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शिशुपाल का वध की कहानी

शिशुपाल के वध की कथा जितनी रोचक हैं, उससे भी ज्यादा रोचक हैं शिशुपाल के जन्म के समय घटित हुई घटनाएं. जब शिशुपाल का जन्म हुआ था, तब वह तीन आँखों तथा चार हाथो वाले बालक के रूप में जन्मा था,तो उसके माता – पिता उसे बाहर ले जाने हेतु बहुत चिंतित हुए कि इस बालक को संसार के सामने किस प्रकार प्रस्तुत करेंगे,साथ ही कही ये कोई असुरी शक्ति तो नहीं, इस प्रकार के विचार करके उन्होंने इस बालक को त्याग देने का निर्णय लिया.. तभी एक आकाशवाणी हुई कि“ वे ऐसा न करे, जब उचित समय आएगा तो इस बालक के  अतिरिक्त आँख एवं हाथ अपने आप ही अद्रश्य हो जाएँगे, अर्थात जब विधि के विधान द्वारा निश्चित व्यक्ति  इसे अपनी गोद में बैठाएगा, तो ये अतिरिक्त अंग गायब हो जाएँगे और वही व्यक्ति इसकी मृत्यु का कारण भी बनेगा अर्थात् इसका वध भी करेगा. ” शिशुपाल के माता – पिता इस आकाशवाणी को सुनकर आशस्वत हुए कि उनका पुत्र असुर नहीं हैं, परन्तु दूसरी ओर उन्हें ये चिंता भी होने लगी कि उनके पुत्र का वध हो जाएगा और वह मृत्यु को प्राप्त होगा.

शिशुपाल के जन्म से जुड़ी रोचक कथा (Shishupal birth story)–

शिशुपाल के संबंध में ‘विष्णु पुराण’  में एक कथा बताई गयी हैं, जिसके अनुसार भगवान श्रीहरि विष्णु के दो द्वारपाल थे -: जय और विजय. इन्हें ब्रह्माजी के मानस पुत्रों ने जय और विजय को श्राप दिया था क्योकिं वे उन्हें भगवान विष्णु से मिलने से रोक रहे थे. उस समय प्रभु के विश्राम का समय था, इसलिए जय विजय उन्हें द्वार पर ही रोक लेते है. इस बात पर ब्रह्माजी के मानस पुत्रों को क्रोध आ जाता है और क्रोधित होकर वे जय और विजय को श्राप दे देते है. जिस कारण उन्होंने श्राप – वश धरती पर जन्म लिया. इन दोनों द्वारपालों को श्राप मिला था कि इन्हें ३ बार धरती पर जन्म लेना होगा और भगवान विष्णु के द्वारा इन्हें मृत्यु प्राप्त होगी और अंत में ये पुनः वैकुण्ठ धाम को प्राप्त कर पाएँगे. तब एक द्वारपाल जय ने हिरान्यकश्यप के रूप में जन्म लिया, जिसका वध श्री हरि विष्णु द्वारा अपने नरसिंह अवतार में किया गया, फिर रावण के रूप में जन्म लिया, जिसका वध भगवान विष्णु द्वारा अपने राम अवतार में और अंत में शिशुपाल के रूप में जन्म लिया और इनका वध श्री हरि विष्णु ने कृष्ण अवतार लेकर किया .

शिशुपाल का श्राप मुक्त होना –

एक बार जब भगवान श्री कृष्ण अपने पिता वासुदेव जी की बहन अर्थात् अपनी बुआ के घर गये और उन्होंने उनके पुत्र शिशुपाल  को स्नेह–वश  अपनी गोद में बैठाया , तभी शिशुपाल के अतिरिक्त अंग अर्थात एक आंख और दो हाथ गायब हो गये. उस समय शिशुपाल के माता – पिता को उस आकाशवाणी का स्मरण हुआ, जिसके अनुसार “ विधि के विधान द्वारा निश्चित व्यक्ति जब इस बालक को अपनी गोद में बैठाएगा, तो ये अतिरिक्त अंग गायब हो जाएँगे और वही व्यक्ति इसकी मृत्यु का कारण भी बनेगा अर्थात् इसका वध भी करेगा.” तब इस बात से व्यथित होकर भगवान श्री कृष्ण की बुआ ने उनसे वचन लिया कि वे शिशुपाल का वध नहीं करेंगे. चूँकि ये शिशुपाल–वध तो  विधान द्वारा पूर्व निश्चित था, अतः ऐसा करने से प्रभु इंकार तो नहीं कर सकते थे, परन्तु वे अपनी बुआ को भी दुखी नहीं करना चाहते थे, अतः उन्होंने वचन दिया कि वे शिशुपाल की  सौ गलतियाँ क्षमा कर देंगे, परन्तु 101वीं भूल पर वे उसे अवश्य दण्डित करेंगे. तब शिशुपाल की माता को कृष्ण ने ये वचन भी दिया कि यदि शिशुपाल का वध करना भी पड़ा तो वध के पश्चात् शिशुपाल को इस जीवन – मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाएगी और वो वैकुण्ठ धाम को प्राप्त करेगा. तब भगवान श्री कृष्ण अपनी बुआ के ममत्व को देख कर भाव–व्हिहल हो उठे और उन्होंने ये वचन भी अपनी बुआ को दिया.

श्रीकृष्ण रुकमनी विवाह (Shri krishna rukmini vivah) –

काल – चक्र चलता रहा और महाभारत काल में जब कुरु कुल में कौरवों और पांडवों के बीच महाराज पांडू के ज्येष्ठ पुत्र युधिष्ठिर को युवराज घोषित करने का निर्णय लिया गया, तो इस शुभ प्रसंग के लिए राजसूय यज्ञ आयोजित करने का निर्णय लिया गया. इस हेतु सभी संबंधियों, रिश्तेदारों सहित अनेक राजाओ एवम् अन्य प्रतिष्ठित महानुभावो को आमंत्रित किया गया, तब वासुदेव श्री कृष्ण को भी आमंत्रित किया गया क्योकिं महारानी कुंती उनकी बुआ थी तथा शिशुपाल भी इस यज्ञ में शामिल हुआ, क्योकिं वह कौरवो एवं पांड्वो का भी भाई था. इस समय एक बार फिर भगवान श्री कृष्ण और शिशुपाल का आमना – सामना हुआ.

शिशुपाल, भगवान श्री कृष्ण से क्रोधित था, जिसका कारण था -: भगवान श्री कृष्ण का राजकुमारी रुक्मणी के साथ विवाह करना.

भगवान श्री कृष्ण ने राजकुमारी रुक्मणी से विवाह किया था. परन्तु राजकुमारी रुक्मणी का विवाह उनके भाई राजकुमार रुक्मी ने अपने परम मित्र शिशुपाल के साथ करना निश्चित किया था. विवाह के सारे आयोजन हो चुके थे, परन्तु राजकुमारी रुक्मणी भगवान श्री कृष्ण से प्रेम करती थी और उन्ही से विवाह करना चाहती थी और राजकुमार रुक्मी ऐसा नहीं होने देना चाहते थे . तब भगवान श्री कृष्ण राजकुमारी रुक्मणी को महल से भगाकर ले गये और उनसे विवाह कर लिया. तब शिशुपाल ने इसे भगवान श्री कृष्ण द्वारा किया गया अपना अपमान समझा और भगवान श्री कृष्ण को अपना भाई न समझ कर शत्रु मान बैठा.

शिशुपाल का वध (Shishupal vadh)-

महाभारत काल में राजकुमार युधिष्ठिर के युवराज्याभिशेक के समय, युवराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण को सर्वप्रथम भेंट आदि प्रदान की और सम्मानित किया, तब शिशुपाल से भगवान श्री कृष्ण का सम्मान देखा न गया और क्रोध से भरा बैठा शिशुपाल बोल उठा कि“ एक मामूली ग्वाले को इतना सम्मान क्यों दिया जा रहा हैं जबकि यहाँ अन्य सम्मानीय जन उपस्थित हैं” और शिशुपाल ने भगवान श्री कृष्ण को अपमानित करना प्रारंभ कर दिया. शिशुपाल भगवान श्री कृष्ण को अपशब्द कहे जा रहा था, उनका अपमान किये जा रहा था, परन्तु भगवान श्री कृष्ण उनकी बुआ एवं शिशुपाल की माता को दिए वचन के कारण बंधे थे, अतः वे अपमान सह रहे थे और जैसे ही शिशुपाल ने सौ अपशब्द पूर्ण किये और 101वां अपशब्द कहा, भगवान श्री कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र का आव्हान किया और इससे शिशुपाल  का वध कर दिया. इस प्रकार भगवान श्री कृष्ण ने शिशुपाल का वध किया.

शिक्षा (Moral )–

इस कथा में भगवान श्री कृष्ण की सहनशीलता, क्षमा करने की शक्ति और बड़ो की बात को आदरपूर्वक पूर्ण करने की शिक्षा मिलती हैं.

 

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