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शकुनी कौरवों का हितेषी नहीं बल्कि उनका विरोधी था

 

महाभारत मे सबसे बड़ा प्रश्न हमारे मन  मे यही आता है कि क्या शकुनी कौरवों का हितेषी नहीं बल्कि उनका विरोधी था| शकुनी गंधार के राजा सुबाला  के पुत्र और गांधारी के भाई थे| रिश्ते में वे दुर्योधन के मामा थे| महाभारत युद्ध होने की सबसे बड़ी वजह शकुनी ही थे| शकुनी बहुत ज्ञानी और विद्वान् थे , वे गहरी सोच रखने वाले और दूर द्रष्टिकोण वाले व्यक्ति थे| महाभारत युद्ध के दौरान और उसके पहले भी शकुनी कौरवों का बहुत साथ देते थे , वे उनके बहुत बड़े हितेषी और सलाहकार होने का दिखावा करते थे, परन्तु शकुनी कौरवों का हितेषी नहीं बल्कि उनका विरोधी था, दरअसल शकुनी धृतराष्ट्र और उसके वंश का अंत चाहते थे, वे चाहते थे कौरवों का अंत हो जाये| इसलिए शकुनी पांडवो से कौरवों का युद्ध करवाया , उन्हें पहले से ही ज्ञात था कि कौरव पांडवो से हार जायेंगे|

शकुनी की धृतराष्ट्र और कौरवों से दुश्मनी की 2 बड़ी वजह थी| पहली उनकी बहन गांधारी का विवाह एक अंधे आदमी धृतराष्ट्र से होना| हस्तिनापुर के राजा ने गंधार के राजा को हराया था| जिस वजह से गांधारी को धृतराष्ट्र से विवाह करना पड़ा था| पति के अंधे होने की वजह से गांधारी भी दुनिया नहीं देखना चाहती थी और उन्होंने एक अच्छी पत्नी होने के नाते अपनी आँखों में पट्टी बांध ली| और प्रतिज्ञा ली कि वे कभी नहीं देखेंगी| शकुनी अपनी प्यारी बहन की क़ुरबानी से बहुत क्रोधित हुए, मगर वे उस समय कुछ कर ना पाए , तब उन्होंने प्रतिज्ञा ले ली की वे इस अपमान का बदला जरुर लेंगे, और तब  से शकुनी कौरवो के शत्रु बन गए|

शकुनी की दुश्मनी दूसरी वजह उनके पिता का अपमान था| दरअसल गांधारी के विवाह के पहले, उनके पिता सुबाला को किसी पंडित ने बोला था कि गांधारी की शादी के पश्चात उसके पहले पति की म्रत्यु हो जाएगी| इस बात से चिंतित राजा सुबाला ने उनकी शादी एक बकरे से करवाई, उसके बाद उस बकरे को मार दिया गया | इस तरीके से गांधारी एक विधवा थी| यह बात सिर्फ सुबाला और उनके करीबी जानते थे , इस बात को किसी को ना बताने की हिदायत सबको दी गई थी| इस घटना के कुछ समय बाद गांधारी की शादी हस्तिनापुर के राजकुमार धृतराष्ट्र से हो गई| धृतराष्ट्र और पांडव इस बात से अंजान थे, कि गांधारी एक बकरे की विधवा है|

कुछ समय पश्चात् यह बात सबके सामने आ गई , धृतराष्ट्र और पांडव को इस बात पर बहुत ठेस पहुंची और उन्हें लगा राजा सुबाला ने उनके साथ धोखा किया है, अपमान किया है| अपने अपमान का बदला लेने के लिए धृतराष्ट्र ने राजा सुबाला और उनके 100 पुत्रों को जेल में बंद कर दिया| धृतराष्ट्र उनके साथ बहुत बुरा व्यव्हार करते थे, उन्हें बहुत मारा पीटा जाता था| धृतराष्ट्र राजा सुबाला से अपने रिश्ते का भी मान नहीं रखते थे , राजा और उनके परिवार को रोज सिर्फ एक मुट्ठी चावल दिया जाता था, जिसे वे मिल बाँट के खा लेते थे| दिन बीतते गए और राजा सुबाला के पुत्रों में से एक एक की मौत भूख के कारण होती गई| तब राजा सुबाला सोचने लगे कि इस तरह वे अपने वंश का अंत नहीं होने देंगे| धृतराष्ट्र के प्रति गुस्सा के चलते सुबाला ने निर्णय लिया,कि वे सब अपने हिस्से के भोजन का त्याग करेंगे और किसी एक को देंगे जिससे उनमे से एक जीवित रहे और ताकतवर बने और उन सभी के अपमान कष्ट का बदला ले सके| शकुनी उन सभी भाइयों में छोटा था इसलिए सुबाला ने निर्णय लिया की सभी शकुनी को अपना भोजन देंगे| शकुनी अपने पिता के इस निर्णय के विरोध में थे, उनसे अपने पिता और भाइयों को इस तरह तडपना नहीं देखा जाता था,  लेकिन अपने पिता की आज्ञा के चलते उन्हें यह बात माननी पड़ी| इसी कारण शकुनी कौरवों का हितेषी नहीं बल्कि उनका विरोधी था|

समय बीतता गया और राजा सुबाला भी अब कमजोर होते गए| इस दौरान उन्होंने धृतराष्ट्र से एक आग्रह किया उन्होंने उनसे माफ़ी मांगी और अपने एक पुत्र शकुनी को माफ़ कर जेल से बाहर निकलने को कहा|ये भी कहा की शकुनी हमेशा उनके पुत्र कौरवों के साथ रहेगा और उनका हितेषी रहेगा| धृतराष्ट्र ने अपने ससुर की इस आखरी इच्छा को मान लिया और शकुनी को हस्तिनापुर ले आये| राजा सुबाला ने इस बात के साथ ही अंतिम सांस ली| जिससे शकुनी कौरवो का शत्रु बन गया, मगर मरने से पहले सुबाला ने अपने पुत्र शकुनी से कहा कि उसकी रीढ़ की हड्डी से ऐसे पांसे बनाना जो उसकी इच्छा अनुसार अंक दिखाए ( यही पांसे शकुनी ने पांडव और कौरव के बीच हुए खेल में उपयोग किया जिसमे युधिस्ठिर अपने 4 भाई और पत्नी द्रौपदी को हार जाते है और द्रौपदी का चीर हरण होता है| यही खेल महाभारत युद्ध का मुख्य कारण था|) राजा सुबाला चाहते थे ये पांसे धृतराष्ट्र और उसके वंश के अंत का कारण बने और यही हुआ , शकुनी ने इन्ही पांसे के द्वारा महाभारत युद्ध करवाया| राजा सुबाला ने शकुनी का एक पैर भी मुर्छित कर दिया ताकि उसे अपने पिता का ये वचन हमेशा याद रहे और वह अपने पिता और भाइयो का अपमान कभी ना भूले|

शकुनी अपने पिता के वचन के अनुसार 100 कौरवों के शुभचिंतक बन के रहे, परन्तु असलियत मे शकुनी कौरवों का हितेषी नहीं बल्कि उनका विरोधी था| शकुनी ने कौरवों को अपने विश्वास में ले लिया कि वे उनके सबसे बड़े हितेषी है, साथ ही शकुनी उनके मन में हमेशा से  गलत बात डालते रहे और गलत सीख देते रहे| शकुनी जानते थे कौरव पांडव को पसंद नहीं करते, जिसका उन्होंने फायेदा उठाया| इसी बात का उपयोग उन्होंने अपने कार्य को अंजाम देने के लिए किया| कुरुछेत्र में हुई महाभारत के सबसे बड़े ज़िम्मेदार शकुनी ही थे , उन्होंने दुर्योधन को पांडवो के खिलाफ भड़काया और गलत बात का बीच बोते गए| शकुनी भी महाभारत युद्ध का हिस्सा थे उनकी म्रत्यु कुंती पुत्र सहदेव के हाथों हुई थी|

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