बिन्दुसार

बिन्दुसार - मौर्य शासक बिन्दुसार का इतिहास और  जीवन परिचय

बिन्दुसार मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य का पुत्र था, जो 297-98 ईसा पूर्व में शासक बना और उसने 272 ईसा पूर्व तक राजकाज किया। बिन्दुसार को 'अमित्रघात' भी कहा जाता है। यूनानी इतिहासकार उसे 'अमित्रोचेट्स' के नाम से पुकारते हैं। बिन्दुसार ने अपने पिता द्वारा जीते गए क्षेत्रों को पूर्ण रूप से अक्षुण्ण रखा था। बिन्दुसार की मृत्यु के बाद उसका पुत्र अशोक सम्राट बना। बिन्दुसार को यूनानियों ने 'अमित्रोचेट्स' कहा, जो संभवत: संस्कृत शब्द 'अमित्रघट' से लिया गया है, जिसका अर्थ है, 'शत्रुनाशक'। यह उपाधि दक्षिण में उनके सफल सैनिक अभियानों के लिये दी गई होगी, क्योंकि उत्तर भारत पर तो उनके पिता चंद्रगुप्त मौर्य ने पहले ही विजय प्राप्त कर ली थी। बिंदुसार का विजय अभियान कर्नाटक के आसपास जाकर रूका और वह भी संभवत: इसलिये कि दक्षिण के चोल, पांड्य व चेर सरदारों और राजाओं के मौर्यो से अच्छे संबंध थे। इसका पुत्र अशोक महान था।

 

पूर्व जीवन

प्राचीन और मध्यकालीन सूत्रों ने बिन्दुसार के जीवन को अपने दस्तावेजो में भी विस्तृत रूप से नही दर्शाया गया है। उनके जीवन से संबंधित बहुत सी जानकारी जैन और बुद्ध महामानवो से प्राप्त की गयी थी, जिनका ध्यान विशेष रूप से अशोका और चन्द्रगुप्त पर ही था। जैन महामानव जैसे की हेमचन्द्र परिशिष्ट परवाना ने बिन्दुसार की मृत्यु के हजारो साल बाद उनके बारे में लिखा था। बुद्ध जानकारों के लेखो में हमें अशोक के जीवन का अध्ययन करते समय बिन्दुसार के जीवन की झलक देखने को मिलती है। लेकिन बिन्दुसार के जीवन चरित्र को जानने के लिये वह जानकारी प्रयाप्त नही है। बिन्दुसार के ज्यादातर जीवन को बुद्ध महामानवो ने अपने लेखो में विस्तृत रूप से दर्शाया है। लेकिन बिन्दुसार के जीवन का वर्णन उनकी मृत्यु के हजारो साल बाद ही किया गया था।

बुद्धिस्ट स्त्रोतों के अनुसार बिन्दुसार के जीवन की जानकारियों में दिव्यवदाना, दिपवंसा, महावंसा, वंसत्थाप्पकसिनी, समन्थपसदिका और 16 वी शताब्दी में लिखित तारानाथ भी शामिल है। जैन स्त्रोतों में 12 वी शताब्दी का परिशिष्ट परवाना और 19 वी शताब्दी में देवचन्द्र द्वारा लिखित राजावली-कथा शामिल है। हिन्दू पुराण में बिन्दुसार को एक मौर्य शासक बताया गया है।

जीवन परिचय
चंद्रगुप्त की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र बिन्दुसार सम्राट बना। यूनानी लेखों के अनुसार इसका नाम अमित्रकेटे था। विद्वानों के अनुसार अमित्रकेटे का संस्कृत रूप है अमित्रघात या अमित्रखाद (शत्रुओं का नाश करने वाला)। सम्भवतः यह बिन्दुसार का विरुद रहा होगा। तिब्बती लामा तारनाथ तथा जैन अनुश्रुति के अनुसार चाणक्य बिन्दुसार का भी मंत्री रहा। चाणक्य ने 16 राज्य के राजाओं और सामंतों का नाश किया और बिन्दुसार को पूर्वी समुद्र से पश्चिमी समुद्र पर्यन्त भू-भाग का अधीश बनाया। हो सकता है कि चंद्रगुप्त की मृत्यु के पश्चात् कुछ राज्यों ने मौर्य सत्ता के विरुद्ध विद्रोह किया हो। चाणक्य ने सफलतापूर्वक उनका दमन किया। दिव्यावदान में उत्तरापथ की राजधानी तक्षशिला में ऐसे ही विद्रोह का उल्लेख है। इस विद्रोह को शान्त करने के लिए बिन्दुसार ने अपने पुत्र अशोक को भेजा था। इसके पश्चात् अशोक खस देश गया। 'खस' सम्भवतः नेपाल के आस-पास के प्रदेश के खस रहे होंगे। तारनाथ के अनुसार खस्या और नेपाल के लोगों ने विद्रोह किया और अशोक ने इन प्रदेशों को जीता।

विदेशों के साथ अशोक ने शान्ति और मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बनाए रखा। सेल्यूकस वंश के राजाओं तथा अन्य यूनानी शासकों के साथ चंद्रगुप्त के समय के सम्बन्ध बने रहे। स्टैवो के अनुसार सेल्यूकस के उत्तराधिकारी एण्टियोकस प्रथम ने अपना राजदूत डायमेकस बिन्दुसार के दरबार में भेजा। प्लिनी के अनुसार टोलमी द्वितीय फिलेडेल्फस ने डायोनियस को बिन्दुसार के दरबार में नियुक्त किया।

 

व्यक्तित्व
अपने पिता की भाँति बिन्दुसार भी जिज्ञासु था और विद्वानों तथा दार्शनिकों का आदर करता था। ऐथेनियस के अनुसार बिन्दुसार ने एण्टियोकस (सीरिया का शासक) को एक यूनानी दार्शनिक भेजने के लिए लिखा था। दिव्यावदान की एक कथा के अनुसार आजीवक परिव्राजक बिन्दुसार की सभा को सुशोभित करते थे।

इसके साथ ही हमें कुछ ऐसे प्रमाण भी मिलते हैं जिनसे एक विजेता के रूप में बिंदुसार की क्षमता पर से विश्वास कुछ उठ-सा जाता है, क्योंकि उसके शासनकाल में उसके साम्राज्य के उत्तर-पश्चिमी प्रांत तक्षशिला में विद्रोह उठ खड़ा हुआ था और इस विद्रोह का दमन करने के लिए उसे अपने सुयोग्य पुत्र अशोक को नियुक्त करना पड़ा था। यह बात मानी जा सकती है जो विस्तृत सामाज्य उसे अपने पिता से उत्तराधिकार में मिला था, उसे सँभालना ही उस-जैसे ऐश्वर्यप्रिय व्यक्ति के लिए बहुत बड़ा काम था जिसके लिए जीवन का सबसे बड़ा सुख "अंजीरों और अंगूर की शराब" में था, जो उसने अपने मित्र यूनान के राजा ऐंटिओकस से मँगवाई थीं। उसे इस बात का श्रेय देना कठिन है कि उसने स्वयं कोई विजय प्राप्त करके अपने राज्य में कोई वृद्धि की होगी।

 

माता-पिता 
बिन्दुसार का जन्म मौर्य साम्राज्य के शासक चन्द्रगुप्त मौर्य के बेटे के रूप में हुआ था। यही जानकारी हमें पुराण और महावंसा में देखने मिलती है।

चन्द्रगुप्त सेलयूसिड्स के साथ वैवाहिक बंधन में बंधे हुए थे और इसी वजह से यह अटकलबाजी भी की गयी की बिन्दुसार की माता ग्रीक नही थी। लेकिन इस बात का कोई इतिहासिक दस्तावेज नही है। 12 वी शताब्दी के जैन लेखक हेमचन्द्र परिशिष्ठ परवाना के अनुसार बिन्दुसार की माता का नाम दुर्धरा था।

 

बिंदुसार का राज्यकाल
बिंदुसार के राज्यकाल में प्रांतीय अधिकारियों के अत्याचार के कारण तक्षशिला के प्रांत में विद्रोह हुआ. बिंदुसार का बड़ा पुत्र सुषीम उस प्रांत का शासक था. जब वह इस विद्रोह को न दबा सका तो अशोक को इस काम के लिए भेजा गया. उसने पूर्णतया विद्रोह को दबाकर शांति स्थापित की.

 

विद्रोहों का दमन
दिव्यावदान (बौद्ध कथाओं का ग्रंथ) के अनुसार उत्तरापथ की राजधानी तक्षशिला में दो विद्रोह हुए. प्रथम विद्रोह को शांत करने के लिए बिंदुसार ने अपने पुत्र अशोक को भेजा. जब अशोक तक्षशिला पहुँचा तो वहाँ के लोगों ने आग्रह किया कि ” न तो हम कुमार के विरुद्ध हैं और न ही सम्राट बिंदुसार के. परन्तु दुष्ट अमात्य हमारा अपमान करते हैं.” ऐसा प्रतीत होता है कि सीमान्त प्रदेशों का शासन दमनपूर्ण था और वहाँ के लोग अपने प्रांतीय गवर्नरों से असंतुष्ट थे. इसी प्रांत में दूसरे विद्रोह को दबाने के लिए बिंदुसार ने कुमार सुसीम को भेजा था. एक अन्य विद्रोह का उल्लेख मिलता है जो स्वश (रवस्या) राज्य में हुआ. स्टीन महोदय के अनुसार यह स्वश राज्य कश्मीर के दक्षिण-पश्चिम फैला हुआ था. कुछ भारतीय इतिहासकारों के अनुसार यह नेपाल के नजदीक था.

 

विदेशी देशों से संबंध
बिंदुसार ने विदेशों से भी शांतिपूर्ण समबन्ध रखे. यूनान के राजा डेइमेकस नामक राजदूत को और मिस्र के राजा ने डायनीसियस (Dionisias) नामक राजदूत को बिंदुसार के दरबार में भेजा. कहा जाता है कि उसने सीरिया के राजा एंटिओकस (Antiochus) को लिखा था कि वह अपने देश से कुछ मधुर मदिरा, सूखे अंजीर और एक दार्शनिक भेज दे. उत्तर में सीरिया के शासक ने लिखा कि पहली दो वस्तुएँ तो वह बड़ी प्रसन्नता से भेज देगा, किन्तु सीरिया के नियमों को ध्यान में रखते हुए दार्शनिक भेजना संभव नहीं है. पत्र-व्यवहार से स्पष्ट है कि बिंदुसार को दर्शन-शास्त्र में रूचि थी और उसके समय में भारत और पश्चिमी देशों में सामाजिक, व्यापारिक और कूटनीतिक सम्बन्ध विद्यमान थे.

मृत्यु 

इहितासिक दस्तावेज यह दर्शाते है की बिन्दुसार की मृत्यु 270 BCE में हुई थी। उपिंदर सिंह के अनुसार बिन्दुसार की मृत्यु तक़रीबन 273 BCE में हुई थी। अलेन डेनीलोउ का मानना है की उनकी मृत्यु 274 BCE में हुई थी। शैलेन्द्र नाथ सेन का मानना है की उनकी मृत्यु 273-272 BCE में हुई थी और उनकी मृत्यु के चार साल बाद कड़ा संघर्ष करने के बाद बिन्दुसार का बेटा अशोका 269-268 BCE में शासक बना था।


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