूँ खड़ी थी
वा इतनी रात ने छात पे न्यू खड़ी थी

We have 280 guests and no members online