नीमड़ी माता की कहानी बड़ी तीज पर
पंद्रह दिन के अंतराल से तीन बार तीज के त्यौहार और व्रत मनाने का अवसर आता है। जिसमे सावनी तीज , सातुड़ी तीज व हरतालिका
तीज धूमधाम से मनाई जाती है। सातुड़ी तीज को कजली तीज और बड़ी तीज भी कहते है।
इस दिन सातुड़ी तीज की पूजा करते है तथा सातुड़ी तीज की कहानी तथा नीमड़ी माता की कहानी सुनी जाती है। इससे व्रत का सम्पूर्ण फल
प्राप्त होता है। यहाँ नीमड़ी माता की कहानी बताई गई है। सुने , सुनाएँ और व्रत पूरा करें।
एक शहर में एक सेठ- सेठानी रहते थे । वह बहुत धनवान थे लेकिन उनके पुत्र नहीं था। सेठानी ने भादुड़ी बड़ी तीज ( सातुड़ी तीज ) का व्रत
करके कहा कि ” हे नीमड़ी माता मेरे बेटा हो जायेगा , तो मै आपको सवा मण का सातु चढ़ाऊगी “। माता की कृपा से सेठानी को नवें महीने
लड़का हो गया। सेठानी ने सातु नहीं चढ़ाया। समय के साथ सेठानी को सात बेटे हो गए लेकिन सेठानी सातु चढ़ाना भूल गयी।
पहले बेटे का विवाह हो गया। सुहागरात के दिन सोया तो आधी रात को साँप ने आकर डस लिया और उसकी मृत्यु हो गयी। इसी तरह उसके
छः बेटो की विवाह उपरान्त मृत्यु हो गयी। सातवें बेटे की सगाई आने लगी सेठ-सेठानी मना करने लगे तो गाँव वालो के बहुत कहने व समझाने
पर सेठ-सेठानी बेटे की शादी के लिए तैयार हो गए। तब सेठानी ने कहा गाँव वाले नहीं मानते हैं तो इसकी सगाई दूर देश में करना।
सेठ जी सगाई करने के लिए घर से चले ओर बहुत दूर एक गाँव आये। वहाँ चार-पांच लड़कियाँ खेल रही थी जो मिटटी का घर बनाकर तोड़
रही थी। उनमे से एक लड़की ने कहा में अपना घर नहीं तोडूंगी। सेठ जी को वह लड़की समझदार लगी। खेलकर जब लड़की वापस अपने घर
जाने लगी तो सेठ जी भी पीछे -पीछे उसके घर चले गए। सेठजी ने लड़की के माता पिता से बात करके अपने लड़के की सगाई व विवाह की
बात पक्की कर दी।
घर आकर विवाह की तैयारी करके बेटे की बारात लेकर गया और बेटे की शादी सम्पन्न करवा दी। इस तरह सातवे बेटे की शादी हो गयी।
बारात विदा हुई लंबा सफर होने के कारण लड़की की माँ ने लड़की से कहा कि मै यह सातु व सीख डाल रही हूं। रास्ते में कहीं पर शाम को
नीमड़ी माता की पूजा करना, नीमड़ी माता की कहानी सुनना , सातु पास लेना व कलपना निकल कर सासु जी को दे देना।
बारात धूमधाम से निकली। रास्ते में बड़ी तीज का दिन आया ससुर जी ने बहु को खाने का कहा। बहु बोली आज मेरे तीज का उपवास है ,शाम
को नीमड़ी माता का पूजन करके नीमड़ी माता की कहानी सुनकर ही भोजन करुँगी। एक कुएं के पास नीमड़ी नजर आई तो सेठ जी ने गाड़ी
रोक दी। बहु नीमड़ी माता की पूजा करने लगी तो नीमड़ी माता पीछे हट गयी। बहु ने पूछा ” हे माता आप पीछे क्यों हट रही हो “। इस पर
माता ने कहा तेरी सास ने कहा था पहला पुत्र होने पर सातु चढ़ाऊंगी और सात बेटे होने के बाद , उनकी शादी हो जाने के बाद भी अभी तक
सातु नहीं चढ़ाया। वो भूल चुकी है।
बहु बोली हमारे परिवार की भूल को क्षमा कीजिये , सातु मैं चढ़ाऊंगी। कृपया मेरे सारे जेठ को वापस कर दो और मुझे पूजन करने दो। माता
नववधू की भक्ति व श्रद्धा देखकर प्रसन्न हो गई। बहु ने नीमड़ी माता का पूजन किया ,और चाँद को अर्ध्य दिया ,सातु पास लिया और कलपना
ससुर जी को दे दिया। प्रातः होने पर बारात अपने नगर लौट आई।
जैसे ही बहु से ससुराल में प्रवेश किया उसके छहों जेठ प्रकट हो गए। सभी बड़े खुश हुए उन सभी को गाजे बाजे से घर में लिया। सासु बहु के
पैर पकड़ का धन्यवाद करने लगी तो बहु बोली सासु जी आप ये क्या करते हो , जो बोलवा करी है उसे याद कीजिये । सासु बोली ” मुझे तो याद
नहीं तू ही बता दे ” बहु बोली आपने नीमड़ी माता के सातु चढाने का बोला था सो पूरा नहीं किया। तब सासू को याद आई।
बारह महीने बाद जब कजली तीज आई , सभी ने मिल कर कर सवा सात मण का सातु तीज माता को चढ़ाया। श्रद्धा और भक्ति भाव से गाजे
बाजे के साथ नीमड़ी माँ की पूजा की। बोलवा पूरी करी।
हे भगवान उनके आनंद हुआ वैसा सबके होवे। खोटी की खरी , अधूरी की पूरी।
बोलो नीमड़ी माता की जय !!!
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