आक्रमण और उसका प्रभाव भारत पर हूणों का - Huna Invasions Explained

हुण या हूण। यह हुण शब्द पंजाबी, राजस्थानी और मालवी में एक जैसे अर्थों में मिलेगा जिसका अर्थ इस तरह प्रतीत होता है...राजस्थान व मालवी में लोग हुण कां जईरिया या पंजाबी में कुड़ियां हुण मुंडियां दे बराबर नहीं, अग्गे हन्न। हूणों ने पंजाब, राजस्थान और मालव पर राज किया था।
इतिहासकार मानते हैं कि हूण और मंगोल एक ही स्थान पर रहते थे। जिस तरह हूणों ने भारत में आक्रमण कर यहां की धन-संपत्ति को लूटा, उसी तरह मंगोलों ने भी किया। कुछ विद्वान मानते हैं कि मंगोल ही हिन्दूकुश के आसपास मंघोल हुए और बाद में वे मुगल कहलाने लगे। बौद्ध धर्म का अनुयायी चंगेज खां एक मंगोल था। उसने मध्य एशिया में मुस्लिम साम्राज्य को लगभग नष्ट ही कर दिया था। बाद में उसके कबीले के लोगों ने इस्लाम अपना लिया था। 
 
ज्यादातर इतिहासकार मानते हैं कि हूण मध्य एशिया की एक खानाबदोश जाति थी, जो अपने बर्बर कृत्यों के लिए प्रसिद्ध थी। लेकिन हमारे इतिहासकार विदेशी इतिहासकारों का अनुसरण करके ही इतिहास लिखते हैं। इतिहास को कई तरीके से जानना जरूरी है। हालांकि हम यह पक्के तौर पर नहीं कह सकते हैं कि हूण कौन थे। आप खुद पढ़ें

 

हूण कौन थे?

हूण मूलतः मध्य एशिया की एक जंगली और बर्बर जाति थे. जनसंख्या बढ़ जाने के कारण और कुछ अन्य कारणों से उनको मध्य एशिया छोड़कर भागना पड़ा. ये लोग दो  भागों में बंट गए. इनका एक दल वोल्गा नदी की ओर गया और दूसरा वक्षनद (आक्सस) की घाटी की ओर बढ़ा. जो दल वक्षनद की घाटी की ओर आया था, वह धीरे धीरे फारस में घुस गया. वहां से वे लोग अफगानिस्तान में आये और उन्होंने गांधार पर कब्ज़ा कर लिया. इसके बाद उन्होंने भारत के उत्तर-पश्चिम में स्थित शक और कुषाण राज्यों को नष्ट कर दिया. तत्पश्चात् इन लोगों ने भारत में प्रवेश किया. थोड़े ही समय में इन लोगों ने भारत के उत्तर-पश्चिम में अपना अधिकार कर लिया.

हूण एक जाति समूह था जिनका कोई धर्म नहीं था। ये बौद्धों के संपर्क में आए तो बौद्ध हो गए और हिन्दुओं के संपर्क में आए तो हिन्दू हो गए। जाट शब्द से ही जात और फिर जा‍ति बना। गुर्जर, जाट, प्रतिहार, परमार, भोज आदि यौद्धाओं ने पश्‍चिम भारत में विदेशी आंक्राताओं से लड़ाई की और भारत को कई सदियों तक विदेशी अंक्राताओं से सुरक्षित रखा। लेकिन सवाल उठता है क्या हूण विदेशी थे या यह भारतीय गुर्जरों की ही एक उपजाति का नाम था?
 
भारतीय इतिहासकार मानते हैं कि कॉकेशस से हूणों ने मध्य और दक्षिण एशिया के अन्य देशों में फैलना शुरू किया। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि हूण बंजारा जाति के लोग थे जिनका मूल वोल्गा (रुस की एक नदी) के पूर्व में था। वे 370 ईस्वी में यूरोप में पहुंचे थे। हूणों ने दक्षिण-पूर्वी यूरोप और उत्तर-पश्चिम एशिया में अपना साम्राज्य स्थापित किया था। 'अटिला' नामक हूण ने अपना साम्राज्य चौथी-पांचवीं शताब्दी के दौरान यूरोप में स्थापित किया था। मध्य एशिया में यह 6ठी-7वीं शताब्दी में बस गए। 100 ईसा पूर्व से 500 ईसा पूर्व तक हूणों का आतंक रहा।
 
सम्राट अशोक के 500 वर्ष बाद मगध की गद्दी पर समुद्रगुप्त बैठा। अशोक की तरह समुद्रगुप्त की राजधानी भी पाटलीपुत्र थी। सन् 335 में समुद्रगुप्त राजा बना और देखते ही देखते उसकी ख्याति विश्‍व में फैल गई।
 
समुद्रगुप्त के बाद गुप्त वंश में चंद्रगुप्त विक्रमादित्य, कुमारगुप्त और स्कंदगुप्त नाम के राजा हुए और उनके शासनकाल में मध्य एशिया के हूण नाम के कबीले ने कई बार हमला किया। गुप्तकाल में यह हूण चीन के हान संप्रदाय के थे। सन् 550 ईस्वी के आसपास गुप्त वंश का शासन समाप्त हो गया। तब हूणों में एक नया राजा पैदा हुए जिसने दुनिया को आतंकित कर दिया था।
 
इतिहासकार मानते हैं कि 5वीं शताब्दी के मध्यकाल में गुप्तकाल के दौरान हूणों के राजा तोरमाण ने मालवा (मध्यप्रदेश का एक हिस्सा) की विजय करने के बाद भारत में स्थायी निवास बना लिया था। उसके पु‍त्र मिहिरकुल या मिहिरगुल ने पंजाब पर आक्रमण कर उसे अपने अधीन कर लिया था।
 
माना जाता है कि मिहिरकुल ने बहुत समय तक शासन किया और भारत के अन्य राज्यों में लुटपाट की। उत्तरप्रदेश में हूणों ने मंदिरों में रखे खजाने को लुटा। उन्होंने कुछ हिन्दू मंदिरों को भी तोड़ा। उन्होंने मथुरा और तक्षशिला में बहुत रक्तपात किया, लेकिन यह कितना सच है?
 
हालांकि ये हूण कहां के मूल निवासी थे इसका जवाब आज भी इतिहासकार ढूंढते हैं या कि उन्हें मालूम तो हैं, लेकिन वे कहना या लिखना नहीं चाहते, क्योंकि अंग्रेज जो लिख गए हैं वही उनके लिए पत्थर की लकीर के समान है। अंग्रेजों और वामपंथियों ने यह लिखा की हूणों ने स्तूपों और मंदिरों को तोड़ा। हूण न तो हिन्दू थे और न बौद्ध।
 
सवाल यह है कि मंदिर और स्तूपों को तोड़े बगैर भी उसमें रखा धन मिल रहा है, तो फिर तोड़ने में नाहक मेहनत क्यों करना? कुछ इतिहासकारों का तर्क है कि हूणों का कोई धर्म नहीं था, तो उनके लिए मंदिर को तोड़ना उनका मकसद कैसे हो सकता है? ईरानी, तुर्क और अरब आक्रांताओं ने मंदिर और स्तूपों को इसलिए तोड़ा क्योंकि उनको इसके स्थान पर अपना धर्म स्थापित करना था। हालांकि इस तर्क को खारिज किया जा सकता है। खैर...
 
इतिहास में 422 ईस्वी में हैतालों या हूणों पर बहराम गोर की चढ़ाई भी बहुत प्रसिद्ध है। हूण उस समय वंक्षु नद (ऑक्सस नदी) के किनारे आकर बसे थे और पारस की पूर्वोत्तर सीमा पर लूटपाट किया करते थे। बहराम गोर ने सन् 425 ईस्वी में उन्हें हराकर वंक्षु नद के पार भगा दिया और कुछ दिनों के लिए पारस (ईरान) को हूणों के आक्रमण से मुक्त कर दिया। बहराम के कारण रोमनों को सुरक्षा महसूस हुई, क्योंकि हूणों ने रोमनों की नाक में भी दम कर रखा था। हूणों ने रोम पर भी आक्रमण कर उनका साम्राज्य तहस-नहस कर दिया था।
 
सन् 438 या 439 ईस्वी में बहराम गोर की मृत्यु हुई और उसका बेटा यज्दगर्द द्वितीय सिहांसन पर बैठा। कहते हैं कि यह बड़ा ही क्रूर और कठोर दिल का था। उसे खुरासान (अफगानिस्तान का एक क्षेत्र) में जाकर हूणों से लड़ना पड़ा था।
 
455 ईस्वी में स्कंदगुप्त ने युद्ध कर हूणों को भारत में घुसने नहीं दिया था, लेकिन बाद के आक्रमण में 500 ईस्वी के लगभग हूणों के नेता तोरमाण ने मालवा पर कब्जा कर वहां का राजा बन गया। उसके पुत्र ने पंजाब में सियालकोट को अपनी राजधानी बनाकर चारों ओर बड़ा आतंक फैलाया था। जैन ग्रंथ कुवयमाल के अनुसार तोरमाण चंद्रभागा नदी के किनारे स्थित पवैय्या नगरी से भारत पर शासन करता था। इतिहासकारों के अनुसार पवैय्या नगरी ग्वालियर के पास स्थित थी।       

एक तथ्य यह भी : गुर्जर इतिहास के जानकारों अनुसार हूण गुर्जर लोगों का एक वंश था जिनका मूल स्थान वोल्गा के पूर्व में था। उन्होंने 370 ईस्वी में यूरोप में विशाल साम्राज्य खड़ा किया था। कहते हैं कि हूणों कि दक्षिणी शाखा को हारा-हूण कहते थे। संभवत हारा-हूण से ही हारा/हाडा गोत्र कि उत्पत्ति हुई। हाडा लोगों के आधिपत्य के कारण ही राजस्थान का कोटा-बूंदी इलाका हाडौती कहलाता हैं। हाडौती संभाग में आज भी हूण गोत्र के गुर्जरों के अनेक गांव हैं। प्रसिद्ध इतिहासकार वीए स्मिथ, विलियम क्रुक आदि ने गुर्जरों को श्वेत हूण माना है। इतिहासकार कैम्पबेल और डीआर भंडारकर गुर्जरों की उत्त्पत्ति श्वेत हूणों की खज़र शाखा से मानते हैं।

 

भारत में एक शब्द प्रचलित है 'हुंडी'।

सेठ-साहुकारों के पास प्राचीनकाल में हुंडी पत्र होता था। हुंडी एक लिखित विपत्र है जिस पर लिखने वाले के हस्ताक्षर होते हैं और उसमें किसी व्यक्ति को बिना-शर्त आदेश दिया हुआ होता है कि इस विपत्र के धारक को या उसमें अंकित व्यक्ति को उसमें अंकित धनराशि दे दी जाए। आजकल तो चेक होता है। हुंडी में केवल दो पक्षकार होते थे। चेक में अब बैंक भी शामिल हो गया। यह 'हुंडी' शब्द कैसे प्रचलन में आया?
 
धर्मिक इतिहासकार श्रीबालमुकुंद चतुर्वेदीजी के अनुसार श्रीकृष्ण के काल में उत्तर भारत में एक प्रभावशाली धनेश्वर हुंडिय की बड़ी प्रसिद्धि थी। इसी के नाम पर लेन-देन के अभिलेख का प्रयोग होने लगा जिसे 'हुंडी' कहा जाने लगा। इसका स्वर्ण सिक्का हुन्न कहलाता था। हूण इसी हुंडिय शाखा के लोग थे, जो चीन के हुन्नान में बसे थे। आजकल चीन में इस जाति के लोगों को हयान या हान कहा जाता है।
 
दरअसल, हुंडिया एक यक्ष था। उस काल में यक्षों का मूल स्थान तिब्बत और मंगोल के बीच का स्थान था। कुबेर वहीं का राजा था। माना जाता है कि यह हुंडिय जैन धर्म का पालन करता था। कई ऐसे यक्ष थे, जो चमत्कारिक थे। उस काल में यक्षों-यक्षिणिनियों की लोकपूजा भी होती थी। यह वेद विरुद्धकर्म था। अब यह तय कर पाना मुश्किल है कि हूण कौन थे लेकिन गुर्जरों के इतिहास अनुसार वे भारतीय ही थे और उन्होंने मध्य एशिया से होते हुए योरप में अपना परचम लहराया था और वे बाद में चीन में बस गए थे। फिर उनके ही कुछ वंशज लौटकर आए और वे यहां आकर बस गए। मूल रूप से वे शैव धर्म के अनुयायी थे और उन्होंने राजस्थान, मालवा और पंजाब में कई शिव मंदिरों का निर्माण किया है। उन्हीं ने नारा दिया था- हर हर महादेव।

 

भारत पर आक्रमण
उत्तर-पश्चिम भारत में हूणों द्वारा तबाही और लूट के अनेक उल्लेख मिलते हैं। गुप्त काल में हूणों ने पंजाब तथा मालवा पर अधिकार कर लिया था। तक्षशिला को भी क्षति पहुँचायी। भारत में आक्रमण हूणों के नेता तोरमाण और उसके पुत्र मिहिरकुल के नेतृत्व में हुआ। मथुरा, उत्तर प्रदेश में हूणों ने मन्दिरों, बुद्ध और जैन स्तूपो को क्षति पहुँचायी और लूटमार की। मथुरा में हूणों के अनेक सिक्के भी प्राप्त हुए हैं।

हूणों ने पांचवीं शताब्दी के मध्य में भारत पर पहला आक्रमण किया था। 455 ई. में स्कंदगुप्त ने उन्हें पीछे धकेल दिया था, परंतु बाद के आक्रमण में 500 ई. के लगभग हूणों का नेता तोरमाण मालवा का स्वतंत्र शासक बन गया। उसके पुत्र ने पंजाब में सियालकोट को अपनी राजधानी बनाकर चारों ओर बड़ा आतंक फैलाया। अंत में मालवा के राजा यशोवर्मन और बालादित्य ने मिलकर 528 ई. में उसे पराजित कर दिया। लेकिन इस पराजय के बाद भी हूण वापस मध्य एशिया नहीं गए। वे भारत में ही बस गए और उन्होंने हिन्दू धर्म स्वीकार कर लिया।

 

हूणों के आक्रमणों का प्रभाव

यद्यपि हूणों का अधिकार भारत में एक छोटे से भाग पर तथा थोड़े समय तक ही रहा, पर उसका प्रभाव भारत के राजनैतिक और सामजिक क्षेत्र में पड़े बिना नहीं रह सका. भारत पर हूणों का जो प्रभाव पड़ा, उसका वर्णन नीचे दिया गया है.

  • ऐतिहासिक प्रकरणों का विनाश
    हूण असभ्य और बर्बर थे. उन्होंने अपने आक्रमण और शासन की अवधि में अनेक मठ, मंदिर और ईमारतें नष्ट कर दीन और अनेक ऐतिहासिक ग्रन्थों का विनाश कर दिया. इस प्रकार ऐसी बहुत-सी सामग्री समाप्त हो गई, जिससे उस समय के इतिहास के बारे में बहुत मूल्यवान जानकारी प्राप्त की जा सकती थी.
  • राजनीतिक प्रभाव
    हूणों के आक्रमण का सबसे बुरा प्रभाव गुप्त साम्राज्य पर पड़ा. अनेक आक्रमणों ने उसे नष्ट कर दिया. स्कंदगुप्त के समय में हूणों को पहली बार करारी हार खानी पड़ी. जब तक स्कन्दगुप्त जीवित रहा, हूणों की दाल नहीं गल पाई. पर उसकी मृत्यु के बाद कोई भी ऐसी शक्तिशाली गुप्त शासक नहीं हुआ जो उनका सामना कर सकता था. हूणों ने स्थिति का लाभ उठाया और विशाल गुप्त सम्राट नष्ट हो गया. इतना ही नहीं, गुप्त साम्राज्य के नष्ट होने से भारत की राजनैतिक एकता भी नष्ट हो गई और सारा साम्राज्य छोटे-छोटे टुकड़ों में विभाजित हो गया.
  • सांस्कृतिक प्रभाव
    हूणों की बर्बरता ने भारत के सांस्कृतिक जीवन को काफी ठेस पहुँचाई. विद्वानों और कलाकारों का वध करके, साहित्यिक, सांस्कृतिक पुस्तकें जलाकर मठों, विहारों और इमारतों को नष्ट करके उन्होंने भारत की संस्कृति को बहुत क्षति पहुँचाई.

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