Laxmi Ji Ki Kahani | लक्ष्मी जी की कहानी दीपावली पर 

एक साहूकार की एक बेटी थी। वह रोजाना पीपल के पेड़ में पानी डालने जाती थी। पीपल के पेड़ पर लक्ष्मी जी का वास था। एक दिन लक्ष्मी

जी ने प्रकट होकर उससे कहा तू मेरी सहेली बन जा। वह लड़की माता पिता की आज्ञाकारी थी। उसने कहा यदि मेरे मेरे माता पिता आज्ञा दे

देंगे तो मै आपकी सहेली बन जाउंगी। उसके माता पिता ने उसे आज्ञा दे दी। दोनों सहेली बन गई।
 

एक दिन लक्ष्मी जी ने उसे खाना खाने के लिए निमंत्रण दिया। माता पिता की आज्ञा लेकर वह लक्ष्मी जी के यहाँ जीमने चली गई। लक्ष्मी जी ने

उसे शाल दुशाला भेंट किया , रूपये दिए। उसे सोने से बनी चौकी पर बैठाया। सोने की थाली , कटोरी में छत्तीस प्रकार के व्यंजन परोस कर

खाना खिलाया। जब वह अपने घर के लिए रवाना होने लगी तो लक्ष्मी जी ने कहा मैं भी तुम्हारे यहाँ जीमने आऊँगी। उसने कहा ठीक है ,

जरूर आना।

 

घर आने के बाद वह उदास होकर कुछ सोच में पड़ गई । पिता ने पूछा सहेली के यहाँ जीम कर आई तो उदास क्यों हो। उसने अपने पिता

को कहा लक्ष्मीजी ने उसे बहुत कुछ दिया अब वो हमारे यहाँ आएगी तो मैं उसे कैसे जिमाउंगी ,अपने घर में तो कुछ भी नहीं है।
पिता ने कहा तू चिंता मत कर। बस तुम घर की साफ सफाई अच्छे से करके लक्ष्मी  जी के सामने एक चौमुखा दिया जला कर रख देना। सब

ठीक होगा।

 

वह दिया लेकर बैठी थी। एक चील रानी का नौलखा हार पंजे में दबाकर उड़ती हुई जा रही थी। उसके पंजे से वह हार छूटकर लड़की के पास

आकर गिरा। लड़की हार को देखने लगी। उसने अपने पिता को वह हार दिखाया। बाहर शोर हो रहा था की एक चील रानी का नौलखा हार

उड़ा ले गई है। किसी को मिले तो लौटा दे। एक बार तो दोनों के मन विचार आया की इसे बेचकर लक्ष्मी जी के स्वागत का प्रबंध हो सकता है।

लेकिन अच्छे संस्कारों की वजह से पिता ने लड़की को कहा यह हार हम रानी को लौटा देंगे। लक्ष्मी जी के स्वागत के लिए धन तो नहीं पर हम

पूरा मान सम्मान देंगे।

 

उन्होंने हार राजा को दिया तो राजा ने खुश होकर कहा जो चाहो मांग लो। साहूकार ने  राजा से कहा की बेटी की सहेली के स्वागत के लिए

शाल दुशाला , सोने की चौकी , सोने की थाली कटोरी और छत्तीस प्रकार के व्यंजन की व्यवस्था करवा दीजिये। राजा ने तुरंत ऐसी व्यवस्था

करवा दी। लड़की ने गणेश और लक्ष्मी जी दोनों को बुलाया। लक्ष्मी जी को सोने की चौकी पर बैठने को कहा। लक्ष्मी जी ने कहा की मैं तो
किसी राजा महाराजा की चौकी पर भी नहीं बैठती। लड़की ने कहा मुझे सहेली बनाया है तो मेरे यहाँ तो बैठना पड़ेगा।

 

गणेश और लक्ष्मी जी दोनों चौकी पर बैठ गए। लड़की ने बहुत आदर सत्कार के साथ और प्रेम पूर्वक भोजन करवाया। लक्ष्मी जी बड़ी प्रसन्न

हुई। लक्ष्मी जी ने जब विदा मांगी तो लड़की ने कहा अभी रुको मैं लौट कर आऊं तब जाना ,और चली गई। लक्ष्मी जी चौकी पर बैठी इंतजार

करती रही। लक्ष्मी जी के वहाँ होने से घर में धन धान्य का भंडार भर गया। इस प्रकार साहूकार और उसकी बेटी बहुत धनवान हो गए।

 

हे लक्ष्मी माँ।  जिस प्रकार आपने साहूकार की बेटी का आतिथ्य स्वीकार करके भोजन किया और उसे धनवान बनाया। उसी प्रकार हमारा भी

आमंत्रण स्वीकार करके हमारे घर पधारें और हमें धन धान्य से परिपूर्ण करें।

 

जय लक्ष्मी माँ , तेरी कृपा हो , तेरी जय हो।

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